(hindi) Work Rules!: Insights from Inside Google That Will Transform How You Live and Lead

(hindi) Work Rules!: Insights from Inside Google That Will Transform How You Live and Lead

इंट्रोडक्शन

आप कैसे पता करते है कि आपके एम्पलॉईस अपने काम से खुश है? आप अपने कंपनी के रेपुटेशन को अच्छा दिखाने के लिए क्या करते हैं?
जब किसी कंपनी की पीपल प्रैक्टिस और पॉलिसी ऐसे होते है जो बहुत ही बढ़िया ढंग से काम करता हो तो वैसे बिज़नेस को काफी फायदे मिलते है. उनमें से एक फायदा ये हैं कि यहां काम करने वाले काफी लोग कंपनी के लिए कमिटेड रहते है. ऐसे कमिटेड लोग कंपनी को आगे बढ़ाने और उनके टारगेट को पूरा करने में अपना बहुत कंट्रीब्यूशन देते हैं.

इन अच्छे पीपल प्रैक्टिस वाले कंपनियों में गूगल कंपनी का नाम भी आता है. अगर आप एक स्टार्ट अप के फाउंडर हैं या फिर कोई बिजनेसमैन तो आप सीख सकते है कि गूगल किस अनोखे ढंग से अपने एम्प्लाइज को हैंडल करता है.

इस बुक से आप जान सकते है कि गूगल की शुरुवात बहुत ही साधारण सी थी. आपको ये भी पता चलेगा कि पूरी दुनिया के लोग गूगल को कैसे जानते है. गूगल अपने अनोखे वर्क कल्चर और अपने एम्पलॉईस का ख़याल रखने में बहुत आगे है. आप जानेंगे कि इसके लिए गूगल ने ऐसा क्या किया.

अगर आप इस बुक में लिखे प्रिंसिपल्स को अपने बिज़नेस के लिए चुनते है, तो आपके एम्पलॉईस और उनके काम में आपको काफी अच्छा असर देखने को मिलेगा. आज ही इस बुक को पढ़िए और अपने एम्पलॉईस पर ध्यान देना शुरू कीजिये. अपने कंपनी के पीपल प्रैक्टिस को भी गूगल की तरह बेहतरीन बनाइये.

TO READ OR LISTEN COMPLETE BOOK CLICK HERE

फाउंडर बनना

हर कहानी की कहीं न कहीं से शुरुवात होती है. क्या आपको गूगल की शुरुवात की कहानी पता है?
गूगल के दो फाउंडर्स थे, लैरी पेज और सर्गेई ब्रिन. उन्होंने ही गूगल को शुरू किया था. स्टैंडफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक कैंपस टूर में दोनों की मुलाकात हुई थी. हालांकि, दोनों ही अलग-अलग बैकग्राउंड के थे पर दोनों ने ही मिलकर गूगल को बनाया था. बचपन में दोनों ही मोंटेसरी स्कूल जाते थे इसलिए उनके आइडियाज भी इन्हीं मोंटेसरी स्कूल से इंस्पायर्ड था.

उनका सपना सर्च इंजन बनाने के अलावा और भी बहुत कुछ करने का था. वे ये भी समझना चाहते थे कि एम्पलॉईस को कैसा बर्ताव अच्छा लगता है. वे चाहते थे कि गूगल ऐसी जगह बने जहां काम करने का कोई मतलब हो और जहां इसके एम्पलॉईस को अपने पैशन को फॉलो करने की खुली छूट हो. साथ ही, यहां एम्पलॉईस और उनके फैमिली का हर तरीके से ख्याल रखा जाए. लेकिन, सिर्फ गूगल ही एक ऐसी कंपनी नहीं थी जो अपने एम्पलॉईस का ख्याल रखती थी, फोर्ड एंड हरशीज़ कंपनी में भी अच्छे पीपल प्रैक्टिस की जाती थी जिससे उसके एम्पलॉईस खुश रहते थे.

किसी कंपनी का फाउंडर बनना सिर्फ नाम के लिए नहीं होता. फाउंडर बनना एक एटीट्यूड है, एक सोच और नज़रिया है. एक लीडर के तौर पर आपको सब के लिए ओपोर्चुनिटीज़ तैयार करनी चाहिए. अच्छे फाउंडर्स एक दूसरे की मदद करते है और उनके आगे बढ़ाने के लिए रास्ता बनाते है. को-फाउंडर्स के साथ मिलकर अपने कंपनी के फ्यूचर को बदलने का आपके पास पावर होता है. सबसे ज़रूरी बात, सबके साथ मिलकर काम करने से ही आप अपने कंपनी को सक्सेस दिला सकते है.

