(Hindi) Why I Killed Gandhi

(Hindi) Why I Killed Gandhi

परिचय  (Introduction)

नाथूराम गॉडसे, ये नाम तो सबने बहुत सुना है लेकिन नाथूराम गॉडसे है कौन? और क्या वजह थी कि उसने गांधीजी जैसे नेता को मारा? उसके रिलीजियस और पोलिटिकल व्यूज़ क्या थे? क्या कभी गॉडसे को अपने किये का पछतावा हुआ था? आपके मन में भी ये सारे सवाल उठे होंगे तो आईये हम बताते है कि इन सारे सवालों के जवाब आपको इस बुक में मिलेंगे. इस बुक में आप वो लास्ट स्टेटमेंट भी पढेंगे जो गॉडसे ने अपने डेथ सेंटेंस से पहले दिया था जो उसने 5 मई, 1949 को पंजाब हाई कोर्ट में दिया था.

30 जनवरी, 1948 में गॉडसे ने गांधी को गोली मारी थी. और इसके अगले ही साल फरवरी में उसका कोर्ट ट्रायल शुरू हो गया था. गॉडसे और उसके कैंप ने पंजाब हाई कोर्ट के सामने माफ़ी की अपील रखी थी लेकिन अपील रिजेक्ट कर दी गई. कोर्ट ने उसे डेथ बाई हैंगिंग यानी फांसी की सजा सुनाई थी. और इस बुक में उसके कुछ आखिरी शब्दों को समेटा गया है.

व्हाई आई किल्ड गांधी (मैंने गांधी को क्यों मारा ) Why I Killed Gandhi

मै एक रिलीजियस ब्राह्मण फैमिली में पैदा हुआ था. बचपन से ही मुझे हिन्दू धर्म और सनातन धर्म के इतिहास और कल्चर की सीख मिली थी. लेकिन मै खुद को एक फ्री थिंकर मानता था हालाँकि हिन्दूइज्म में मेरा गहरा यकीन था. बड़े होने पर मैंने आर.एस.एस. ज्वाइन किया और एंटी कास्ट मूवमेंट से जुड़ गया था. मै छुवा-छूत को खत्म करना चाहता था, मेरा मानना था कि हिन्दूओ को उनके जन्म के आधार पे नहीं बांटना चाहिए. मेरा मानना था कि सारे हिन्दू इक्वल है इसलिए आपस में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए. सबको इक्वल राईट और अपोरच्यूनिटी मिलनी चाहिए. कोई जात छोटी या बड़ी नहीं है.

मै एंटी कास्ट डिनर्स और मीटिंग्स अटेंड करता था. हर जाति के लोग इन मीटिंग्स में हिस्सा लेते थे, भंगी, चमार, वैश्य, छत्रीया और ब्राह्मण कास्ट के लोग एक साथ मिलकर खाना खाते थे. मैंने एनशिएंट और मॉडर्न इंडिया की हिस्ट्री पढ़ी थी. मैंने गोखले, तिलक, रावण, चान्यक और विवेकानन्द जैसे कई महान लोगो की किताबे भी पढ़ी है. और मैंने अमेरिका, फ़्रांस और इंग्लैण्ड का क्लासिक लिटरेचर भी स्टडी किया है. मार्क्सिस्म और सोश्लिस्ज्म में भी मेरा इंटरेस्ट रहा है. सबसे बढकर मुझे वीर सावरकर और गांधीजी की टेक्नीक्स इंस्पायर करती है. और मुझे लगता है कि इन दोनों महान लोगो ने बीते 30 सालो में मुझे और मेरे जैसे कई करोड़ भारतीयों को काफी हद तक इन्फ्लुयेंश किया है.

इनके आईडियाज हमारे देश के करोड़ो लोगो के दिलो-दिमाग में गहराई से बस चुके है. मैंने जो कुछ भी सीखा, उससे मुझे लगता है कि मुझे हिन्दू धर्म और अपने हिन्दू भाइयो और बहनों की सेवा करनी चाहिए. हम सब मिलकर 300 मिलियन हिंदू है. हम इस दुनिया की वन फिफ्थ आबादी में आते है. और इसलिए मेरा मानना है कि सभी हिन्दू लोगो की भलाई और हिफाज्रत के बारे में सोचना बहुत ज़रूरी है. मैंने खुद अपना जीवन हिन्दू संगठन आईडियोलोजी को समर्पित कर दिया है. मेरे एक ही लक्ष्य है और वो है अपने मदरलैंड, आपनी माँ भारती की आज़ादी को बचाए रखना. और मुझे लगता है कि इंसानियत को बचाने का यही एक तरीका है.

कांग्रेस पार्टी में 1920 में गांधीजी का दबदबा काफी बड गया था जब लोकमान्य तिलक का देहांत हुआ. उस वक्त कांग्रेस पार्टी और पूरे देश में गांधीजी का इन्फ्लुएंश था, उनकी पब्लिक एक्टिविटीज ने उन्हें एक ग्रेट लीडर के तौर पर एस्टेबीलिश कर दिया था. लोग उन्हें बहुत मानते थे. सत्य और अहिंसा के बारे में कही गयी उनकी बातो ने आम जनता पर एक गहरा असर किया था. दिन ब दिन उनके फोलोवर्स बढ़ते ही जा रहे थे. गांधी जी ने जो सत्य और अहिंसा की बात की थी उससे हर कोई एग्री करता था.

हालाँकि इस सत्य और अहिंसा के बारे में लोग पहले भी जानते थे लेकिन ये सब सिर्फ किताबी बाते थे. मै नहीं मानता कि एक आम इंसान अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में इन बातो को ज़रा भी अहमियत देता होगा. बल्कि सच तो ये है कि बात अगर खुद की या अपने परिवार की हो तो इंसान किसी और को तकलीफ देने में ज़रा भी नहीं हिचकिचाएगा. तो इसमें गलत भी क्या है? हर कोई पहले खुद का भला सोचता है फिर दुसरे का. अगर कोई हमारे साथ गलत करे तो उसका जवाब देना ही होगा. रामायण में राम ने सीता को बचाने के लिए रावण को मारा था. महाभारत में कृष्ण ने कंस का वध किया था. अर्जुन ने अपने रिश्तेदारो और दोस्तों को मारा था क्योंकि वो उसके दुश्मन के साथ खड़े थे.

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अगर गांधी के हिसाब से राम, कृष्ण और अर्जुन गलत थे तो इसका मतलब कि वो इंसान की काबिलियत पर शक कर रहे है. अब हिस्ट्री को ही देख लो, अफज़ल खान हिन्दोस्तान में मुस्लिम राज़ स्थापित करना चाहता था. लेकिन छत्रपति शिवाजी ने उसका ये सपना कभी पूरा नहीं होने दिया. अगर शिवाजी पूरी ताकत से उसका मुकाबला नहीं करते तो शायद खुद अफजल के हाथो मारे जाते. लेकिन गांधीजी शिवाजी, गुरु गोबिंद सिंह और महाराणा प्रताप को क्रिटीसाइज़ करते है, उनका मामना है कि इन ग्रेट फाइटर्स को वायोलेंस का रास्ता नहीं अपनाना चाहिए था. लेकिन मै तो गांधीजी को वायोलेंट समझता हूँ जो खुद एक पैसीफिस्ट है. सच और अहिंसा के नाम पर उन्होंने इस देश को मुसीबत में डाला है.

हर हिन्दुस्तानी को शिवाजी, प्रताप और गुरु गोबिंद जैसे महान नायको की पूजा करनी चाहिए क्योंकि असल में इन्ही लोगो की वजह से हमे आज़ादी मिली है. पिछले 32 सालो से गांधीजी जो आंदोलन कर रहे है खासकर उनका प्रो-मुस्लिम फास्टिंग, ये मुझे इस बात का यकीन दिलाता है कि उन्हें तुरंत पोलिटिक्स छोड़ देनी चाहिए. मै ये नहीं कहता कि उन्होंने देश के लिए कुछ नहीं किया. अफ्रीका में उन्होंने हमारे हिन्दुस्तानी दोस्तों के लिए जो कुछ भी किया उसकी मै तारीफ करता हूँ. वहां के हिन्दू कम्यूनिटी के लोगो की कंडिशन इम्प्रूव करने में गांधीजी का बहुत बड़ा हाथ है.

लेकिन उनके इंडिया लौटने के बाद से हमारे देश में काफी कुछ बदल चुका है. मुझे लगता है कि गांधीजी शायद ये समझते हिया कि सही क्या है और गलत क्या है, इस बात का फैसला सिर्फ वो कर सकते है. अगर लोग उन्हें लीडर मानने से इंकार कर दे तो वो कांग्रेस छोडकर अपने रास्ते चले जायेंगे. हमे ऐसे लीडर की ज़रूरत ही क्या है. उन्होंने कांग्रेस को दो चॉइस दी. या तो उनके हिसाब से चलो और उनका पागलपन, उनकी जिद और सनक झेलो या फिर उनके बिना कांग्रेस पार्टी चलाओ.

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