Why Should You Read This Summary?
अध्याय 9- राजविद्या राजगुह्य योग
परम गोपनीय ज्ञानोपदेश, उपासनात्मक ज्ञान, ईश्वर का विस्तार
श्लोक 1:
श्री भगवान् बोले, “तुझ दोष रहित भक्त के लिए मैं इस परम गोपनीय ज्ञान को विज्ञान सहित कहूँगा, जिसे जानकर तू दुःख रूपी संसार से मुक्त हो जाएगा. यह विज्ञान सहित ज्ञान सब विद्याओं का राजा, अति पवित्र, अति गोपनीय, अति उत्तम, प्रत्यक्ष फलवाला, धर्मयुक्त, करने में बड़ा सरल और अविनाशी है. हे परंतप! जो पुरुष इस ज्ञान में अश्रद्धा रखते हैं वे मुझे प्राप्त किए बिना ही इस मृत्यु रुपी संसार में भ्रमण करते रहते हैं.”.
अर्थ – शुरूआत के श्लोक में ही श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि वो उन्हें आत्मा के ज्ञान बारे में विज्ञान सहित समझाएँगे क्योंकि आत्मा का ज्ञान ही मोक्ष पाने का साधन है. शरीर में वास करने वाली आत्मा को जानना और परम तत्व को पहचानना, इसे बड़ा ही गहरा ज्ञान कहा गया है क्योंकि ये वो ख़ूबसूरत अनुभूति है जिसे केवल ख़ुद ही अनुभव किया जा सकता है. इसे शब्दों में बयान कर पाना लगभग नामुमकिन है. अर्जुन को भगवान् दोषरहित इसलिए कह रहे हैं क्योंकि वो इर्ष्या-जलन की भावना से मुक्त थे और उन मनुष्यों में से नहीं थे जो दूसरों में दोष ढूँढने या दूसरों के कहे मुताबिक़ बिना सोचे समझे कदम उठा लेते थे. लोगों और दुनिया को देखने का उनका नज़रिया बेदाग़ था यानी जो जैसा है वो उसे वैसा ही देखते थे, अपनी ओर से कुछ जोड़कर उसमें दाग नहीं लगाते थे. यहाँ कहने का भाव ये है कि जो मन जितना साफ़ होगा वो उतना ही ज्ञान को बेहतर समझने योग्य बन जाता है यानी अगर मनुष्य अपना नज़रिया बदल ले तो नज़ारे अपने आप बदल जाते हैं. जब तक मनुष्य के मन में छल, कपट, दूसरों का बुरा चाहना, लालच आदि जैसे भाव होंगे तब तक वो आत्मा के ज्ञान से कोसों दूर होगा. वो इसे समझना तो दूर बल्कि परम आत्मा के अस्तित्व पर भी सवाल उठाने की गलती करेगा और इस माया रुपी संसार को परम सच मानता रहेगा. यहाँ दोष का एक और मतलब है, जब मनुष्य के मन में लोभ, मोह, इर्ष्या, द्वेष हो तो ऐसे नकारात्मक गुणों को दोष कहा जाता है और यही हर मुसीबत की जड़ भी होती है. दूषित मन से परम शुद्ध परम तत्व को महसूस नहीं किया जा सकता. अगर परम तत्व को अनुभव करना है तो मनुष्य को अपने मन से हर विकार जैसे लोभ, मोह, इर्ष्या, वासना आदि को जड़ से ख़त्म करना होगा.
श्री भगवान कहते हैं कि जो इस ज्ञान को प्राप्त करता है वह जीवन के सभी कष्ट देने वाली समस्याओं से मुक्त हो जाता है. इस ज्ञान को पा लेने के बाद मनुष्य जीवन में किसी भी परिस्थिति का सामना करने के लिए सक्षम हो जाता है और मुस्कुराते हुए किसी भी परेशानी या दुःख का सामना कर सकता है। इसका कारण है कि वो जान जाता है कि सुख-दुःख सिक्के के दो पहलू हैं जो जीवन में साथ-साथ चलते हैं. चाहे कुछ भी हो जाए बदलाव तो एक ना एक दिन होना ही है. ये सच उसे माया के भ्रम से दूर कर सच की ओर ले जाती है. इसके साथ ही भगवान् ये विश्वास दिलाते हुए कहते हैं कि जब इस ज्ञान को जीवन में उतारा जाता है तो मनुष्य को संसार के सभी बंधनों से मुक्ति मिल जाती है।
ये ज्ञान अविनाशी है, जिसे अगर मनुष्य एक बार अनुभव कर ले तो वो कभी नष्ट नहीं होता और हमेशा उसके साथ बना रहता है. जिस तरह कमरे में एक छोटे से दीपक की रौशनी भी गहरे से गहरे अंधकार का तुरंत नाश कर देती है, उसी प्रकार ब्रह्म का ज्ञान जब मन में उतर जाता है , तो वो अज्ञान रुपी अंधकार और पिछले जन्मों के जमा हुए कर्मों को जलाकर भस्म कर देती है। ब्रह्म के ज्ञान से मिलने वाला आनंद शाश्वत है। इसलिए शांति और सुख की इच्छा रखने वाले सभी को ब्रह्म का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए।
अध्यात्म की यात्रा में केवल सच्ची श्रद्धा और अटल विश्वास ही मनुष्य को आगे ले जा सकते हैं. यहाँ आस्थाहीन लोगों का मतलब है वे मनुष्य जो ख़ुद को शरीर मानते हैं और आत्मा की अविनाशीता और अमरता में विश्वास नहीं करते। ऐसे लोग परम पिता से जुड़ने के बजाय जगत से जुड़कर जीते हैं और बार-बार जीवन चक्र में घूमते रहते हैं अर्थात बार-बार जन्म लेकर संसार में लौट आते हैं.
Puri Geeta Sune..