(hindi) VIRODHI

(hindi) VIRODHI

“लोग कहते हैं अंग्रेजी पढ़ना और भाड़ झोंकना एक बराबर है। अंग्रेजी पढ़ने वालों की हालत खराब है। अच्छे-अच्छे एम.ए. और बी.ए. मारे-मारे फिरते हैं, कोई उन्हें पूछता तक नहीं। मैं इन बातों के खिलाफ़ हूं। अंग्रेजी पढ़-लिखकर मैं डॉक्टर बना हूं। अंग्रेजी शिक्षा का विरोध करने वाले ज़रा आंख खोलकर मेरी हालत देखें।

सोमवार का दिन था। सवा नौ बजे मेरे दोस्त बाबू सन्तोष कुमार बी.एस-सी. एक नौजवान रोगी को साथ लिये मेरे दवाखाने में आये। उस रोगी की उम्र अठारह-उन्नीस से ज़्यादा न थी। गेहुआं रंग, बड़ी-बड़ी आंखें, हट्टा-कट्टा शरीर, कपड़े स्वदेशी, लेकिन मैले थे। सिर के बाल लम्बे और रूखे। उस लड़के  को देखकर मुझे बहुत ख़ुशी हुई।

सन्तोष कुमार ने नौजवान से मिलाते हुए कहा- “”ये  जिला नदिया के रहने वाले हैं, नाम ललित कृष्ण बोस है, लेकिन  ललित के नाम से जाने जाते हैं। एम.ए. में पढ़ते थे; पर किसी कारण से कॉलेज छोड़ दिया।””

मैंने मुस्कराते हुए पूछा- “”आजकल आप क्या करते हैं?””
सन्तोष कुमार ने जवाब दिया- “”दो महीने पहले यह किरण प्रेस में प्रूफरीडर के तौर पर काम कर रहा था लेकिन इस काम में मन न लगने के कारण नौकरी छोड़ दी। परसों से बुख़ार है, कोई अच्छी दवा दीज़िए।””

आज से पहले भी मैंने इस लड़के को कहीं देखा है, पर  कहां देखा है और कब, यह याद नहीं। बीमारी की छान-बीन के बाद मैंने ललित से कहा- “”लगता है, आप ज़रुरत से ज़्यादा मेहनत करते हैं, खैर, कोई बात नहीं दो दिन में आराम हो जायेगा।””

ललित बहुत मीठा बोलता था। मैं उसकी बातों पर लट्टू हो गया। मैंने कहा- “”हर तीन घण्टे के अन्तर से दवा पीजियेगा। दूध और साबूदाने के सिवाय कोई और चीज खाने की ज़रुरत नहीं। कल फिर आने का कष्ट कीजियेगा।””

ललित हंसने लगा। जाते समय मैंने उससे कल ज़रूर आने के लिए कहा, पर ललित ने शाम  को ही आने का वादा किया ।

ललित हर रोज़ सुबह-शाम मेरे यहां आने लगा। मैं उसके व्यवहार से बहुत ख़ुश था। हमारे बीच घंटों इधर-उधर की बातें होती थी। ललित सच में ललित था, कुशल और अच्छा। वह इंसान नहीं देवता था।

ललित अब मेरे घर पर ही रहने लगा। मेरा लड़का उमाशंकर आठवीं क्लास  में पढ़ता था। ललित ने कहा- “”मैं इसे बंगला सिखाऊंगा, बंगला बड़ी मीठी  भाषा है।”” मैं ख़ुद  भी यही चाहता था। उमाशंकर ने बंगला पढ़ना शुरू कर दिया, ललित आज से उमाशंकर का टीचर बन गया।

कलकत्ता जैसे बड़े शहर में यूं तो हर  त्यौहार पर बड़ी रौनक होती है लेकिन दुर्गा-पूजा के मौके पर कमाल की धूमधाम और चहल-पहल दिखाई देती है। दशहरा के दिन अक्सर रास्तों पर लोगों का सैलाब सा होता है। बड़े-बूढ़ों में भी उस दिन एक ख़ास ख़ुशी की भावना होती है, लड़कों और नौजवानों की तो क्या कहने। हर आदमी अपनी धुन में मस्त दिखाई देता है। जिस समय दुर्गा की सवारी सामने से आती है तो 'काली माई की जय' की आवाज से आकाश गूंज उठता है, दिल में एक अनोखी उमंग पैदा  हो जाती  है।

उस दिन दुर्गा पूजा थी। हम सब भी पूजा देखने गये थे, ललित भी हमारे साथ था। पहले की तुलना में  ललित में आज ज़्यादा जोश था। हर जगह पर वह देवी की मूर्ति को प्रणाम करता, कभी उसकी आँखें लाल हो जाती  और कभी उनमें आंसू उमड़ आते। मैंने देखा, कभी वह ख़ुशी से नाचने-कूदने लगता और कभी बिलकुल चुपचाप हक्का-बक्का होकर इधर-उधर देखता। मैंने बहुत कोशिश की ; लेकिन उसकी  इन हरकतों को समझ न सका। उससे पूछने की हिम्मत भी न हुई।

हमारे पीछे एक गरीब बुढ़िया आठ-नौ साल के एक बच्चे को साथ लिये खम्भे की आड़ में खड़ी थी। शायद बहुत भीड़ होने के कारण वो आगे जाने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी । वह भिखारिन थी। गरीबी के कारण उसका पेट पीठ से चिपक गया था। उसने अपना दाहिना हाथ भीख के लिए फ़ैला रखा था। बच्चा विनती करते हुए कह रहा था- “”बाबा, भूखे की सुध लेना, भगवान्  तुम्हारा भला करेगा।”” लेकिन संसार में गरीबों की कौन सुनता है? गरीब बुढ़िया की ओर किसी ने आंख उठाकर भी न देखा, हर आदमी अपनी ख़ुशी में मगन था। बच्चे ने बुढ़िया से कहा- “”घंटों बीत गए लेकिन अब तक दो पैसे मिले हैं, सोचता था आज दुर्गा-पूजा है कुछ ज़्यादा  ही मिल जायेगा; पर दुःख  है कि चिल्लाते-चिल्लाते गला बैठ गया; कोई सुनता ही नहीं। जी में आता है यहीं जान दे दूं।”” यह कहकर बच्चा रोने लगा।

बुढ़िया की आंखों में आंसू झलकने लगे। उसने कहा, “”बेटा! अपना भाग्य ही खोटा है, कल सत्तू खाने के लिए छ: पैसे मिल गये थे आज उसका भी सहारा दिखाई नहीं देता। आज भूखे पेट ही रहना होगा। हाय! यह हमारे पाप का फल है।””

बुढ़िया ने एक ठंडी सांस ली और अपने फटे मैले आंचल से अपनी और बच्चे की आंखें पोंछीं। बच्चा फिर उसी विनती से कहने लगा- 'बाबा, भूखे की सुध लेना, भगवान्  तुम्हारा भला करेगा।' हज़ारों लोग जमा थे ; पर  इस विनती की पुकार कोई सुनने वाला न था।

ललित उस समय बुढ़िया की ओर देख रहा था। उसकी दुखदायी दशा देखकर उसका दिल बेचैन हो गया। उसने अपनी जेब टटोली, उसमें एक फूटी कौड़ी भी नहीं थी। उसने अपनी दूसरी जेब में हाथ डाला, कुछ ज़रूरी कागजों के बीच में एक अठन्नी निकल आई। ललित की निराशा ख़ुशी  में बदल गई, उसका चेहरा खिल गया। उसने अठन्नी बुढ़िया के हाथ पर रख दिया ।

जिस तरह दस-पांच रुपये लगाने वाले को लॉटरी में दस-बीस हजार रुपये मिल जाने पर ख़ुशी होती है, जिस तरह एक औरत नए गहने पहनकर ख़ुश होती है, जिस तरह सूखे हुए खेत में बारिश हो जाने से किसान ख़ुशी से फूला नहीं समाता, जिस तरह कोई नया कवि अपनी कविता को किसी किताब में छपा हुआ देखकर ख़ुश होता है, उससे कहीं ज़्यादा उस गरीब बुढ़िया को अठन्नी पाकर ख़ुशी हुई थी । ख़ुशी के मारे उसकी आंखों में आंसू भर आए, वह एक टक ललित की ओर देखने लगी। उसका मग्न मन ललित को हज़ारों आशीर्वाद  दे रहा था।

यह देखकर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ। मैंने कई बार उस बुढ़िया को देखा था, उससे मुझे हमदर्दी भी थी लेकिन कभी यह हिम्मत न हुई कि उसकी मदद करूं। कभी दिल में आता कि उसे कुछ देना चाहिए, कभी यह कहता कि इसमें क्या रखा है, संसार में लाखों गरीब हैं किस-किसकी मदद करूंगा? ललित, जिसे कभी-कभी ख़ुद भूखे तक रहना पड़ता, जिसे मैंने कभी एक पैसे का पान चबाते न देखा था और जो मेरी नज़र में बहुत कंजूस था, उसका यह दान देखकर मेरे आश्चर्य की सीमा न रही।

