(hindi) THE STARTUP OWNER’S MANUAL -A Step By Step Guide For Building A Company

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इंट्रोडक्शन

स्टार्ट-अप क्या होता है?
क्या आप जानते हैं, स्टार्ट-अप और एक कंपनी के बीच क्या फ़र्क है?
क्यों सिर्फ कुछ गिने-चुने स्टार्ट-अप ही सक्सेसफुल रहते है जबकि ज़्यादातर फेल हो जाते है?
क्या आप जानना चाहेंगे कि किस तरह प्रोडक्ट बनाये जाएँ ताकि वो बिक सकें?
अगर आप इन सारे सवालों के जवाब जानना चाहते है तो ये समरी आपके लिए एक परफेक्ट गाईड है.
स्टीव ब्लैंक अपनी इस किताब में रीडर्स को बताएँगे कि एक स्टार्ट-अप बिजनेस के बेसिक फंडामेंटल क्या होते है और कैसा बिजनेस प्लान बनाया जाए जो वाकई में काम कर सके.

The Path To Disaster: A Startup Is Not A Small Version Of A Big Company
(एक स्टार्ट-अप बिजनेस किसी बड़ी कंपनी का छोटा रूप  नहीं  होता है)

पुराने टाइम में ज़्यादातर कंपनीज़ कोई भी नया प्रोडक्ट बनाने के लिए और उसे  मार्केट  में  launch  करने के लिए प्रोडक्ट सेण्टर्ड अप्रोच  फॉलो  किया करती थी. इस मॉडल में किसी जाने माने मार्केट  के लिए प्रोडक्ट्स बनाये जाते थे और उन प्रोडक्ट्स के कस्टमर कौन होंगे, ये पहले से तय होता था.

लेकिन आज के वक्त में स्टार्ट-अप बिजनेस का ट्रेंड है. स्टार्ट-अप बिजनेस एक जुआ है. बिना किसी क्लाइंट बेस के किसी एकदम नए मार्केट  में नए प्रोडक्ट्स उतारने में और एक वेल एस्टेबिलिश्ड  मार्केट  में प्रोडक्ट  launch  करने में बड़ा फर्क  है.

इसलिए मॉडर्न टाइम के हिसाब से एक नया इम्प्रूव्ड प्रोडक्ट इंट्रोडक्शन मॉडल एकदम फिट बैठता है. ये नया मॉडल चार स्टेज पर बेस्ड है. पहला स्टेज है कांसेप्ट स्टेज, जहाँ स्टार्ट-अप का फाउन्डर अपने विज़न को लेकर कुछ आईडिया सोचेगा.

दूसरा स्टेज: फर्स्ट स्टेज के सारे आईडिया को ओर्गेनाइज़ किया जाएगा, फिर उसके बाद टीम टास्क डिवाइड करेगी और डेवलपमेंट प्रोसेस की तरफ बढ़ेगी.

थर्ड स्टेज: टीम नए प्रोडक्ट्स को टेस्ट करेगी. टीम कुछ ऐसे  लोगों  को चुनेगी जो उनके पहले कस्टमर्स बनकर ये चेक करेंगे कि वो प्रोडक्ट्स उनकी ज़रूरतों को पूरा करते हैं  या नहीं.

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चौथा स्टेज: स्टार्ट-अप मार्केटिंग कैंपेन्स करने के बाद प्रोडक्ट्स  मार्केट  में  launch  कर देगा.