गूगल के एम्पलॉईस हर महीने टेक-टॉक्स होस्ट करते है जहां वे सब जमा होकर एक दूसरे से अपने काम के बारे में शेयर करते है. गूगल ने अपने एम्पलॉईस को स्टॉक्स में भी हिस्सेदारी दी है. ऐसा करने वाले कुछ ही कम्पनीज़ है जिसमें गूगल भी शामिल है. गूगल के कोशिशों के कारण ही ज़्यादा से ज़्यादा औरतें कंप्यूटर साइंस में अपना इंटरेस्ट दिखा रही हैं  और, बढ़ावा देने के लिए गूगल ने अपने एम्पलॉईस को उनके पेट यानी पालतू जानवर को भी ऑफिस लाने की इज़ाज़त दी. कंपनी ने इसकी शुरुवात करने के लिए अपने दस एम्पलॉईस को चुना. गूगल अपने एम्पलॉईस को फ्री खाना भी देने लगे जिसकी शुरुवात उन्होंने फ्री ब्रेकफास्ट से किया.

1903 में, मिल्टन एस. हरषी ने सिर्फ हरषी कंपनी ही नहीं बल्कि पेंसिल्वेनिया में हरषी शहर की भी शुरुवात की. उन दिनों, अमेरिका में 2,500 शहर ऐसे थे जो कम्पनीज़ के थे जिनमें एक बार में, सिर्फ 3 % जनता ही रहती थी. लेकिन, मिल्टन एस. हरषी इन कंपनी-शहरों से बिलकुल अलग शहर बसाना चाहते थे जहां सड़कों के दोनों तरफ पेड़ लगे हो, सिंगल या दो फैमिली के एक साथ रहने के लिए ईंट के मकान बने हो जिनके बहुत खूबसूरत लॉन हो. उनके शहर में सस्ते पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम बने, क्वालिटी पब्लिक स्कूल तैयार हुए और लोगों के एन्जॉयमेंट के भी इंतज़ाम किये.

कुछ कम्पनीज़ के फाउंडर्स ने अपने कम्पनीज़ में बढ़िया पीपल प्रैक्टिस अपनाए क्योंकि वे अपने एम्पलॉईस को पैसे बनाने वाले रोबोट्स की तरह नहीं देखते थे. अपने एम्पलॉईस को वैल्यू देने में ही उन्हें अपने कंपनी का फायदा दिखा. एक कंपनी को सक्सेस दिलाने के लिए, उसके फाउंडर्स को अपने एम्पलॉईस को फलने -फूलने और पनपने का मौका देना चाहिए, साथ ही उनके ज़रूरतों का भी ख्याल रखना चाहिए.

TO READ OR LISTEN COMPLETE BOOK CLICK HERE

कल्चर इट्स स्ट्रेटेजी को अपनाना (Culture Eats Strategy for Breakfast )

क्या आपने कभी गूगल की किसी ऑफिस को देखा हैं? इनके ऑफिस के फोटो को देखकर आपको ये लगेगा कि यहां मस्ती के साथ काम किया जाता है, पर मस्ती और मज़े के साथ -साथ यहाँ कल्चर पर भी बड़ा फोकस रहता है ताकि यहां के एम्पलॉईस खुश रह सके. कल्चर को गूगल कैसे अपने काम में लेता है, इसे समझने के लिए आपको मिशन, ट्रांसपेरेंसी और वॉइस के इम्पैक्ट के बारे में जानना चाहिए.

आम तौर पर कम्पनीज़ का मिशन होता हैं प्रॉफिट कमाना, अपने कस्टमर्स को खुश रखना या फिर मार्केट का लीडर बनना. इस तरह के मिशन सिर्फ बिज़नेस को फायदा पहुंचाने के लिए होते है. लेकिन, गूगल का मिशन है पूरी दुनिया के इंफोर्मशन को इकठ्ठा करना, उसे ऑर्गनाइज़ करना और इस इनफार्मेशन को लोगों के लिए मुहैया करवाना. ये दिखाता है कि गूगल का गोल बिज़नेस नहीं बल्कि दुनिया के लोगों के हेल्प करने से जुड़ी है. इससे उनके एम्पलॉईस और भी बेहतर काम करने के लिए मोटिवेटेड होते है क्योंकि उन्हें अपने जॉब्स के मायने मिल जाते है.

गूगल ने अपने सारे इनफार्मेशन आर-पार दिखने वाली एक शीशे की तरह ट्रांसपेरेंट रखा है. एक नई सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी गूगल के सारे कोड को पहले ही दिन निकाल लेता है. गूगल के ट्रांसपेरेंट होने की वजह से उसके एम्पलॉईस अपना काम और परफॉरमेंस बेहतर कर पाते हैं. किस हद तक ट्रांसपेरेंट रहना है, इसका फैसला तो कम्पनीज़ खुद लेते है पर अगर आप अपने एम्पलॉईस की कदर करते हैं तो आपको पूरी ट्रांसपेरेंसी रखनी चाहिए. खुली किताब की तरह रहने का मतलब है अपने एम्पलॉईस और उनके अच्छे जजमेंट पर भरोसा रखना.

