The 7 Habits Of Highly Effective Teens (English)

The 7 Habits Of Highly Effective Teens (English)

“•    Good habits can make you and bad habits can break you. But the good thing is that you can change them.
•    The seven habits of highly effective teens will surely work for you, even if you're already an adult. Success does not mean wealth, it means balance between work and play
•     Change your perception, and your life will be changed.

 Who should read this summary?
This book is specially written for teenagers. But following people can benefit from this book:
•    All the teenagers who are finding it difficult going through their teenage phase.
•    People who are having a chaotic and stressful life. 
•    This book can help the parents too. With the help of this book, parents can guide their teenagers in the right direction.

About the author.
Sean Covey is a business executive, author and motivational speaker. He is the son of Stephen Covey who is the author of the 7 Habits for Highly Effective People. Sean is the president of Franklin Covey Education which offers books and training programs.
 

(hindi) Jugnu Ki Chamak

(hindi) Jugnu Ki Chamak

“पंजाब के सिंह राजा रणजीतसिंह संसार से जा चुके थे और राज्य के वे समानित आदमी जिनके द्वारा उनका बढ़िया प्रबंध चल रहा था आपसी दुश्मनी और अनबन के कारण मर मिटे थे। राजा रणजीतसिंह का बनाया हुआ सुंदर लेकिन खोखला महल अब बर्बाद हो चुका था। कुँवर दिलीपसिंह अब इंगलैंड में थे और रानी चंद्रकुँवरि चुनार के किले में। रानी चंद्रकुँवरि ने उजड़ते हुए राज्य को बहुत सँभालना चाहा लेकिन वो राज काज के बारे में कुछ न जानती थी और कूटनीति जलन की आग भड़काने के सिवा और क्या करती. 

रात के बारह बज चुके थे। रानी चंद्रकुँवरि अपने महल के ऊपर छत पर खड़ी गंगा की ओर देख रही थी और सोचती थी-लहरें क्यों इस तरह आज़ाद हैं उन्होंने कितने गाँव और नगर डुबाये हैं कितने जीव-जंतु और चीज़ों निगल गयी लेकिन फिर भी वे आज़ाद हैं। कोई उन्हें बंद नहीं करता। इसीलिए न कि वे बंद नहीं रह सकतीं वे गरजेंगी बल खायेंगी-और बाँध के ऊपर चढ़कर उसे तबाह कर देंगी अपने जोर से उसे बहा ले जायेंगी।

यह सोचते-विचारते रानी गादी पर लेट गयी। उसकी आँखों के सामने पहले की यादें  मनोहर सपने की तरह आने लगीं। कभी उसकी भौंह की मरोड़ तलवार से भी ज़्यादा तेज़ थी और उसकी मुस्कराहट वसंत की सुगंधित हवा से भी ज़्यादा पोषक लेकिन हाय अब इनकी शक्ति कमज़ोर पड़ गई थी। रोये तो अपने को सुनाने के लिए, हँसे तो अपने को बहलाने के लिए। अगर बिगड़े तो किसी का क्या बिगाड़ सकती है और ख़ुश हो तो किसी का क्या बना सकती है. रानी और बाँदी में कितना फ़र्क है -रानी की आँखों से आँसू की बूँदें झरने लगीं जो कभी ज़हर से ज़्यादा ख़तरनाक और अमृत से ज्यादा अनमोल थीं. वह इसी तरह अकेली निराश कितनी बार रोयी जब कि आकाश के तारों के सिवा और कोई देखने वाला न था।

इसी प्रकार रोते-रोते रानी की आँखें लग गयीं। उसका प्यारा कलेजे का टुकड़ा कुँवर दिलीपसिंह जिसमें उनकी जान बस्ती थी उदास चेहरा आ कर खड़ा हो गया। जैसे गाय दिन भर जंगलों में रहने के बाद शाम को घर आती है और अपने बछड़े को देखते ही प्रेम और उमंग से मतवाली होकर ममता से भरी, पूँछ उठाये दौड़ती है उसी तरह चंद्रकुँवरि अपने दोनों हाथ फैलाये अपने प्यारे कुँवर को गले से लपटाने के लिए दौड़ी। लेकिन आँखें खुल गयीं और जीवन की आशाओं की तरह वह सपना भी टूट गया। रानी ने गंगा की ओर देखा और कहा-“मुझे भी अपने साथ लेती चलो”। इसके बाद रानी तुरंत छत से उतरी। कमरे में एक लालटेन जल रही थी। उसकी रौशनी में उसने एक मैली साड़ी पहनी गहने उतार दिये रत्नों के एक छोटे-से बक्से  को और एक तेज़ धार वाली कटार को कमर में रखा। जिस समय वह बाहर निकली तो नाउम्मीदी के साहस की मूर्ति थी। संतरी ने पुकारा-“कौन?”