सपने में उस दिन मुझे ललित की कई ख़ूबियाँ दिखाई दीं। मालूम नहीं वो सच था या झूठ , लेकिन ज्योतिषी के हिसाब से उन्हें सच ही समझना चाहिए। इसका कारण यह है कि मुझे रात ढाई बजे नींद आई और वह सपना मैंने रात के अंतिम पहर में देखा था।

Puri Kahaani Sune…

(hindi) The Man with the Twisted Lip

(hindi) The Man with the Twisted Lip

“इसा व्हिटनी,  जोकि स्वर्गीय इलायास Elias व्हिटनी के भाई और Theological College of St. George,  में  प्रिंसिपल थे , उन्हें अफीम कि बहुत ज्यादा लत थी । मुझे लगता है  कि ये  लत  उन्हें  किसी बेवकूफी  में लगी होगी जब वह कॉलेज में थे ,  तब  उन्होंने  De Quincey के  सपनों और एहसास, के बारे में पढ़ा , तो उसी असर को पैदा करने के लिए उनकी नक़ल करने की कोशिश में अफीम के नशे में डूब गए ।

 जैसे की बाकी लोगों के साथ हुआ है, ये आदत बड़ी आसानी से लग तो जाती है पर इसे छोड़ना बेहद मुश्किल है. इस बात का उन्हें भी एहसास हो गया था और कई सालों तक, वो इसके ग़ुलाम बने रहे. दोस्तों और रिश्तेदारों को उनके लिए डर भी लगता था और उन पर दया भी आती थी। अब जब मैं उन्हें देख रहा हूँ तो मुझे पीले बुझे हुए चेहरे, झुकी हुई पलकें और बहार आयी हुई  आँख की पुतलियों से देखता हुआ कुर्सी पर सिमटकर बैठा एक बर्बाद और तबाह रईस दिखाई दे रहा है. 

 जून, '89 '  की एक रात मेरे घर के दरवाजे की  घंटी बजी , लगभग उस वक्त जब आदमी अपनी पहली जम्हाई लेकर घड़ी की ओर देखता है। मैं कुर्सी पर सीधा बैठ गया और मेरी पत्नी ने सुई धागा अपनी गोद में नीचे रख लिया  और  मुँह बना कर कहा, “कोई मरीज होगा, आपको बाहर जाना पड़ेगा।”” 

मैने  भी आह भरी, क्योंकि मैं  दिन भर से थक हार कर अभी-अभी घर  आया  था। 
हमारा दरवाजा खुला, जल्दी जल्दी कुछ बोलते हुए लिनोलियम पर तेजी से किसी के चलने की आवाज आयी।  हमारा दरवाजा  तेजी से  खुला और काले कपडे पहने  चेहरे पर नक़ाब लगाए एक औरत अंदर आयी ।

“”इतनी रात में आने के लिए  मुझे माफ़ करना “”  फिर अचानक  अपना आपा खोकर वह आगे बढ़ी  और  मेरी पत्नी के गले से लगकर रोने  लगी। “”ओह, मैं  बहुत मुसीबत में हूँ!”” वह  रोते हुए बोली  “”मुझे सच में मदद चाहिए।””

मेरी wife ने उसका नक़ाब उठाते हुए कहा, “”अरे,  ये तो केट व्हिटनी है “” । तुमने तो मुझे डरा ही दिया था केट!  जब तुम अन्दर आई तो मुझे बिलकुल भी अंदाजा नहीं था कि तुम हो ।””

“”मुझे  समझ में नहीं आ रहा  था कि मैं क्या करूँ, इसलिए मैं सीधे आपके पास आ गई। “” हमेशा ऐसा ही होता था। जो लोग मुश्किल में होते थे, मेरी wife के पास  ठीक वैसे ही आ जाते थे जैसे एक लाइट-हाउस के पास पक्षी आते हैं।

“” अच्छा किया तुम यहां आ गयी । अब तुम थोड़ी वाइन और पानी लो, और आराम से बैठकर  हमें सब कुछ बताओ। अगर तुम  चाहो तो  मैं जेम्स को सोने के लिए भेज दूँ ?””

“”अरे , नहीं, नहीं! मुझे डॉक्टर की सलाह और मददभी चाहिए. ये  ईसा के बारे में है । “”  वह दो दिनों से घर नहीं आया है। मुझे उसकी बहुत चिंता हो रही है !””
ऐसा पहली  बार नहीं था की उसने  हमसे  अपने पति की मुश्किल के बारे में बात की हो , मुझसे एक डॉक्टर के नाते और मेरी wife से एक बेस्ट फ्रेंड के नाते । हमनें उसे दिलासा देने के लिए कुछ शब्द कहे। क्या उसे पता था कि उसका पति कहाँ हैं ? क्या ये मुमकिन था कि हम उसे वापस ला सकते हैं ? 

शायद ये मुमकिन था. उसके पास  पक्की खबर  थी, कि कुछ दिन से उसका पति, जब भी उसे तलब लगती तो शहर के बाहर  east  में एक  अफीमखाने में जाने लगा  था, । उसका नशा  एक दिन तक ही रहता था और शाम होने तक , वह गिरते-पड़ते, नशे की  हालत में  घर लौट आता था।

 पर  इस बार  48 घंटे हो  गए थे और  इसमें कोई शक नहीं था  कि वो घाट के बेकार हिस्से में  पड़ा  इस जहर का कश ले रहा होगा  या नशे में धुत्त पड़ा होगा  ।केट को यकीन था कि उसका पति वहीं  Swandam लेन  में  Bar of Gold,  में मिलेगा । पर वह क्या कर सकती थी?  एक घबरायी  हुई  कम उम्र की औरत, कैसे ऐसी  जगह में  जाकर उन नशेड़ियों के बीच से अपने पति को छुड़ाकर लाती ?

तो बात बस यही थी और इसका एक रास्ता था ! क्या मैं उसके साथ उस जगह पर नहीं जा सकता था? फ़िर दूसरा विचार आया कि उसने आने की ज़रुरत ही क्या है? मैं इसा का डॉक्टर था और इस तरह मेरा कुछ कहने का अधिकार था. अगर मैं अकेला जाऊँगा तो अच्छे से चीज़ें संभाल लूँगा. मैंने केट से वादा किया कि अगर इसा वहाँ है जहाँ उसने बताया है  तो दो घंटे के अंदर मै उसे घर भेज दूंगा और इस तरह दस मिनट बाद मैं अपनी कुर्सी और बैठक को छोड़कर एक  बग्गी से  शहर के पूर्वी दिशा की ओर बढ़ रहा था ! एक अजीब से काम के लिए और ये काम आगे इतना अजीब होगा ये तो सिर्फ़ वक़्त ही बता सकता था।

मेरे इस एडवेंचर की शुरुआत में कोई परेशानी नहीं हुई।  Swandam Lane बंदरगाह के पीछे नदी के उत्तरी दिशा और लंदन ब्रिज के पूर्वी तरफ एक गंदी सी  गली  है. शराब के ठेकों के पास ऊंची सीढ़ियों से नीचे उतरने पर एक अँधेरी गुफ़ाजैसी वो जगह थी , जिसकी तलाश में मैं था।   
मैंने  बग्गी  वाले को नीचे रुकने के लिए कहाँ और नशेड़ियों  के कदमों से घिसी  हुई सीढ़ियों से नीचे उतरा. एक  दिए की मंद रोशनी की मदद से कुंडी खोलकर मैं कमरे में दाखिल हुआ जो  अफीम के भूरे धुंए  से भरा हुआ था. ऊपर लकड़ी के फट्टों से बने बर्थ थे जैसे किसी विदेशी जहाज में होते हैं ।  

उस धुंधली सी रौशनी में मुझे टेढ़े-मेढ़े मुड़े हुए, गिरे पड़े शरीर, झुके हुए कन्धे, घुटने मुड़े हुए , सिर पीछे की ओर लुढ़का हुआ कहीं-कहीं  दिखाई दे रही थी. एक आध लोगों की नज़र नए आने वाले पर भी पड़ जाती थी। उन काले सायों के बीच छोटी लाल बत्तियां चमक रही थीं, अभी चमकती और फ़िर फीकी पड़ जाती बिलकुल उस ज़हर की तरह जो मेटल पाइप के कटोरों में बढ़ता और कम होता जा रहा था. उनमें से ज्यादातर चुपचाप पड़े थे, कुछ खुद ही बड़बड़ा रहे थे 'और कहीं कोई  जोर-जोर से बोलता, कहीं चुप हो जाता.

 सब अपने ख़यालों में गुम थे और अपने पास वाले की बात पर कोई ध्यान नहीं दे रहा था. दूर एक कोने में कोयले की अँगीठी के पास एक लंबा, पतला बूढ़ा सा आदमी बैठा था जिसका जबड़ा उसकी दोनों मुट्ठियों पर टिका हुआ था और उसकी कोहनियों उसके घुटनो पर टिकी हुई थी और वह आग की ओर टकटकी लगाए देख रहा था। 

Puri Kahaani Sune…

(hindi) Maa

(hindi) Maa

“आज बन्दी छूटकर घर आ रहा है। करुणा ने एक दिन पहले ही घर लीप-पोत रखा था। इन तीन सालो में उसने मेहनत-मजदूरी करके जो दस-पाँच रूपये जमा कर रखे थे, वह सब पति के सेवा और स्वागत की तैयारियों में खर्च कर दिये।

 पति के लिए दो नयी धोती लायी थी, नये कुरते बनवाये थे, बच्चे के लिए नये कोट और टोपी के लिए जमा किये थे। बार-बार बच्चे को गले लगाती और खुश  होती। अगर इस  बच्चे ने सूरज की तरह रोशनी देकर उसके जीवन के अंधेरे को न खतम किया होता, तो शायद ठोकरों ने उसे मार ही दिया होता। पति के जेल जाने के तीन ही महीने बाद इस बच्चे  का जन्म हुआ। 

उसी का मुँह देख-देखकर करूणा ने यह तीन साल काट दिये थे। वह सोचती— जब मैं बच्चे  को उनके सामने ले जाऊँगी, तो वह कितने खुश  होंगे! उसे देखकर पहले तो हैरान हो जायेंगे, फिर गोद में उठा लेंगे और कहेंगे— करूणा, तुमने यह रत्न  देकर मुझे दुनिया की सारी खुशियाँ दे डाली। जेल के सारे दुःख बच्चे  की तोतली बातों में भूल जायेंगे, उनकी सरल, पवित्र, मन को अच्छी लगने वाली एक झलक, सारे दुखो को खत्म कर देगी। ये सोचना ही उसे बहुत ख़ुशी दे रहा था।

वह सोच रही थी— आदित्य के साथ बहुत—से आदमी होंगे। जिस समय वह दरवाजे पर पहुँचेगे, जय—जयकार’ की आवाज से आसमान गूँज उठेगा। कितना अच्छा लगेगा यह सब। उन आदमियों के बैठने के लिए करूणा ने एक फटा-सा टाट बिछा दिया था, कुछ पान बना दिये थे और बार-बार उम्मीद भरी आँखों से दरवाजे की ओर देख रही थी। पति का सुन्दर चेहरा बार-बार उसकी आँखों में घूम रहा था। उनकी वे बातें बार-बार याद आती थीं, जो चलते समय उन्होंने कही थी, उनका वह धीरज, वह आत्मबल, जो पुलिस की  मार के सामने भी नहीं टूटा, वह मुस्कराहट जो उस समय भी उनके होंठो पर थी; खुद पर गर्व , जो उस समय भी उनके चेहरे पर था, क्या करूणा कभी भूल सकती थी।

  ये याद आते ही  करुणा का मुरझाया चेहरा गर्व से लाल हो गया । यही वह उम्मीद थी, जिसने इन तीन सालो की मुश्किलों में भी उसके मन को संभाले रखा था। कितनी ही राते  बिना खाये गुजरीं, कभी-कभी तो घर में दिया भी नहीं जला, पर इन बातो से परेशान होकर वो कभी  रोई नहीं । आज वो सब परेशानियाँ खत्म हो जाएँगी । पति की मजबूत बाहों में वह सब कुछ हँसकर झेल लेगी। वो वापिस आ जाये तो  फिर उसे कुछ नहीं चाहिए।

आसमान में सूरज अब छिपने चला था, जहाँ शाम ने सुनहरा फर्श सजाया था और सफ़ेद फूलो का बिस्तर था। उसी समय करूणा को एक आदमी लाठी टेकता आता दिखाई दिया, मानो किसी बूढ़े की दर्द भरी आवाज हो। वो थोड़ी -थोड़ी देर में रूककर खाँसने लगता था। उसका सिर झुका हुआ था, करूणा उसका चेहरा न देख सकी, लेकिन चाल-ढाल से कोई बूढ़ा आदमी लगता था; 

पर जैसे ही वह पास आ गया, तो करूणा पहचान गयी। वह उसका प्यारा पति ही था, हाय ! उसकी सूरत कितनी बदल गयी थी। वह जवानी, वह तेज, वह फुर्ती, वह सुंदरता , अब कुछ भी नहीं था। वो सिर्फ़ हड्‌डियों का एक ढाँचा रह गया था। न कोई संगी, न साथी, न यार, न दोस्त। करूणा उसे पहचानते ही बाहर निकल आयी, पर गले लगने की इच्छा मन में  ही रह गयी। जो सोचा था सब धरा रह गया । मन की ख़ुशी आँसुओं  में बह गई।

आदित्य ने घर में कदम रखते ही मुस्कराकर करूणा को देखा। पर उस मुस्कान में बहुत दर्द भरा हुआ था। करूणा ऐसी ढीली हो गयी, मानो दिल की धड़कने रूक गयी हो। वह लगातार आँखे खोले पति को देखे जा रही थी, मानो उसे अपनी आँखों पर अब भी यकीन न हो। स्वागत या दु:ख का एक शब्द भी उसके मुँह से न निकला। बच्चा भी गोद में बैठा हुआ डरी हुई आँखों से इस कंकाल को देख रहा था और माँ की गोद में चिपटा जाता था।

आखिर उसने दुःख से कहा— “”तुम्हारी क्या हालत हो गयी है? बिल्कुल पहचाने नहीं जाते!””

आदित्य ने उसकी चिन्ता को शांत करने के लिए मुस्कराने की कोशिश करके कहा— “”कुछ नहीं, जरा कमजोर हो गया हूँ। तुम्हारे हाथों का खाना खाकर फिर मोटा हो जाऊँगा।””

करूणा— “”छी! सूखकर काँटा हो गये। क्या वहाँ भरपेट खाना नहीं मिलता? तुम कहते थे, राजनैतिक आदमियों के साथ बड़ा अच्छा व्यवहार किया जाता है और वह तुम्हारे दोस्त थे ? जो तुम्हें हर वक्त घेरे रहते थे और तुम्हारे पसीने की जगह खून बहाने को तैयार रहते थे?””

आदित्य ने माथा सिकोड़ा और बोले— “”यह बड़ा ही कड़वा अनुभव है करूणा! मुझे न पता था कि मेरे कैद होते ही लोग इस तरह बदल जायेंगे, कोई हाल भी न पूछेगा। देश के नाम पर मिटने वालों का यही इनाम है, यह मुझे न पता था। जनता अपने सेवकों को बहुत जल्द भूल जाती है, 

यह तो मैं जानता था, लेकिन अपने साथ में काम करने वाले इतने बेवफा होते हैं, ये मैंने पहली बार देखा । लेकिन मुझे किसी से शिकायत नहीं। सेवा ही अपना इनाम हैं। मेरी भूल थी कि मैं इसके लिए यश और नाम चाहता था।””

करूणा— “”तो क्या वहाँ खाना भी न मिलता था?””

आदित्य— “”यह न पूछो करूणा, बड़ी दुःख भरी कहानी है। बस, यही बहुत समझो कि जिन्दा लौट आया। तुम्हे देखना ही था, नहीं तो मुसीबते तो ऐसी थी की शायद मर ही जाता । मैं आराम करूंगा। खड़ा नहीं रहा जाता। दिन-भर में इतनी दूर से आया हूँ।””

Puri Kahaani Sune…

(hindi) Khoon Safed

(hindi) Khoon Safed

“चैत का महीना था, लेकिन वो खलियान, जहाँ अनाज की ढेर लगे रहते थे, वहाँ जानवरों का घर बना हुआ था; जहाँ घरों से फाग और बसन्त के गाने सुनाई पड़ते, वहाँ आज किस्मत का रोना था। चार महीने बीत गए, पानी की एक बूँद न गिरी।

 जेठ में एक बार मूसलाधार बारिश  हुई थी, किसान बहुत खुश हुए। समय पर फसल बो दी, लेकिन इन्द्रदेव ने अपनी सारी बारिश शायद एक ही बार लुटा दिया था। पौधे उगे, बढ़े और फिर सूख गए। गाय चराने वाली जमीन में घास न जमी। बादल आते, बदली छा जाती, ऐसा मालूम होता कि खूब बारिश होगी, लेकिन वो उम्मीद के नहीं, दुख के बादल थे।

किसानों ने बहुत से पूजा पाठ किए, ईंट और पत्थर देवी-देवताओं के नाम से पुजाएं, बलि चढ़ाई, पानी की उम्मीद में खून के नाले बह गए, लेकिन इन्द्रदेव किसी तरह न पिघले। न खेतों में पौधे थे, न गायों के लिए घास, न तालाबों में पानी। इस बार बड़ी मुसीबत का सामना था। जहाँ देखिए, धूल उड़ रही थी। गरीबी और भूख के डरानक नजारे दिखाई देते थे। लोगों ने पहले तो गहने और बरतन गिरवी रखे और आखिर में बेच डाले।

 फिर जानवरों की बारी आयी और अब कमाने का और कोई तरीका न रहा, तब अपनी जमीन पर जान देने वाले किसान बाल बच्चों को लेकर मजदूरी करने निकल पड़े। अकाल पीड़ितों की मदद के लिए कहीं-कहीं सरकार की सहायता से काम खुल गया था। बहुत से वहीं जाकर जमे। जहाँ जिसको सुविधा हुई, वह उधर ही जा निकला।

शाम का समय था। जादोराय थका हुआ आकर बैठ गया और पत्नी से उदास होकर बोला- “अर्जी नामंजूर हो गई”। यह कहते-कहते वह आँगन में जमीन पर लेट गया। उसका चहरा पीला पड़ रहा था और आँतें सिकुड़ी जा रही थीं। आज दो दिन से उसने खाने की सूरत तक नहीं देखी थी । घर में जो कुछ था, गहने कपड़े, बरतन-भाँड़े सब पेट में समा गए। गाँव का साहूकार भी पतिव्रता पत्नियों की तरह आँखें चुराने लगा। सिर्फ सरकारी योजना का सहारा था, उसी के लिए अर्जी दी थी, लेकिन आज वह भी नामंजूर हो गई, उम्मीद का झिलमिलाता हुआ दीपक बुझ गया।

देवकी ने पति को दयनीय नजर से देखा। उसकी आँखों में आँसू भर आये। पति दिन भर का थका-माँदा घर आया है। उसे क्या खिलाए ? शर्म के मारे वह हाथ-पैर धोने के लिए पानी भी न लायी। जब हाथ-पैर धोकर उम्मीद भरी नजरों से वह उसकी ओर देखेगा, तब वह उसे क्या खाने को देगी ? उसने आप कई दिन से कुछ नहीं खाया था। 

लेकिन इस समय उसे जो दुख हुआ, वह भूखे होने की तकलीफ से कई गुना ज़्यादा था। पत्नी घर की लक्ष्मी है घर के लोगों को खिलाना-पिलाना वह अपना धर्म समझती है। और चाहे यह उसकी  नाइंसाफी ही क्यों न हो, लेकिन अपने बुरे हालात पर जो मानसिक तकलीफ उसे होती है, वह आदमी को नहीं हो सकती।

अचानक उसका बच्चा साधो नींद से चौंका और मिठाई के लालच में आकर वह बाप से लिपट गया। इस बच्चे ने आज सुबह चने की रोटी का एक टुकड़ा खाया था। और तब से कई बार उठा और कई बार रोते-रोते सो गया। चार साल का नासमझ बच्चा, उसे बारिश और मिठाई में कोई रिश्ता नहीं दिखाई देता था। जादोराय ने उसे गोद में उठा लिया और उसकी ओर दुख भरी नजर से देखा। उसकी गर्दन झुक गई और दिल का दर्द आँखों में न समा सका।

दूसरे दिन वह परिवार भी घर से बाहर निकला। जिस तरह आदमी के मन से अभिमान और पत्नी की आँख से शर्म नहीं निकलती, उसी तरह अपनी मेहनत से रोटी कमाने वाला किसान भी मजदूरी की खोज में घर से बाहर नहीं निकलता। लेकिन हाय पापी पेट! तू सब कुछ करा सकता है ! मान और अभिमान, दुख और शर्म के सब चमकते हुए तारे तेरे काले बादलों के पीछे छिप जाते हैं।

सुबह का समय था। ये दोनों तकलीफ के सताए घर से निकले। जादोराय ने लड़के को पीठ पर लिया। देवकी ने फटे-पुराने कपड़ों की वह गठरी सिर पर रखी, जिस पर मुसीबत  को भी तरस आ जाए। दोनों की आँखें आँसुओं से भरी थीं। देवकी रोती रही। जादोराय चुप था। गाँव के दो-चार आदमियों से मुलाकात भी हुई, किसी ने इतना भी नहीं पूछा कि कहाँ जाते हो? किसी के दिल में अपनापन न था।

जब ये लोग लालगंज पहुँचे, उस समय सूरज ठीक सर पर था। देखा, मीलों तक आदमी-ही-आदमी दिखाई देते थे। लेकिन हर चेहरे पर गरीबी और दुख के निशान थे।

बैसाख की जलती हुई धूप थी। आग के झोंके जोर-जोर से चल रहे थे। ऐसे समय में हड्डियों के अनगिनत ढाँचे, जिनके शरीर पर किसी तरह का कपड़ा न था, मिट्टी खोदने में लगे हुए थे, मानों वह मुर्दों को दफनाने की जमीन थी, जहाँ मुर्दे अपने हाथों अपनी कब्र खोद रहे थे। बूढ़े और जवान, आदमी और बच्चे, सबके-सब ऐसे निराश और मजबूर होकर काम में लगे हुए थे, मानो मौत और भूख उनके सामने बैठी घूर रही है।

 इस आफत में न कोई किसी का दोस्त था न भला सोचने वाला। दया, अच्छाई और प्यार ये सब मानवीय भाव हैं, जिनको करने वाला इंसान है; प्रकृति ने हमें सिर्फ एक भाव दिया है और वह स्वार्थ है। मानवीय भाव ज्यादातर धोखेबाज दोस्तों की तरह हमारा साथ छोड़ देते हैं, पर यह भगवान का दिया गुण हमारा गला नहीं छोड़ता।

Puri Kahaani Sune..

Corporate Chanakya On Management (English)

Corporate Chanakya On Management (English)

“What you will learn from the summary?

 

Chanakya Neeti has got it all figured out, even at the workplace. If you want to know how to get your dream job, how to get promoted or how to become an effective manager, you should read this book. You will learn many ideas here that you can immediately put into practice. If you follow Chanakya’s advice, many positive changes will happen in your career and in your life.

 

Who should read this summary?

 

•    For employees, so they can aim for high performance
•    For all bosses and managers, so they can have a team of loyal and reliable members
•    For anyone who wants to get promoted to a higher position

 

About the Author

 

Radakrishnan Pillai is a management trainer and speaker. He is also the founder and current director of Chanakya Institute of Public Leadership in University of Mumbai. Pillai has more than 20 years of experience as a management consultant in various organizations in both the public and private sector. 
 

RETIRE YOUNG RETIRE RICH (English)

RETIRE YOUNG RETIRE RICH (English)

“Why should you read this summary?

 

Everyone wants to become rich, and this book is a guide for becoming rich. People want to invest in businesses like real estate and stocks, but don't know where to start. This book shows the path towards a successful business. So how do you retire young and rich? The answers lie in this summary.

 

Who will learn from this summary?

 

●    Aspiring entrepreneurs
●    Small business owners 
●    Individual investors
●    Startup founders

 

About the Author

 

Robert Kiyosaki is an author and businessman. Kiyosaki runs a blog to elevate the financial well-being of people. He runs a radio show to spread knowledge on how to earn money. Kiyosaki's company provides private financial education to people through videos and books. He is the proud owner of the Rich Dad Series that has helped millions of people. 
 

Atal Bihari Vajpayee: A Man for All Seasons (English)

Atal Bihari Vajpayee: A Man for All Seasons (English)

“Why you should read this book

 

If you want to learn more about Atalji, about the Parliament and about politics, you should definitely read this book. Atalji is an inspiration to set aside political rivalry and differences in ideology in order to make tangible reforms and developments. He dedicated most of his life to the progress of India. He has set a good example for all leaders and politicians of the world.

 

Who should read this

 

Young politicians; Government workers; Lobbyists; College Students;

 

About the author

 

Kingshuk Nag is an award winning journalist and author. He is writer and editor in several newspapers such as Times of India. He is recipient of Prem Bhatia Award for Outstanding Political Reporting in 2002.

(hindi) I Don’t Want to Talk About It: Overcoming the Secret Legacy of Male Depression

(hindi) I Don’t Want to Talk About It: Overcoming the Secret Legacy of Male Depression

“मैं आपका दर्द समझ सकता हूँ. एक आदमी होने के नाते मैं आपके अंदर की कैफ़ियत को महसूस कर सकता हूँ. मुझे पता है कि कभी-कभी आपको औरतों के पास जो ख़ास अधिकार है कि वो खुलकर अपनी भावनाओं को बता सकती हैं, उन्हें जाता सकती हैं उससे आपको जलन होती है. लेकिन सोसाइटी आपको ये अधिकार नहीं देती क्योंकि आपके भावुक होने को कमज़ोरी मान लिया जाता है. क्या आप इस पर क़ाबू पाना चाहते हैं? क्या आप कम से कम ये समझना चाहते हैं कि आप ऐसा क्यों महसूस करते हैं? अगर हाँ, तो आपको इससे बेहतर बुक नहीं मिल सकती. 

यह समरी किसे पढ़नी चाहिए? 
●    आदमियों को 
●    कोई भी जो ये समझने की कोशिश कर रहा है कि एक डिप्रेस्ड आदमी का आखिर व्यवहार अलग सा क्यों होता है 

ऑथर के बारे में 

टेरेंस रियल 25 सालों से फॅमिली थेरपिस्ट हैं. वो Relational Life Institute (RLI) के फाउंडर हैं जो लोगों को RLT माइंडसेट सिखाने के लिए वर्कशॉप ऑफर करती है. 
टेरेंस ने ख़ुद को भी बचपन के दर्दनाक इमोशनल एक्सपीरियंस से बाहर निकाला है. 
 

(hindi) The Gift of Fear

(hindi) The Gift of Fear

“क्या आप किसी धोखाधड़ी या जालसाज़ी का शिकार हुए हैं? क्या आप जानना चाहते हैं कि इसे दोबारा होने से कैसे रोका जाए? हम सभी के पास एक नेचुरल डिफेंस सिस्टम है जो हमारे ब्रेन में बैठा हुआ है, उसे इन्टूइशन (Intuition) कहते हैं. इस बुक में, आप सीखेंगे कि इसका इस्तेमाल कैसे करें, वार्निंग सिग्नल को कैसे देखें और भीड़ में छुपे उस धोखेबाज़ को कैसे पहचानें. यूहीं नहीं कहा जाता कि अजनबियों से बात नहीं करनी चाहिए, उसके पीछे एक जांचा परखा हुआ कारण है. 

यह समरी किसे पढ़नी चाहिए?
•    औरतों को 
•    teenagers 
•    पेरेंट्स को 
•    जो भी सेल्फ़ डिफेंस यानी आत्म रक्षा सीखना चाहते हैं 

ऑथर के बारे में 

गैविन डी बैकर एक सिक्यूरिटी स्पेशलिस्ट हैं. वह सिक्यूरिटी फर्म “Gavin de Becker and Associates” के फाउंडर और चेयरमैन हैं.  उनके क्लाइंट्स में राजकुमार हैरी और मेगन मार्कल, कई सीईओ, पॉलिटिशियन और जानी मानी हस्तियां शामिल हैं.  ओपरा विनफ्रे ने इस बुक की 10th एनिवर्सरी मनाने के लिए एक पूरा एपिसोड  समर्पित किया था. 
 

(hindi) GHAR VAPSI

(hindi) GHAR VAPSI

“पाठक चक्रवर्ती अपने मुहल्ले के लड़कों का नेता था। सब उसकी आज्ञा मानते थे। अगर कोई उसके खिलाफ़ जाता तो उस पर आफत आ जाती, सब मुहल्ले के लड़के उसे मारते। आखिरकार बेचारे को मजबूर होकर पाठक से माफ़ी मांगनी पड़ती। एक बार पाठक ने एक नया खेल सोचा। नदी के किनारे लकड़ी का एक बड़ा पट्टा  पड़ा था, जिसकी नौका बनाई जाने वाली थी। पाठक ने कहा- “”हम सब मिलकर उस पट्टे को लुड्काएंगे , पट्टे  का मालिक हम पर गुस्सा होगा और हम सब उसका मजाक उड़ाकर खूब हंसेंगे।”” सब लड़कों ने मान लिया।

जब खेल शुरू होने वाला था तो पाठक का छोटा भाई मक्खन बिना किसी से एक शब्द कहे उस पट्टे पर बैठ गया। लड़के रुके और एक पल तक चुप रहे । फिर एक लड़के ने उसे धक्का दिया, लेकिन वह न उठा। यह देखकर पाठक को गुस्सा आया। उसने कहा- “”मक्खन, अगर तू न उठेगा तो इसका बुरा नतीजा होगा।”” लेकिन मक्खन यह सुनकर और आराम से बैठ गया। अब अगर पाठक कुछ हल्का पड़ता, तो उसकी बेईज्ज़ती हो जाती । बस, उसने आज्ञा दी कि पट्टा  लुढ़का दिया जाये।

लड़के भी आज्ञा मिलते ही एक-दो-तीन कहकर पट्टे की ओर दौड़े और सबने जोर लगाकर पट्टे को धकेल दिया। पट्टे को फिसलता और मक्खन को गिरता देखकर लड़के बहुत हंस रहे थे लेकिन पाठक को थोडा डर लगने लगा क्योंकि वह जानता था कि इसका नतीजा क्या होगा।
मक्खन ज़मीन से उठा और पाठक को लात और घूंसे मारकर घर की ओर रोता हुआ चल दिया।

पाठक को लड़कों के सामने हुए इस अपमान से बहुत बुरा लगा। वह नदी-किनारे मुंह-हाथ धोकर बैठ गया और घास तोड़-तोड़कर चबाने लगा। इतने में एक नौका वहां आई जिसमें एक बड़ी उम्र का आदमी बैठा था। उस आदमी ने पाठक के पास आकर पूछा- “”पाठक चक्रवर्ती कहां रहता है?””

पाठक ने लापरवाही से बिना किसी ओर इशारा किए हुए कहा- “”वहां,”” और फिर घास चबाने लगा।

उस आदमी ने पूछा- “”कहां?””
पाठक ने अपने पांव फैलाते हुए बेरुखी से जवाब दिया- “”मुझे नहीं मालूम।””
इतने में उसके घर का नौकर आया और कहा- “”पाठक, तुम्हारी मां तुम्हें बुला रही है।””
पाठक ने जाने से इन्कार किया, लेकिन नौकर क्योंकि मालकिन की ओर से आया था, इस वजह से वह उसे जबर्दस्ती मारता हुआ ले गया.

पाठक जब घर आया तो उसकी मां ने गुस्से में पूछा- “”तूने मक्खन को फिर मारा?””
पाठक ने जवाब दिया- “”नहीं तो, तुमसे किसने कहा?””

मां ने कहा- “”झूठ मत बोल, तूने मारा है।””
पाठक ने फिर जवाब दिया- “”नहीं यह बिल्कुल झूठ है, तुम मक्खन से पूछो।””
मक्खन क्योंकि कह चुका था कि भैया ने मुझे मारा है इसलिए उसने अपने शब्द कायम रखे और दोबारा कहा- “”हां-हां तुमने मारा है।””

यह सुनकर पाठक को गुस्सा आया और मक्खन के पास आकर उसे मारना शुरू कर दिया। उसकी मां ने उसे तुरन्त बचाया और पाठक को मारने लगी। पाठक ने अपनी मां को धक्का दिया। धक्के से फिसलते हुए उसकी मां ने कहा- “”अच्छा, तू अपनी मां को भी मारना चाहता है।””

ठीक उसी समय वह बड़ी उम्र का आदमी घर में आया और कहने लगा- “”क्या किस्सा है?””
पाठक की मां ने पीछे हटकर आने वाले को देखा और तुरन्त ही उसका गुस्सा आश्चर्य में बदल गया। उसने अपने भाई को पहचाना और कहा- “”क्यों दादा, तुम यहां? कैसे आये?”” फिर उसने नीचे झुकते हुए उसके पैर  छुए।

उसका भाई विशम्भर उसकी शादी के बाद बम्बई चला गया था, वह व्यापार करता था। अब कलकत्ता अपनी बहन से मिलने आया था क्योंकि बहन के पति की मौत हो गई थी।
कुछ दिन तो बड़ी हंसी ख़ुशी के साथ बीते। एक दिन विशम्भर ने दोनों लड़कों की पढ़ाई के बारे में पूछा।

उसकी बहन ने कहा- “”पाठक हमेशा दु:ख देता रहता है और बहुत चंचल है, लेकिन मक्खन का पढ़ाई में बहुत दिल लगता है।””

यह सुनकर उसने कहा- “”मैं पाठक को बम्बई ले जाकर पढ़ाऊंगा।””
पाठक भी चलने के लिए सहमत हो गया। मां के लिए यह बहुत ख़ुशी की बात थी, क्योंकि वह हमेशा डरा करती थी कि कहीं किसी दिन पाठक मक्खन को नदी में न डूबो दे या उसे जान से न मार डाले।

पाठक हर रोज़ मामा से पूछता कि तुम किस दिन चलोगे। आखिरकार  चलने का दिन आ ही गया। उस रात पाठक से सोया भी न गया, वो सारा दिन जाने की खुशी में इधर-उधर फिरता रहा। उसने अपनी मछली पकड़ने की हत्थी, पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े और बड़ी पतंग भी मक्खन को दे दी, क्योंकि उसे जाते समय मक्खन से हमदर्दी सी हो गई थी।

Puri Kahaani sune…

(hindi) Do Kabrein

(hindi) Do Kabrein

“अब न वह जवानी है, न वह नशा, न वह पागलपन। वह महफिल उठ गई, वह दिया बुझ गया, जिससे महफिल की रोशनी थी। वह प्यार की मूर्ति अब नहीं रही। हाँ, उसके प्यार का असर अब भी दिल पर है और उसकी कभी न मिटने वाली यादें आँखों के सामने । बहादुर औरतों में ऐसी वफा, ऐसा प्यार, ऐसा व्रत होना साधारण नहीं है, और अमीरों में ऐसी शादी, ऐसा समर्पण, ऐसी भक्ति और भी अनदेखा है। कुँवर रनवीरसिंह रोज बिना रुके शाम के समय जुहरा की कब्र  देखने जाते, उसे फूलों से सजाते, आँसुओं से सींचते।

 15 साल बीत गये, एक दिन भी ऐसा नहीं हुआ कि  वो न गए हों। प्यार की भक्ति ही उनके जीने की वजह थी, उस प्यार का जिसमें उन्होंने जो कुछ देखा वही पाया और जो कुछ महसूस किया, उसी की याद अब भी उन्हें खुश कर देती है। इस भक्ति में सुलोचना भी उनके साथ होती, जो जुहरा की देन और कुँवर साहब की सारी इच्छाओं का केन्द्र थी।

