(hindi) VIMATA
पत्नी की मौत के तीन ही महिने बाद दूसरी शादी करना उसकी आत्मा के साथ ऐसी नाइंसाफी और ऐसी चोट है जो कभी भी माफ नहीं किया जा सकता। मैं यह कहूँगा कि उस स्वर्ग में रहने वाली की मुझसे आखिरी इच्छा थी और न मेरा शायद यह कहना ही सही समझा जाय कि हमारे छोटे बेटे के लिए ‘माँ’ का होना बहुत जरुरी था।
लेकिन इस बारे में मेरी आत्मा साफ है और मैं उम्मीद करता हूँ कि स्वर्ग में मेरे इस काम की बेदर्दी से बुराई न की जायगी। बात यह कि मैंने शादी की और हालांकि एक नई शादीशुदा औरत के लिए ममता उपदेश बेकार की बात थी, पर मैंने पहले ही दिन अम्बा से कह दिया कि मैंने तुमसे सिर्फ इसलिए शादी की है कि तुम मेरे मासूम बेटे की माँ बनो और उसके दिल से उसकी माँ की मौत का दुख मिटा दो।
दो महिने बीत गये। मैं शाम के समय मुन्नू को साथ ले कर टहलने जाया करता था। लौटते समय कभी कभी दोस्तों से भी मिल लिया करता था। उस समय मुन्नू चिड़िया की तरह चहकता। असल में इस तरह मिलने से मेरा इरादा मन बहलाना नहीं, सिर्फ मुन्नू के असाधारण दिमाग के चमत्कार को दिखाना था। मेरे दोस्त जब मुन्नू को प्यार करते और उसकी कमाल के दिमाग की तारीफ करते तो मेरा दिल खुशी से उछलने लगता।
एक दिन मैं मुन्नू के साथ बाबू ज्वालासिंह के घर बैठा हुआ था। वो मेरे बहुत अच्छे दोस्त थे। मुझमें और उनमें कुछ भेदभाव न था। इसका मतलब यह नहीं है कि हम अपनी तकलीफें, अपने पारिवारिक झगड़े और पैसे से जुड़ी परेशानियों की बात किया करते थे। नहीं, हम इन मुलाकातों में भी अपनी इज्जत को बचाते और अपने बुरे हालात का जिक्र कभी जबान पर न आता था। हम अपनी बुराइयों को हमेशा छिपाते थे। एक होकर भी हम अलग थे और अपनेपन में भी अंतर था।
अचानक बाबू ज्वालासिंह ने मुन्नू से पूछा “क्यों तुम्हारी अम्माँ तुम्हें खूब प्यार करती हैं न ?”
मैंने मुस्करा कर मुन्नू की ओर देखा। उसके जवाब को लेकर मुझे कोई शक न था। मैं अच्छी तरह जानता था कि अम्बा उसे बहुत प्यार करती है। लेकिन मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब मुन्नू ने इस सवाल का जवाब मुँह से न दे कर आँखों से दिया। उसकी आँखों से आँसू की बूँदें टपकने लगीं। मैं शर्म से गड़ गया। इन आँसुओं ने अम्बा के उस सुंदर रूप को मिटा दिया जो पिछले दो महिने से मैंने दिल में बना कर रखा था।
ज्वालासिंह ने कुछ शक की नजरों से देखा और फिर मुन्नू से पूछा “क्यों रोते हो बेटा ?”
मुन्नू बोला “रोता नहीं हूँ, आँखों में धुआँ लग गया था।”
ज्वालासिंह का विमाता की ममता पर शक करना साधारण बात थी; लेकिन असल में मुझे भी शक हो गया ! अम्बा अच्छे दिल और प्यार की वो देवी नहीं है, जिसकी तारीफ करते मेरी जुबान न थकती थी। वहाँ से उठा तो मेरा दिल भरा हुआ था और शर्म से सिर न उठता था।
मैं घर की ओर चला तो मन में सोचने लगा कि किस तरह अपने गुस्से को जताऊँ। क्यों न मुँह ढंक कर सोया रहूँ। अम्बा जब पूछे तो कठोरता से कह दूँ कि सिर में दर्द है, मुझे तंग मत करो। खाने के लिए उठाये तो झिड़क कर जवाब दूँ। अम्बा जरूर समझ जायगी कि कोई बात मेरी इच्छा के खिलाफ हुई है। मेरे पैर पकड़ने लगेगी। उस समय मै ताना मारते हुए उसका दिल पढ़ लूँगा। ऐसा रुलाऊँगा कि वह भी याद करे। फिर ध्यान आया कि उसका हँसमुख चेहरा देख कर मैं अपने दिल को काबू में रख सकूँगा या नहीं।
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उसकी एक प्यार भरी नजर, एक मीठी बात, एक रसीली चुटकी मेरी चट्टान जैसे गुस्से के टुकड़े-टुकड़े कर सकती है। लेकिन दिल की इस कमजोरी पर मेरा मन झुँझला उठा। यह मेरी क्या हालत है, क्यों इतनी जल्दी मेरा मन पलट गया ? मुझे पूरा भरोसा था कि मैं इन प्यार भरी बातों की आँधी और सुंदर आँखों के बहकावे में भी अटल रह सकता हूँ और कहाँ अब यह हालत हो गयी कि मुझमें साधारण झोंके को भी सहन करने की हिम्मत नहीं ! यह सोच कर दिल में कुछ मजबूती आयी, उस पर भी गुस्से की लगाम हर कदम पर ढीली होती जाती थी। आखिर में मैंने दिल को बहुत दबाया और नकली गुस्से का भाव बनाया। ठान लिया कि जाते ही एकदम से बरस पडूँगा।
