Why Should You Read This Summary?
अध्याय 13- ज्ञानसहित क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का विषय
श्लोक 1 :
अर्जुन ने पूछा, “हे केशव! मैं आपसे प्रकृति एवं पुरुष, क्षेत्र एवं क्षेत्रज्ञ और ज्ञान एवं ज्ञान के लक्ष्य के विषय में जानना चाहता हूँ.”
अर्थ - प्रकृति और पुरुष:
प्रकृति पदार्थ है यानी matter जो बेजान होता है। पुरुष आत्मा है यानी चेतना या consciousness। आत्मा अपने आपको matter के ज़रिए एक्सप्रेस करती है। जब पुरुष प्रकृति के साथ जुड़ता है तो उससे अच्छे या बुरे अनुभव होते हैं यानी जीवन की शुरुआत होती है।
क्षेत्र और क्षेत्र का ज्ञाता:
क्षेत्र का मतलब है पांच भूत से बना शरीर, प्रकृति. क्षेत्रज्ञ का मतलब है क्षेत्र यानी प्रकृति और शरीर को जानने वाला। अर्जुन का सवाल दिखता है किअब वो सांख्य योग को और गहराई से जानना चाहते थे।
श्लोक 2:
श्री भगवान् बोले, “हे अर्जुन! यह क्षेत्र नाम से कहा जाता है और इसे जानने वाला क्षेत्रज्ञ कहलाता है. हे अर्जुन! तू सब क्षेत्रों में क्षेत्रज्ञ मुझे ही जान और क्षेत्र क्षेत्रज्ञ को तत्व से जानना ही ज्ञान है- ऐसा मेरा मत है.वह क्षेत्र जो और जैसा है तथा जिन विकारों वाला है और जिस कारण से जो हुआ है तथा वह क्षेत्रज्ञ भी जो और जिस प्रभाववाला है- वह सब संक्षेप में मुझसे सुन. यह क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का तत्व ऋषियों द्वारा बहुत प्रकार से कहा गया है और विविध वेदमन्त्रों द्वारा भी विभागपूर्वक कहा गया है तथा भलीभाँति निश्चय किए हुए युक्तियुक्त ब्रह्मसूत्र के पदों द्वारा भी कहा गया है.”
अर्थ –श्रीकृष्ण बताते हैं कि मनुष्य का शरीर क्षेत्र है और इस शरीर को जानने वाले को क्षेत्रज्ञ कहते हैं यानी वो जो दिखाई देने वाली चीज़ों को जानने वाला होता है. ये शरीर पांच भूतों से बना है, इस शरीर के द्वारा सभी कर्म होते हैं, इस शरीर में बदलाव भी होता है. जिस तरह खेत में बोए गए बीज समय के साथ उसके अनुरूप फसल देते हैं, वैसे ही इस शरीर में बोए गए कर्म के बीज उचित समय पर अपना फल देते हैं। इसलिए शरीर को क्षेत्रकहा जाता है.
दूसरा है क्षेत्रज्ञ यानी आत्मा जो मन, बुद्धि, इन्द्रियों से परे है, जो परसेप्शन यानी धारणाओं, भावनाओं और विचारों से बने matter को जानने वाला है. इसमें कभी बदलाव नहीं होता. जब मनुष्य अपनी इन्द्रियों से चीज़ों को देखता है, सुनता है, महसूस करता है और बुद्धि उसे समझने का काम करती है तो वो सब आत्मा है जो सब कुछ देख, सुन रही है. नहीं तो मर जाने के बाद आँखें होते हुए भी मनुष्य देख नहीं सकता, सोच नहीं सकता. क्षेत्रज्ञ चेतना है अवेयरनेस का प्रकाश है, सभी matter को जानने वाला है और वह न तो देहधारी मन है और न ही शरीर।
श्रीकृष्ण कहते हैं कि जड़ प्रकृति और अविनाशी आत्मा के बीच के फ़र्क को जान लेना ही सच्चा ज्ञान है और हर शरीर में वास करने वाली जो आत्मा है वो भगवान् ही हैं.
श्रीकृष्ण आगे कहते हैं कि वह यह समझाने जा रहे हैं कि क्षेत्र यानी शरीर क्या है, इसके गुण धर्म क्या हैं, इसकी उत्पत्ति कैसे होती है आदि.
अर्जुन में रुचि पैदा करने के लिए श्रीकृष्ण क्षेत्र की प्रकृति और क्षेत्र के ज्ञाता के बारे में बताते हैं। वे कहते हैं कि वे जो समझाने जा रहे हैं, वो वही सच है जो पहले से ही वेदों, उपनिषदों और ब्रह्मसूत्रों में बताया गया है। ऋषियों के ये रहस्य खोलने वाले ज्ञान कोई आज्ञा यानी ऑर्डर नहीं है जिसे आँख बंदकर अपना लेना चाहिए , बल्कि ये सब लॉजिकल थॉट्स, और रीजनिंग यानी तर्क से भरे हुए हैं जिन्हें समझा जाए तो मनुष्य को अपने हर सवाल का जवाब मिल सकता है।