(hindi) THE MINDFUL PATH TO SELF-COMPASSION-Freeing Yourself from Destructive Thoughts and Emotions

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इंट्रोडक्शन

आप फेलियर कैसे हैंडल करते है? आप जो भी खुद से बोलते है, अगर उसका हिसाब रखे तो आपके नेगेटिव कॉमेंट ज्यादा होंगे या पोजिटिव? क्या आप खुद को वो प्यार देते है जो आप डीज़र्व करते है?

आप खुद अपने को बुली करते हो. अपनी गलतियों को बार-बार पॉइंट आउट करते हो. आपके माइंड में जो नेगेटिव thought चलते रहते है, वो आपके सेल्फ कांफिडेंस को खत्म कर देते है. आपको एक शीशे के सामने खड़े होकर खुद से कहना होगा कि”अब बस, बहुत हो चुका”. अपनी खुद की वैल्यू अपनी ही नजरो में गिरा कर आप अपना ही नुकसान करते है.

इस किताब में आप खुद के प्रति दयालु होना सीखोगे. ये किताब आपको समझाएगी कि कैसे आप नफरत, क्यूरोसिटी, टॉलरेंस, allowing और फ्रेंडशिप के जरिये आप अपने नेगेटिव thoughts को एक्सेप्ट कर सकते हो.

इस किताब में आप माइंडफुलनेस के बारे में भी सीखोगे कि कैसे ये आपको अपने ईमोशंस को कण्ट्रोल करने में हेल्प करती है. इस किताब को पढकर आप सीखोगे कि कैसे हम खुद का ज्यादा से ज्यादा ख्याल रख रखते है क्योंकि हमारी पहली जिम्मेदारी खुद अपने प्रति है. हमे खुद के प्रति पोजिटिव सोचना होगा, खुद से प्रेम करना होगा.

और लास्ट में ये किताब आपको आर्ट ऑफ़ लेबलिंग सिखाती है जिससे आप अपनी लाइफ के उन पहलुओं को जान सके जिनमे आपको इम्प्रूवमेंट लानी है.

तो चलिए. द माइंडफुल पाथ की शुरुवात करते है.

अपने प्रति दयालु होना Being kind to yourself

मिशेल ने ऑथर के साथ थेरपी सेशन स्टार्ट किया. उसे लगा कि क्रिस्टोफर गर्मर उसे जो भी सुझाव या सलाह देंगे उसका कोई फायदा नहीं होने वाला. मिशेल तब हैरान रह गयी जब क्रिस्टोफर उसकी बात से सहमत हुए. दरसल मिशेल काफी शर्मीली थी. इतनी ज्यादा कि इसका गलत असर उसके वर्क परफोर्मेंस में पड़ रहा था. वो कभी अपने कलीग्स के साथ खुद बात करने की पहल नही करती थी. जब कभी उसे सबके सामने कुछ कहना होता तो वो शर्म से एकदम लाल पड़ जाती थी.

और क्रिस्टोफर इस बात से इत्तेफाक रखते थे कि कोई भी टेक्नीक मिशेल का शर्मीलापन दूर नही कर सकती. लेकिन ऐसा नही था कि मिशेल की हेल्प नही की जा सकती थी, बल्कि अपने शर्मीलेपन को लेकर खुद मिशेल की अप्रोच गलत थी.

क्या कभी ऐसा हुआ कि आपको कोई बात बुरी लगी पर आपने ज़ाहिर नही किया? क्या आप गुस्से या उदासी के एहसास को अपने अंदर छुपा लेते है, इस उम्मीद में कि सब ठीक हो जाएगा? मिशेल की तरह आप भी कहीं अपनी प्रोब्लम को इग्नोर तो नहीं कर रहे? अगर ऐसा है तो आप गलत कर रहे है. इससे बात और भी बिगड़ जायेगी. वैसे इसके लिए हम रिलैक्सेशन टेक्नीक का सहारा ले सकते है, पर वो सिर्फ एक टेम्पररी सोल्यूशन होगा.

