(Hindi) The Subtle Art of Not Giving a F*ck

(Hindi) The Subtle Art of Not Giving a F*ck

अध्याय 1: कोशिश मत कीजिये

चार्ल्स बुकोव्स्की एक शराबी था. एक बहुत बड़ा जुआरी और जिंदगी से हारा हुआ ऐसा इंसान जिसकी सलाह शायद ही कभी कोई लेना चाहेगा. इसलिए तो हम अपनी शुरुवात ऐसे इंसान की कहानी से कर रहे है. बुकोव्स्की शुरू से ही एक लेखक बनना चाहता था मगर उसके काम को सभी न्यूज़पेपर और मेगजीन ने घटिया दर्जे का बताकर उसका मखौल उड़ाया. इस बात से दुखी होकर बुकोव्स्की गहरे डिप्रेशन में चला गया और उसने शराब का सहारा लेना शुरू कर दिया. धीरे-धीरे वो एक बहुत बड़ा शराबी बन बैठा. अपनी जिंदगी के करीब 30 साल शराब आर जुए में बर्बाद करने के बाद बुकोव्स्की को एक दिन एक मौका मिला.

एक छोटे पब्लिशिंग हाउस ने उसके काम में दिलचस्पी ली. बुकोव्स्की को बड़ी मुश्किल से एक मौका हाथ लगा था जिसे वो गंवाना नहीं चाहता था. उसने झट से वो कॉन्ट्रैक्ट साइन कर लिया. और तब उसने अपनी पहली किताब लिखी. फिर इसके बाद उसने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. एक के बाद एक उसने 6 किताबे और लिखी. इसके साथ ही उसने कई सारी कविताएं भी लिखी और उसकी किताबो की 2 मिलियन से ज्यादा कोपियाँ बिकी. ये उसके लिए एक बहुत बड़ी कामयाबी थी. अमेरिकन ड्रीम मे कहा जाता है की हमेशा कोशिश करते रहो कभी हार मत मानो लेकिन बुकोव्स्की की कब्र के पत्थर पर लिखा था “कोशिश मत कीजिये”

बुकोव्स्की के काम की ख़ास बात ये नहीं थी कि हारने के बावजूद उसने कोशिश ज़ारी रखी बल्कि ये है कि उसने खुद को बुरे से बुरे हाल में स्वीकार किया. उसे ज्यादा फर्क नहीं पड़ा जब कामयाबी उसके हाथ लगी ना ही वो पहले से अच्छा और सुधरा हुआ इंसान बन गया और ना ही उसके सक्सेसफुल बनने में उसकी अच्छाई का कोई हाथ था. हम सब अपनी जिंदगी में कभी ऐसे दौर से गुज़रते है जहाँ हालात बद से बदतर होते है. जैसे कि मान लीजिये, आपको गुस्सा बहुत ज्यादा आता है. इतना गुस्सा कि आप खुद पे काबू नहीं रख पाते है. और आप इसे काबू नहीं रख पाते ये सोचकर आपका गुस्सा और बढता है. वाह!

ज़रा सोचिये कितने मज़े की बात है कि आपको इस बात पर गुस्सा आता है कि आपको गुस्सा बहुत आता है. आप इस गुस्से से बचने का कोई रास्ता निकालन| चाहते है पर निकाल नहीं पा रहे. तब आप खुद से और अपने इस गुस्से की समस्या से नफरत करने लगते है. जब आप कभी अपने अकेलेपन को लेकर उदास होते हो तो आपके मन में उदासी से भरे ख्याल मंडराने लगते है. आप अपनी उदास जिंदगी और अकेलेपन के बारे में घंटो सोचते रहते है और सोच-सोच कर और भी ज्यादा उदास हो जाते है. तो मेरे दोस्त, इसीको कहते है जहन्नुम का फीडबैक लूप!

ज़रा याद कीजिये कि आपके दादाजी के वक्त में क्या होता था ? उस वक्त में जब कोई किसी को अपने से बेहतर देखता तो बेशक कुछ पल उदास होता मगर फिर अपने काम में लग जाता था ये सोचकर कि यही जिंदगी है. लेकिन अब अगर 5 सेकंड्स के लिए भी दुखी होते है तो आपको सबकी जिंदगी अपने से बेहतर लगने लगती है. आप खुद पे इतने शर्मिंदा हो जाते हो जैसे कि सब कुछ हार बैठे हो. और फिर अपनी इस शर्मिंदगी से आपको खुद पे और भी शर्म आने लगती है. शर्मिंदगी के इस गोल चक्कर में आप फंस से रह जाते हो. इसलिए तो ज़रुरत है कि इन बातो को लेकर ज़रा भी परेशान ना हुआ जाए. अगर आप उदास है तो कोई शर्म की बात नहीं, ऐसा सबके साथ होता है. शर्मिंदगी के इस चक्कर यानी लूप से बाहर निकालिए और जो चीज़े आपको परेशान कर रही है उनसे कहिये” भाड़ में जाओ” (don’t give a fuck about it).