रानी ने जवाब दिया-“मैं हूँ झंगी”।
“कहाँ जाती है?”
“गंगाजल लाऊँगी। सुराही टूट गयी है रानी जी पानी माँग रही हैं”।
संतरी कुछ पास आ कर बोला-“चल मैं भी तेरे साथ चलता हूँ जरा रुक जा”।
झंगी बोली-“मेरे साथ मत आओ। रानी छत पर हैं। देख लेंगी”।
संतरी को धोखा देकर चंद्रकुँवरि गुप्त दरवाज़े से होती हुई अँधेरे में काँटों से उलझती चट्टानों से टकराती गंगा के किनारे पर जा पहुँची।

रात आधी से ज़्यादा बीत चुकी थी। गंगा जी में संतोष की शांति विराजी हुई थी। तरंगें तारों को गोद में लिये सो रही थीं। चारों ओर सन्नाटा था। रानी नदी के किनारे-किनारे चली जा रही थी और मुड़-मुड़ कर पीछे देखती थी। तभी एक चप्पू खूँटे से बँधी हुई देख पड़ी। रानी ने उसे ध्यान से देखा तो मल्लाह सोया हुआ था। उसे जगाना काल को जगाना था। वह तुरंत रस्सी खोल कर नाव पर सवार हो गयी। नाव धीरे-धीरे धारा के सहारे चलने लगी दुःख और अंधकारमय सपने की तरह जो ध्यान की तरंगों के साथ बहा चला जाता हो। नाव के हिलने से मल्लाह चौंक कर उठ बैठा। आँखें मलते-मलते उसने सामने देखा तो पटरे पर एक औरत हाथ में चप्पू लिये बैठी है। उसने घबरा कर पूछा-“तैं कौन है रे नाव कहाँ लिये जाती है?” रानी हँस पड़ी। डर के अन्त को हिम्मत कहते हैं। बोली-“सच बताऊँ या झूठ?”

मल्लाह कुछ डरता हुआ सा बोला-“सच बताया जाय”।
रानी बोली-“अच्छा तो सुनो। मैं लाहौर की रानी चन्द्रकुँवरि हूँ। इसी किले में कैद थी। आज भाग रही हूँ। मुझे जल्दी बनारस पहुँचा दे। तुझे निहाल कर दूँगी और शरारत करेगा तो देख कटार से सिर काट दूँगी। सबेरा होने से पहले मुझे बनारस पहुँचना चाहिए”।

यह धमकी काम कर गयी। मल्लाह ने विनीत भाव से अपना कम्बल बिछा दिया और तेजी से चप्पू चलाने लगा। किनारे के पेड़ और ऊपर जगमगाते हुए तारे साथ-साथ दौड़ने लगे।

Puri Kahaani Sune…

(hindi) Mahateerth

(hindi) Mahateerth

“मुंशी इंद्रमणि की आमदनी कम थी और खर्च ज्यादा। अपने बच्चे के लिए दाई का खर्च न उठा सकते थे। लेकिन एक तो बच्चे की परवरिश की फ़िक्र और दूसरे अपने बराबरवालों से नीचे  बन कर रहने का अपमान इस खर्च को सहने पर मजबूर करता था। बच्चा दाई को बहुत चाहता था, हरदम उसके गले का हार बना रहता। इसलिए दाई और भी जरूरी लगती थी, पर शायद सबसे बड़ा कारण यह था कि वह विनम्रता के कारण दाई को जवाब देने की हिम्मत नहीं कर सकते थे। बुढ़िया उनके यहाँ तीन साल से नौकर थी। उसने उनके इकलौते लड़के का लालन-पालन किया था। वो अपना काम बड़ा मन लगाकर मेहनत से करती थी। उसे निकालने का कोई बहाना नहीं था और बेकार दोष निकालना इंद्रमणि जैसे भले आदमी के स्वभाव के ख़िलाफ़ था, पर सुखदा इस मामले में अपने पति से सहमत न थी।

