(hindi) WHY DON’T STUDENTS LIKE SCHOOL

(hindi) WHY DON’T STUDENTS LIKE SCHOOL

इंट्रोडक्शन

जब हम छोटे थे तो अक्सर स्कूल जाने के नाम से अजीब सी शक्लें बनाने लगते थे. हमें स्टूडेंट लाइफ बहुत टफ लगती थी और हमें स्कूल जाना बिलकुल पसंद नहीं था.लेकिन क्या आपने कभी टीचर्स के बारे में सोचा है? क्या आपने कभीसोचा कि इतने बच्चों को पढ़ाना क्या आसान कामहै? नहीं, बिलकुल नहीं. पढ़ाना एक बेहद मुश्किल काम है. देखा जाए तो ये किसी ज़िम्मेदारी से कम नहीं है क्योंकि टीचर्स पर सोसाइटी की आने वाली पीढ़ी को पढ़ाने की ज़िम्मेदारी होती है.वो स्टूडेंट्स को अच्छे मैनर्स सिखाते हैं, सोचना सिखाते हैं और उन्हें सोसाइटी में एक लायक और ज़िम्मेदारसिटिज़न बनने के लिए तैयार करते हैं.

स्टूडेंट्स की तरह टीचर्स के मन में भी कई सवाल उठते हैं. इस बुक ने उनके उन सभी सवालों का जवाब देने की कोशिश की है. इस बुक में आप जानेंगे कि क्यों स्टूडेंट्स आपकी क्लास अटेंड करना पसंद नहीं करते या वो स्कूल से नफ़रत क्यों करते हैं. कारण को समझकर आप लेसन को इंटरेस्टिंग बनाने के लिए plan कर सकते हैं ताकि स्टूडेंट्स उससे घबराने के बजाय उसे एन्जॉय करने लगें.

आप ये भी जानेंगे कि स्टूडेंट्स के लिए टेस्ट इतने इम्पोर्टेन्ट क्यों हैं. आप इन टेस्ट्स के इम्पोर्टेंस के बारे में अपने स्टूडेंट्स को एक्सप्लेन कर सकते हैं ताकि वो स्कूल के टेस्ट को बेकार ना समझें.

क्योंकि सीखने के लिए मेमोरी बहुत ज़रूरी होती है तो आप ये भी जानेंगे कि ऐसा क्या करना चाहिए जिससे आपके स्टूडेंट्स पढ़ी हुई चीज़ों को याद रख सकें. आप उन्हें मुश्किल कांसेप्ट समझाने के तरीकों के बारे में भी जानेंगे.आप बच्चों के अलग अलग लर्निंग पैटर्न के हिसाब से अपना पढ़ाने का तरीका बदलना सीखेंगे.

अगर आप चाहते हैं कि आपके स्टूडेंट्स आपको पसंद करें तो ये बुक आपको सबसे बेस्ट टीचर बनने में मदद करेगी.तो क्या आप अपने टीचिंग स्टाइल को अपग्रेड करने के लिए तैयार हैं? तो आइए बिना देर किए शुरू करते हैं.

Why Don’t Students Like School

स्कूल का पहला दिन ज़्यादातर स्टूडेंट्स को पसंद नहीं आता और कुछ तो हमेशा ही स्कूल से नफ़रत करते रहते हैं. ये टीचर्स के लिए एक बहुत बड़ी प्रॉब्लम है क्योंकि जब कोई पढ़ने में इंटरेस्टेड ही नहीं होगा तो वो पढाएंगे किसे?

साइंस ने इस बात को साबित किया है कि स्टूडेंट्स को स्कूल जाना इसलिए पसंद नहीं है क्योंकि हमारे ब्रेन को सोचना पसंद नहीं है. हमारे दूसरे senses जैसे देखना, फील करना इन सब से सोचने का प्रोसेस बिलकुल opposite होता है क्योंकि सोचने का प्रोसेस स्लो, मुश्किल और बोरिंग है.

आमतौर पर हम पूरे दिन में सेम पैटर्न को कई बार रिपीट करते हैं और अपनी मेमोरी के भरोसे रहते हैं ताकि हमें ज़्यादा या कुछ नया ना सोचना पड़े.