जो आपको करना चाहिए—और जो मिशेल ने सीखा—वो है एक्सेप्ट करना. जिस दर्द और परेशानी से आप अभी गुजर रहे हो, उसे स्वीकार कर लो. आपको शायद ये एक स्टुपिड आईडिया लगे, कोई भला अपना दर्द क्यों एक्सेप्ट करना चाहेगा जबकि वो बेहद तकलीफ हो? लेकिन ऑथर की बात को कंसीडर करके देखिए. क्या अपनी तकलीफों और ईमोशंस को झुठलाना समझदारी है? क्या दर्द को इग्नोर करने से दर्द कम हो जायेगा?

इससे पहले कि आप अपना दर्द एक्सेप्ट करना सीखे, आपको पहले कुछ समझना होगा. जैसे-जैसे आप बड़े होते है आपको खुश होने बहुत से मौके मिलते है. आप कॉलेज खत्म करते है, अपनी पसंद के पार्टनर से शादी करते है. लेकिन आपको दर्द सहने के मौके भी मिलते है. जैसे पेरेंट्स की अचानक मौत, या आपका बेस्ट फ्रेंड आपसे दूर चला जाए वगैरह-वगैरह. क्योंकि जिंदगी में खुशी और गम हमेशा आते-जाते रहते है.

इंसान की फितरत है कि वो सिर्फ खुशियाँ ढूंढता है. ऐसा कौन है जो खुश नहीं रहना चाहता ? ये सच है ना? खुशी हमे एक सुकून देती है. लेकिन फिर हमे इसकी आदत हो जाती है. हम खुद को खुश रखने के बहाने ढूंढते रहते है. हालाँकि ख़ुशी हमेशा बरक़रार नहीं रहती. पर एक शांत और सुकून भरी जिंदगी जीने के लिए हमे ख़ुशी और गम के साथ अपना रिश्ता चेंज करना होगा. ख़ुशी और गम दोनों को अपनी जिंदगी में कुदरती तौर आने-जाने दो.

अपने दर्द को एक्सेप्ट करने के स्टेज है aversion, curiosity, tolerance, allowing और friendship.
बड़ी हैरानी की बात है कि, एक्सेप्टेंस की पहली स्टेज है बुरी feelings को अवॉयड करना. अब जैसा कि स्वाभाविक है, हम तुंरत इस फीलिंग से छूटकारा पाने के तरीके ढूंढते है.

लेकिन जब बुरी फीलिंग्स को अवॉयड करने से भी काम नहीं बनता तो हम सेकंड स्टेज पर आते है. हम उस बुरी फीलिंग के बारे में सवाल करने लगते है. लेकिन इसका मतलब क्या है? कौन सी सिचुएशन में आपने ऐसा फील किया?

जब एक बार आप समझ गए कि बुरी फीलिंग है क्या, तब आप थर्ड स्टेज पर पहुँचते है. आप उस बुरी फीलिंग को बर्दाश्त करना सीख जाते हो. हालाँकि अभी भी आपका दिल उसे एक्सेप्ट नहीं करेगा. आपके अंदर अभी भी यही इच्छा होगी कि ये बुरी फीलिंग चली जाए.

फिर धीरे-धीरे आप फोर्थ स्टेज पर आते हो. उस बुरी फीलिंग के लिए आपकी रेजिस्टेंस गायब होने लगती है. आप उसे अपनी जिंदगी में आने दे रहे हो. फाइनल स्टेज में आप सीख जाते हो कि उस फीलिंग ने आपको कैसे बदल दिया है. आप सोचते हो कि दर्द की भी अपनी एक कीमत है.

बुरी फीलिंग को एक्सेप्ट करना खुद के साथ जुड़ने का एक नया तरीका है. ये आपको अपने दर्द से अपनी तकलीफ से भागने के लिए नहीं बोलता. बल्कि एक्सेप्टेंस आपको सिखाती है कि आपको और भी प्यार और सिम्पेथी के साथ अपनी तकलीफों, अपने दर्द को हैंडल करना चाहिए.

