Why Should You Read This Summary?
अध्याय १८ – मोक्षसंन्यासयोग
भाग २
फल सहित वर्ण धर्म का विषय
श्लोक १ :
श्रीकृष्ण कहते हैं, “हे परंतप! ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र के कर्म स्वभाव से उत्पन्न गुणों द्वारा विभक्त किए गए हैं”৷
अर्थ- इस श्लोक में श्रीकृष्ण अलग-अलग गुणों की विशेषताओं के आधार पर पूरी मानव जाति को चार वर्णों में बताते हैं - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र।
मनुष्यों को उनकी प्रकृति (स्वभाव) यानी जो गुण उनमें सबसे ज़्यादा प्रबल होता है, उसके आधार पर अलग-अलग तरह के कर्तव्य सौंपे गए हैं। ये मनुष्य के गुणों पर आधारित है ना कि उसके जन्म पर.
मनुष्य जैसे कर्म करता है उसके चित्त में उसके संस्कार पड़ते हैं और उन संस्कारों के अनुसार उसका स्वभाव बनता है. इस तरह पहले के जन्मों में किए गए कर्मों के संस्कार के अनुसार मनुष्य का जैसा स्वभाव होता है उसी के अनुसार उसमें –सत्व, रज और तम गुण की वृत्तियाँ उत्पन्न होती हैं. इन गुणों के अनुसार ही इन चार वर्णों को बनाया गया है क्योंकि मनुष्य की जैसी वृतियाँ होंगी वो वैसे ही कर्म करेगा.
ये व्यवस्था इसलिए बनाई गई थी ताकि मनुष्य उस काम को चुने जिसे करने की गहरी इच्छा उसके मन में उठे यानी अगर उसकी रूचि ज्ञान में है तो वो ब्राह्मण बने, अगर उसे हिसाब किताब व्यापार करने में रूचि है तो वो वैश्य बने आदि. ऐसा करना मनुष्य को उस फील्ड में एक्सपर्ट बना देता है, उससे बेस्ट परफॉरमेंस निकलवा सकता है. मन अनुसार काम चुनने से मनुष्य के मन में ख़ुशी और संतुष्टि दोनों बनी रहती है जिस कारण वो आधे अधूरे मन से काम नहीं करता और ना ही उसके मन में कोई खिन्नता या काम के प्रति कोई अरुचि होती है, जिससे उसके मन में शांति बनी रहती है. इन सब का असर पूरे समाज पर पड़ता है क्योंकि वही समाज उन्नति कर सकता है जिसमें हर मनुष्य अपने एक्सपर्ट स्किल्स के साथ अपनी बेस्ट सर्विस दे रहा हो.