(hindi) THE MAN WHO SAVED INDIA

(hindi) THE MAN WHO SAVED INDIA

इंट्रोडक्शन (Introduction)

“द मेन व्हू सेव्ड इंडिया” सरदार बल्लभभाई पटेल की बायोग्राफी है जिसे हिंदल सेनगुप्ता ने बहुत ही बढ़िया तरीके से लिखा है. इस बुक में आप पढेंगे कि ब्रिटिश रुल के दौरान कांग्रेस के एक महान और जिम्मेदार नेता के तौर पर सरदार पटेल का काफी बड़ा योगदान रहा है. अपनी इस बुक में सेनगुप्ता ने कई ऐसी स्टोरीज़ शेयर की जो देश की आज़ादी से पहले के हालात और आज़ादी के लिए हमारे स्ट्रगल के बारे में बताती है.

इसमें सरदार पटेल के इम्पोर्टेंट डिसीजंस और उनकी लाइफ के एक्स्पिरिएंशेस का जिक्र किया गया है और ये भी मेंशन किया गया है कि सरदार पटेल पर गांधी, नेहरु, जिन्ना और बाकि फ्रीडम फाइटर्स का क्या इन्फ्लुएंश रहा था. सरदार पटेल की पर्सनल लाइफ से लेकर उनके पोलिटिकल व्यूज़ तक सबका जिक्र इस किताब है जो हमे पटेल की लाइफ के बारे में और इंडियन पोलिटिक्स में उनकी पोजीशन के बारे में एक डिटेल इन्फोर्मेशन देती है.

“वी डोंट वांट टू लिसन टू योर गाँधी
हम तुम्हारे गांधी की बात नहीं सुनना चाहते “
We don't want to listen to your Gandhi.”

सरदार वल्लभभाई पटेल एक बैरिस्टर थे. वो इंग्लैण्ड से अपनी एजुकेशन पूरी करने के बाद इंडिया लौटे थे. शुरुवात में उनकी फेमिली की फाईनेंशियल कंडिशन अच्छी नहीं थी लेकिन 1916 के बाद से हालात कुछ-कुछ सुधरने लगे थे.  पटेल बड़े मस्तमौला टाइप के थे. वो रिस्क लेने में ज़रा भी नहीं डरते थे. एक बार वो एक जज के पीछे पड़ गए जिसने कुछ लोगो के खिलाफ गलत फैसला दिया था. वो जज पटेल से इतना डर गया था कि उसने पटेल के क्लाइंट को झट से बेल दे दी.

उनसे जब गांधी के बारे में पुछा गया जोकि एक इंडियन लॉयर और पोलिटिकल पर्सनेलिटी थे तो पटेल ने कहा उन्हें गाँधी थोड़े अजीब लगते है. एक बार की बात है जब अहमदाबाद के गुजरात क्लब में गांधी के आने की चर्चा हो रही थी तो पटेल ने सीधे जाकर कहा” वापस जाओ, हमे तुम्हारे गांधी की बातें नहीं सुननी है” पटेल को ये भी रिएलाइज हुआ कि गाँधी कुछ इम्पोर्टेंट लोगो को अपनी साइड कर रहे है, वो लोग जिन्हें पटेल पसंद करते थे. इनमे डॉक्टर डी.बी. केलकर, नरहरी पारीख, महादेव देसाई, स्वामी आनंद और के. जी. मशरूवाला जैसे बड़े-बड़े लोग शामिल थे.

पटेल गाँधी को “बापू” कहा करते थे. पटेल को बचपन से ही अपने घर-परिवार से बड़ो की इज्जत करना सिखाया गया था खासकर अपने बड़े भाइयों का. वल्लभभाई ने इंग्लैण्ड जाकर पढ़ाई करने के लिये पैसे सेव किये थे पर उनके बड़े भाई, विठ्ठलभाई ने उन्हें धोखा दे दिया था. उन्हें जब पेपर्स मिले तो वो वी. जे. पटेल के नाम पर थे. ये वी. जे. पटेल दोनों भाइयों का इनिशियल्स था. तो वल्लभभाई पटेल ने ये मौका अपने भाई को दे दिया. और साथ ही प्रोमिस किया कि सारा खर्चा वो खुद उठायेंगे.

