(Hindi) The Lucifer Effect

(Hindi) The Lucifer Effect

इंट्रोडक्शन(Introduction)

द स्टैण्डर्ड प्रिजन एक्सपेरिमेंट साइकोलॉजी के फील्ड में एक पॉपुलर रिसर्च स्टडी है.इस बुक के ऑथर डॉ. फ़िलिप ने इसे लीड किया था. इस स्टडी में कॉलेज के 24 स्टूडेंट्स ने आगे बढ़ कर हिस्सा लिया. उन्हें एक बॉक्स से पेपर निकालने के लिए कहा गया जिस पर वो रोल लिखा था जो उन्हें निभाना था.

12 स्टूडेंट्स जेल के गार्ड्स बने थे और बाकि 12 कैदी. साइकोलॉजी डिपार्टमेंट के बेसमेंट को कुछ समय के लिए जेल का रूप दे दिया गया जहाँ उन सब को दो हफ़्ते रहना था. इस स्टडी का मकसद था जेल के माहौल में कैद लोगों के व्यवहार को स्टडी करना.

डॉ. फ़िलिप और उनके कुछ ग्रेजुएट असिस्टेंट ने वहाँ कैमरा इनस्टॉल करवाए ताकि वहाँ होने वाली हर वारदात पर चौबीसों घंटे निगरानी की जा सके. आगे जो हुआ उसने सब को हिला कर रख दिया. गार्ड्स का रोल अदा कर रहे स्टूडेंट्स अपने कैरेक्टर के गहराई में चले गए और अपने पॉवर और ताकत का नाजायज़ फ़ायदा उठाने लगे. तो वहीँ दूसरी ओर कैदी बने स्टूडेंट्स कमज़ोर और असहाय होने लगे थे.

दिन गुज़रने के साथ-साथ कैदियों के साथ फिजिकल और सेक्सुअल एब्यूज जैसी दर्दनाक घटनाएं सामने आने लगीं. गार्ड्स बेरहम होने लगे. वो कैदियों को कपडे उतारने, हाथों से टॉयलेट साफ़ करने के लिए मजबूर करने लगे थे.इस टार्चर की वजह से कई कैदी सदमे का शिकार होने लगे.सिचुएशन इतनी बिगड़ गई कि डॉ. फ़िलिप को मजबूर होकर सिर्फ़ 6 दिनों के बाद ही इस एक्सपेरिमेंट को बंद करना पड़ा.

इस बुक में आप ऐसी ही कुछ घटनाओं के बारे में जानेंगे. ये बुराई और पाप किस वजह से जन्म लेते हैं? क्यों एक इंसान दूसरों को चोट पहुंचाना शुरू कर देता है. क्यों कुछ लोग रेप, मर्डर, टार्चर जैसी दरिंदगी पर उतर आते हैं? क्या ये उन choices के कारण है जो एक इंसान ख़ुद चुनता है या इन सब के पीछे कोई बहुत शक्तिशाली ताकत है?

इस बुक में आप बुराई के पीछे की ताकतों के बारे में जानेंगे. आप जान कर हैरान रह जाएंगे कि आख़िर इंसान किस हद तक जा सकता है.
अगर आप उस स्टैनफ़ोर्ड प्रिजन एक्सपेरिमेंट का हिस्सा होते तो क्या आप उन गार्ड्स की तरह बर्ताव करते जिन्हें अपने पॉवर का नशा हो गया था ? क्या आप उन कैदियों पर दादागिरी और धौंस जमाते? या आप उन कैदियों की तरह होते जो सब कुछ सहते रहे?

या आप एक हीरो की तरह होते जिसे सब साफ़-साफ़ दिख रहा था कि कुछ तो बहुत गलत हो रहा है और चुप बैठने के बजाय आप कोई ना कोई एक्शन लेने का फ़ैसला करते फ़िर चाहे इसके लिए आपको कोई भी कीमत क्यों ना चुकानी पड़ती?

यह बुक आपको अपने और अपने आस पास के लोगों के बारे में सोचने पर मजबूर कर देगी. आप माने या ना मानें, हम सब के अंदर एक शैतान छुपा होता है जो हमसे गलत काम करवाता है.ये तो बस सिचुएशन और उन शक्तियों पर डिपेंड करता है जो हमें ऐसा करने के लिए मजबूर करते हैं.

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द साइकोलॉजी ऑफ़ ईविल (The Psychology of Evil)

क्या आप जानते हैं कि बुराई का भी एक फ़ॉर्मूला होता है. हिस्ट्री के किसी भी हैवानियत से भरे किस्से को उठाकर देख लीजिये ये फैक्टर्स आपको हर किस्से में मिलेंगे. हम यहाँ शराब, ड्रग्स या किसी भी तरह के नशे की बात नहीं कर रहे हैं. ना ही हम किसी तिलस्मी जादू या हिपनोसिस की बात कर रहे हैं.