सिर्फ़ एक ही सिचुएशन में इंसान सोचने के प्रोसेस को एन्जॉय करता है, जब वो ऐसी प्रॉब्लम का सामना करता है जिसे वो सोल्व कर सकता है तो उसे सही जवाब ढूँढने में मज़ा आने लगता है. इस मज़े और एडवेंचर के कारण स्टूडेंट्स उन प्रोबलम्स की तलाश करते हैं जो challenging तो हैं लेकिन उन्हें सोल्व करना भी आसान है.जब स्टूडेंट्स किसी सवाल का जवाब ढूंढ लेते हैं तो उन्हें बहुत ख़ुशी मिलती है, उनका कांफिडेंस भी बढ़ता है.

टीचर्स इस बात का फ़ायदा उठा सकते हैं. उन्हें अपनी क्लास में इस तरह प्रॉब्लम को डिजाईन करना चाहिए जिसे स्टूडेंट्स सोल्व कर पाएं.

मान लीजिए कि आप अपने स्टूडेंट्स से अमेरिकन सिविल वॉर के बारे में एक सवाल पूछते हैं. अब इससे पहले कि आप अपने लेसन का plan तैयार करें, आपको question के difficulty लेवल के बारे में सोचना चाहिए.ज़्यादा आसान सवाल ना पूछें क्योंकि आपके स्टूडेंट्स को उसका जवाब देने में कोई दिलचस्पी नहीं होगी. लेकिन अगर आपने बहुत मुश्किल सवाल पूछा तो वो ट्राय करने से पहले ही हार मान लेंगे. इसलिए आपको बीच का रास्ता ढूंढना होगा, कोई ऐसा सवाल जो ना तो ज़्यादा आसान हो और ना बहुत ज़्यादा मुश्किल.

आपको अपने स्टूडेंट्स के नॉलेज को भी ध्यान में रखना होगा. क्या वो पुराने लेसन को याद कर उसमें से जवाब ढूंढ सकते हैं?

एक और बात जो आपको ध्यान में रखनी है वो ये है कि आपको ज़्यादा इनफार्मेशन नहीं देना है. आपके स्टूडेंट्स की मेमोरी की कैपेसिटी लिमिटेड होती है. इसलिए एक ही बार में उन्हें ज़्यादा सिखाने की कोशिश ना करें. आपको बीच – बीच में पढ़ाने के प्रोसेस को स्लो करना होगा.

आप स्टूडेंट्स को याद करवाने के लिए पिक्चर का सहारा ले सकते हैं, ब्लैकबोर्ड पर लिख सकते हैं. आपको अपने स्टूडेंट्स को चीज़ें याद रखने में मदद करनी होगी नहीं तो वो पुरानी पढ़ी हुई चीज़ें और नए इनफार्मेशन के बीच कनेक्शन नहीं बना पाएँगे.

मान लीजिए कि आप एक question पूछते हैं और स्टूडेंट्स जवाब नहीं दे पाते तो उससे रिलेटेड कांसेप्ट या आईडिया को उसी वक़्त क्लियर करें. आपको ये तुरंत करना होगा नहीं तो स्टूडेंट्स का ध्यान भटक सकता है.

शुरू-शुरू में आपको ऐसे सवाल पूछने में मुश्किल हो सकती है जो स्टूडेंट्स का इंटरेस्ट बनाए रखे लेकिन समय के साथ आप समझ जाएँगे कि स्टूडेंट्स किस तरह के सवाल पसंद करते हैं. आप हर सेशन के बाद नोट्स भी लिख सकते हैं. फ़िर घर जाकर दोबारा उन नोट्स को स्टडी करें और देखें कि उसमें क्या इम्प्रूव किया जा सकता है.

सिर्फ़ इसलिए कि दिमाग को सोचना पसंद नहीं है आपको हार नहीं माननी चाहिए. स्टूडेंट्स को ऐसे question देते रहें जिन्हें वो सोल्व कर सकते हों और उसे सोल्व करने की ख़ुशी उन्हें आपका क्लास पसंद करने पर मजबूर कर देगी.

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कुछ स्टूडेंट्स इसलिए स्कूल को पसंद नहीं करते क्योंकि उन्हें लगता है कि स्कूल में लिए गए एग्जाम का कोई मतलब नहीं है. टेस्ट स्टूडेंट्स को सोचने या कुछ नया जानने के लिए पुश नहीं करते.

सिर्फ़ एग्जाम पेपर को भरने के लिए इस लर्निंग प्रोसेस ने स्टूडेंट्स के लिए स्कूल लाइफ को बोरिंग बना दिया है.यहाँ तक कि कई टीचर्स को भी यही लगता है. लेकिन स्टूडेंट्स और टीचर्स दोनों ही इस बात को नज़रंदाज़ कर देते हैं कि बिना पूरी नॉलेज के कोई भी सवाल का जवाब नहीं दे सकता है. टेस्ट स्टूडेंट्स को कई चीज़ें सिखाते हैं जैसे उनकी vocabulary को बढ़ाते हैं, अलग-अलग आईडिया को कैसे जोड़ा जाए, कैसे मुश्किल कांसेप्ट को समझा जाए और उसे याद किया जाए ये सभी चीज़ें सिखाते हैं.

एग्जाम्पल के लिए, बैकग्राउंड नॉलेज आपके स्टूडेंट्स को ये समझने में मदद करता है कि राइटर ने क्या लिखा है. सिर्फ़ एक सेंटेंस को समझ लेना ही काफ़ी नहीं है, जब उसे एक अलग सेंटेंस के साथ जोड़ा जाता है उसका मतलब भी समझना बहुत ज़रूरी है.

मान लीजिए कि आप स्टूडेंट्स को दो सेंटेंस A और B देते हैं. सेंटेंस A में लिखा है कि बहुत कम लोग हैं जो जीवन जीते हैं यानी जो जिंदा भी हैं और सच में जी भी रहे हैं. सेंटेंस B में लिखा है कि ज़्यादातर लोग बस जी रहे हैं यानी वो जिंदा तो हैं लेकिन असल में जीवन जी नहीं रहे.

अब मान लीजिए कि स्टूडेंट्स सेंटेंस A को समझ गए लेकिन मुद्दा यहाँ ये है कि उनमें A और B के बीच एक कनेक्शन बनाने की एबिलिटी होनी चाहिए. सिर्फ़ एक ही तरीका है जिससे स्टूडेंट्स वर्ड्स और सेंटेंस के बीच एक लॉजिकल कनेक्शन बना सकते हैं जो हैं उन्हें पूरी नॉलेज के साथ पढ़ाना. जब वो चीज़ों को लॉजिक और नॉलेज के साथ समझने लगेंगे तब उन्हें पता चलेगा कि जीना सिर्फ़ मौजूद होने से अलग होता है.

सेंटेंस A का मतलब था कि कुछ लोग खुलकर अपनी लाइफ एन्जॉय करते हुए जीतेहैं वहीँ सेंटेंस B का मतलब था किकुछ लोग ऐसे भी हैं जिनमें ना कोई उमंग है ना कोई पाजिटिविटी वोएक बोरिंग सी लाइफ के साथ हर दिन काट रहे हैं, वो बस इस दुनिया में मौजूद हैं लेकिन सही मायनों में जी नहीं रहे.

स्टूडेंट्स को जब ये समझ आएगा कि ये एक quote है जो लोगों को मोटीवेट करने के लिए लिखा गया था ताकि वो एक बेहतर जीवन जी सकें तो फ्यूचर में ये उनकी लाइफ को बदलने में मदद कर सकता है और शायद वो इसका इस्तेमाल दूसरों की लाइफ बदलने में भी कर सकते हैं.

रीडिंग राइटर के द्वारा लिखे गए सेंटेंस को एक दूसरे के साथ जोड़कर उसके मीनिंग को समझने पर बना हुआ है. स्टूडेंट्स जब टीचिंग और लर्निंग के फैक्ट्स और लॉजिक को समझने लगेंगे तब उन्हें टेस्ट देना भी मीनिंगफुल लगने लगेगा.

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एक और प्रॉब्लम है जिसका टीचर्स को सामना करना पड़ता है वो है मेमोरी यानी याददाश्त की प्रॉब्लम.जब एक टीचर पुराने नॉलेज पर बेस्ड कुछ नया समझाने की कोशिश करते हैं तो उन्हें बड़ा आश्चर्य होता है कि उनके स्टूडेंट्स को कुछ भी याद नहीं है. वैसे तो स्टूडेंट्स को फ़िल्म की पूरी कहानी, उसके डायलाग सब याद रहते हैं लेकिन टीचर जो पढ़ाते हैं वो सब भूल जाते हैं.

ये प्रॉब्लम इसलिए है क्योंकि टीचर उस तरीके से समझाते हैं जो उन्हें लगता है कि स्टूडेंट्स के लिए ठीक है. वो उम्मीद करते हैं कि स्टूडेंट्स वही याद रखे जैसा उन्होंने सिखाया है. लेकिन सच तो ये है कि स्टूडेंट्स सिर्फ़ वही याद रख पाते हैं जो वो याद रखना चाहते हैं.
स्टूडेंट्स जिस बारे में ज़्यादा सोचते हैं वही उन्हें याद रहता है,ह्यूमन ब्रेन इसी तरह काम करता है.

मेमोरी को दो पार्ट्स में डिवाइड किया गया है शोर्ट टर्म मेमोरी और लॉन्ग टर्म मेमोरी. जब हमें कोई चीज़ कम समय के लिए याद रखनी पड़ती है तो वो हमारी शोर्ट टर्म मेमोरी के हिस्से में आता है जैसे कोई टेलीफोन नंबर या एड्रेस को टेम्पररी याद करना. लेकिन जब कोई इंसान किसी चीज़ के बारे में बहुत देर तक सोचता रहता है तो ब्रेन को लगता है कि ये इनफार्मेशन इम्पोर्टेन्ट है और इसे मेमोरी में रखा जाना चाहिए तब वो इसे लॉन्ग टर्म मेमोरी एरिया में स्टोर कर लेता है.लेकिन अगर इंसान उसके बारे में बिलकुल नहीं सोचता तो ब्रेन उसे डिलीट करने का फ़ैसला करता है इसलिए वो बात उसे बिलकुल याद नहीं रहती.टीचर इस फैक्ट का इस्तेमाल कर सकते हैं.

मान लीजिए की दो टीचर हैं A और B जो एक ही एक्टिविटी को दो अलग-अलग तरीकों से सिखाते हैं. ये एक्टिविटी है एक बुक की कहानी का एक plot डायग्राम बनाना.टीचर्स ने उम्मीद की थी स्टूडेंट्स कहानी की थीम और राइटर ने उसे जिस तरह organize किया था वो समझकर याद रखेंगे.

टीचर A ने कहानी के इम्पोर्टेन्ट हिस्सों को एक्सप्लेन करने के लिए उसका ड्राइंग बनाने के लिए कहा. उस क्लास के दौरान स्टूडेंट्स को महल, घोड़े ये सब बनाने में बड़ा मज़ा आ रहा था.

टीचर B ने स्टूडेंट्स से कहा कि बुक के बेसिस पर उन्हें जो जो याद है वो उसके पॉइंट लिखते जाएं.अब ये स्टूडेंट्स कहानी के अलग-अलग हिस्सों के बीच कनेक्शन बनाने में और उसे याद करने में बिजी हो गए. इस काम को पूरा करने के लिए उन्हें बहुत ज़्यादा सोचना पड़ा.

आपको क्या लगता है पढ़ाने का कौन सा तरीका सही है? बेशक, टीचर B के पढ़ाने का तरीका. अब आप पूछेंगे ऐसा क्यों? क्योंकि टीचर A ने स्टूडेंट्स को पिक्चर ड्रा करने के लिए कहा, इसके कारण स्टूडेंट्स का ध्यान ड्राइंग बनाने और उसे कलर करने में लग गया. वो बुक के बारे में और उसकी कहानी के बारे में तो भूल ही गए. उन्होंने कहानी के अलग अलग हिस्सों में कनेक्शन बनाने की या उसे याद करने की कोशिश ही नहीं की.

दूसरी ओर, टीचर B ने वर्ड्स का इस्तेमाल कर उन्हें कहानी को एक्सप्लेन करने के लिए कहा. अब इसे लिखते समय स्टूडेंट्स को बहुत सोचना पड़ा,अलग अलग हिस्सों में कनेक्शन बनाने के लिए बहुत दिमाग लगाना पड़ा.और इसी तरह हम चीज़ों को याद रख पाते हैं, उनके बारे में ज़्यादा से ज़्यादा सोचकर.

आपको टीचर B की तरह होना चाहिए. हमेशा ऐसे तरीके ढूँढें जो स्टूडेंट्स को सोचने पर मजबूर करे नहीं तो वो कुछ भी याद नहीं रख पाएँगे.

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