उसे शक था कि दाई हमें लूटे लेती है। जब दाई बाजार से लौटती तो सुखदा बरामदे में छिपी रहती कि देखूँ कहीं आटा छिपा कर तो नहीं रख देती; लकड़ी तो नहीं छिपा देती। उसकी लायी हुई चीजों को घंटों देखती, पूछताछ करती। बार-बार पूछती, “इतना ही क्यों ? क्या भाव है। क्या इतना महँगा हो गया ?” दाई कभी तो इन शक से भरे सवालों का जवाब शांति से देती, लेकिन जब कभी बहू जी ज्यादा तेज हो जातीं तो वह भी कड़ी पड़ जाती थी। कसमें खाती। सफाई के सबूत पेश करती। बहस में घंटों लग जाते। रोज़ अक्सर यही दशा रहती और हर दिन यह नाटक दाई के आसुओं के साथ ख़त्म होता था। दाई का इतनी सख्ती झेल कर पड़े रहना सुखदा के शक को और भी गहरा करता था। उसे विश्वास नहीं होता था कि यह बुढ़िया सिर्फ़ बच्चे के प्रेम के कारण पड़ी हुई है। वह बुढ़िया को इतना बच्चों से प्रेम करने वाली नहीं समझती थी।

संयोग से एक दिन दाई को बाजार से लौटने में जरा देर हो गयी। वहाँ दो औरतों में देवता और असुर जैसी जंग छिड़ी हुई थी। उनके हाव-भाव, उनकी आग उगलती हुई बहस, उनके तानें, और व्यंग्य सब मजेदार थे। ज़हर की दो नदी थी या आग के दो पहाड़, जो दोंनो तरफ से उमड़ कर आपस में टकरा गये थे। उनके शब्दों के इस्तेमाल, उनके लड़ने की कला पर ऐसा कौन-सा कवि है जो मुग्ध न हो जाता। उनका धैर्य, उनकी शांति आश्चर्यजनक थी। देखने वालों की अच्छी खासी भीड़ जमा हो गई थी। वह शर्म को भी शर्मिंदा करने वाले इशारे, वह भद्दे शब्द जिनसे गंदगी के भी कान खड़े हो जाते, हज़ारों मज़ा लेने वालों के लिए मनोरंजन का कारण बने हुए थे।

दाई भी खड़ी हो गयी कि देखूँ क्या मामला है। तमाशा इतना मनोरंजक था कि उसे समय का बिलकुल ध्यान न रहा। अचानक जब नौ बजे घंटे की आवाज कान में आयी तो वो चौंक पड़ी और लपकी हुई घर की ओर चली।
सुखदा भरी बैठी थी। दाई को देखते ही ताव बदल कर बोली-“क्या बाजार में खो गयी थी?”
दाई ने नरमी से जवाब दिया –“एक जान-पहचान की औरत से भेंट हो गयी। वह बातें करने लगी”।
सुखदा इस जवाब से और भी चिढ़ कर बोली-“यहाँ दफ्तर जाने को देर हो रही है और तुम्हें सैर-सपाटे की सूझती है”।
लेकिन दाई ने इस समय चुप रहने में भी भलाई समझी. वो बच्चे को गोद में लेने चली, पर सुखदा ने झिड़क कर कहा-“रहने दो, तुम्हारे बिना वह बेचैन नहीं हुआ जा रहा”।

दाई ने इस आज्ञा को मानना ज़रूरी नहीं समझा। बहू जी का गुस्सा ठंडा करने के लिए इससे असरदार और कोई उपाय न सूझा। उसने रुद्रमणि को इशारे से अपने पास बुलाया। वह दोनों हाथ फैलाये लड़खड़ाता हुआ उसकी ओर चला। दाई ने उसे गोद में उठा लिया और दरवाजे की तरफ चली। लेकिन सुखदा बाज की तरह झपटी और रुद्र को उसकी गोद से छीन कर बोली-“तुम्हारी यह चालाकी बहुत दिनों से देख रही हूँ। यह तमाशे किसी और को दिखाइयो। यहाँ जी भर गया”।

