(hindi) THE MAN WHO KNEW INFINITY

(hindi) THE MAN WHO KNEW INFINITY

इंट्रोडक्शन(Introduction)

क्या आपने श्रीनिवास रामानुजन के बारे में सुना है? कौन थे वो? वो एक जीनियस mathematician थे. वो रॉयल सोसाइटी में फेलो बनने वाले दूसरे भारतीय और कैंब्रिज में ट्रिनिटी कॉलेज के फेलो बनने वाले पहले भारतीय थे.

इस बुक में आप रामानुजन के बारे में कई दिलचस्प बातें जानेंगे. रामानुजन बहुत विनम्र इंसान थे. दुनिया भर के mathematician उन्हें काफ़ी मान देते थे. बहुत कम उम्र में उनकी मृत्यु हो गई लेकिन अपने पीछे वो कई महान अचीवमेंट छोड़ गए जिस पर भारत को गर्व होना चाहिए.

अ ब्रह्मिन बॉयहुड (A Brahmin Boyhood)

श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसम्बर 1887 में हुआ था. उनके पिता श्रीनिवास एक साड़ी की दुकान में क्लर्क थे. उनकी माँ कोमल तामल हाउस वाइफ थी और पास के एक मंदिर में गाया करती थीं. रामानुजन साउथ इंडिया के कुंभ कोणम गाँव में पले बढ़े थे.

रामानुजन एक जिद्दी लेकिन भावुक बच्चे थे. एक बार, जब वो बहुत छोटे और नासमझ थे तो उन्होंने मंदिर के प्रसाद के अलावा कुछ भी खाने से मना कर दिया था. अगर उन्हें मनचाहा खाना नहीं मिलता तो वो ज़मीन पर मिटटी में लोटने लग जाते थे.

वो स्वभाव से बड़े शांत थे लेकिन हर बात को गौर से देखते और उसके बारे में सोचने लगते.उनके सवाल दूसरे बच्चों से काफ़ी अलग होते थे जैसे, “यहाँ से बादल कितनी दूर है” या “इस दुनिया में पहला आदमी कौन था”? रामानुजन को अकेले रहना पसंद था. जहां दूसरे बच्चे बाहर खेलने के लिए मौका मिलते ही तुरंत भाग जाते वहीँ रामानुजन को घर पर समय बिताना अच्छा लगता था.

उन्हें स्पोर्ट्स में कोई रूचि नहीं थी. शायद यही कारण था कि वो थोड़े मोटे थे. वो अपनी माँ से अक्सर कहते कि अगर किसी दिन उनका किसी बच्चे से झगड़ा हो गया तो उन्हें लड़ने की ज़रुरत ही नहीं पड़ेगी, वो बस उस पर बैठ जाएँगे और उसका काम तमाम हो जाएगा.

रामानुजन कंगायन प्राइमरी स्कूल में पढ़ते थे. वहाँ उन्होंने बहुत कम उम्र में इंग्लिश बोलना सीख लिया था. जब वो 10 साल के थे तो उन्होंने प्राइमरी exams पास की.वो पूरी डिस्ट्रिक्ट में फर्स्ट आए थे.

इसके बाद उन्होंने टाउन हाई स्कूल में एडमिशन लिया. वहाँ वो 6 साल तक पढ़े. यहाँ पढ़ाई करना उन्हें सबसे ज़्यादा अच्छा लगा था. वो हर सब्जेक्ट में अव्वल थे ख़ासकर मैथ्स में. एक दिन, मैथ्स टीचर पढ़ा रही थीं कि अगर किसी भी नंबर को ख़ुद से डिवाइड करो तो उसका जवाब हमेशा 1 होता है. यानी अगर एक हज़ार फल हैं और उन्हें एक हज़ार लोगों में डिवाइड किया जाए तो सबको एक एक फल मिलेगा.

तभी अचानक रामानुजन बोले, “अगर ज़ीरो को ज़ीरो से डिवाइड किया जाए तो क्या तब भी आंसर 1 होगा? अगर आप फल को किसी में डिवाइड नहीं करेंगे तो किसी को 1 भी फल कैसे मिलेगा?” कम उम्र में भी उनके सवालों में लॉजिक होता था.