कुँवर साहब ने दो शादियाँ की थीं, पर दोनों बीवियों में से एक के भी बच्चे नहीं थे। कुँवर साहब ने फिर शादी न की । एक दिन एक महफिल में उन्हें जुहरा दिखी। उस निराश पति और उदास लड़की की आपस में ऐसी बनती थी, मानो पुराने बिछड़े हुए दो साथी फिर मिल गये हों।

जीवन का अच्छा समय प्यार और खुशियों से भरा हुआ आया मगर अफसोस ! पाँच साल के कम समय में वो भी खत्म हो गया। वह खुशियों से भरा सपना, जागने पर निराशा में खो गया। वह सेवा और व्रत की देवी तीन साल की सुलोचना को उनकी गोद में देकर हमेशा के लिए चली गई। कुँवर साहब ने अपने प्यार के द्वारा दिए गए हुक्म को इतनी खुशी से निभाया कि देखने वालों को आश्चर्य होता था। कितने ही तो उन्हें पागल समझते थे।

जब सुलोचना सोती वो सोते, जब वह जागती तब जागते, उसे खुद पढ़ाते, उसके साथ सैर करते इतने ध्यान से, जैसे कोई विधवा अपने अनाथ बच्चे को पालती है।

जब से वह यूनिवर्सिटी गई, उसे खुद गाड़ी से छोड़ने और लेने जाते। वह उसके माथे पर से वह दाग धो डालना चाहते थे, जो मानो भगवान ने कठोर हाथों से लगा दिया था। पैसा तो उसे न धो सका, शायद पढ़ाई धो डाले। एक दिन शाम को कुँवर साहब जुहरा की कब्र को फूलों से सजा रहे थे और सुलोचना कुछ दूर पर खड़ी अपने कुत्ते को गेंद खिला रही थी कि अचानक उसने अपने कॉलेज के प्रोफेसर डाक्टर रामेन्द्र को आते देखा। उसने शर्माकर मुँह फेर लिया, मानो उन्हें देखा ही ना हो। उसे लगा कि कहीं रामेन्द्र इस कब्र के बारे में कुछ पूछ न लें।

यूनिवर्सिटी में दाखिल हुए उसे एक साल हुआ था। इस एक साल में उसने कई तरह के प्यार देख लिए थे। कहीं मस्ती थी, कहीं मजाक था, कहीं बुराई थी, कहीं इच्छा थी, कहीं आजादी थी, लेकिन कहीं वह अच्छी भावनाएँ न थी, जो प्यार का जड़ है। सिर्फ रामेन्द्र ही एक ऐसे सज्जन थे, जिन्हें अपनी ओर ताकते देखकर उसके दिल में कुछ होने लगता था; पर उनकी आँखों में कितनी मजबूरी, कितनी हार, कितना दर्द छिपा होता था ! रामेन्द्र ने कुँवर साहब की ओर देखकर कहा, ‘तुम्हारे बाबा इस कब्र पर क्या कर रहे हैं?’

सुलोचना का चेहरा कानों तक लाल हो गया। बोली, ‘यह इनकी पुरानी आदत है।’
रामेन्द्र –‘क़िसी महान इंसान की समाधि है?’
सुलोचना इस सवाल का जवाब नहीं देना चाहती थी। रामेन्द्र यह तो जानते थे कि सुलोचना कुँवर साहब की नाजायज बेटी है; पर उन्हें यह न मालूम था कि यह उसकी माँ की कब्र है और कुँवर साहब अब भी उससे इतना प्यार करते हैं। मगर यह सवाल उन्होंने बहुत धीमी आवाज में न किया था। कुँवर साहब जूते पहन रहे थे। यह सवाल उनके कान में पड़ गया। उन्होंने जल्दी से जूता पहन लिया और पास जाकर बोले –‘दुनिया की आँखों में तो वह महान न थी; पर मेरी आँखों में थी और है। यह मेरे प्यार की समाधि है।’

सुलोचना की इच्छा हो रही थी कि यहाँ से भाग जाऊँ; लेकिन कुँवर साहब को जुहरा की तारीफ करने में दिली सुख मिलता था। रामेन्द्र का आश्चर्य देखकर वो बोले ‘इसमें वह देवी सो रही है, जिसने मेरे जीवन को स्वर्ग बना दिया था। यह सुलोचना उसी की देन है।’

रामेन्द्र ने कब्र की तरफ देखकर आश्चर्य से कहा, ‘अच्छा !’
कुँवर साहब ने मन ही मन मे उस प्यार के लिए खुश होते हुए कहा, ‘वह जीवन ही कुछ और था, प्रोफेसर साहब। ऐसी तप मैंने और कहीं नहीं देखी। आपको फुरसत हो, तो मेरे साथ चलिए। आपको उन यादों …

सुलोचना बोल उठी, ‘वे सुनाने की चीज नहीं हैं, दादा !’
कुँवर –‘मैं रामेन्द्र बाबू को पराया नहीं समझता।’
रामेन्द्र को प्यार का यह अनोखा रूप खजाने सा लगा । वह कुँवर साहब के साथ ही उनके घर आये और कई घंटे तक उन इच्छाओं में डूबी हुई प्यार की यादों को सुनते रहे। जो चीज माँगने के लिए उन्हें साल भर से हिम्मत न होती थी, सोच में पड़कर रह जाते थे, वह आज उन्होंने माँग लिया।

लेकिन शादी के बाद रामेन्द्र को नया एहसास हुआ। औरतों का उनके घर आना-जाना प्राय: बंद हो गया। इसके साथ ही दोस्तों का आना जाना बढ़ गया। दिन भर उनका सिलसिला लगा रहता था। सुलोचना उनकी खातिरदारी में लगी रहती। पहले एक-दो महीने तक तो रामेन्द्र ने इधर ध्यान नहीं दिया; लेकिन जब कई महीने गुजर गये और फिर भी औरतों ने आना शुरू नहीं किया तो उन्होंने एक दिन सुलोचना से कहा, ‘यह लोग आजकल अकेले ही आते हैं !’

सुलोचना ने धीरे से कहा, ‘हाँ, देखती तो हूँ।’
रामेन्द्र –‘इनकी औरतें तुमसे तो नहीं बचतीं?’
सुलोचना –‘शायद बचतीं हों।’
रामेन्द्र –‘मगर वे लोग तो आजाद ख्याल के हैं। इनकी औरतें भी पढ़ी लिखी हैं, फिर यह क्या बात है ?’

सुलोचना ने दबी जबान से कहा, ‘मेरी समझ में कुछ नहीं आता।’
रामेन्द्र ने कुछ देर सोच कर कहा, ‘हम लोग किसी दूसरी जगह चले जायँ, तो क्या फर्क पड़ता है? वहाँ तो कोई हमें न जानता होगा।’

सुलोचना ने इस बार तेज आवाज में कहा, ‘दूसरी जगह क्यों जायें। हमने किसी का कुछ बिगाड़ा नहीं है, किसी से कुछ माँगते नहीं। जिसे आना हो आये, न आना हो न आये। मुँह क्यों छिपायें।’

धीरे-धीरे रामेन्द्र को एक और बात समझ आने लगी, जो औरतों के व्यवहार से कहीं ज़्यादा  शर्मनाक और बेइज्जत करने वाली थी । रामेन्द्र को अब पता चलने लगा कि ये लोग जो आते हैं और घंटों बैठे सामाजिक और राजनीतिक सवालों पर बहस किया करते हैं, असल में बातचीत करने के लिए नहीं बल्कि सुलोचना को देखने के लिए आते हैं। उनकी आँखें सुलोचना को खोजती रहती हैं। 

उनके कान उसी की बातों की ओर लगे रहते हैं। उसकी सुंदरता का मजा उठाना ही उनका असली मकसद है। यहाँ उन्हें वह हिचक नहीं होती, जो किसी भले आदमी की बहू-बेटी की ओर आँख उठाने से होती है। शायद वे सोचते हैं, यहाँ उन्हें कोई रोक-टोक नहीं है।

Puri Khaani Sune…

 

(hindi) Algyogha

(hindi) Algyogha

“भोला महतो ने पहली पत्नी के मर के जाने बाद दूसरी सगाई की तो उसके बेटे रग्घू के लिये बुरे दिन आ गये। रग्घू की उम्र उस समय सिर्फ दस साल थी। वो चैन से गाँव में गुल्ली-डंडा खेलता फिरता था लेकिन माँ के आते ही चक्की में जुतना पड़ा। पन्ना सुंदर औरत थी और सुंदरता और घमंड में चोली-दामन का रिश्ता है। वह खुद कोई काम न करती। गोबर रग्घू निकालता, बैलों को चारा रग्घू देता। रग्घू ही जूठे बरतन माँजता। भोला की आँखें कुछ ऐसी फिरीं कि उसे अब रग्घू में सब बुराइयाँ-ही- बुराइयाँ नजर आतीं। पन्ना की बातों को वह पुराने नियम की तरह आँखें बंद करके मान लेता था। रग्घू की शिकायतों की जरा परवाह न करता। नतीजा यह हुआ कि रग्घू ने शिकायत करना ही छोड़ दिया। किसके सामने रोये? 