दाई रुद्र पर जान देती थी और समझती थी कि सुखदा इस बात को जानती है। उसकी समझ में सुखदा और उसके बीच यह ऐसा मजबूत संबंध था, जिसे साधारण झटके तोड़ न सकते थे। यही कारण था कि सुखदा की कड़वी बातें सुनकर भी उसे यह विश्वास न होता था कि मुझे निकालने पर उतारू है। सुखदा ने यह बातें कुछ ऐसी कठोरता से कहीं और रुद्र को ऐसी बेरहमी से छीन लिया कि दाई से सहन न हो सका। वो बोली-“बहू जी ! मुझसे कोई बड़ा अपराध तो नहीं हुआ, बहुत तो आधा घंटा की देर हुई होगी। इस पर आप इतना बिगड़ रही हैं तो साफ क्यों नहीं कह देतीं कि दूसरा दरवाजा देखो। नारायण ने पैदा किया है तो खाने को भी देगा। काम का अकाल थोड़े ही है”।

सुखदा ने कहा-“तो यहाँ तुम्हारी परवाह ही कौन करता है ? तुम्हारी जैसी बहुत हैं जो गली-गली ठोकरें खाती फिरती हैं”।
दाई ने जवाब दिया-“हाँ, नारायण आपको कुशल रखें। दाइयाँ आपको बहुत मिलेंगी। मुझसे जो कुछ अपराध हुआ हो, माफ़ कीजिएगा, मैं जाती हूँ”।
सुखदा-“जा कर बाबू से अपना हिसाब कर लो”।
दाई-“मेरी तरफ से रुद्र बाबू को मिठाइयाँ मँगवा दीजिएगा”।
इतने में इंद्रमणि भी बाहर से आ गये, पूछा-“क्या हुआ ?”
दाई ने कहा-“कुछ नहीं। बहू जी ने जवाब दे दिया है, मैं घर जाती हूँ”।

इंद्रमणि घर के जंजाल से इस तरह बचते थे जैसे कोई नंगे पैर वाला आदमी काँटों से बचता है । उन्हें सारे दिन एक ही जगह खड़े रहना मंजूर था, पर काँटों पर पैर रखने की हिम्मत न थी। वो खिन्न हो कर बोले-“बात क्या हुई ?”
सुखदा ने कहा-“कुछ नहीं। अपनी इच्छा। उसका जी नहीं चाहता, तो नहीं रखते। किसी के हाथों बिक तो नहीं गये”।
इंद्रमणि ने झुँझला कर कहा-“तुम्हें बैठे-बैठे एक न एक दोष सूझता  रहता  है”।
सुखदा ने तुनक कर कहा-“हाँ, मुझे तो इसकी बीमारी है। क्या करूँ स्वभाव ही ऐसा है। तुम्हें यह बहुत प्यारी है तो ले जाकर गले में बाँध लो, मेरे यहाँ जरूरत नहीं”।

Puri Kahani Sune..

THE DIARY OF A YOUNG GIRL (English)

THE DIARY OF A YOUNG GIRL (English)

“The Diary of a Young Girl is the life story of Anne Frank. If you want to read about the Holocaust through a first-hand account; this book is the best place to start! Read about Anne as she and her family go into hiding to escape being captured by the Nazis. This book will make you think, “Is it a crime to be different?”, “Is it right to be judged based on one’s race or religion?”

Who will learn from this summary?
•    Students and young adults
•    Anyone who needs inspiration

About the Author
Anne Frank was a cheerful and intelligent Jewish girl who loved to write. She and her family were victims of the Holocaust. They hid for two years in a Secret Annex. Anne wrote about their struggles and fears each day in her diary.  She died in a concentration camp when she was 15-years-old. Her father, Otto Frank, dedicated his life to publishing Anne’s diary.
 