विठ्ठल भाई के जाने के तीन साल बाद वल्लभभाई भी इंग्लैण्ड गए और वहां अपनी पढाई पूरी की. इन्डियन पोलिटिक्स में पटेल की जर्नी अहमदाबाद म्यूनिसिपेलिटी से स्टार्ट हुई  थी जहाँ वो 1917 से लेकर 1928 तक प्रेजिडेंट रहे थे. देश में जब रेट प्लेग फैला हुआ तो किस्मत पटेल बाल-बाल बच गए थे लेकिन उन्होंने इस बिमारी से कई लोगो को बचाने में अपना सेल्फलेस कोंट्रीब्यूशन दिया था. इसके अलावा टाउन प्लानिंग, सीवेज कंस्ट्रक्शन, वाटर सप्लाई और स्कूल्स वगैरह बनाने के लिए सरदार पटेल ने काफी हेल्प की थी. पटेल खाली प्लानिंग में नहीं बल्कि एक्शन में बिलीव करते थे. वो थ्योरीज़ से ज्यादा प्रेक्टिकल अप्रोच में यकीन रखते थे.

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'गांधी एक महात्मा है, मै नहीं (गाँधी इज़ अ महात्मा, आई ऍम नोट)
Gandhi is a Mahatma; I am not.'

सरदार पटेल गांधी जी और उनके आईडियाज़ से काफी इम्प्रेस्ड थे. पर जब गांधी जी ने उन्हें अहमदाबाद के साबरमती आश्रम में रहने का ऑफर दिया तो उन्होंने रिजेक्ट कर दिया. पटेल को साबरमती आश्रम के तौर-तरीके कुछ ज्यादा पसंद नहीं आये. यहाँ आश्रम में छूआछूत नहीं मानी जाती थी, सभी धर्मो को एक नज़र से देखा जाता था. आश्रम में काम बंटे हुए थे, सबको कुछ ना कुछ काम मिला था. बगैर मेहनत किसी को खाना नहीं मिलता था, आश्रम में चोरी, झूठ बोलना, नॉन-वायोलेंस यानि अहिंसा और लालच इन सब बुराइयों को पाप समझा जाता था.

सच बोलने पर जोर दिया जाता था और सिर्फ देश में बनी चीजों का इस्तेमाल होता था. ना जाने पटेल को इनमे से कौन सी बात पे एतराज़ था पर वो साबरमती आश्रम में नहीं रहना चाहते थे. पटेल की नजरों में गांधी एक ऐसे इंसान थे जिसने अत्याचार सहा था और खुद को रीडिसकवर किया था. साउथ अफ्रीका के पिएटरमरित्ज़बर्ग में अंग्रेजो ने गांधी को ट्रेन के फर्स्ट क्लास कम्पार्टमेंट में ट्रेवल नहीं करने दिया क्योंकि वो डब्बा सिर्फ गोरों के लिए रीज़ेर्व था. लेकिन इण्डिया में गाँधी थर्ड क्लास कम्पार्टमेंट्स में ट्रेवल करते थे जबकि पटेल सेकंड क्लास में जाते थे.

इण्डिया लौटने के बाद पटेल का ड्रेसिंग सेंस भी चेंज हो गया था. उन्होंने योरोपियन कपडे, सॉक्स और हैट छोडकर धोती, कुरता पहनना शुरू कर दिया और कंधे में एक चादर लेते थे. गाँधी के नॉन-वायोलेंस वाला आईडिया पटेल को पूरी तरह हजम नहीं होता था. वो मानते थे कि देश के किसानों को अगर सही ट्रेनिंग मिले तो वो भी किसी ब्रिटिश सिपाही का मुकाबला कर सकते है. हालाँकि आल इंडिया मुस्लिम लीग के लीडर मुहम्मद अली जिन्ना ने इस मिलिट्री कैंपेन के आईडिया को सपोर्ट नहीं किया.

गुजरात के खेड़ा गाँव के किसानों ने मिलिट्री सर्विस ज्वाइन नहीं करना चाहते थे. किसी तरह 100 के करीब रेक्रुइट्स इकठ्ठा कर लिए गए पर गुजरात में ट्रेनिंग सेंटर नहीं था. तो गवर्नमेंट ने सजेशन दिया कि इन रेक्रुइट्स को ट्रेनिंग लेने किसी और जगह भेजा जाए. लेकिन गाँधी चाहते थे कि गुजरात में ही एक ट्रेनिंग सेंटर खोला जाये ताकि और लोग भी आकर ज्वाइन कर सके. इसी बीच गांधीजी बहुत बीमार हो गए और पूरे दो महीने बिस्तर पर पडे रहे. इस दौरान फर्स्ट वर्ल्ड वार खत्म होने की कगार पर था.

'इज़ देयर लेस रिस्क इन डूइंग नथिंग “
क्या कुछ नहीं करने में कम रिस्क है “ (Is There Less Risk In Doing Nothing?')

1918 आते-आते कांग्रेस बंट चुकी थी. इसमें दो ग्रुप बन गए थे, मोडरेटर्स और एक्सट्रीमर्स. 1919 में रोलेट एक्ट पास हुआ. इस लॉ के हिसाब से ब्रिटिश गवर्नमेंट किसी को भी बिना ट्रायल के अरेस्ट कर सकती थी. ब्रिटिश सरकार के खिलाफ  विद्रोह का कोई सबूत मिलने पर सीधे दो साल की जेल हो सकती थी, चाहे कोई छोटा सा कागज ही क्यों ना हो. गाँधी ने बिमारी की हालत में भी इस मौके को हाथ से नहीं जाने दिया.

उन्होंने सरदार पटेल को बुलाकर कहा कि वो लोगो के साथ मिलकर सिविल डिसओबिएंश यानी सविनय अवज्ञा आन्दोलन करे. इन लोगो में बड़े-बड़े लीडर शामिल थे जैसे कवियत्री सरोजिनी नायडू, दो अमीर बिजनेसमेन और बॉम्बे क्रोनिकल न्यूज़पेपर के आईरिश एडिटर बी. जी. होर्नीमेन. लेकिन ब्रिटिश सरकार ने अपना फैसला वापिस नहीं लिया, उन्होंने पहले भी इस तरह के कई आंदोलन देखे थे. 1919 में मिन्टो-मोर्ले रीफोर्म से अथॉरिटीज को पॉवर मिल गयी कि वो पोलिटिकल वर्कर्स को जेल में डाल सके और फ्रीडम ऑफ़ स्पीच पर बैन लगा दे.

शायद ब्रिटिश सरकार गाँधी का मैसेज समझ नहीं पा रही थी. और उन्हें ये भी रियेलाइज नहीं हुआ कि फर्स्ट वर्ल्ड वार में उनकी जो हालत हुई थी उससे भारत जैसे गुलाम देशो को समझ आ गया था कि अंग्रेजो को भी हराया जा सकता है. इससे पहले बिर्टिश आर्मी को बेहद स्ट्रोंग और कभी ना हारने वाली आर्मी माना जाता था. गाँधी अरेस्ट कर लिए गए और उनका नॉन-वायोलेंस प्रोटेस्ट दंगो में बदल गया जिसमे पांच अंग्रेज मारे गए.

1919 में बैसाखी के दिन अमृतसर के एक छोटे से बाग़ जलियाँवाला में एक जलसे के लिए लोगो की भीड़ जमा थी. इस जलसे में शहर से बाहर के लोग भी आए थे. किसी को मालूम नहीं था कि वहां पर कर्फ्यू लगा है. तभी जर्नल डायर अपने ट्रूप्स के साथ वहां पहुंचा और लोगो की भीड़ पर फायर करने का ऑर्डर दे दिया. वो लोग जो बड़ी शांति से वहां खड़े थे उन पर गोलियों की बौछार होने लगी. एग्जिट का सिर्फ एक दरवाजा था, उसे भी बंद कर दिया गया.पूरे 10 मिनट तक अँधाधुंध फायरिंग होती रही और 379 लोग जिनमे औरते और मासूम बच्चे भी थे, इस फायरिंग में मारे गए.

कई सौ लोग गोलियों से घायल हुए. उस साल कांग्रेस का सेशन जलियाँवाला बाग़ के पास रखा गया ताकि लोगो को ये खूनी घटना हमेशा याद रहे. फिर जल्दी ही जिन्ना ने अपने बीस साधियों के साथ कांग्रेस पार्टी छोड़ दी. बहुत पहले से ही कांग्रेस के मुस्लिम लीडर्स का बाकियों के साथ कई मैटर्स पर डिसएग्रीमेंट चल रहा था. हालाँकि इस टाइम तक जिन्ना के दिमाग में पाकिस्तान बनाने का कोई आईडिया नहीं आया था. गाँधी कांग्रेस पार्टी को अंदर से बदलना चाहते थे और इसमें उनके सबसे बड़े सपोर्टर सरदार पटेल ही थे.

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