आपके साथ सब अच्छा ही अच्छा हो यही सोचना सबसे बड़ी बुरी बात है. और अगर फिलोसफ़र एलन वाट्स की माने तो अपने साथ हुए नेगेटिव अनुभवों को स्वीकार करना ही असल में खुद एक बड़ा पोजिटिव अनुभव है. ये बात सुनने में अजीब लगती है मगर यही सच है. जितना ज्यादा आप खुशियों के पीछे भागेंगे, उतने ही ज्यादा दुखी रहेंगे. दुसरे शब्दों में कहे तो ऐसी कोशिश भी ना करे. क्या आपने कभी गौर किया है कि जब आप किसी बात के लिए केयरलेस होते है तो वही चीज़ आपको आसानी से मिल जाती है बजाये कि जब आप उसके पीछे भागते है. जैसे जब आप जिम जाते है तब वर्क आउट करने में आपको काफी दर्द सहना पड़ता है लेकिन इस दर्द का इनाम आपको मिलता है स्ट्रोंग मसल के रूप में. थोड़े से पेन के बदले में आपको एक खूबसूरत बॉडी मिलती है, आपकी हेल्द इम्प्रूव होती है.

इसी तरह जब आप अपने किसी काम में नाकमयाब होते है तो यही हार आपकी लिए किसी फ्यूल की तरह काम करती है और आप अपनी कोशिश में दुगने जोश के साथ फिर से जुट जाते है. दर्द को रोकने की कोशिश करना ही आपको बाद में और भी ज्यादा दर्द का एहसास कराता है. दर्द या हार जो भी आपको मिले उसे रोकिये मत, बस उसकी परवाह करना छोड़ दीजिये. फिर देखिये आपको कोई भी रोक नहीं पायेगा. परवाह ना करने का मतलब ये नहीं कि आप बिना कुछ किये शान्ति से बैठे रहे या एकदम किसी पत्थर की तरह बेअसर हो जाए. क्योंकि सिर्फ मुर्दों को कुछ महसूस नहीं होता, जिंदा आदमी तो सब कुछ फील कर सकता है. और हम आपसे ऐसा करने को नहीं कह रहे. हम तो बस यही कहना चाहते है कि परवाह ना करने का मतलब है कैसे भी हालात आये बस आराम से बैठिये फिर चाहे आपकी सोच औरो से अलग ही क्यों ना हो. आप अलग सोचिये,अलग बनिए यही बेहतर है बजाये कि आप चिकना घड़ा बने. चिकना घड़ा तो समझते होंगे ना आप ? जिस पर किसी बात का कोई असर नहीं होता. ऐसे लोग बुजदिल और मूर्ख होते है. आपको चिकना घड़ा नहीं बनना है, बस बेपरवाह बनना है जिससे आप फ़ालतू की टेंशन से बचे रहे.

लेकिन कभी-कभी आपको चीजों की परवाह भी करनी पड़ती है तो तब सवाल ये उठता है कि ऐसा क्या है जिसकी आपको सच में परवाह करनी चाहिए ? हमारे लेखक की माँ के साथ ऐसी ही एक घटना घटी थी. दरअसल एक बार उनकी एक सहेली ने उन्हें काफी बड़ी रकम का चूना लगा दिया था. अब अगर लेखक बिलकुल ही बेपरवाह होता तो जो उसकी माँ के साथ हुआ उसकी ज़रा भी परवाह नहीं करता मगर लेखक ने अपनी माँ को भरोसा दिलाया कि वे वकील की मदद लेंगे और उस इंसान को सबक सिखा कर ही रहेंगे. हां उसने ये सब इसलिए किया क्योकि उसे उस इन्सान की परवाह नही थी। He Don’t give a F*ck about him.

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अध्याय 2: खुशियों के पीछे मत भागिए

पच्चीस सौ साल पहले की बात है. नेपाल में एक राजा हुआ करता था जो अपने बेटे से बहुत प्यार करता था और उसके लिए बड़े-बड़े सपने देखा करता था. वो अपने बेटे को दुनिया की हर चीज़ देना चाहता था ताकि उसे कभी भी किसी चीज़ की कमी ना हो. अपने बेटे को खुश रखने के लिए उसने बहुत बड़ा महल बनवाया जिसके चारो ओर ऊँची दीवारे थी. वो नहीं चाहता था कि उसके बेटे को बाहर की दुनिया के बारे में कुछ भी पता चले. वो उसे हर दर्द, हर तकलीफ से बचा कर रखना चाहता था. महल में राजकुमार के लिए हर सुख-सुविधा मौजूद थी मगर राजकुमार फिर भी खुश नहीं रहता था. वो इस एशो-आराम से अब उबने लगा था. वो अब महल से बाहर की दुनिया देखना चाहता था.