(hindi) Vair Ka Ant

(hindi) Vair Ka Ant

“रामेश्वर राय अपने बड़े भाई के शव को बिस्तर से नीचे उतारते हुए भाई से बोले-“तुम्हारे पास कुछ रुपये हों तो लाओ, अंतिम संस्कार की फिक्र करें, मैं बिलकुल खाली हाथ हूँ”।
छोटे भाई का नाम विश्वेश्वर राय था। वह एक जमींदार के एजेंट थे, आमदनी अच्छी थी। बोले, “आधे रुपये मुझसे ले लो। आधे तुम निकालो”।
रामेश्वर-“मेरे पास रुपये नहीं हैं”।
विश्वेश्वर-“तो फिर इनके हिस्से का खेत गिरवी रख दो”।

रामे.-“तो जाओ, कोई महाजन को बुलाओ, देखना देर न लगे”। विश्वेश्वरराय ने अपने एक दोस्त से कुछ रुपये उधार लिये, उस वक्त का काम चला। बाद में फिर कुछ रुपये लिये, खेत की लिखा-पढ़ी कर दी। कुल पाँच बीघे जमीन थी। 30000 रु. मिले। गाँव के लोगों का अनुमान था कि क्रिया-कर्म में मुश्किल से 10000 रु. लगे होंगे। पर विश्वेश्वरराय ने षोड्शी के दिन 30001 रु. का बिल भाई के सामने रख दिया। रामेश्वरराय ने चकित हो कर पूछा-“सब रुपये लग गये ?”
विश्वे.-“क्या मैं इतना नीच हूँ कि अंतिम संस्कार के रुपये से भी कुछ रखूँगा ? किसको यह पैसा पचेगा ?”
रामे.-“नहीं, मैं तुम्हें बेईमान नहीं कहता , खाली पूछ रहा था”।
विश्वे.-“कुछ शक हो तो जिस बनिये से चीज़ें ली गयी हैं, उससे पूछ लो”।

साल भर के बाद एक दिन विश्वेश्वरराय ने भाई से कहा-“रुपये हों तो लाओ, खेत छुड़ा लें”।
रामे.-“मेरे पास रुपये कहाँ से आये। घर का हाल तुमसे छिपा थोड़े ही है”।
विश्वे.-“तो मैं सब रुपये देकर जमीन छुडा लेता हूँ। जब तुम्हारे पास रुपये हों, आधा दे कर अपनी आधी जमीन मुझसे ले लेना”।
रामे.-“अच्छी बात है, छुड़ा लो”।

30 साल गुजर गये। विश्वेश्वरराय जमीन को भोगते रहे, उसे खाद गोबर से खूब सजाया।
उन्होंने फ़ैसला कर लिया था कि यह जमीन न छोड़ूँगा। मेरा तो इस पर खानदानी हक हो गया। अदालत से भी कोई नहीं ले सकता। रामेश्वरराय ने कई बार कोशिश की कि रुपये दे कर अपना हिस्सा ले लें; पर तीस साल में वे कभी 15000 रु. जमा न कर सके।

मगर रामेश्वरराय का लड़का जागेश्वर कुछ सँभल गया। वह गाड़ी लादने का काम करने लगा था और इस काम में उसे अच्छा फ़ायदा भी होता था। उसे अपने हिस्से की रात-दिन चिंता रहती थी। अंत में उसने रात-दिन मेहनत करके काफ़ी पैसा बटोर लिया और एक दिन चाचा से बोला-“काका, अपने रुपये ले लीजिए। मैं पिताजी के हिस्से पर अपना नाम लिखवा लूँ”।
विश्वे.-“अपने बाप के तुम्हीं चतुर बेटे नहीं हो। इतने दिनों तक कान न हिलाये, जब मैंने जमीन सोना बना लिया तब हिस्सा बाँटने चले हो ? तुमसे माँगने तो नहीं गया था।“
जागे.-“तो अब जमीन न मिलेगी ?”
रामे.-“भाई का हक मार कर कोई सुखी नहीं रहता”।
विश्वे.-“जमीन हमारी है। भाई की नहीं”।
जागे.-“तो आप सीधे न दीजिएगा ?”