ऑथर क्रिस्टोफर एक्सेप्टेंस का ये मतलब नहीं कि आप बुरा व्यवहार भी बर्दाश्त कर ले बल्कि उनका कहना है कि आपको उस वक्त अपनी फीलिंग्स से वाकिफ होना चाहिए कि आपके साथ क्या हो रहा है, आपको कैसा लग रहा है यानी अपनी हर फीलिंग, हर सेंसेशन, हर thought को एक्सपीरिएंस करना.

सेल्फ कम्पैशन एक टाइप की एक्सेप्टेंस है, यानी किसी भी तरह के दर्द की फीलिंग से गुजरते हुए उसे एक्सेप्ट करना. खुद से ऐसे ही पेश आना जैसे आप दूसरो से आते हो, उतने ही प्यार और सहानुभूति के साथ.

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अपनी बॉडी की बात सुनो (Listening to your body)

लाइफ के किसी एक फील्ड की परेशानी पूरी लाइफ को डिस्टर्ब कर देती है. मान लो आपकी जॉब चली गई, अब इसका आपकी पूरी लाइफ पर असर पड़ेगा. आप अपने बॉस से नफरत करने लगोगे. आपको लगेगा कि वो भी आपसे नफरत करता है. आपके रातो की नींद उड़ जाएगी. आप यही सोचके परेशान रहोगे कि अब परिवार को कैसे पालोगे? और सिर्फ यही नही, बेरोजगारी इंसान का सेल्फ कोंफिडेंस भी कम हो जाता है. आपकी तकलीफ सिर्फ जॉब जाने तक ही सिमित नही है बल्कि ये आपकी पूरी जिदंगी पर असर डाल रही है. आपको खुद की काबिलियत पर ही शक होने लगेगा.

यहाँ पर माइंडफुलनेस हमारी हेल्प कर सकती है. ये आपको तकलीफ और परेशानियों को मिटाती नहीं है बल्कि हमे मजबूत बनाती है. लेकिन माइंडफुलनेस आखिर है क्या?

मेडिटेशन टीचर Guy आर्मस्ट्रोंग के हिसाब से माइंडफुलनेस का मतलब है कि अपनी फीलिंग्स के प्रति जागरूक होना यानी हम जिन एहसासो से गुजर रहे है, उन्हें समझना और स्वीकार करना. यानी हमे और हमारी बॉडी को क्या फील हो रहा, उस पर ध्यान देना.

आपकी ये आदत होती है कि हर चीज़ को इन्टरप्रेट करा लेते हो. ये भी आपके दर्द की एक वजह है. माइंडफुलनेस आपको प्रेजेट मोमेंट में रहने को बोलता है. सुनने में अजीब लगता है पर है नही. जो कुछ आपके साथ हो रहा है, माइंडफुलनेस उसके प्रति आपको अवेयर बनाता है. आपको नहीं पता कि आपने कितना प्रेजेंट मिस कर दिया है.

चलिए जॉर्ज की बात करते है. उसकी जिंदगी में सब अच्छा था. उसकी जॉब बढिया चल रही थी और उसे एक बेहद समझदार और अच्छी लाइफ पार्टनर मिली थी. जॉर्ज के कई दोस्त भी थे. आप कह सकते है कि बहुत से लोग जॉर्ज से जलते होंगे क्योंकि उसकी जिंदगी एकदम परफेक्ट लगती है. पर जॉर्ज माइंडफुल नहीं है.

उसने अपनी प्रजेंट लाइफ को कभी एप्रिशिएट नहीं किया क्योंकि वो हमेशा बीते कल के बारे में सोचता है. उसे अपनी बहन याद आती है जिसने छोटी सी उम्र में सुसाइड कर लिया था. उसे इस बात का बेहद दुःख था. जॉर्ज अपनी मरी हुई बहन के बारे में सोचता रहता था, इस चक्कर में उसने प्रजेंट लाइफ पर कभी ध्यान ही नही दिया. उसकी वाइफ, करियर, सोशल सर्कल धीरे-धीरे सब बिखरते जा रहे थे.