रामानुजन के परिवार में पैसों की तंगी थी इसलिए वो किरायदार रखते थे. जब रामानुजन 11 साल के थे तो दो ब्राह्मण लड़के उनके परिवार के साथ रहने के लिए आए. वो पास के गवर्नमेंट कॉलेज में स्टूडेंट थे. उन लड़कों ने मैथ्स में रामानुजन की दिलचस्पी देखकर उसे पढ़ाना शुरू किया. लेकिन कुछ ही महीनों में रामानुजन ने उनसे सब कुछ सीख लिया था. इसके बाद वो उन्हें कॉलेज की लाइब्रेरी से और मैथ्स की किताबें लाने के लिए कहते.

एक बार, उन लड़कों ने रामानुजन को ट्रीगोनोमेट्री की एक एडवांस बुक दी. सिर्फ़ 13 साल की उम्र में रामानुजन ने उसमें मास्टरी हासिल कर ली थी. उन्होंने क्यूबिक equation और infinite सीरीज के काम्प्लेक्स कांसेप्ट को भी सीख लिया था. उन्हेंπ (पाई)और e के नुमेरिकल वैल्यू में बड़ी दिलचस्पी थी.

रामानुजन अपनी बुद्धि की वजह से अपने स्कूल में एक सेलेब्रिटी बन गए थे.दूसरे लोगों से वो काफ़ी अलग थे, कोई भी उन्हें पूरी तरह समझ नहीं पाया था.लेकिन हर कोई उनकी बुद्धि और उनके सवाल सुनकर चकित रह जाता, सब के मन में उनके लिए बहुत सम्मान था. उन्हें स्कूल में academic एक्सीलेंस के लिए कई सर्टिफिकेट भी मिले.

ग्रेजुएशन सेरेमनी के दिन, स्कूल के हेडमास्टर ने उन्हें मैथमेटिक्स के लिए जो सबसे ऊँचा अवार्ड होता है उससे सम्मानित किया. उन्होंने रामानुजन को ऑडियंस से introduce कराया और कहा कि “ये लड़का 100% या A+ से भी ज़्यादा deserve करता है. मैथ्स में इसकी कोई बराबरी नहीं कर सकता”

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एनफ इज़ एनफ (Enough is Enough)

रामानुजन हाई स्कूल में एक आल-राउंडर थे. उन्हें गवर्नमेंट कॉलेज में स्कॉलरशिप मिली थी. लेकिन मैथ्स में उनकी रूचि इतनी ज़्यादा हो गई थी कि वो दूसरे सब्जेक्ट को नज़रंदाज़ करने लगे.उन्हें इंग्लिश, फिजियोलॉजी, ग्रीक या रोमन हिस्ट्री पढ़ने में बिलकुल इंटरेस्ट नहीं था.जिस वजह से वो इन सभी सब्जेक्ट्स में फेल हो गए. वो स्कूल में सारा वक़्त मैथ्स के प्रॉब्लम सोल्व करने में बिता देते.ना वो क्लास के लेसन में ध्यान देते और ना किसी डिस्कशन में हिस्सा लेते. हर वक़्त वो बस अलजेब्रा, ज्योमेट्री और ट्रीगोनोमेट्री की किताबों में खोये रहते.

उनके इस रवैये के कारण उन्होंने स्कॉलरशिप भी खो दी थी क्योंकि मैथ्स के अलावा दूसरे सब्जेक्ट्स में उनके नंबर नहुत ख़राब थे. उन्होंने कुछ समय तक स्कूल जाने की कोशिश भी की लेकिन वहाँ प्रेशर बहुत ज़्यादा था. 17 साल की उम्र में रामानुजन घर से भाग गए थे.

एक साल बाद उन्होंने फ़िर से पचायप्पा कॉलेज में फर्स्ट आर्ट्स या (FA) डिग्री के लिए एडमिशन लिया.उनके नए मैथ्स टीचर ने जब उनकी नोटबुक देखी तो चकित हो गए. वो मैथ्स की प्रॉब्लम सोल्व करने के लिए रामानुजन के साथ ज़्यादा वक़्त बिताने लगे. जिस प्रॉब्लम को उनके टीचर 12 स्टेप्स में सोल्व करते, उसे रामानुजन तीन स्टेप्स में ही सोल्व कर देते थे.

एक सीनियर मैथ्स के प्रोफेसर ने भी उनके टैलेंट को नोटिस किया. उन्होंने रामानुजन को मैथ्स के जर्नल में दिए गए प्रोब्लम्स को सोल्व करने के लिए encourage किया.अगर रामानुजन किसी प्रॉब्लम को सोल्व नहीं कर पाते तो वो उसे प्रोफेसर को सोल्व करने दे देते थे. लेकिन आश्चर्य की बात तो ये थी कि जो सवाल रामानुजन सोल्व नहीं कर पाते, उसे उनके प्रोफेसर तक सोल्व नहीं कर पाते थे.