बाप ही नहीं, सारा गाँव उसका दुश्मन था। बड़ा जिद्दी लड़का है, पन्ना को तो कुछ समझता ही नहीं; बेचारी उसका दुलार करती है, खिलाती-पिलाती है यह उसी का फल है। दूसरी औरत होती, तो न सहती। वह तो कहो, पन्ना इतनी सीधी-सादी है कि सह लेती है। ताकतवर की शिकायत सब सुनते हैं, कमजोर की फरियाद भी कोई नहीं सुनता! रग्घू का दिल माँ की ओर से दिन-दिन फटता जा रहा था। यहाँ तक कि आठ साल गुजर गये और एक दिन भोला भी चल बसा।

पन्ना के चार बच्चे थे- तीन बेटे और एक बेटी। इतना बड़ा खर्च और कमाने वाला कोई नहीं। रग्घू अब क्यों बात पूछने लगा? यह मानी हुई बात थी। अपनी पत्नी लाएगा और अलग रहेगा। पत्नी आकर और भी आग लगायेगी। पन्ना को चारों ओर अंधेरा- ही- अंधेरा दिखाई देता था। पर कुछ भी हो, वह रग्घू की दया पर घर में न रहेगी। जिस घर में उसने राज किया, उसमें अब दासी न बनेगी। जिस लड़के को अपना गुलाम समझा, उसका मुँह न ताकेगी।

 वह सुन्दर थी, उम्र अभी कुछ ऐसी ज्यादा न थी। जवानी अपनी पूरी बहार पर थी। क्या वह कोई दूसरा घर नहीं कर सकती? यही न होगा, लोग हँसेंगे। बला से! उसकी बिरादरी में क्या ऐसा होता नहीं? ब्राह्मण, ठाकुर थोड़ी ही थी कि नाक कट जायगी। यह तो उन्ही ऊँची जात में होता है कि घर में चाहे जो कुछ करो, बाहर पर्दा ढका रहे। वह तो दुनिया को दिखाकर दूसरा घर कर सकती है, फिर वह रग्घू से दब कर क्यों रहे?

भोला को मरे एक महीना गुजर चुका था। शाम हो गयी थी। पन्ना इसी चिन्ता में पड़ी हुई थी कि अचानक उसे ख्याल आया, लड़के घर में नहीं हैं। यह बैलों के लौटने का समय है, कहीं कोई लड़का उनके नीचे न आ जाय। अब दरवाजे पर कौन है, जो उनकी देखभाल करेगा? रग्घू को मेरे लड़के बिल्कुल नहीं पसंद। कभी हँसकर नहीं बोलता। घर से बाहर निकली, तो देखा, रग्घू सामने झोपड़े में बैठा गन्ने काट रहा है, लड़के उसे घेरे खड़े हैं और छोटी लड़की उसकी गर्दन में हाथ डाले उसकी पीठ पर सवार होने की कोशिश कर रही है। पन्ना को अपनी आँखों पर भरोसा न हुआ।

 आज तो यह नयी बात है। शायद दुनिया को दिखाता है कि मैं अपने भाइयों को कितना चाहता हूँ और मन में नफरत भरी हुई है। मौका मिले तो जान ही ले ले! काला साँप है, काला साँप! वो कठोर आवाज में बोली- ‛तुम सबके सब वहाँ क्या करते हो? घर में आओ, शाम का समय है, गाय बैल आते होंगे।’

रग्घू ने दयनीय नजरों से देखकर कहा- ‛मैं तो हूँ ही काकी, डर किस बात का है?’

बड़ा लड़का केदार बोला- ‛काकी, रग्घू दादा ने हमारे लिए दो गाड़ियाँ बना दी हैं। यह देख, एक पर हम और खुन्नू बैठेंगे, दूसरी पर लछमन और झुनिया। दादा दोनों गाड़ियाँ खींचेंगे।’

यह कहकर वह एक कोने से दो छोटी-छोटी गाड़ियाँ निकाल लाया। चार-चार पहि्ये लगे थे। बैठने के लिए तख्ते और रोक के लिए दोनों तरफ बाजू थे।

पन्ना ने आश्चर्य से पूछा- ‛ये गाड़ियाँ किसने बनायी?’

केदार ने चिढ़कर कहा- ‛रग्घू दादा ने बनायी हैं, और किसने! भगत के घर से औजार माँग लाए और जल्दी से बना दी। खूब दौड़ती हैं काकी! बैठ खुन्नू मैं खींचूँ।’

खुन्नू गाड़ी में बैठ गया। केदार खींचने लगा। चर-चर शोर हुआ मानो गाड़ी भी इस खेल में लड़कों के साथ शामिल है।

लछमन ने दूसरी गाड़ी में बैठकर कहा- ‛दादा, खींचो।’

रग्घू ने झुनिया को भी गाड़ी में बिठा दिया और गाड़ी खींचता हुआ दौड़ा। तीनों लड़के तालियाँ बजाने लगे। पन्ना आश्चर्य से यह नजारा देख रही थी और सोच रही थी कि यह वही रग्घू है या कोई और।

थोड़ी देर के बाद दोनों गाड़ियाँ लौटीं; लड़के घर में जाकर इस गाड़ी में बैठने के अनुभव बताने लगे। कितने खुश थे सब, मानों हवाई जहाज पर बैठ आये हों।

खुन्नू ने कहा- ‛काकी सब पेड़ दौड़ रहे थे।’

लछमन- ‛और बछिया कैसी भागीं, सबकी सब दौड़ीं!’

केदार- ‛काकी, रग्घू दादा दोनों गाड़ियाँ एक साथ खींच ले जाते हैं।’

झुनिया सबसे छोटी थी। उसका बताने का तरीका उछल-कूद और नजरों तक सीमित था-तालियाँ बजा-बजाकर नाच रही थी।

खुन्नू- ‛अब हमारे घर गाय भी आ जायगी काकी! रग्घू दादा ने गिरधारी से कहा है कि हमें एक गाय ला दो। गिरधारी बोला, कल लाऊँगा।’

केदार- ‛तीन सेर दूध देती है काकी! खूब दूध पीयेंगे।’

इतने में रग्घू भी अंदर आ गया। पन्ना ने अपमान की नजर से देखकर पूछा- ‛क्यों रग्घू तुमने गिरधारी से कोई गाय माँगी है?’

रग्घू ने कहा- ‛हाँ, माँगी तो है, कल लावेगा।’

पन्ना- ‛रुपये किसके घर से आयेंगे, यह भी सोचा है?’

रग्घू- ‛सब सोच लिया है काकी! मेरी यह लॉकेट है ना। इसके पच्चीस रुपये मिल रहे हैं, पाँच रुपये बछिया के जुर्माना दे दूँगा! बस, गाय अपनी हो जायगी।’

पन्ना सन्नाटे में आ गयी। अब उसका शक से भरा मन भी रग्घू के प्यार और अच्छाई पर शक न कर सका। बोली- ‛मुहर को क्यों बेचे देते हो? गाय की अभी कौन जल्दी है? हाथ में पैसे हो जायँ, तो ले लेना। सूना-सूना गला अच्छा न लगेगा। इतने दिनों गाय नहीं रही, तो क्या लड़के नहीं जिये?’

रग्घू समझदारी के भाव से बोला- ‛बच्चों के खाने-पीने के यही दिन हैं काकी! इस उम्र में न खाया, तो फिर क्या खायेंगे। लॉकेट पहनना मुझे अच्छा भी नहीं लगता। लोग समझते होंगे कि बाप तो मर गया। इसे लॉकेट पहनने की सूझी है।'

भोला महतो गाय की चिंता ही में चल बसे। न रुपये आये और न गाय मिली। मजबूर थे। रग्घू ने यह परेशानी कितनी आसानी से हल कर दी। आज जीवन में पहली बार पन्ना को रग्घू पर भरोसा आया, बोली- ‛जब गहना ही बेचना है, तो अपनी मुहर क्यों बेचोगे?’ मेरी माला ले लेना।’

रग्घू- ‛नहीं काकी! वह तुम्हारे गले में बहुत अच्छी लगती है। मर्दो को क्या, लॉकेट पहनें या न पहनें।’

पन्ना- ‛चल, मैं बूढ़ी हुई। अब हार पहनकर क्या करना है। तू अभी लड़का है, तेरा गला अच्छा न लगेगा?’

रग्घू मुस्कराकर बोला- ‛तुम अभी से कैसे बूढ़ी हो गयी?’ गाँव में है कौन तुम्हारे बराबर?’

