Why Should You Read This Summary?
साल-भर की बात है, एक दिन शाम को हवा खाने जा रहा था कि महाशय नवीन से मुलाक़ात हो गयी। मेरे पुराने दोस्त हैं, बड़े बेफिक्र और मनचले। आगरे में मकान है, अच्छे कवि हैं। उनके कवि-समाज में कई बार शामिल हो चुका हूँ। कविता को इतना चाहने वाला मैंने नहीं देखा। पेशा तो वकालत है ; पर डूबे रहते हैं कविताओं में। आदमी तेज दिमाग है, मुक़दमा सामने आया और उसकी सच्चाई तक पहुँच गए ; इसलिए कभी-कभी मुक़दमे मिल जाते हैं, लेकिन अदालत के बाहर अदालत या मुक़दमे की बात उनके लिए बिल्कुल मना है।
अदालत की चारदीवारी के अन्दर चार-पाँच घंटे वह वकील होते हैं। चारदीवारी के बाहर निकलते ही कवि हैं सिर से पाँव तक। जब देखिए, कवि दल जमा है, कवियों से बात हो रही है, कविताएं सुन रहे हैं। मस्त हो-होकर झूम रहे हैं, और अपनी रचना सुनाते समय तो उन पर एक खुमारी-सी छा जाती है। आवाज भी इतनी मीठी है कि उनके शब्द तीर की तरह सीधे कलेजे में उतर जाते हैं। अध्यात्म में मिठास भरना, मामूली में खास दिखाना उनकी कविताओं की खासियत है। वह जब लखनऊ आते हैं, मुझे पहले खबर दे दिया करते हैं। आज उन्हें ऐसे ही लखनऊ में देखकर मुझे आश्चर्य हुआ, "आप यहाँ कैसे? सब ठीक तो है? मुझे आने की खबर तक न दी।"
बोले, "भाईजान, एक परेशानी में फँस गया हूँ। आपको खबर देने का समय न था। फिर आपके घर को मैं अपना घर समझता हूँ। इसतकल्लुफ़की क्या ज़रूरत है कि आप मेरे लिए कोई खास इंतजाम करें। मैं एक ज़रूरी मामले में आपको तकलीफ देने आया हूँ। इस वक्त की सैर को बंद कीजिए और चलकर मेरी मुसीबत की कहानी सुनिए।"
मैंने घबराकर कहा, "आपने तो मुझे चिन्ता में डाल दिया। आप और मुसीबत! मेरी तो जान सूखी जाती है।"
"घर चलिए, मन शान्त हो तो सुनाऊँ!"
"बाल-बच्चे तो अच्छी तरह हैं?"
"हाँ, सब अच्छी तरह हैं। वैसी कोई बात नहीं है!"
"तो चलिए, रेस्ट्रां में कुछ नाश्ता तो कर लीजिए।"
"नहीं भाई, इस वक्त मुझे नाश्ता नहीं सूझता।"
हम दोनों घर की ओर चले। घर पहुँचकर उनका हाथ-मुँह धुलाया, शरबत पिलाया। इलायची-पान खाकर उन्होंने अपनी मुसीबत की कहानी सुनानी शुरू की--
"कुसुम की शादी में आप गए ही थे। उसके पहले भी आपने उसे देखा था। मेरा ख्याल है कि किसी सरल स्वभाव के आदमी को आकर्षित करने के लिए जिन गुणों की ज़रूरत है, वह सब उसमें मौजूद हैं। आपका क्या ख़्याल है?"