गवर्नमेंट कॉलेज में भी यही सिलसिला कायम रहा. सभी जानते थे कि रामानुजन मैथ्स के जीनियस थे. वो तीन घंटे के मैथ्स के exam को सिर्फ़ 30 मिनट में पूरा कर देते थे. लेकिन फ़िर से वो बाकि सबसब्जेक्ट्स में फेल हो गए.

एक बार,फिजियोलॉजी सब्जेक्ट के एग्जाम में digestive सिस्टम के बारे में पूछा गया. रामानुजन ने बिना जवाब लिखे, बिना अपना लिखे exam शीट वापस कर दी. उन्होंने शीट पर सिर्फ़ इतना लिखा था, “सर, मैं digestion के चैप्टर को डाइजेस्ट नहीं कर पाया”. प्रोफेसर ये पढ़ते ही समझ गए कि ये किसने लिखा था.

रामानुजन FA के exam में फेल हो गए थे. उन्होंने अगले साल दोबारा कोशिश की लेकिन वो फ़िर फेल हो गए. सभी जानते थे कि रामानुजन एक गिफ्टेड इंसान थे लेकिन एजुकेशन सिस्टम के कुछ रूल्स थे इसलिए कोई कुछ नहीं कर सकता था.

फ़िर उन्होंने कुछ स्टूडेंट्स को मैथ्स में tution देने की कोशिश की लेकिन किताबों में दिए गए स्टेप्स से वो कभी सहमत ही नहीं हुए. रामानुजन उसे अपने तरीके से सोल्व करते. 20 साल की उम्र में ना उनके पास कोई जॉब थी, ना कोई डिग्री और ना लाइफ में कोई डायरेक्शन. वो अपना ज़्यादातर समय घर की छत पर बैठे मैथ्स के प्रॉब्लम सोल्व करते हुए बिताते थे. उनके पास से ना जाने कितने लोग गुज़र जाते लेकिन वो बस अपने equation और थ्योरम की दुनिया में मगन रहते.

उनके माता पिता उन्हें समझते थे लेकिन धीरे धीरे उनके सब्र का बाँध टूटने लगा. एक दिन उनकी माँ ने कहा कि बस बहुत हुआ. उन्होंने रामानुजन को कुछ ऐसा करने के लिए कहा जिसे एक साइकोलोजिस्ट “टाइम टेस्टेड इंडियन साइकोथेरपी” कहते हैं. कुछ समझे आप? वो कुछ और नहीं बल्कि अरेंज मैरिज की बात कर रही थीं.

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सर्च फ़ॉर पेट्रंस(Search for Patrons)

एक दिन, रामानुजन की माँ कुछ दोस्तों से मिलने दूसरे गाँव गईं. वहाँ उन्होंने 9 साल की एक लड़की को देखा जिसका बड़ा प्यारा सा चेहरा था और शरारती आँखें थीं. उसका नाम जानकी था. उन्होंने लड़की की कुंडली मांगी और उसे रामानुजन की कुंडली से मिलाने लगीं. उन्होंने सोचा कि रामानुजन के साथ उसकी जोड़ी बहुत अच्छी रहेगी इसलिए उन्होंने जानकी के परिवार से बात चलाई.

जानकी का परिवार गरीब था और वो दहेज़ में बस कुछ तांबे के बर्तन ही दे सकते थे. जानकी उनकी पांच बेटियों में से एक थी. रामानुजन जवान थे लेकिन ना उनके पास जॉब थी और ना ही कोई डिग्री. उनका परिवार भी गरीब था लेकिन उनकी माँ ने बड़े गर्व से उन्हें बताया कि उनका बेटा मैथ्स का जीनियस था.

शादी के दिन, रामानुजन और उनकी माँ को देर हो गई. जिस ट्रेन से वो आ रहे थे उसने वहाँ पहुँचने में घंटों लगा दिए. इसलिए वो जानकी के घर रात 1 एक बजे पहुंचें. इस शादी में कुछ और बुरी घटनाएँ भी घटी लेकिन फ़िर भी रामानुजन की माँ इस शादी से खुश थी. इस तरह, 22 साल की उम्र में रामानुजन की शादी हुई.
शादी होने के बाद अब वो पूरे दिन घर पर नहीं बैठ सकते थे इसलिए एक अच्छे मौके या जॉब की तलाश में रामानुजन निकल पड़े.