Puri Kahani sune…

(hindi) Sewa Marg

(hindi) Sewa Marg

“तारा ने बारह साल दुर्गा की तपस्या की। न पलंग पर सोयी, न बाल को सँवारा और न आँखों  में काजल लगाया। ज़मीन पर सोती, गेरुआ कपड़े पहनती और रूखी रोटियाँ खाती। उसका चेहरा मुरझाई हुई कली की तरह था, आखों में कोई चमक नहीं थी और दिल एक सुनसान बंज़र मैदानके समान था । उसकी  सिर्फ़ यही तमन्ना थी कि दुर्गा के दर्शन पाऊँ। शरीर मोमबत्ती की तरह घुलता था, पर यह लौ दिल से नहीं बुझती थी, यही उसकी इच्छा उसके जीवन का मकसद था ।

Puri Kahani Sune..

(hindi) Kayar

(hindi) Kayar

“लड़के का नाम केशव था, लड़की का प्रेमा। दोनों एक ही कालेज में और एक ही क्लास में पढ़ते थे। केशव नये विचारों का था, जात-पात के बन्धनों का विरोधी। प्रेमा पुराने संस्कारों की कायल थी, पुरानी मर्यादाओं और प्रथाओं में पूरा विश्वास रखने वाली; लेकिन फिर भी दोनों में गहरा प्रेम हो गया था और यह बात सारे कालेज में मशहूर थी। केशव ब्राह्मण होकर भी वैश्य जाति यानी बिज़नेस करने वाले की लड़की  प्रेमा से शादी करके अपना जीवन सार्थक करना चाहता था। उसे अपने माता-पिता की परवाह न थी। कुल-मर्यादा का विचार भी उसे ढ़ोंग और नाटक सा लगता था। उसके लिए अगर कोई चीज़ सच्ची थी, तो बस प्रेम; लेकिन प्रेमा के लिए माता-पिता और कुल-परिवार के आदेश के खिलाफ़ एक कदम बढ़ाना भी नामुमकिन था।
शाम का समय था। विक्टोरिया-पार्क के एक सुनसान जगह में दोनों आमने-सामने हरियाली पर बैठे हुए थे। सैर करने वाले एक-एक करके विदा हो गये; लेकिन ये दोनों अभी वहीं बैठे रहे । उनमें एक ऐसी बात छिड़ी हुई थी, जो ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी।

केशव ने झुँझलाकर कहा—“इसका यह मतलब है कि तुम्हें मेरी परवाह नहीं है?”
प्रेमा ने उसे शान्त करने की कोशिश करके कहा—“तुम मेरे साथ अन्याय कर रहे हो, केशव! लेकिन मैं इस बात को माँ और पिताजी के सामने कैसे छेड़ूं, यह मेरी समझ में नहीं आता। वे लोग पुरानी मान्यताओं के भक्त हैं। मेरी तरफ से कोई ऐसी बात सुनकर मन में जो-जो ख़याल आएँगे  , उसकी तुम कल्पना कर सकते हो?”
केशव ने गुस्से के भाव से पूछा—“तो तुम भी उन्हीं पुरानी रूढ़ियों की गुलाम हो?”
प्रेमा ने अपनी बड़ी-बड़ी आँखों में प्रेम भरकर कहा—“नहीं, मैं उनकी गुलाम नहीं हूँ, लेकिन माँ और पिताजी की इच्छा मेरे लिए और सब चीजों से ज़्यादा अहमियत रखती है”।
‘तो तुम्हारा अपना व्यक्तित्व कुछ नहीं है?’

‘ऐसा ही समझ लो।’
‘मैं तो समझता था कि ये ढकोसले मूर्खों के लिए हैं; लेकिन अब मालूम हुआ कि तुम-जैसी बुद्धिमान पढ़ी लिखी लड़की भी उनकी पूजा करती हैं। जब मैं तुम्हारे लिए संसार को छोडऩे को तैयार हूँ तो तुमसे भी यही उम्मीद करता हूँ।’
प्रेमा ने मन में सोचा, “मेरा अपने शरीर पर क्या अधिकार है। जिन माता-पिता ने अपने खून से मेरी रचना की है, और अपने प्रेम से उसे पाला है, उनकी मर्ज़ी के खिलाफ कोई काम करने का मेरा कोई हक नहीं”।