चलिए इसे एक एक्जाम्पल के जरिये समझने की कोशिश करते है. 20वी सदी के अंत में Webvan नाम का एक ऐसा स्टार्ट-अप आया था जिसकी सफलता की उम्मीद सबको थी. ये स्टार्ट-अप शुरुवात से ही काफी प्रोमिसिंग लग रहा था और इनके पास ऐसे आईडियाज़ थे जो उस वक्त यूनाइटेड स्टेट्स में रहने वाले सभी  लोगों  की लाइफस्टाइल में एक बदलाव ला सकते थे.
Webvan अपने इस नए आईडिया के लिए करीब $800 मिलियन से भी ज्यादा इन्वेस्ट करने जा रही थी. और उनका गोल था: इस रकम से एक $450 बिलियन की कंपनी खड़ी करने का जिसकी वजह से कई  लोगों  को जिंदगी बदलने वाली थी.
दरअसल  Webvan का आईडिया था ऑनलाइन डिलीवरी करने का. उन्होंने सोचा क्यों ना एक ऐसा एप बनाया जाए जहाँ कस्टमर्स सिर्फ एक क्लिक से अपनी जरूरत की हर चीज़ घर बैठे ऑर्डर करके मंगा सके.
इस स्टार्ट-अप बिजनेस को अपने इस आईडिया पर इतना ज्यादा कांफिडेंस था कि  Webvan के सीईओ ने फोर्ब्स  मैगेजीन को इंटरव्यू में कहा कि वो लोग दुनिया को बदल कर रख देंगे”
तो, अपने इन्वेस्टर्स से पैसा कलेक्ट करने के बाद Webvan ने वेयरहाउस बनाया जहाँ उनकी डिलीवरी वैन खड़ी रहती थी और कंपनी ने अपने बिजेनस आईडिया शेयर करने के लिए एक वेबसाईट भी बनाई.
शुरू-शुरू में हर किसी को ये आईडिया बड़ा पसंद आया. लेकिन एक साल बाद ही  Webvan का दिवालिया निकल गया और बिजेनस ठप्प पड़ गया.

दरअसल  Webvan एक बड़ी गलती ये कर रही थी कि वो ट्रेडिशनल प्रोडक्ट क्रिएशन मॉडल को फॉलो  कर रही थी. उन्हें अपने बिजनेस आईडिया को  मार्केट  में उतारने की इतनी जल्दी थी कि टेस्टिंग और  मार्केट  स्टडी किये बिना ही वो लोग  मार्केट  में कूद पड़े. उन्होंने ना तो अपने कस्टमर्स को जानने-समझने की कोशिश की और ना ही कोई फीडबैक ही लिया जिसका नतीजा ये निकला कि  Webvan एक ही साल के अंदर बुरी तरह फेल हो गई.

अगर आपके पास भी कोई बिजनेस आईडिया है, बेशक आपको लगे कि ऐसा आईडिया आज तक किसी को नहीं आया होगा, इसके बावजूद आपको सक्सेस की गारंटी  नहीं  मिल सकती. क्योंकि स्टार्ट-अप बिजनेस में कुछ भी श्योर  नहीं  होता. और इसीलिए बैटर यही होगा कि शुरुवात में ही धडाधड प्रोडक्शन करने के बजाए टेस्टिंग और डिमांड के हिसाब से प्लान में चेंजेस लाने के बाद ही कोई एक्शन लिया जाए.

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The Path To The Epiphany: The Customer Development Model

सबसे बड़ी और कॉमन गलती जो सारे स्टार्ट-अप करते है कि उन्हें पता  नहीं  होता कि वो कौन है यानी उन्हें खुद  नहीं  पता कि वो किस टाइप का बिजनेस कर रहे है. उन्हें लगता है कि स्टार्ट-अप एक कंपनी का छोटा वर्जन है ,जोकि उनकी गलतफहमी है. हमने पहले के चैप्टर में पढ़ा कि स्टार्ट-अप एक ऐसा बिजनेस मॉडल होता है जो एक रीपीटेबल और स्केलेबल रिजल्ट अचीव करना चाहता है.

हर स्टार्ट-अप बिजनेस दो प्रोसेस से होकर गुजरता है: पहला: द अननोन फेज, यानी इस पीरियड में एक्स्प्लोर किया जाता है और फिर हाइपोथीसिस बिल्ड की जाती है या अनुमान लगाया जाता है . दूसरा है: नोन स्टेज जहाँ इन हाइपोथीसिस की टेस्टिंग और एक्जिक्यूशन होता है.
आपका स्टार्ट-अप अगर एक्जीक्यूशन स्टेज पर पहुँच गया तो उसके बाद आपको प्लान और बाकि के        मैनेजमेंट टूल्स की जरूरत पडती है. यहाँ आप फिर दो प्रोसेस की जरूरत होगी.