पहले वो मद्रास गए. उन्होंने घर-घर जाकर दोस्तों से मदद मांगी. उनके पास अपनी टैलेंट का बस एक ही सबूत था, उनके नोटबुक्स जिसमें उन्होंने मैथ्स के अनगिनत प्रॉब्लम सोल्व किये थे और कई थ्योरम लिखे थे. वो उनके लिए बहुत ख़ास थे.लेकिन ये रास्ता उनके लिए आसान नहीं था क्योंकि उनके पास कोई डिग्री नहीं थी जिस वजह से कई लोगों ने उन्हें रिजेक्ट कर दिया था.

चंद लोग ही थे जिन्होंने रामानुजन के पोटेंशियल को पहचाना और उन्हें एक मौका दिया. उनमें से एक थे रामचंद्र राव जो इंडियन मैथमेटिकल सोसाइटी के डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर और सेक्रेटरी थे.राव ने उन्हें कोई जॉब नहीं दी बल्कि स्कॉलरशिप दी ताकि रामानुजन इंडियन मैथमेटिकल सोसाइटी के जर्नल के लिए लिख सकें. इस काम के लिए वो उन्हें हर महीने 25 रूपए देते थे.

रामानुजन ने जर्नल के लिए कुछ रिसर्च पेपर्स और कुछ इंटरेस्टिंग मैथ्स के सवाल लिखे. धीरे-धीरे सबका ध्यान उनकी ओर जाने लगा. मद्रास में समुद्र के पास रहना उन्हें बड़ा अच्छा लगता था. एक बार रामानुजन से बोर्डिंग हाउस में उनके एक दोस्त मिलने आए. उसने कहा, “रामानुज, सब तुम्हें जीनियस कहते हैं”. रामानुजन ने कहा, “मैं कोई जीनियस नहीं हूँ . मेरी कोहनी को देखो, ये तुम्हें मेरी कहानी बता देगा”. उनकी कोहनी इंक के कारण काली हो गई थी. वो बोर्ड पर लिखे equation को मिटाने के लिए उसका इस्तेमाल करते थे.

उनके दोस्त ने पूछा, “तुम पेपर का इस्तेमाल क्यों नहीं करते”? रामानुजन ने कहा कि पेपर खरीदने की उनकी हैसियत नहीं थी. उन पैसों को वो खाना खरीदने के लिए बचाकर रखना चाहते थे.कभी-कभी वो पहले से इस्तेमाल किये हुए पेपर पर लाल इंक से लिखा करते थे.

ऐसे ही एक चीज़ से दूसरी चीज़ का रास्ता बनता गया और रामानुजन ने मद्रास पोर्ट ऑफ़ ट्रस्ट में काम करना शुरू कर दिया.उन्हें ऑफिसर इन चार्ज सर फ़्रांसीस स्प्रिंग और सेकंड इन कमांड नारायण अय्यर ने जॉब पर रखा था. उन्हें एकाउंटिंग क्लर्क की पोजीशन दी गई  जिसके लिए उन्हें महीने के 30 रूपए मिलते थे.

सर फ़्रांसीस और नारायण अय्यर दोनों उनके प्रति बड़े दयालु थे.जब ज़्यादा काम नहीं होता तो वो उन्हें मैथ्स के प्रॉब्लम सोल्व करने की इजाज़त दे देते. वो कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के mathematicians के लिए लिखे जाने वाले लैटर का ड्राफ्ट तैयार करने में भी उनकी मदद करते.

सर फ़्रांसीस के ज़रिए, ब्रिटिश ऑफिसर्स को रामानुजन के एक्स्ट्रा आर्डिनरी टैलेंट के बारे में पता चला. लेकिन वो फ़ैसला नहीं कर पा रहे थे कि उन्हें क्या करना चाहिए. उनमें से कुछ को लगता था कि रामानुजन पागल थे. उनमें से कुछ ने सलाह दी कि अगर भारत में रामानुजन को कोई नहीं समझता तो उन्हें कैंब्रिज में बेहतर सपोर्ट और ट्रेनिंग मिल सकती है. रामानुजन ने कैंब्रिज में अपने काम के सैंपल के साथ लैटर भेजे. वहाँ के दो mathematicians ने उन्हें रिजेक्ट कर दिया. सिर्फ़ एक ने हाँ कहाँ, उनका नाम जी.एच. हार्डी था.

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