(Hindi) When Breath Becomes Air
मैंने सीटी स्कैन देखा। ट्यूमर सारे फेफड़ो में फ़ैल चूका था और स्पाइनल कॉर्ड भी बुरी हालत में थी। लीवर का एक लोंब पूरी तरह खराब हो गया था। ज़ाहिर था कि कैंसर ने पूरे शरीर को अपनी चपेट में ले लिया था। मै अपने न्यूरोसर्जन की पढ़ाई के आखिरी साल में था। पिछले छेह सालो से मैं इसी तरह स्कैन चेक अपने मरीजों को ठीक करने का कोई प्रोसीजर सोचता रहता था। मगर आज मै किसी मरीज़ का नहीं बल्कि खुद का ही सीटी स्कैन देख रहा था।
मेरी बीवी लूसी मेरे साथ थी। मैंने डॉक्टर के सफ़ेद कोट की जगह मरीज वाला गाउन पहन रखा था। मै अपने सीटी स्कैन को गौर से देख रहा था, शायद कहीं कोई उम्मीद की किरण नज़र आ जाए। करीब छेह महीने पहले मैंने खुद में कुछ बदलाव महसूस किया। अचानक से मेरा वजन घटने लगा था और कमर में भी भयंकर दर्द उठ रहा था। मैंने अपने डॉक्टर को दिखाया था। मै अभी 35 का ही था और इस उम्र में इन सब बातो का एक ही मतलब बनता था कि ये कैंसर के लक्षण है।
एक्स-रे रिजल्ट मेरे सामने थे। इनमे साफ़-साफ मेरी बीमारी का पता चल रहा था। कमर का दर्द दूर करने के लिए मैने एक ब्रुफीन ले ली। शायद ज्यादा काम करने की वजह से ये सब लक्षण दिख रहे थे। मै वापस अपने काम पर लग गया था। मै हॉस्पिटल में रेजिडेंट डॉक्टर था।
मेरे पास ग्रेजुएशन तक बस एक साल का टाइम था। कई सारे युनिवेसिटीज से मुझे जॉब ऑफर मिल रहे थे। अभी मेरे सामने पूरा फ्युचर पड़ा था।
मगर कुछ ही हफ्तों बाद मुझे छाती में जानलेवा दर्द उठने लगा था। मेरा वजन 80 किलो से घटकर 65 kilo तक पहुच गया था और खांसी थी कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। इस बात में कोई शक नहीं बचा कि मुझे कैंसर था। फिर भी मैंने लूसी से कुछ नहीं छिपाया, हमारे रिश्ते में पहले से ही खटास थी, उसे लगता था कि मै उसे वक्त नहीं देता हूँ। मेरा काम ही कुछ ऐसा था कि मुझे बिलकुल भी फुर्सत नहीं होती थी। लूसी और मै कई दिनों तक एक दुसरे से मिल नहीं पाते थे। मुझे हमेशा लगता था कि एक बार रेजीडेंसी पूरी हो जाए फिर लूसी और मेरे बीच सब ठीक हो जाएगा।
अगले 36 घंटे तक मै ऑपरेशन रूम में था। मेरे सामने एन्युरसिम्स और बाईपास जैसे मुश्किल केस आये थे। एक मिनट का भी आराम नहीं था। उसके बाद मैंने एक और एक्स-रे किया।कुछ दिन बाद मेरे डॉक्टर ने मुझे फ़ोन करके बताया कि मेरे चेस्ट के एक्स-रे साफ़ नहीं थे। वो बहुत धुंधले आये थे। हम दोनों ही इस बात का मतलब अच्छी तरह जानते थे। मै लूसी के साथ घर में बैठा था। मैंने उसे सारी बात बताई। सुनकर उसने मेरे काँधे पर अपना सर टिका दिया। उस एक पल में हमारे बीच की सारी कडवाहट घुल गयी। मैंने उसके कान में धीरे से कहा” मुझे तुम्हारी ज़रुरत है”
“मै तुम्हे छोड़कर कभी नहीं जाउंगी” उसने जवाब दिया।हमने हॉस्पिटल के अपने एक डॉक्टर दोस्त को फ़ोन किया। मैंने उससे पुछा कि क्या वो मुझे एडमिट करेगा। किसी पेशेंट की तरह मैंने भी हॉस्पिटल का गाउन और प्लास्टिक के ब्रेसलेट पहन लिए। मै उसी कमरे में एडमिट हुआ जहाँ मैंने पिछले छे सालो में ना जाने कितने ही मरीजों का इलाज़ किया था रुको मत जब तक साँसे है लूसी और मै हॉस्पिटल के बेड पर बैठे रोये जा रहे थे। हम अभी भी उस सीटी स्कैन को देख रहे थे। उसने मुझसे कहा था कि वो मुझसे बहुत प्यार करती है और मैंने भी रोते हुए कहा कि “मै अभी मरना नहीं चाहता”।
फिर मैंने उससे कहा कि वो दूसरी शादी कर ले। मै नहीं चाहता था कि वो मेरे बाद अकेली रह जाए। इतने सालो तक मै पूरे जी-जान से अपना फ्यूचर बनाने में लगा रहा। मगर अब इस सबका कोई मतलब नहीं था। मेरे पास अब कुछ बचा नहीं था। अगर मै डॉक्टर नहीं बना होता तो ना जाने क्या बनता? आज मै महसूस कर सकता हूँ कि मौत के मुंह में जाते हुए मेरे मरीजों को कैसा लगता होगा। मुझे सुबह डिस्चार्ज कर दिया जायेगा। उसके बाद मुझे अपने ओंकोलोजिस्ट(oncologist) एम्मा हेवार्ड (Emma Hayward) से मिलना था। वो देश की सबसे मशहूर लंग कैंसर डॉक्टर थी।
मेरे माता-पिता और भाई भी आ गए थे। एम्मा बोली” मुझे बहुत दुःख हुआ आपकी बिमारी के बारे में जानकर। आप सब के लिए मुझे दुःख हो रहा है”। उसने लैब में मेरे ट्यूमर का सैंपल टेस्ट करवा लिया था। अब मुझे जो ट्रीटमेंट दिया जाएगा वो रिजल्ट्स के ऊपर था। मैंने उससे पुछा कि मेरे पास कितना वक्त बचा है तो उसने बताने से मना कर दिया।
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एक डॉक्टर होने के नाते मुझे ये जानने का पूरा हक था। मगर एम्मा ने कहा” नहीं, हम बाद में थेरेपी के बारे में बात कर सकते है”। हम तुम्हारे ठीक होने के बाद काम पर वापस जाने के बारे में भी बात कर सकते है अगर तुम चाहो तो ?” उसने ये भी कहा कि मेरी कीमोथेरेपी की दवाईया भी बदली जा सकती है। एक सर्जन होने के नाते मुझे मालूम था कि इन दवाइयों का असर मेरे नर्वस सिस्टम पर नहीं पड़ना चाहिये। तो सिस्प्लेटिन के बदले मुझे कार्बोप्लेटिन दिया जाएगा।
मै अपने मन में सोच रहा था” वापस काम पर ? ये क्या बोल रही है ? क्या वो सपने में बोल रही है”? एम्मा अपना कार्ड छोड़कर चली गयी। दो दिन बाद मुझे फिर उससे मिलना था। मुझे एम्मा ने बताया कि दो रास्ते है मेरे इलाज़ के। पहला तो कीमोथेरेपी, जो बहुत आम ट्रीटमेंट होता है और ज़्यादातर अमल में लाया जाता है। इसमें कैंसर सेल्स (Cells) को खत्म किया जाता है मगर उसके साथ ही शरीर के हेल्दी सेल्स भी निशाना बनते है जो बॉन मैरो, आंतो, बालो के फोल्लीस्ल्स (hair follicles) और बाकी जगह होते है। दूसरा तरीका है नयी डेवेलप हुई थेरेपीज़ जिसमे मॉलिक्यूलर लेवल पर ही कैंसर सेल्स को मार दिया जाता है।
