(hindi) Turn the Ship Around! A True Story of Turning Followers Into Leaders

(hindi) Turn the Ship Around! A True Story of Turning Followers Into Leaders

इंट्रोडक्शन

बचपन से ही हम अपने बड़े-बुजुर्गों की बातों पर चलते रहे हैं. चाहे वो घर हो, स्कूल हो या फिर ऑफिस, हम दिन भर उनके ऑर्डर लेते रहते हैं. हम वही सुनते हैं जो हमें कहा जाता हैं और उसी को फॉलो करते हैं. अगर हमने कोई गलती की या कुछ अलग करने की कोशिश की, तो अक्सर हमें सज़ा दी जाती थी  और जो हमें बताया गया था उसी को फॉलो करने के लिए कहा जाता था.

सालों से इसी तरह से होता आया है कि कोई बुज़ुर्ग या पढ़ा-लिखा शख्स अपने तरीके से काम करवाना चाहता था. वैसे, अक्सर ऐसे करने से काम बन ही जाता हैं, लेकिन कई बार इसके अलावा भी दूसरे तरीकों से काम निकलवाया जा सकता  है. हमारे आसपास ऐसे कई सारे एग्जाम्पल हैं जिनमें काम को अलग तरीके से किया गया है . अगर कुछ अलग करने से रिजल्ट अच्छा रहा तो चारों तरफ तारीफ़ होती हैं, नहीं तो बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता हैं, इसीलिए चीजों को अलग तरीके से करने का डर बना रहता है.

टेक्निकल या साइंटिफिक कामों को छोड़कर दूसरे किसी भी काम को करने के लिए कोई फिक्स्ड तरीका नहीं होता. खासकर जब किसी से अपनी बात कहने की बात आती हैं, यानि कम्युनिकेशन की बात आती हैं, तो उसके एक से ज़्यादा तरीके होते हैं.
कोई भी कम्युनिकेशन हो, साफ़ और क्लियर होनी चाहिए, इसे दो-तरफ़ा प्रोसेस के तौर पर लेना चाहिए. इनफार्मेशन या आईडिया की अदला-बदली करने के लिए कम्यूनिकेट करें, साथ-साथ सभी प्रोसेस और procedure को फॉलो करें.

इस तरह से कम्यूनिकेट करें जिससे दूसरे आपको समझ सकें और आप उन्हें अपनी बात और अपना purpose  आसानी से समझा सकें. इससे आप हर किसी को सीखने और कॉन्फिडेंट बनने का मौका देते हैं. ये  कॉन्फिडेंस आगे जाकर किसी को भी सक्सेसफुल बनाता हैं. बदले में, हर शख्स को दूसरों से कैसे कम्यूनिकेट करना चाहिए, वो सीखता जाता है. जहाँ तक हो सकें इनफॉर्मल कम्युनिकेशन रखिए, लेकिन शॉर्ट और क्लियर रखिए.
' The chain of command ' जो एक शख्स से दूसरे शख्स को दी जानी वाली हिदायतें हैं, वो chain of command, chain of communication बन गई हैं और वो भी इनफॉर्मल तरीके से! ये तरीका leader to leader structure के ऊपर बेस्ड हैं, जैसा कि ऑथर डेविड ने अपनी बुक ‘टर्न द शिप अराउंड’ में लिखा है.

इस बुक में, आप सीखेंगे कि कैसे अपनी ज़िम्मेदारी उठाएँ और प्रोएक्टिव रहें. ऐसा करने से, किसी भी प्रोसेस का पार्टिसिपेंट एक फॉलोवर होने के बजाय एक लीडर बन सकता है.
ये बुक किसी आर्गनाईजेशन को टॉप-डाउन स्ट्रक्चर से बदलकर लीडर-लीडर स्ट्रक्चर में बदलने में गाइड कर सकती है. इससे वो organization एक महान आर्गनाईजेशन बनने के रास्ते पर चल पड़ेगा!