फिर एक दिन जॉर्ज को बीच पर घुमते वक्त एक गोल, मुलायम पत्थर मिला. जॉर्ज ने वो पत्थर उठा लिया. अब वो इस पत्थर को हमेशा अपने पास रखने लगा. वो इसे 'here-and-now' पत्थर बोलता था. जब भी उसे बीता हुआ कल याद आता, वो जेब में रखे पत्थर को छू लेता. पत्थर उसे एहसास दिलाता कि वो प्रजेंट में है और उसे अपनी लाइफ की सच्चाई के साथ चलना है. तो जॉर्ज ने अब माइंडफुलनेस सीख ली थी.

उसने अपने पास्ट को भुलाने का अच्छा तरीका निकाला था. हालाँकि जॉर्ज जानता था कि बीता हुआ कल कभी उसका पीछा नही छोड़ेगा तो उसने उस हादसे पर गहराई से सोच-विचार किया. जो हो चूका था वो उसके हाथ में नहीं था और ना ही वो बदल सकता था. इस माइंडफुलनेस thought ने उस दर्द भरे हादसे से उबरने में उसकी मदद की.

अपनी माइंडफुलनेस जर्नी शुरू करने के लिए आपको भी अपना हियर एंड नाऊ स्टोन ढूंढना होगा. इसे एंकर कहते है. ऐसी कोई चीज़ आईडेंटीफाई करो जो आपको ग्राउंडेड रखे. आपका माइंड हमेशा बिजी रहता है. ये एक सेकंड हजार चीजों के बारे में सोच लेता है. कई बार ये thoughts पेनफुल लग सकते है जिससे आपको तकलीफ होगी. इसलिए हमे एक एंकर चाहिए.

एंकर ऐसा होना चाहिए जो कंसिस्टेंट हो. जैसे शुरुवात में आपका एंकर आपकी ब्रेथ हो सकता है. क्योंकि ब्रीदिंग हमेशा कंसिस्टेंट होती है.

तो चलिए, अब माइंडफुलनेस की अपनी जर्नी की शुरुवात करते है. यहाँ हम जो एक्टिविटी बता रहे है उसमे सिर्फ 15 मिनट लगेंगे. सबसे पहले बैठने के लिए कोई आरामदायक जगह ढूंढ लो. बॉडी को रिलैक्स रखो, ख़ासकर अपनी मसल्सको। अब इसके बाद, धीरे-धीरे तीन गहरी-लंबी साँसे लो. हर बार सांस छोड़ते वक्त ये सोचो कि सांस के साथ आपकी प्रोब्लम भी दूर जा रही है. आप चाहो तो आँखे बंद या खुली रख सकते हो.

अब थर्ड पार्ट पे आते है. ये देखो आपकी छाती के उठने या गिरते वक्त कहाँ पर आपकी ब्रीदिंग सबसे ज्यादा स्ट्रोंग है. बहुत से लोग साँस छोड़ते वक्त अपने ऊपरी होंठ पर हवा का दबाव महसूस करते है.

अब फोर्थ पार्ट, अपनी ब्रीदिंग पर फोकस करो. नोटिस करो हवा कैसे आपके अंदर आ-जा रही है. साँस छोड़ते वक्त रिलैक्स रहो. सिर्फ ब्रीदिंग पर ध्यान दो. आप उस ख़ामोशी के बीच अपनी सांसो की आवाज़ जो एन्जॉय करने लगोगे. तो देखा आपने, प्रेजेंट कितना सुकून भरा हो सकता है.

15 मिनट के टाइम में अपना पूरा ध्यान ब्रीदिंग पर रखना थोडा मुश्किल लग सकता है क्योंकि हमारे माइंड में कई तरह की बाते घूमती रहती है, लेकिन आपका फोकस नही बन पा रहा तो परेशान होने की जरूरत नही, ये एकदम नॉर्मल है. मेडीटेशन की प्रेक्टिस करते वक्त शुरू में सबको ये प्रोब्लम होती है. एक बार जब आपको लगे कि आपका ध्यान भटक नही रहा तो फिर से ब्रीदिंग पर फोकस करो. तब तक करो जब तक 15 मिनट ना हो जाये.

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