आखिरी बात, वॉइस का मतलब है कि कंपनी को चलाने में उसके एम्पलॉईस की राय , उनके ओपिनियन को सुनना. एम्पलॉईस जब अपनी राय रखते है तो कंपनियाँ अपने लिए बड़े और अच्छे डिसीज़न्स ले सकते है. इसलिए गोल्स के बजाय कल्चर को बढ़ाने में ज़ोर देना चाहिए ताकि आपके एम्पॉलईस ईमानदारी से काम करें और कंपनी छोड़कर न जाए. हमेशा याद रखिये कि ब्रिलियंट और टैलेंटेड प्रोफेशनल वहीं काम करना पसंद करते हैं जहां उनके काम को मायने मिलते है और उनके कंट्रीब्यूशन से कंपनी को फायदा पहुँचता है.

गूगल में काम करने वाले लोगों की गिनती हज़ारों में हो गई पर कंपनी मिशन पर भरोसा होने के कारण वहाँ के एम्पलॉईस एकजुट रहते और मिलकर काम करते थे. अपने मिशन को सच बनाने का एक एग्जाम्पल जो गूगल ने बनाया था, वो था 2007 में बनाया गया गूगल स्ट्रीट. गूगल के फाउंडर लेर्री पेज ने अपने एम्प्लॉयर्स से पुछा कि  मैप में किसी भी जगह को ऊपर से देखने के बजाय , क्यों न ऐसे मैप बनाए जिसमें कोई भी जगह वैसी दिखेगी जैसे हकीकत में दिखती हैं.

अब, गूगल स्ट्रीट व्यू की मदद से दुनिया के करोड़ों लोग इंटरनेट एक्सेस करते हुए हर इंटरस्टिंग जगह को खुद देख सकते है. एग्जाम्पल के लिए , आप घर बैठे ही पेरिस के आर्क दे ट्रायंफ की खूबसूरती , माउंट एवेरेस्ट के बेस कैंप का नज़ारा, गैलापागोस आइलैंड के  सी-एनिमल्स को देख सकते है. आप देख सकते है कि कैसे कोई शहर या समुदाय फैलता है और धीरे-धीरे सब बदल जाता है.

गूगल स्ट्रीट व्यू की मदद से गवर्नमेंट ये तय करती है कि कौन सी जगह किसी काम के लिए सेफ है और उनको अपने रिसोर्सेज को कहाँ-कहाँ लगाना चाहिए. गूगल के इस प्रोजेक्ट ने काफी लोगों की मदद की है. इसके अलावा, गूगल स्ट्रीट की वजह से गूगल के एम्पलॉईस भी अपने कंपनी के साथ और भी ज़्यादा इन्वॉल्व हो गए. कैसे? इस कदम ने  गूगलर्स को बढ़िया काम करने को प्रेरणा दी और काम के साथ दूसरों की हेल्प करने का भी मौका दिया.

TO READ OR LISTEN COMPLETE BOOK CLICK HERE

लेक वोबेगोन, वो ख़याली जगह जहां सब नए काम करने वाले एवरेज से बढ़कर थे (Lake Wobegon, Where All The New Hires Are Above Average)

आप ये कैसे पक्का करेंगे कि आपके एम्पलॉईस अपना काम सही ढंग से कर रहे हैं. क्या आप किसी भी जॉब के लिए सबसे बेहतर कैंडिडेट को हायर करते हैं? या आप एवरेज लोगों को हायर करके उन्हें बेस्ट बनाने की ट्रेनिंग देते हैं?

आपको अपने कंपनी की हायरिंग और ट्रेनिंग प्रोसेस को रिव्यु करना चाहिए, इसके तीन कारण हैं. पहला हैं, अपने एम्प्लॉईस को एक अच्छा ट्रेनिंग देने में कुछ ही कम्पनीज़ सक्सेसफुल होते हैं. दूसरा, अगर कोई कंपनी की रिक्रूटिंग प्रोसेस अच्छी हैं तो शायद उनका प्रोसेस अलग और स्पेशल हैं जिसकी वजह से वे बेस्ट में भी बेस्ट चुन पाते हैं. थर्ड, नए कैंडिडेट्स को इंटरव्यू करने वाले लोग आम तौर पर इंटरव्यू लेने में अच्छे नहीं होते. कम्पनीज़ के कुछ रेप्रेसेंटेटिव्स तो बायस्ड भी ही होते हैं.