ये फैक्टर्स हमारे ह्यूमन नेचर में ही गहरे छुपे हुए होतेहैं इसलिए ये सभी उम्र, धर्म के लोगों पर अपना असर डालते हैं. कोई भी कभी भी कोई बुरा काम करके आपको चौंका सकता है. यहाँ तक कि एक अच्छे स्वभाव वाला शांति पसंद इंसान भी ऐसा करके आपको हैरान कर सकता है. तो आइए एक एक करके इन फैक्टर्स के बारे में जानते हैं.

पहला फैक्टर है अनोनिमिटी यानी गुमनामी. इसका मतलब होता है जब हमारी असली पहचान छुपी होती है. जब लोग किसी तरह का यूनिफार्म, मास्क पहनते हैं या भेष बदलते हैं तो वो बुराई करने के लिए ज़्यादा शक्तिशाली महसूस करते हैं. जब उनकी पहचान छुपी होती है तो उनमें दूसरों को चोट पहुंचाने की ज़्यादा इच्छा होने लगती है.

दूसरा है कंफोर्मिटी. ये एक बहुत पावरफुल फैक्टर है जो लोगों को उकसाता है. हर इंसान की इच्छा होती है कि उसे अपनाया जाए. इसलिए हम कुछ कायदे कानून भी फॉलो करते हैं ताकि हम सोसाइटी का एक हिस्सा बन सकें. हम पसंद किये जाने और इस acceptance के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं.

तीसरा है अथॉरिटी और obedience (आज्ञा का पालन ). इंसान को अथॉरिटी के आर्डर को फॉलो करना ही पड़ता है. इसमें वो कुछ नहीं कर सकता. इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि उस अथॉरिटी के पास वैलिड पॉवर या पोजीशन है या नहीं. जब तक उसके पास पॉवर है तब तक लोगों को उसका हुक्म मानना ही पड़ता है फ़िर चाहे वो काम कितना भी बुरा क्यों ना हो.

चौथा है dehumanization यानी जब हम किसी को इंसान समझना ही बंद कर देते हैं और उनसे इंसान होने का हक़ भी छीन लेते हैं. ये एक ऐसी मानसिकता है जो दूसरों को दुश्मन के रूप में, जानवर के रूप में या सिर्फ़ सामान के रूप में नीची नज़र से देखते हैं. एक बार जब आप किसी पर अपने से अलग, अपने से छोटा या नीचे होने का लेबल लगा देते हैं तो उन्हें सताना काफ़ी आसान हो जाता है.

पांचवा है सिचुएशन और सिस्टम. जब आपको एक अथॉरिटी के पोजीशन में रखा जाता है और आपको बुराई करने की पॉवर दी जाती है तो आप अपने से कमज़ोर पर ऐसी हैवानियत करने लगते हैं जिसकी आपने कभी कल्पना भी नहीं की होगी.और बिलकुल यही होता है किसी भी जेल में, मिलिट्री कैंप में, लड़ाइयों में.

ये सिस्टम ही हम पर हावी होने लगता है. ये नहीं कहा जा सकता कि बस दो चार ही दुष्ट लोग हैं क्योंकि ये बुराई और पाप इस सिस्टम में जड़ पकड़ कर बैठा है. टार्चर और बुराई करने का ये प्रभाव ऊँचें ऊँचें रैंक से आता है.

अगले कुछ चैप्टर्स में आप क्रूरता के बारे में गहराई से जानेंगे और समझेंगे कि इसका जन्म कैसे होता है.आपको एहसास होगा कि आपके पडोसी, दोस्त, रिश्तेदार या आप ख़ुद भी एक निर्दयी इंसान हो सकते हैं.

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रवांडन जेनोसाइड (Rwandan Genocide)

सेंट्रल अफ्रीका के रवांडा में दो कबीले (ट्राइब्स) हुतू और तुत्सी एक साथ रहते थे.हुतू की संख्या ज़्यादा होने से वो मजोरिटी थे और तुत्सी माइनॉरिटी. दोनों कबीलों की भाषा और धर्म एक थे. सदियों से उनका एक दूसरे के कबीले में शादि करने की प्रथा चली आ रही थी. लेकिन 1994 में एक सिविल वॉर हुआ जिसने इन कबीलों को अलग कर दिया.

स्प्रिंग का सुहाना मौसम शुरू हुआ लेकिन उन तीन महीनों में दुनिया के सामने बड़ा ही  भयानक मंज़र सामने आया. हुतू कबीले के लोगों ने तुत्सी की औरतों और बच्चों का रेप करना शुरू कर दिया था. तुत्सी के जवानो द्वारा बूढ़े, बच्चों की निर्मम ह्त्या की जाने लगी. इस नरसंहार से तुत्सी कबीले के तीन-चौथाई लोग अपनी जान गवा चुके थे यानी10 लाख से 2.50 लाख लोग रह गए थे.