रग्घू की बात ने पन्ना को शर्मिंदा कर दिया। उसके रुखे-मुरझाये चहरे पर खुशी की लाली दौड़ गयी।

Puri Kahaani Sune…

(hindi) Actress

(hindi) Actress

“रंगमंच का परदा गिर गया। तारा देवी ने शकुंतला का पार्ट खेलकर दर्शकों को मुग्ध कर दिया था। जिस वक्त वह शकुंतला के रुप में राजा दुष्यंत के सामने खड़ी ग्लानि, दर्द , और अपमान से पीड़ित भावों को गुस्से में प्रकट कर रही थी, दर्शक मर्यादा के नियमों को अनदेखा कर मंच की ओर पागलों की तरह दौड़ पड़े और तारादेवी का नाम लेकर वाहवाही करने लगे। कितने तो स्टेज पर चढ़ गये और तारादेवी के चरणों पर गिर पड़े। सारा स्टेज फूलों से भर गया, गहनों की बारिश होने लगी।

अगर उसी पल  मेनका का रथ नीचे आकर उसे उड़ा न ले जाता, तो शायद उस धक्कम-धक्के में दस-पॉँच आदमियों की जान पर बन जाती। मैनेजर ने तुरन्त आकर दर्शकों को उनकी तारीफ़ और तालियों के लिए धन्यवाद दिया और वादा भी किया कि दूसरे दिन फिर वही नाटक दिखाया जाएगा। तब जाकर लोगों की दीवानगी  शांत हुई । मगर एक नौजवान उस वक्त भी मंच पर खड़ा रहा। वो लम्बे कद का था, तेजस्वी चेहरा , शुद्ध सोने जैसा, देवताओं जैसा रूप, गठा हुआ शरीर , चेहरे पर चमक । मानो कोई राजकुमार हो।

जब सारे दर्शक बाहर निकल गये, उसने मैनेजर से पूछा—“क्या तारादेवी से मिल सकता हूँ?

मैनेजर ने अपमान के भाव से कहा—“हमारे यहाँ ऐसा नियम नहीं है”।
नौजवान ने फिर पूछा—“क्या आप मेरा कोई ख़त उसके पास भेज सकते हैं?”
मैनेजर ने उसी अपमान के भाव से कहा—“जी नहीं। माफ़ कीजिएगा। यह हमारे नियमों के ख़िलाफ़ है”।

नौजवान ने और कुछ न कहा, निराश होकर स्टेज के नीचे उतर पड़ा और बाहर जाना ही चाहता था कि मैनेजर ने पूछा—“जरा ठहर जाइये, आपका कार्ड?”
नौजवान ने जेब से कागज का एक टुकड़ा निकाल कर कुछ लिखा और दे दिया। मैनेजर ने कागज़  को उड़ती हुई नज़र से देखा—“कुंवर निर्मलकान्त चौधरी, ओ. बी. ई.”। मैनेजर के  कठोर हाव भाव कोमल हो गए ।

 कुंवर निर्मलकान्त—शहर के सबसे बड़े रईस और ताल्लुकदार, साहित्य के उभरते हुए रत्न, संगीत के दिग्गज आचार्य, उच्च-कोटि के विद्वान, आठ-दस लाख साल में मुनाफ़ा कमाने वाले, जिनके दान से देश की कितनी ही संस्थाऍं चलती थीं—इस समय एक गरीब के समान अर्ज़ी लगा रहे थे। मैनेजर अपने अपमान -भाव पर शर्मिंदा  हो गया। विनम्र शब्दों में बोला—“माफ़ कीजिएगा, मुझसे बड़ा अपराध हुआ। मैं अभी तारादेवी के पास हुजूर का कार्ड लिए जाता हूँ”।

कुंवर साहब ने उससे रुकने का इशारा करके कहा—“नहीं, अब रहने ही दीजिए, मैं कल पॉँच बजे आऊँगा। इस वक्त तारादेवी को तकलीफ़ होगी । यह उनके आराम करने का समय है”।

मैनेजर—“मुझे विश्वास है कि वह आपकी खातिर इतनी तकलीफ़ ख़ुशी-ख़ुशी सह लेंगी, मैं एक मिनट में आता हूँ”।

लेकिन कुंवर साहब अपना परिचय देने के बाद अपने उतावलेपन  पर संयम का परदा डालने के लिए मजबूर थे। उन्होंने मैनेजर को धन्यवाद किया और कल आने का वादा करके चले गये।

तारा एक साफ-सुथरे और सजे हुए कमरे में मेज के सामने किसी विचार में मग्न बैठी थी। रात का वह नज़ारा उसकी आँखों के सामने नाच रहा था। ऐसे दिन जीवन में क्या बार-बार आते हैं?

 कितने लोग उसे देखने के लिए बेचैन हो रहे थे ? इतना कि , एक-दूसरे पर कूद रहे थे । कितनों को उसने पैरों से ठुकरा दिया था—हाँ, ठुकरा दिया था। मगर उन लोगों  में सिर्फ़ एक दिव्य मूर्ति शांत रुप से खड़ी थी। उसकी आँखों में कितना गम्भीर प्रेम था, कितना पक्का इरादा ! ऐसा लग रहा था मानों उसकी दोनों आखें दिल में चुभी जा रही हों। आज फिर उस आदमी के दर्शन होंगे या नहीं, कौन जानता है। लेकिन अगर आज उनके दर्शन हुए, तो तारा उनसे एक बार बातचीत किये बिना न जाने देगी।

यह सोचते हुए उसने आईने की ओर देखा, कमल का फूल-सा खिला था, कौन कह सकता था कि वह नया नया फूल तैंतीस बसंत की बहार देख चुका है। वह  तेज़ , वह कोमलता, वह चंचलता , वह मधुरता अभी-अभी जवानी में कदम रखने वाली औरत को भी शर्मिंदा कर सकता था। तारा एक बार फिर दिल में प्रेम का दीपक जला बैठी। आज से बीस साल पहले एक बार उसे प्रेम का कड़वा अनुभव हुआ था। तब से वह एक तरह से विधवा का जीवन जी  रही थी । कितने प्रेमियों ने अपना दिल उसे भेंट करना चाहा; पर उसने किसी की ओर आँख उठाकर भी न देखा। उसे उनके प्रेम में कपट की गन्ध आती थी। मगर आह! आज उसका संयम हाथ से निकल गया।

 एक बार फिर दिल में उसी मधुर कशिश का अनुभव हुआ, जो बीस साल पहले हुआ था। एक आदमी का सौम्य रूप उसकी आँखें में बस गया, दिल उसकी ओर खिंचने लगा। उसे वह किसी तरह भूल न सकती थी। उसी आदमी को अगर उसने मोटर पर जाते देखा होता, तो शायद उधर ध्यान भी न देती । पर उसे अपने सामने प्रेम का तोहफ़ा हाथ में लिए देखकर वह शांत न रह सकी।

तभी दाई ने आकर कहा—“बाई जी, रात की सब चीजें रखी हुई हैं, कहिए तो लाऊँ?”
तारा ने कहा—“नहीं, मेरे पास चीजें लाने की जरुरत नहीं; मगर ठहरो, क्या-क्या चीजें हैं”।
‘सामान का ढेर लगा है बाई जी, कहाँ तक गिनाऊँ—अशर्फियॉँ हैं, ब्रूच, बाल के पिन, बटन, लॉकेट, अँगूठियॉँ सभी तो हैं। एक छोटे-से डिब्बे में एक सुन्दर हार है। मैंने आज तक वैसा हार नहीं देखा। सब बक्से में रख दिया है।’

‘अच्छा, वह बक्सा मेरे पास ला।’ दाई ने बक्सा लाकर मेज रख दिया। उधर एक लड़के ने एक ख़त लाकर तारा को दिया। तारा ने ख़त को उतावली नज़रों से देखा—“कुंवर निर्मलकान्त ओ. बी. ई.”। लड़के से पूछा—“यह ख़त किसने दिया? वह तो नहीं, जो रेशमी पगड़ी  बॉँधे हुए थे?”

Puri Kahaani Sune…

(hindi) 21 Days to Resilience – How To Transcend The Daily Grind, Deal With The Tough Stuff, And Discover Your Strongest Self

(hindi) 21 Days to Resilience – How To Transcend The Daily Grind, Deal With The Tough Stuff, And Discover Your Strongest Self

“क्या आप लाइफ के challenge फेस करने के लिए स्ट्रांग है? अगर आपको लगता है कि आप resilient नहीं बन सकते, तो ये समरी आपको कुछ जरुरी टेक्निक्स सिखाएगी। आप सीखोगे कि, आप अपनी बुरी आदतें कैसे बदल सकते हो, पॉजिटिव और innovative कैसे बन सकते हो, और कैसे एक ऐसे दोस्तों का ग्रुप बनाया जाए जो आपको आपकी मंजिल तक लेकर जाने में मदद करेंगे। 

ये समरी किस-किसको पढ़नी चाहिए?
•    जो लोग अपनी स्ट्रेंथ को फिर से बनाना चाहते है
•    जो लोग अपनी आदतें बदलना चाहते है, अपने गोल्स हासिल करना चाहते हैं  
•    जो लोग मुश्किल वक़्त में क्रिएटिव हल नहीं निकाल पाते और जिन्हें सच्चे दोस्त बनाने हैं.

ऑथर के बारे में
डॉ. ज़िलाना मोनमिनी एक साइंटिस्ट है जिन्होंने लोगों के व्यवहार पर स्टडी की है। वे एक साइकोलॉजिस्ट और ऑथर भी हैं। उनका सारा काम सिर्फ इस बात पर फोकस करता है कि अपनी मेन्टल फिटनेस का ध्यान रखना कितना जरुरी है। वे एक जानी मानी स्पीकर हैं और Awesomeness TV चैनल के शो “Free Healthcare” की होस्ट भी हैं। Zelana Montminy, लीडरशिप सेमिनार, प्राइवेट रिट्रीट और मेन्टल फिटनेस के बूट कैम्प भी organize करती हैं.