मैंने तुरंत कहा, "मैं आपसे कहीं ज्यादा कुसुम की तारीफ करने वाला हूँ। ऐसी शर्मीली, अच्छी, सलीक़ेदार और हंसमुख लड़की मैंने दूसरी नहीं देखी।"
महाशय नवीन ने दुखी आवाज में कहा, "वही कुसुम आज अपने पति के बुरे व्यवहार के कारण रो-रोकर जान दे रही है। उसका गौना हुए एक साल हो रहा है। इस बीच में वह तीन बार ससुराल गयी, पर उसका पति उससे बोलता ही नहीं। उसकी सूरत से नाखुश है। मैंने बहुत चाहा कि उसे बुलाकर दोनों में सुलह करा दूं, मगर न आता है, न मेरी चिट्ठियों का जवाब देता है। न जाने क्या गाँठ पड़ गयी है कि उसने इस बेरहमी से आँखें फेर लीं। अब सुनता हूँ, उसकी दूसरी शादी होने वाली है। कुसुम का बुरा हाल हो रहा है। आप शायद उसे देखकर पहचान भी न सकें। रात-दिन रोने के सिवा दूसरा काम नहीं है।
इससे आप हमारी परेशानी का अनुमान कर सकते हैं। ज़िन्दगी की सारी इच्छाएँ मिटी जाती हैं। हमें भगवान ने बेटा न दिया; पर हम अपनी कुसुम को पाकर सन्तुष्ट थे और अपने नसीब को अच्छा मानते थे। उसे कितने लाड़-प्यार से पाला, कभी उसे फूल की छड़ी से भी न छुआ। उसकी पढ़ाई लिखाई में कोई बात बाकी न रखी। उसने बी. ए. नहीं पास किया, लेकिन मन की समझदारी और अकलमंदी में किसी ऊँचे दर्जे की पढ़ीलिखी औरत से कम नहीं है । आपने उसके लेख देखे हैं। मेरा ख़याल है, बहुत कम देवियाँ वैसे लेख लिख सकती हैं! समाज, धर्म, नीति सभी के बारे में उसके ख्याल बड़े साफ हैं। बहस करने में तो वह इतनी कुशल है कि मुझे आश्चर्य होता है।
घर संभालने में इतनी निपुण कि मेरे घर का लगभग सारा इंतजाम उसी के हाथ में था; लेकिन पति की नजर में वह पाँव की धूल बराबर भी नहीं। बार-बार पूछता हूँ, तूने उसे कुछ कह दिया है, या क्या बात है? आख़िर, वह क्यों तुझसे इतना उदासीन है? इसके जवाब में रोकर यही कहती है "मुझसे तो उन्होंने कभी कोई बातचीत ही नहीं की।" मेरा विचार है कि पहले ही दिन दोनों में कुछ मनमुटाव हो गया। वह कुसम के पास आया होगा और उससे कुछ पूछा होगा। उसने मारे शर्म के जवाब न दिया होगा। मुमकिन है,उससे दो-चार बातें और भी की हों। कुसुम ने सिर न उठाया होगा। आप जानते ही हैं, कि कितनी शर्मीली है। बस, पतिदेव रूठ गए होंगे।
मैं तो कल्पना ही नहीं कर सकता कि कुसम-जैसी बच्ची से कोई आदमी उदासीन रह सकता है, लेकिन बदनसीबी का कोई क्या करे? दुखिया ने पति के नाम कई चिट्ठियां लिखी, पर उस बेरहम ने एक का भी जवाब न दिया! सारी चिट्ठियाँ लौटा दीं। मेरी समझ में नहीं आता कि उस पत्थर-दिल को कैसे पिघलाऊँ। मैं अब खुद तो उसे कुछ लिख नहीं सकता। आप ही कुसुम की जान बचाइये, नहीं तो जल्दी ही वह मर जाएगी और उसके साथ हम दोनों लोग भी मर जाएँगे। उसकी तकलीफ अब नहीं देखी जाती।"
नवीनजी की आँखें गीली हो गयीं। मुझे भी बहुत दुख हुआ। उन्हें तसल्ली देता हुआ बोला, "आप इतने दिनों इस चिन्ता में पड़े रहे, मुझसे पहलेही क्यों न कहा? मैं आज ही मुरादाबाद जाऊँगा और उस लड़के की इस तरह खबर लूँगा कि वह भी याद करेगा। बच्चू को ज़बरदस्ती घसीट कर लाऊँगा और कुसुम के पैरों पर गिरा दूंगा।"
नवीनजी मेरे आत्मविश्वास पर मुसकराकर बोले, "आप उससे क्या कहेंगे?"
"यह न पूछिये! वश में करने के जितने मन्त्र हैं, उन सभी की परीक्षा करूँगा।"
"तो आप कभी भी कामयाब न होंगे। वह इतना शीलवान, इतना विनम्र, हंसमुख है, इतना मीठा बोलने वाला कि आप वहाँ से उसके भक्त होकर लौटेंगे! वह रोज आपके सामने हाथ बाँधे खड़ा रहेगा। आपका सारा गुस्सा शान्त हो जायगा। आपके लिए तो एक ही तरीका है। आपके कलम में जादू है! आपने कितने ही लड़कों को सही रास्ते पर लगाया है। दिल में सोयी हुई मानवता को जगाना आपका फर्ज है। मैं चाहता हूँ, आप कुसुम की ओर से इतनी दुख भरी,दिल देहला देनेवाली चिट्ठी लिखें कि वह शर्मिंदा हो जाए और उसका प्यार जाग उठे। मैं जीवन-भर आपका आभारी रहूँगा।"
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