रवांडा की सरकार ने हुतू लोगों के मन में ज़हर भर दिया थाकि तुत्सी उनके कट्टर दुश्मन हैं. वो इंसान नहीं बल्कि बेकार और नीच लोग हैं जिन्हें कॉकरोच की तरह अपने घर से निकाल कर मसल देना चाहिए.इससे हुतू ख़ुद को बड़ा समझने लगे. उन्होंने चाक़ू, राइफल और न जाने किन किन हथियारों से खून की नदियाँ बहा दी. 2,50,000 से ज़्यादा तुत्सी औरतों के शरीर को बुरी तरह नोच डाला गया.

ये मंज़र इतना खौफ़नाक था कि एक हुतू माँ ने पास के घर में रहने वाले मासूम तुत्सी बच्चों को पीट-पीट कर मार डाला. जब उन बच्चों ने उसे देखा तो वो स्तब्ध रह गए क्योंकि जहाँ तक उन्हें याद था वो बचपन से एक दूसरे के पड़ोसी थे.

हुतू लीडर मेयर कैकुम्बिबी ने अपने ही तुत्सी दोस्त की बेटी का रेप किया. लेकिन वो इतने में ही रुका नहीं बल्कि उसने अपने साथियों को भी उसका रेप करने दिया.

फ़िर एक दिन एक सोशल वर्कर, पॉलीन ने बड़ी चतुराई से तुत्सी कबीले के लोगों को एक स्टेडियम में इकट्ठा किया. उसने उन्हें बताया कि Red Cross के वालंटियर्स उन्हें खाना और सुरक्षा देने के लिए आए हैं. लेकिन सच्चाई तो ये थी कि हुतू के लोग वहाँ राइफल, bomb और पूरी तैयारी के साथ उन्हें मारने के लिए पहले से ही वहाँ इंतज़ार कर रहे थे.

पॉलीन इतनी क्रूर हो गई कि उसने हुतू लड़कों से ये भी कहा कि तुत्सी औरतों को जिंदा जलाने से पहले उनका रेप करे.तभी एक हुतू नौजवान ने कहा कि वो पूरा दिन लोगों को काटते और मारते हुए बहुत थक गए थे और उनमें रेप करने की एनर्जी नहीं थी इसलिए उन सब ने गैसोलीन उठाया, तुत्सी औरतों पर डाला और उन्हें जिंदा आग लगा दिया.

हुतू कबीले के आदमियों ने एक के बाद एक बहुत से दुष्कर्म किए. दिल देहला देने वाले तरीकों से उन्हें सड़कों पर टार्चर किया. तुत्सी औरतों के शरीर को जानवरों की तरह नोचा गया. किसी को गोलियों से भूना गया तो किसी के अंदर पूरा भाला उतार दिया गया. किसी पर एसिड फेकी गई तो किसी पर उबलता हुआ पानी. हदें तो तब पार हुई जब उनके प्राइवेट पार्ट्स तक को या तो काट दिया गया या बुरी तरह ज़ख़्मी कर दिया गया.

लेकिन रवांडा का ये नरसंहार हुआ कैसे ? कैसे हुतू कबीले के साधारण लोग हैवान और दरिन्दों में बदल कर अपने ही तुत्सी पड़ोसियों को निर्ममता से मारने लगे? तो इसका पहला कारण है, अथॉरिटी का पॉवर यानी सत्ता का रौब. हुतू के लीडरशिप वाली सरकार ने लोगों को ये हिंसा करने के लिए उकसाया था.

दूसरा फैक्टर है सोसाइटी में अपनाए जाने की इच्छा. एक सच्चा और वफ़ादार हुतू माने जाने के लिए उन सबको उस नरसंहार में हिस्सा लेना ज़रूरी था.यहाँ हमारा कबीला और उनका कबीला जैसी भावना ने जन्म ले लिया था.लोगों को मजबूर किया गया कि अगर आप एक सच्चे हुतू हैं तो आपको बाहर जाकर दुश्मन को मारना होगा. लेकिन अगर आप हिचकिचाते हैं तो आपको अपने ही कबीले से निकाल दिया जाएगा.

तीसरा, हुतू ने तुत्सियों को इंसान समझना बंद कर दिया था.उन्हें रवांडा में रेंगने वाले कीड़े समझा जाने लगा. उन्हें ही हर फ़साद का जड़ बताया जाने लगा. सिविल वॉर की शुरुआत का दोष उन पर लगा दिया गया. इसलिए तुत्सी के लोग अब सिर्फ़ एक चीज़ के हकदार थे – मौत.

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