तो एक दिन मौका देखकर वो महल से बाहर निकल गया. अपने राज्य में घुमते हुए राजकुमार को पहली बार दर्द का एहसास हुआ जब उसने भूखमरी और बिमारी से तडपते हुए गरीब इंसानों को देखा. उन्हें देखकर राजकुमार दुःख में डूब गया. उसे अपने पिता पर बहुत गुस्सा आया जिसने उसे आजतक इस सच्चाई से अनजान रखा था. उसने फैसला किया कि वो राजपाट छोड़कर भिक्षुक का जीवन जियेगा. और उसके बाद राजकुमार चुपचाप बिना किसी को कुछ बताये महल छोड़कर जंगल में चला गया. कुछ साल जंगल में गुज़ारने के बाद राजकुमार को एहसास हुआ कि उसकी इस कठिन तपस्या और भूखे प्यासे रहने से कोई फायदा नहीं है. ज़रूरी नहीं कि जो चीज़ तकलीफदेह हो वो आपके लिए अच्छी और फायदेमंद हो. उसने ये जाना कि जीवन अपने आप में एक तकलीफ है. अमीर आदमी अपने पैसे की वजह से तकलीफ सहता है और गरीब आदमी इसलिए परेशान रहता है क्योंकि उसके पास पैसे की कमी है. असल बात तो ये है कि ख़ुशी का कोई पैमाना नहीं होता .

कुछ हासिल करने का ये मतलब नहीं कि अब आप हमेशा के लिए खुश रहेंगे. हम तकलीफ इसीलिए सहते है क्योकि इससे हमें इंस्पायर्ड होते है, इससे हमारे अन्दर कुछ बदलाव आते है.  और जीवन में बदलाव बहुत ज़रूरी है. हमारे जीवन की तकलीफे हमें लड़ने की ताकत देती है , हम हर हाल में खुद को बचाए रखने की ज़दोज़हद करते है. दर्द ही हमें सिखाता है कि हम चीजों पर ध्यान दे जब हम लापरवाह होते है. इसलिए तो खुशियाँ और सुख सुविधाए हमेशा ही बेस्ट ऑप्शन नहीं होती कभी-कभी दर्द भी ज़रूरी है. यहाँ तक कि साइकोलोजिकल पेन भी बड़े काम की चीज़ है जो हमें भविष्य के बेहतर फैसले लेना सिखाती है. खुशियाँ कभी भी बिना मुसीबतों से लडे नहीं पाई जा सकती है. दुसरे शब्दों में कहे तो परेशानियों का दूसरा नाम ही खुशियाँ है. क्योंकि जब आप अपनी समस्या सुलझा लेते है तो ख़ुशी खुद-ब-खुद आपके चेहरे पर झलकने लगती है. तो इस तरह अपनी तकलीफों को अवॉयड ना करना ही आपकी खुशियों की चाबी है. यहाँ पर ख़ुशी का की-वर्ड असल में प्रोब्लोम्स को सोल्व करना है.

भावनाओं को हमेशा ही बड़ा चड़ा कर माना जाता है. हमारे इमोशंस आखिर क्या है ?
भावानाये यानी इमोशंस दरअसल हमारा दिमाग ही तो है जो हमें बताता है कि कुछ गलत हो रहा है और उसे ठीक किया जाना चाहिए. सीधे-सादे शब्दों में कहे तो हमारे नेगेटिव इमोशन हमें एक्शन लेने के लिए मजबूर करते है वहीँ दूसरी तरफ हमारे पोजिटिव इमोशन का मतलब है कि हमारा दिमाग हमे सही चीज़ करने के लिए इनाम दे रहा है. अब सवाल ये उठता है कि “ आप अपने जीवन में करना क्या चाहते है ?”
इस सवाल में कोई खास बात नहीं है, बहुत ही आम सा सवाल है ये. इसके बजाये सवाल होना चाहिए कि “ आप अपने जीवन में किस तरह की तकलीफ से गुज़रना चाहेंगे?’
बहुत से लोग नहीं करते मगर आप अपने स्ट्रगल खुद चुनिए. ज़्यादातर लोग सिर्फ बिना किसी तकलीफ के सिर्फ रिवार्ड चाहते है. इससे बुरा और क्या हो सकता है कि बिना कुछ किये आपको सबकुछ मिल जाए. तो अपने लिए खुद ही तकलीफे चुन लीजिये क्योंकि आखिर तो जिंदगी आपको फिर भी दर्द ही देगी, और वो आपके लिए ज्यादा दर्दनाक होगा.

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