उसने दीनता के साथ केशव से कहा—“क्या प्रेम औरत और आदमी के रूप में ही किया जा सकता  है, दोस्ती के रूप में नहीं? मैं तो इसे आत्मा का बन्धन समझती हूँ”।
केशव ने कठोर भाव से कहा—“इन बड़ी-बड़ी बातों से तुम मुझे पागल कर दोगी, प्रेमा! बस, इतना ही समझ लो मैं निराश होकर जिन्दा नहीं रह सकता। मैं प्रैक्टिकल आदमी हूँ, और कल्पनाओं के संसार में सच का आनन्द उठाना मेरे लिए नामुमकिन है”।

यह कहकर उसने प्रेमा का हाथ पकडक़र अपनी ओर खींचने की कोशिश की। प्रेमा ने झटके से हाथ छुड़ा लिया और बोली—“नहीं केशव, मैं कह चुकी हूँ कि मैं आज़ाद नहीं हूँ। तुम मुझसे वह चीज न माँगो, जिस पर मेरा कोई अधिकार नहीं है”।

केशव को अगर प्रेमा ने कठोर शब्द कहे होते तो भी उसे इतना दु:ख न हुआ होता। एक पल तक वह मन मारे बैठा रहा, फिर उठकर निराशा भरी आवाज़ में बोला—‘जैसी तुम्हारी इच्छा!” धीरे-धीरे कदम उठाता हुआ वो वहाँ से चला गया। प्रेमा अब भी वहीं बैठी आँसू बहाती रही।

Puri Kahani Sune……

(hindi) Make Time: How to Focus on What Matters Every Day

(hindi) Make Time: How to Focus on What Matters Every Day

“क्या आप बहुत बिजी हो और आपको लगता है की आप अपनी जिंदगी का कंट्रोल खो रहे हो? अगर आप अपनी जिंदगी को वापस पाना चाहते हो, तो आपको ये बुक पढ़नी चाहिए। मेक टाइम आपको organised बनना सिखाएगी, distractions से लड़ना सिखाएगी, आपकी सोशल मीडिया की लत को रोकने में मदद करेगी और अपनी एनर्जी को बढ़ाने के लिए सही तरह से कॉफ़ी पीना सिखाएगी। 

ये समरी किस-किसको पढ़नी चाहिए?
•    यंग professionals को 
•    कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चो को 
•    माता पिता को 
 
ऑथर के बारे में
जैक नैप और जॉन ज़ेराटस्की productivity और टाइम मैनेजमेंट में एक्सपर्ट है। वे New York times के बेस्ट सेलिंग ऑथर्स में से है, जिन्हें बिज़नेस टीम्स को अपना टाइम बढ़ाने और distractions से पीछा छुड़ाने में मदद करने के लिए जाना जाता है। उनका मानना है कि किसी प्रोजेक्ट को पूरा करने में बहुत ज्यादा समय नहीं लगना चाहिए क्योंकि laser-focus से किसी भी काम को करने की स्पीड को बढ़ाया जा सकता है। हालांकि, उन्होंने tech-designers के तौर पर अपना काम शुरू किया था, जैसे जैसे वे बड़े होते गए उनकी टाइम मैनेजमेंट स्किल्स अच्छी होती गयी। 
 

(hindi) THE ADVENTURE OF THE BERYL CORONET

(hindi) THE ADVENTURE OF THE BERYL CORONET

““होम्स,” खिड़की के पास खड़े होकर, नीचे गली में देखते हुए मैंने कहा, “एक पागल आदमी चला आ रहा है। बड़े दुःख की बात है कि उसके रिश्तेदारों ने उसे अकेले बाहर जाने दिया।”

मेरा दोस्त आलस के साथ अपनी आर्मचेयर से उठा और अपने ड्रेसिंग गाउन की जेब में हाथ डालकर मेरे कन्धों के ऊपर से झाँकने लगा। यह एक चमकदार और तेज धूप वाली फरवरी की सुबह थी, और एक दिन पहले की बर्फ अभी भी जमीन पर पड़ी हुई थी, जो तेज धूप में चमक रही थी। बेकर स्ट्रीट के बीच ट्रैफिक ने इसे भूरे रंग की पट्टियों में फैला दिया था, लेकिन फुटपाथ के किनारों पर अभी भी सफ़ेद रंग की ही बर्फ पड़ी हुई थी। ग्रे फुटपाथ को खुरच कर साफ़ कर दिया गया है, लेकिन अभी भी वहाँ खतरनाक फिसलन थी, इसलिए वहाँ किसी आम दिन की तुलना में बहुत कम लोग आ जा रहे थे। असल में, मेट्रोपॉलिटन स्टेशन की तरफ से उस अकेले इंसान के अलावा कोई नहीं आ रहा था, जिसके अजीब से बर्ताव ने मेरा ध्यान खींचा था। 

वह लगभग पचास साल का एक लंबा-चौड़ा और दमदार आदमी था, उसका चेहरा बड़ा, और शरीर मजबूत था। उसने सादे लेकिन मेहेंगे कपड़े पहने थे, काले रंग का फ्रॉक-कोट, चमचमाती टोपी, साफ-सुथरे भूरे गैटर (gaiter) और अच्छी फिटिंग वाली पर्ल-ग्रे कलर की पैंट। लेकिन उसकी हरकतें उसके कपड़े और शख़्सियत से बिल्कुल अलग थे, क्योंकि वह बहुत तेज भाग रहा था, और बीच बीच में छोटी सी छलांग भी लगाता, जैसे एक थका हुआ आदमी करता है जो ज्यादा चलने फिरने का आदि ना हो। भागते हुए वह अपने हाथों को झटके से ऊपर नीचे करता, अपना सिर हिलाता , और अपने चेहरे को अजीब तरह से मोड़ देता।  

Puri Kahani Sune..

Built to Last : Successful Habits of Visionary Companies (English)

Built to Last : Successful Habits of Visionary Companies (English)

“What will you learn from the summary?

Everyone's trying to be #1, but only a few companies manage to do it successfully. They’re not only at the top. They tend to stay there for years and even decades. The authors decided to embark on a 6-year study on how visionary companies achieved long-term success. In this book, you’ll learn about what these big companies have in common and what is their secret to success.

Who will learn from this summary?

    Start-up founders
    Entrepreneurs
    Managers and employees
    College Students

About the author
Jim Collins is author of 6 books that have more than 10 million copies sold worldwide. He is also a researcher, speaker, and consultant. Jerry Porras is an organizational theorist and Professor Emeritus of Organizational Behavior in Stanford University Graduate School of Business. 
 

(English) The Alchemist

(English) The Alchemist

“Why you should read this book

 

The Alchemist is a story of a boy named Santiago who wants to achieve his Personal Legend. He travels to far away places and meets different kinds of people. In the end, Santiago realizes that the treasure he's been looking is right in his home. If you have a life-long dream, this is the book for you. You will learn many lessons which will help you in your journey.

 

Who should read this

 

people of all ages and occupations; students; employees; mothers; retirees

 

About the author

 

Paulo Coehlo is an international best-selling author. He has been writing novels for four decades. His stories are full of insights, inspiration and memorable characters.

Getting Things Done (English)

Getting Things Done (English)

“What will you learn from this summary?

If you live on planet earth, then you have more responsibilities than you can handle. You start your day with a long to-do list that you keep struggling to get done. You feel stressed that you have lost control of your life. Don't worry because we brought you the solution. This book will teach you how to take back control of your life and get more things done in less time.

Who should read this summary?
•    Young professionals
•    Hard-working people who want to get more done in less time
•    Anyone who wants to be more organized

About the Author
David Allen is a time management consultant. He is famous for creating the time management method known as Getting Things Done. This method has changed the lives of millions of people all over the world. David is the CEO of his own coaching firm, which helps companies to spread a mentality of productivity and focus among their employees.

Made to Stick: Why Some Ideas Survive and Others Die (English)

Made to Stick: Why Some Ideas Survive and Others Die (English)

“Why you should read this book

 

Why do myths stick to people's minds rather than the facts? As a professional, how do you make your ideas create an impact? In this book, you will learn about interesting stories that will open your eyes and make your ideas stickier than ever. If you're a teacher, a writer, a businessman or politician, this is the book for you.

 

Who should read this

 

employees; teachers; campaign managers; journalists; politicians; bloggers

 

About the author

 

Chip Heath and Dan Heath are brothers and co-authors of 3 best-selling books. Chip is a professor a Stanford Business School while Dan is a research fellow at Duke University. They have sold over 3 million copies worldwide. Their books have been translated to over 30 languages.