सिर्फ ट्रेनिंग देना ही एक एम्प्लोयी को बेहतरीन नहीं बना सकती क्योकिं एक असरदार ट्रेनिंग प्रोग्राम बनाना नामुमकिन हैं. कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि 90 परसेंट बार, कोई भी ट्रेनिंग एक एम्प्लॉई को लम्बे समय के लिए बेहतर नहीं बना सकती. इसलिए, क्वालिटी परफॉरमेंस पाने के लिए कम्पनीज़ जो ट्रेनिंग देते हैं, वो पैसों की बर्बादी ही हैं.

एक बात जिस पर ज़्यादा ज़ोर नहीं देते हैं , वो हैं रिक्रूटमेंट को इम्पोर्टेन्ट मानना. कम्पनीज़ को ख़ास टैलेंट वाले लोगों को हायर करने में ज़्यादा पैसे लगाने चाहिए. लेकिन, ये याद रखना चाहिए कि आपको बेहतरीन एम्प्लॉईस हायर करने में टाइम लगेगा. एक और तरीका हैं जिससे आप अच्छे लोग हायर कर सकते हैं. जब भी आप किसी ऐसे शख्स से मिलें जो आपसे किसी न किसी मामले में बेहतर हो, उसे हायर कर लीजिये. इसके अलावा, आपके मैनेजर्स भी ऐसे हो जो उन लोगों को आगे आने का मौका दे जो उनसे बेहतर हो. मैनेजर्स को हमेशा अंबायस्ड रहना चाहिए. कंपनी में कौन हायर होंगे, ये फ़ैसले सिर्फ इन मैनेजर्स के नहीं होने चाहिए.

अब एक एग्जाम्पल देखते हैं जहां आप ऐसे शख्स को हायर कर सकते हैं जो आपसे बेहतर हैं.

लाज़लो बॉक इस बुक के ऑथर हैं और गूगल के पीपल ऑपरेशन्स के सीनियर वाईस प्रेसिडेंट भी. जब भी हायरिंग की जाती हैं, वे ऐसे कैंडिडेट को हायर करते हैं जो उनसे किसी न किसी मामले में बेहतर हैं. गूगल के डाइवर्सिटी एंड युथ एजुकेशन प्रोग्राम्स के लीडर हैं नैंसी ली. मिस्टर बॉक ने नैंसी ली को हायर इसलिए किया क्योंकि नैंसी बहुत साफ़ और क्लियर नजरिया रखती थी और वो निडर भी थी. ये बातें बॉक को अच्छी लगी थी.  केरन मे पीपल डेवलपमेंट की वाईस प्रेसिडेंट थी और बॉक ने इन्हें इसलिए हायर किया था क्योकिं उनका इमोशनल इंटेलिजेंस बॉक से ज़्यादा था और वो एक समझदार काउंसलर थी. इस कंपनी के एम्प्लॉई सुनील चंद्र स्टाफिंग एंड पीपल सर्विसेस के वाईस प्रेसिडेंट हैं और इन्हें हायर इसलिए किया गया क्योंकि बॉक को लगा कि सुनील उनसे ज़्यादा डिसिप्लिंड और गहरी सोच वाले शख्स थे. सुनील किसी भी प्रोसेस को यूज़र्स के लिए सस्ती, अच्छी और फ़ास्ट बना देते थे.

लाज़लो ये भी नोट करते थे कि नैंसी, केरन, सुनील और दूसरे टीम मेंबर्स से वे रोज़ क्या सीख सकते हैं. बॉक ने इन सबको हायर करने के लिए काफी टाइम लगाया. खास टैलेंट वाले कैंडिडेट को हायर करने के प्रोसेस में काफी टाइम लग जाता हैं. जो भी कैंडिडेट्स आते हैं, उनमें से सिर्फ 10 परसेंट ही टॉप परफ़ॉर्मर होते हैं. इसलिए इन्हें चुनने के लिए बहुत सारे स्क्रीनिंग प्रोसेस और इंटरव्यू होने चाहिए.

इन फैक्ट, किसी भी इंडस्ट्री के जो भी टॉप परफॉर्मर्स होते हैं वो दूसरा जॉब नहीं ढूंढ़ते हैं, वे तो जहां काम करते हैं वहीं अपने सक्सेस को एन्जॉय करते हैं. कोई भी एक्सेप्शनल और ख़ास टैलेंट को हायर करने में टाइम लग जाता हैं पर उन जैसों के लिए वेट करना तो बनता हैं.

TO READ OR LISTEN COMPLETE BOOK CLICK HERE

SHARE
Subscribe
Notify of
Or
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments