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शिवाजी महाराज: पार्ट 3
शिवा काशिद शिवाजी महाराज का नाई था. उसकी शक्ल-सूरत शिवाजी से काफी हद तक मिलती थी. इसलिए जब उसके यार-दोस्त उसे मज़ाक में राजे कहकर बुलाते तो शिवा काशिद को बड़ा अच्छा लगता था. यहाँ तक कि वो शिवाजी जैसे ही बाल और दाढ़ी भी रखने लगा था ताकि वो एकदम राजे जैसा लगे.
शिवाजी महाराज जानबूझकर किसी की जान खतरे में नहीं डालना चाहते थे. लेकिन उनके पास कोई और चारा नहीं था. स्वराज्य के भविष्य पर खतरे के बादल मंडरा रहे थे. ऐसे में शिवा काशिद को जब पता चला कि शिवाजी को बचाने के लिए उनके किसी हमशक्ल की जरूरत है तो वो ख़ुशी-खुशी तैयार हो गया. उसने एक पल का भी विचार नहीं किया. उसके लिए इससे बड़े गौरव की बात भला और क्या हो सकती थी. तो इस तरह तय हुआ कि जिस वक्त शिवाजी महाराज किले से छुपकर निकल रहे होंगे उसी वक्त शिव काशिद शिवाजी का भेष बनाकर शाही पालकी में बैठकर किले से निकलेगा.
शिवा काशिद शिवाजी के कपड़े पहनकर और उनकी तरह भेष बनाकर पालकी में बैठ गया. उसे इस बात की जरा भी परवाह नहीं थी कि उसकी जिंदगी खतरे में पड़ सकती है.
सिद्दी जौहर के आदमीयों ने जब देखा कि एक पालकी किले से निकल रही है तो उन्होंने पालकी को चारों तरफ से घेर लिया और इस तरह शिवा काशिद को गिरफ्तार कर लिया गया. सिद्दी जौहर ख़ुशी के मारे सांतवे आसमान पर थे कि उन्होंने शिवाजी महाराज को पकड़ा है लेकिन जल्द ही उन्हें पता चला कि वो शिवाजी नहीं बल्कि उनका हमशक्ल है. मगर तब तक शिवाजी महाराज करीब 600 मालवा के साथ एक गुप्त रास्ते से विशालगढ़ के लिए रवाना हो चुके थे.
जब खुद शिवाजी के सिपाही कई बार शिवा काशिद और शिवाजी के बीच धोखा खा जाते थे तो भला सिद्दी जौहर कैसे शक करता. शिवा काशिद सिद्दी जौहर के साथ बैठा था और दोनों काफी देर तक शिवाजी महाराज के बच निकलने के बारे में बातें करते रहे. इसका फायदा ये हुआ कि तब तक शिवाजी को अपने आदमियों के साथ किले से निकल भागने का मौका मिल गया था और वो लोग पन्ह्लगढ़ से काफी दूर निकल आए थे.
लेकिन जल्द ही सिद्दी जौहर के आदमियों को शिवा काशिद पर शक हो गया क्योंकि शिवाजी के किले से बचकर भागने की खबर उनके कानों तक पहुँच चुकी थी और जैसे ही सिद्दी जौहर को ये बात पता चली वो गुस्से से पागल हो गया, उसने शिवा काशिद के पेट में तलवार घोंप दी. अपने आख़िरी वक्त में भी शिवा काशिद शिवाजी महाराज को याद करता रहा. उसने कहा हालाँकि वो शिवाजी नहीं है पर उसे ख़ुशी है कि वो उनके काम आ सका और वो मरते दम तक अपना सिर नहीं झुकाएगा. इसी के साथ उसने अपनी आखिरी साँस ली लेकिन मरते दम तक वो एक खम्बे को पकड़े रहा ताकि उसका सिर सिद्दी जौहर के सामने ना झुक सके.
जिस वक्त सिद्दी जौहर के सिपाहियों को पता चला कि शिवाजी महाराज बचकर निकल गए हैं तो वो लोग भी उनका पीछा करते हुए विशालगढ़ की तरफ निकल गए ताकि शिवाजी को रास्ते में ही पकड़कर उन्हें मौत के घाट उतार सकें.
राजे और उनके सिपाहियों ने दूर से ही देख लिया था कि पन्ह्लगढ़ के रास्ते पर धूल का एक बवंडर उड़ रहा था. सिद्दी जौहर की फौज़ उन पर हमला करने को तैयार थी. शिवाजी महाराज जानते थे कि जल्द ही फौज़ उन्हें घेर लेगी इसलिए शिवाजी और उनके आदमी भी जवाबी हमले के लिए तैयार हो गए.
इस मुश्किल वक्त में विशालगढ़ पहुँचना नामुमकिन सा लग रहा था. राजे बड़ी दुविधा में थे कि आगे बढ़े या रुककर दुश्मन का मुकाबला करे. तभी बाज़ी प्रभु देशपांडे, जो उनके साथ चल रहे थे, ने फौज़ को रुकने का हुक्म दिया. देशपांडे शिवाजी के पास आए और कहा कि वो गोड्खिंडी के पास ही रुकेंगे और दुश्मन के एक भी आदमी को आगे नहीं बढने देंगे.
शिवाजी जानते थे कि उनके पास आदमी कम हैं और इतनी बड़ी फौज़ का मुकाबला करना कोई हंसी-खेल नहीं है ऐसे में बाज़ी प्रभु देशपांडे का बचकर निकलना एक तरह से नामुमकिन था. शिवाजी बेहद मायूस हो गए थे लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी, उम्मीद की एक छोटी सी किरण अभी बाकि थी.
जाने से पहले बाज़ी प्रभु ने शिवाजी से कहा कि वो उन्हें तोप की आवाज़ के साथ ईशारा दे दे. शिवाजी ने बाज़ी प्रभु को गले लगा लिया. उनके लिए उनकी फौज़ का एक-एक सिपाही किसी हीरे से कम नहीं था. ऐसे में वो भला कैसे बर्दाश्त कर सकते थे कि उनके आदमियों का बाल भी बांका हो. लेकिन सबके सीने में जो स्वराज की आग धधक रही थी उसके आगे हर कुर्बानी छोटी थी. शिवाजी और उनके आदमी सिर पर कफ़न बाँधे हर मुश्किल का सामना करने को तैयार थे.
बाज़ी प्रभु ने अपने आदमियों को ऐसी जगह पर तैनात कर रखा था जहाँ से वो लोग दुश्मन की फौज़ की ज्यादा से ज्यादा तबाही कर सकते थे. जैसे ही उन्हें सिद्दी जौहर के सिपाहियों का पहला जत्था नज़र आया बाज़ी और उनके आदमियों ने फौरन उन पर हमला बोल दिया और सबका खात्मा कर डाला. सिद्दी जौहर इस हमले से बौखला उठा था. उसने सेना की एक बड़ी टुकड़ी भेजी जिसमें हज़ार से भी ज्यादा सिपाही थे. उनका मुकाबला करने के लिए तीन सौ मालवा सिपाही सीना तानकर खड़े थे. मुकाबला बरारबी का नहीं था तो भी शिवाजी के बहादुर सिपाहियों ने दुश्मन की फौज़ के छक्के छुड़ा दिए थे.