श्लोक १:
अर्जुन बोले, “हे महाबाहो! हे अंतर्यामी! हे वासुदेव! मैं संन्यास और त्याग के तत्व को अलग-अलग जानना चाहता हूँ.”
अर्थ –अर्जुन का सवाल दिखाता है कि वो प्रकृति और आत्मा से जुड़ी हर बात को गहराई से समझना चाहते थे. यहाँ अर्जुन की जिज्ञासा किसी सिद्धांत को केवल जानने के लिए नहीं है बल्कि उसके अनुसार अपना जीवन बिताने के लिए भी है. अपना कल्याण तो केवल वो ही कर सकते हैं जो किसी सिद्धांत को समझकर उसके अनुसार अपना जीवन बनाने के लिए तत्पर होते हैं.
संन्यास का मतलब है प्रकृति की चीज़ को प्रकृति में छोड़ देना और अपने विवेक द्वारा प्रकृति से अपना हर संबंध अलग कर देना.
कर्म और उसके फल के प्रति जो लगाव है उसे छोड़ देना त्याग कहलाता है. जो कर्म और उसके फल में आसक्त नहीं होता वो योगारुड़ हो जाता है.