The Command Structure

हमेशा से दुनिया भर में, सिर्फ यही होता आया हैं कि लीडर्स हमेशा ऑर्डर देते हैं और नीचे के लोग इन ऑर्डर्स को मानते हैं और वही करते हैं जो उन्हें बताया जाता है. ऐसे में उन लोगों में से कुछ को कन्फ्यूज़न हो सकता है और वे कुछ एक्सप्लनेशन चाहते हैं मगर किसी में सवाल करने की हिम्मत नहीं होती. वे बस दूसरों को देखकर वही करते हैं जैसा  सामने वाले करते हैं.

सारे बड़े-बड़े घराने और ख़ानदान ऐसे ही लीडर्स के ऑर्डर्स को फॉलो करते हुए ही बने हैं. लीडर्स के किसी भी काम पर कोई शक या सवाल नहीं किया जाता. अगर किसी ने सवाल करने की हिम्मत की, तो उसे सज़ा सुनाई जाती थी या उसे फांसी तक दे दी जाती थी .  ये डर हर किसी के मन में घर कर गया, और इसलिए हर कोई लीडर की बातों को आँख बंद कर फॉलो करने लगा.

ऑर्डर्स को फॉलो करने की आदत खुद ही एक कानून बन गया था. आज भी, हम उसी कानून को बिना सोचे अपना रहे हैं.

इसमें अमेरिकी नेवी भी अलग नहीं थी. बड़े से लेकर छोटे,  हरेक सिस्टम को ठीक से फॉलो किया जाता था. सालों साल, कई जहाज़ आए, लोग आए और चले गए. उन्हें जो भी ऑर्डर दिया जाता था, उसे उसी तरह से फॉलो किया जाता था.

अगर कभी किसी लीडर ने कोई अलग एक्शन लिया भी होगा तो वो भूले भटके ही हुआ होगा. किसी भी तरीके से अलग एक्शन लेना हो तो उसके लिए लिखकर एक्सप्लनेशन देना होता था और अक्सर उनसे पूछताछ kइ जाती थी. चाहे कोई भी बदलाव हो, उसका सामना किसी रेजिस्टेंस से होता था!

लोग कमांड लाइन फॉलो करने में ही खुश थे ! बस वही करते थे जो उन्हें बताया जाता था !

लेकिन फिर एक बड़े इरादे वाला शख्स आया, जिसने कमांड लाइन को बदला, उसे इरादे या इरादे से भरी हुई बात में बदलने और किसी भी काम को ज़िम्मेदारी, कंट्रोल, काबिलियत और सफाई से करने के लिए!

सबमरीन  USS सैंटा फे (USS Santa Fe) के कैप्टन डेविड मार्के ने यही काम किया और दिखाया कि बिना किसी को ऑर्डर दिए या कमांड किए बिना कैसे काम करवाया जाए.
आइए देखें, अगले चैप्टर में, डेविड ने कौन सा मुश्किल काम किया था और उसे कैसे अचीव किया.

I intend to

याद हैं, इंट्रोडक्शन में, हमने जिम्मेदार और प्रोएक्टिव बनने की बात कही थी, साथ ही कम्युनिकेटिव होने की भी बात कही थी.  प्रोएक्टिव होने का मतलब हैं किसी के कहे बिना ही किसी भी सिचुएशन में respond करना ताकि काम में कोई मुश्किल ना आए.

यही प्रिंसिपल तब भी अप्लाई होते हैं जब एक फील्ड पर अमेरिकी नेवी काम करता है. जैसा कि हम पहले ही बात कर चुके हैं, पूरी दुनिया की मिलिट्री में कमांड करना ही कम्युनिकेशन का तरीका रहा हैं. इन तरीकों और प्रोसीज़र को रेगुलरली कंडक्ट किया जाता हैं. ऐसे सिचुएशन में,  क्या, क्यों, और कैसे ये सवाल करने की गुंजाइश नहीं रहती.