ऐसा न हो कि देर करने से मेरा गुस्सा शांत हो जाए, लेकिन जैसे ही घर पहुँचा, अम्बा ने दौड़ कर मुन्नू को गोदी में ले लिया और प्यार से बोली “आज तुम इतनी देर तक कहाँ घूमते रहे ? चलो, देखो, मैंने तुम्हारे लिए कितनी अच्छी-अच्छी पकौड़ियाँ बनायी हैं।”
मेरा नकली गुस्सा एक पल में उड़ गया। मैंने सोचा, इस देवी पर गुस्सा करना भारी अत्याचार है। मुन्नू नासमझ बच्चा है। हो सकता है कि वह अपनी माँ को याद कर रो पड़ा हो। अम्बा इसके लिए दोषी नहीं ठहरायी जा सकती। हमारे मन के भाव, हमारे सोच के काबू मे नहीं होते, हम उन्हें जताने के लिए कैसी-कैसी तरकीबें लगाते हैं, लेकिन समय पर शब्द हमें धोखा दे जाते हैं और वे ही भावनाएँ स्वाभाविक रूप से सामने आतीं हैं।
मैंने अम्बा को न तो कोई ताना मारा और न गुस्सा हो मुख ढंक कर सोया, बल्कि बहुत ही नरम आवाज में बोला, “मुन्नू ने आज मुझे बहुत शर्मिंदा किया। बाबू ज्वालासिंह ने पूछा तुम्हारी नयी अम्माँ तुम्हें प्यार करती हैं या नहीं, तो ये रोने लगा। मैं शर्म से गड़ गया। मैं तो सपने में भी यह नहीं सोच सकता कि तुमने इसे कुछ कहा होगा। लेकिन अनाथ बच्चों का दिल उस तस्वीर की तरह होता है जिस पर एक बहुत ही साधारण परदा पड़ा हुआ हो। हवा का साधारण झोंका भी उसे हटा देता है।”
ये बात कितने अच्छे से कही थीं, इस पर भी अम्बा का खिला हुआ चहरा कुछ मुरझा गया। वह आँसू भरी आँखों से बोली, “इस बात का ख्याल तो मैंने जितना हो सके पहले ही दिन से रखा है। लेकिन यह मुमकिन नहीं है कि मैं मुन्नू के दिल से माँ का दुख मिटा दूँ। मैं चाहे अपना सब कुछ लुटा दूँ, लेकिन मेरे नाम पर जो सौतेलेपन की कालिख लगी हुई है, वह मिट नहीं सकती।”
मुझे डर था कि इस बात का नतीजा कहीं उल्टा न हो, लेकिन दूसरे ही दिन मुझे अम्बा के व्यवहार में बहुत अंतर दिखायी देने लगा। मैं उसे सुबह से शाम तक मुन्नू की ही सेवा में लगी हुई देखता, यहाँ तक कि उस धुन में उसे मेरी भी चिंता न रहती थी। लेकिन मैं इतना अच्छा न था कि अपने आराम को मुन्नू पर लुटा देता।
कभी-कभी मुझे अम्बा का मुझ पर ध्यान न दे अच्छा नहीं लगता, लेकिन मैं कभी भूल कर भी इसकी बात न करता। एक दिन मैं अचानक दफ्तर से कुछ पहले ही आ गया। क्या देखता हूँ कि मुन्नू दरवाजे पर अंदर की ओर मुंह किये खड़ा है। मुझे इस समय आँख-मिचौनी खेलने की सूझी। मैंने दबे पाँव पीछे से जा कर उसके आँखें मूँद लिये। पर दुख ! उसके दोनों गाल आँसुओं से भीगे थे। मैंने तुरंत दोनों हाथ हटा लिये। ऐसा लगा मानो साँप ने डस लिया हो। दिल पर एक चोट लगी। मुन्नू को गोद में लेकर बोला, “मुन्नू, क्यों रोते हो ?” यह कहते-कहते मेरी आँखों में भी आँसू आ गए।
मुन्नू आँसू पी कर बोला- “जी नहीं, रोता नहीं हूँ।”
मैंने उसे दिल से लगा लिया और कहा- “अम्माँ ने कुछ कहा तो नहीं ?”
मुन्नू ने सिसकते हुए कहा- “जी नहीं, मुझे वह बहुत प्यार करती हैं।”
मुझे यकीन न हुआ, पूछा- “वह प्यार करती तो तुम रोते क्यों ? उस दिन बाबू ज्वालासिंह के घर भी तुम रोये थे। तुम मुझसे छिपाते हो। शायद तुम्हारी अम्माँ जरूर तुमसे कुछ गुस्सा हुई हैं।”
मुन्नू ने मेरी ओर दुखी नजरों से देख कर कहा- “जी नहीं, वह मुझे प्यार करती हैं इसी कारण मुझे बार बार रोना आता है। मेरी अम्माँ मुझे बहुत प्यार करती थीं। वह मुझे छोड़कर चली गयीं। नयी अम्माँ उससे भी ज्यादा प्यार करती हैं। इसीलिए मुझे डर लगता है कि उसकी तरह यह भी मुझे छोड़कर न चली जाय।'