Why Should You Read This Summary?
उत्तरकाण्ड
दोस्तों अब हम महर्षि वाल्मीकि जी द्वारा लिखी गई रामायण के अंतिम काण्ड यानी उत्तर काण्ड को सुनेंगे। यह काण्ड रावण के वध के बाद प्रभु श्रीराम के पुनः अयोध्या के राजा बनने के बाद के घटनाक्रमों पर आधारित है। इस काण्ड में कुल 111 सर्ग व 3,432 श्लोक हैं, जिनमें प्रभु श्री राम का राज्याभिषेक, राम दरबार में आए महर्षियों के द्वारा समुचे राक्षस वंश और रावण के परिवार के बारे में बताना, प्रभु श्री राम द्वारा सभी आगंतुक राजाओं व महर्षियों को आदर सहित विदा करना, माता सीता का परित्याग कर उन्हें महल से निकालना, वाल्मीकि आश्रम में लव और कुश का जन्म और माता सीता का जीवन, शत्रुघ्न द्वारा लवणासुर का वध, श्रीराम का अश्वमेध यज्ञ, वाल्मीकि के साथ लव-कुश का अश्वमेध यज्ञ में प्रवेश, माता सीता का रसातल में प्रवेश, आदि प्रसंग वर्णित है। तो आईए प्रभु श्री राम का नाम लेकर महाकाव्य रामायण के इस अंतिम काण्ड को शुरु करते हैं।
श्रीराम दरबार में महर्षियों व ऋषि-मूनियों से
संवाद व रावणकुल की उत्पत्ति का प्रसंग
दोस्तों हमने युद्धकाण्ड के अंत में पढ़ा था कि प्रभु श्री राम रावण का संहार करने के बाद अयोध्या लौटते हैं। जहां गुरू वसिष्ठ की आज्ञा से उनका भव्य राजतिलक कर उन्हें अयोध्या का महाराज बनाया जाता है। प्रभु श्री राम के राजा बनने के बाद सुग्रीव सहित पूरी वानर सेना व अन्य मेहमानों को यथायोग्य सम्मान, उपहार व आभुषण देकर विदा किया जाता है। इसके कुछ दिनों के बाद अयोध्या नगरी में समस्त भारत देश से बड़े विद्वान महर्षियों व ऋषि-मूनियों का आना शुरू होता है। सभी संत-महात्मा प्रभु श्री राम द्वारा राक्षस कुल का नाश करने से बहुत प्रसन्न थे और श्रीराम को आशीर्वाद देना चाहते थे। चारों दिशाओं से विद्वान महापुरुषों व ऋषि महात्माओं को पाकर अयोध्या नगरी धन्य हो गई थी। पूर्व दिशा से महर्षि कौशिक, यवक्रीत, गालव, गार्ग्य व कण्व का आगमन हुआ। दक्षिण दिशा में निवास करने वाले महर्षि अगस्त्य, स्वत्यात्रेय, नमुचि, प्रमुचि, सुमुख व विमुख आदि ऋषि भी अयोध्या पधारे। साथ ही पश्चिम दिशा से महर्षि कौशेय, कवष व धौम्य ऋषि भी अपने शिष्यों के साथ सरयु के रमणीय तट पर बसे कौशल प्रदेश अयोध्या नगरी में पधारे।