रावण का युद्धभूमि में उतरना व श्रीराम के हाथों हार कर वापस लंका में जाना, कुंभकर्ण का वध व हनुमान जी का लक्ष्मण के लिए संजीवनी बुटी लाने का प्रसंग
उधर, जैसे ही रावण को प्रहस्त की मृत्यु का समाचार मिला वैसे ही वो बौखला गया। लगातार अपने योद्धाओं के मारे जाने पर रावण ने स्वयं ही युद्ध भूमि में जाने का निर्णय किया। उसने सभा में जाकर कहा, वीर राक्षसों लगता है अब इन उत्पाती वानरों की मृत्यु का समय आ गया है। मेरे एक से बढ़कर एक वीर योद्धाओं को मारकर वानरों ने अपने काल को निमंत्रण दिया है। अब मुझे ही युद्ध में जाना पड़ेगा और इन्हें अपने किए का फल देना पड़ेगा। ऐसा कहकर रावण अपने विशालकाय रथ पर सवार होकर अपनी अथाह सेना के साथ निकल पड़ा। विशाल वानर सेना को लंका नगरी के द्वार से बाहर आते देख वानर सेना सतर्क हो गई। रावण का विशाल रथ देख कर वानर डर-सहम गए। एक के उपर एक ऐसे पांच हाथियों के बराबर उंचा व चौड़ा रथ, उस पर विशाल नक्काशी किया हुआ आसन और आसन पर विराजमान खुंखार दिखने वाला लंकापति रावण। रावण के रथ को खींचने के लिए ही एक टुकड़ी के बराबर सेना लगी हुई थी। राक्षस नगरी में जोर शोर से ढ़ोल-नगाड़े और शंख बजने लगे। मांसभक्षी राक्षस अपने महाराज को देख कर खुशी से झुमने लगे। इतने बड़े रथ और उस पर सवार भयशाली मुख वाले रावण को देख कर वानर सहम गए। सभी वानर एक दुसरे को देख कर खुसफुसाने लगे। तभी विभीषण ने रावण को पहचाना और दौड़ कर प्रभु श्रीराम के पास पहुंचे और उन्हें इस बारे में बताया। प्रभु श्रीराम ने सुबेल पर्वत की उंची चट्टान पर चढ़कर रावण को देखा और विभीषण से कहा, हे विभीषण, रावण भले ही राक्षस कुल में जन्मा राक्षसराज हो, लेकिन उसके चेहरे का तेज तो किसी देवता की तरह है। तीन लोकों को जीनते वाले इस लंकापति के बुरे कर्म ही इसकी मृत्यु का कारण बनेंगे। ऐसा कहकर प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण ने अपने-अपने धनुष बाण हाथों में लिए और मोर्चा संभाल लिया।