फर्स्ट प्रोसेस के लिए आपको कस्टमर डेवलपमेंट मॉडल चाहिए जो चार सिंपल स्टेज के जरिये आपको अपने कस्टमर्स को समझने में हेल्प करेगा. पहला: आपको अपने कस्टमर्स ढूँढने होंगे और अपना हाइपोथीसिस टेस्ट करने के लिए कोई प्लान बनाना पड़ेगा. दूसरा: अपने कस्टमर्स को टेस्ट करके इन हाइपोथीसिस को वेलिडेट करना. तीसरा: आपको अब एक्जीक्यूशन प्लान पर एक्शन लेना है, इसके लिए आपको अपने प्रोडक्ट की मैन्युफैक्चरिंग स्टार्ट करनी होगी जिससे आपके कस्टमर्स आपके क्लाइंट्स में बदल जाएँ  और आखिर में आता है ट्रांजीशन फेज़ यानी स्टार्ट-अप से एक कंपनी बनने तक का सफर.

एक्जीक्यूशन के लिए आपको एक कस्टमर डेवलपमेंट मॉडल की जरूरत पड़ेगी. इस मॉडल में प्रोसेस लीनियर नहीं है बल्कि स्टार्ट-अप ऊपर बताये गए चारो स्टेप्स के चारो तरफ तब तक घूमता रहता है जब तक कि एक ऐसे बिजनेस मॉडल तक ना पहुंच जाए जो काम करे.

जून 2004, में विल हार्वे को एक नया बिजनेस आईडिया आया जिसे उसने स्टीव ब्लैंक के साथ डिस्कस किया. ये दोनों दोस्त साथ में पहले भी काम कर चुके थे. स्टीव विल की पहले वाली कंपनी में एक इन्वेस्टर हुआ करते थे और विल स्टीव की विडियो गेम कंपनी में एक इंजीनियर थे.

जब स्टीव ने सुना कि विल के पास को नया बिजेनस आईडिया है तो उन्होंने डिटेल्स सुने बिना ही डायरेक्ट चेक तक रेडी कर लिया था.
एक नए सोशल नेटवर्क  जिसमें  एक 3D अवतार बेस्ड इंस्टेंट  मैसेजिंग था, को लेकर विल के पास एक नया आईडिया था, विल अपनी डेवलपमेंट स्किल्स को लेकर बड़ा फेमस था, सिर्फ 15 साल की उम्र में ही उसने अपना पहला वीडियोगेम क्रिएट कर लिया था.

विल ने इससे पहले भी एक ऑनलाइन रिक्रूटिंग कंपनी क्रिएट करने की कोशिश की थी. इस मॉडल पर वो अपने दोस्त एरिक के साथ मिलकर तीन साल तक काम करते रहे और एक बार एक्जीक्यूशन स्टेज तक पहुँचने के बाद उन्होंने देखा कि उनके ज्यादातर नए मॉडल के फीचर कस्टमर्स को पसंद  नहीं  आये है.

स्टीव अपने इस नए आईडिया के साथ सेम गलती  नहीं  दोहराना चाहते थे इसलिए उन्होंने विल को कहा कि उन्हें कस्टमर डेवलपमेंट के बारे में जानने के लिए चेक की जरूरत  नहीं  है. तो विल और एरिक ने मिलकर ये डिसाइड किया कि उन्हें एक ऐसा प्रोडक्ट बनाना है जो कस्टमर्स की जरूरत पूरा करे और उन्हें पसंद आये.

इस बार सबसे पहले उन्होंने हाइपोथीसिस यानि प्रोडक्ट किस तरह का होगा ये प्लान किया, फिर अपने उस हाइपोथीसिस को टेस्ट किया, जो गलती नजर आई, उसे दूर किया और फिर सेम स्टेप्स तब तक रिपीट करते गये जब तक कि उन्हें अपना राईट प्रोडक्ट  नहीं  मिल गया. नतीजा ये हुआ कि विल और स्टीव ने मिलकर एक  सक्सेसफुल  कंपनी चलाई.

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