मुझे बताया गया कि अगर मेरे शरीर में ईजीऍफ़आर (EGFR) कैंसर म्यूटेशन होगा तो मुझे टारसीवा नाम की दवाई दी जायेगी और मुझे कीमोथेरेपी भी नहीं करानी पड़ेगी। एम्मा को यकीन था कि मै अपनी सर्जन की ड्यूटी पर वापस जा सकूंगा। उसने सिसप्लेटिन की जगह कार्बोप्लेटिन पर जोर दिया अगर किमो की ज़रुरत पड़ी तो। मुझे पता था कि एम्मा तो बताएगी नहीं इसलिए मैंने अपने तरीके से खुद ही रिसर्च करने का फैसला किया ये जानने के लिए कि मै कितने दिन और बचूंगा। पिछले कुछ दिनों से मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कहाँ से शुरू करू। मगर जब से मुझे ये इजीऍफ़आर म्यूटेशन वाली बात पता चली है तो मुझे मालूम है कि मेरे बचने के उम्मीद ज्यादा है।
लूसी और मैंने तय किया था कि मेरी रेज़ीडेंसी पूरी हो जाने के बाद हम बच्चे पैदा करेंगे।मगर अब मुझे खुद नहीं पता कि मै कब तक रहूँगा तो इस बारे में सोचना बेमानी था। दुसरे दिन हम दोनों स्पर्म बैंक गए। एक रेज़ीडेंट सर्जन होने के नाते बहुत बार मैने मरीजो और उनके परिवार के साथ उनकी मुश्किल घडी में बैठकर उन्हें दिलासा देने की कोशिश की है। ये किसी भी डॉक्टर के लिए एक मुश्किल काम होता है। अगर 94 साल का कोई बुज़ुर्ग (dementia) डीमेंटीया से जूझ रहा हो तो कोई बड़ी बात नहीं मगर एक 36 साल के जवान इंसान के लिए टर्मिनल कैंसर होना बहुत दुःखदाई है। ऐसे में क्या कहकर दिलासा दिया जाए समझ नहीं आता।
लूसी और मै जब घर पहुंचे तो फ़ोन आया कि मुझे ट्रीटेबल कैंसर म्यूटेशन ईऍफ़जीआर है जिसका इलाज़ हो सकता है। अब मुझे किमो की ज़रुरत नहीं थी। बस मुझे टारसीवा की छोटी सी सफ़ेद गोली लेने की ज़रुरत थी। ये खबर सुनकर मेरी हिम्मत बड गयी, मुझे अब उम्मीद की किरण नज़र आ रही थी। अगले हफ्ते से मैंने अपने खाने की खुराक बड़ा दी। मेरा थोडा सा वजन भी बढने लगा था। मेरे चेहरे पर एक फुंसी भी निकल गयी जिससे पता चलता था कि टारसीवा की दवाई का असर हो रहा था। लूसी मेरे चेहरे को देखकर बोली “चाहे मेरा पूरा चेहरा फोड़े-फुंसी से भर जाए वो मुझे फिर भी प्यार करती रहेगी।
मै अपनी इस बिमारी को दो तरह से देख रहा था। एक डॉक्टर और मरीज़ के तौर पर मुझे अपनी मौत नज़र आ रही थी मगर मेरे अन्दर का फिजिशियन जानता था कि सच का सामना कैसे किया जाए। मुझे ट्रीटमेंट के बारे में सब कुछ पता था। इसके क्या कोम्प्लिकेशंस हो सकते है और कैसे मेडीकल केयर करनी है ये भी पता था। आजकल लंग कैंसर ऐसा है जैसा कैंसर 80 के दशक में एड्स था। ये बीमारी बहुत खतरनाक है मगर इसके इलाज की नयी-नयी थेरेपीज आ रही है।
मै स्टेज 4 का मरीज था इसलिए मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मै बस यही सोच रहा था कि क्या लूसी और मुझे एक बच्चे को जन्म देना चाहिए या नहीं ? अगर बच्चा हो भी गया तो उसे पालेंगे कैसे जबकि मेरी खुद की जिंदगी का कोई ठिकाना नहीं है। क्या मेरा करियर आगे चलेगा ? क्या मुझे अपने सपनो के बारे में सोचना चाहिए ये जानते हुए भी कि मेरे पास वक्त नहीं है। मौत तो मुझे हर हाल में आनी थी। मगर उससे पहले बची-खुची जिंदगी को भरपूर कैसे जिया जाए, ये सोचना था। मै ठीक होकर काम पर जा भी पाऊंगा या नहीं मुझे नहीं मालूम था मगर फिर भी क्या मैं जीने की कोई वजह ढूंढ सकता हूँ ?