कैप्टन डेविड मार्के कम्युनिकेशन के तरीके को बदलना चाहते थे, दूसरों को ऑर्डर देने वाले तरीका नहीं चाहते थे. ‘फॉलो-इन-लीडर' पॉलिसी जिसमें सिर्फ लीडर की बात मानी जाती थी, उसे खत्म करना उनका मकसद था. इसके बदले में,  वे एक प्रोएक्टिव आदत को लाना चाहते थे, जिसमें कम्युनिकेशन ठीक उलटे तरीके से और proactively होता है. US Navy, में ग्रेजुएशन के बाद से, वे जहाजों पर कम्युनिकेशन को बदलना चाहते थे.

अपने US Navy के कैरियर के  शुरुवात में डेविड को USS  सबमरीन, सनफिश, सौंपा गया था. कमांडर मार्क पेलेज़ के अंडर काम करते हुए, डेविड के पास मौका था कि वे प्रोएक्टिव ” I intend to यानी मेरा इरादा” प्रोसेस को शुरू करें .

एक बार, अटलांटिक महासागर के पानी में, उन्हें अपनी सबमरीन,सनफिश, के आगे एक मर्चेंट शिप दिखा. डेविड चाहते थे कि उनके  सबमरीन से उस जहाज को मैसेज भेजा जाए, पर इनएक्टिव होकर सिग्नल को सुनते हुए नहीं बल्कि एक्टिव सोनार का यूज़ करके. कैप्टन पेलेज़ ने डेविड को अपनी इच्छा पूरी करने की इज़ाज़त दे दी. डेविड ने मौके का फायदा उठाया और कहा, “कैप्टन, मेरा इरादा एक्टिव होकर सोनार पर ट्रेनिंग के लिए जाने का है.”

कैप्टन पेलेज़ फौरन मान गए. ये उनके इरादे की शुरुआत थी, कमांड लाइन के टॉप-डाउन स्ट्रक्चर से बॉटम-टॉप वाली सोच में बदलने का. एक लीडर-लीडर नज़रिया लाने का.

समुन्दर से कुछ सालों तक दूर रहने के बाद, डेविड वापस आए और इस बार, USS विल रोजर्स में एक इंजीनियर के तौर पर. जैसा कि होता आया था, यहाँ टॉप-डाउन लीडरशिप थी और सारे क्रू मेंबर्स बिना इंटरेस्ट के काम कर रहे थे , बस अपने कैप्टन के ऑर्डर को फॉलो कर रहे थे . डेविड ने यहाँ भी “मेरा इरादा” फार्मूला को यूज़ करने की कोशिश की, लेकिन बात बिगड़ गई. यहाँ लोग बदलने से हिचक रहे थे.

लगभग आठ साल बाद उन्हें अपने इंटरेस्ट को दिखाने का असली मौका मिला था. उन्हें बुरी हालत में पड़ी USS सैंटा फ़े का कैप्टन बनाया गया.

अब, डेविड के पास वो सब था जो वे अपने लिए चाहते थे – “मेरा इरादा”  की शुरुवात करना और कमांड स्ट्रक्चर में लीडर-लीडर सोच को लाना.

“मेरा इरादा हैं” का मतलब हैं कि जिम्मेदारी लेते हुए किसी भी काम को अपना बनाना. काम करने के लिए, जितनी  ज़्यादा हो सके उतनी  नॉलेज होनी चाहिए तभी आगे बढ़ने के लिए कॉन्फिडेंस मिलता हैं और हम काम को सही ढंग से करने की जिम्मेदारी उठा सकते हैं.

फिर, जैसे ही वो जॉब सामने आता हैं जिसकी नॉलेज हमारे पास है  तो कोई ये कहकर अपनी सर्विस दे सकता हैं, कि “मैं इस जॉब को लेने का इरादा रखता हूं.” कोई आपसे पूछे या ऑर्डर दें या आपको कमांड करें, इसकी ज़रूरत नहीं पड़ती, आप खुद ही कदम आगे बढ़ा सकते हैं और उन्हें बता सकते  हैं कि आप उस काम को करने के लिए तैयार हैं.

SHARE
Subscribe
Notify of
Or
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments