(Hindi) The Gospel of Wealth

(Hindi) The Gospel of Wealth

इंट्रोडक्शन

आप अमीर लोगों के बारे में क्या सोचते हैं? क्या उन्हें अपनी दौलत बाकी दुनिया में  बाँट देनी चाहिए? या ऐसा कदम आम जनता को आलसी बना सकता हैं?
एंड्रू कार्नेगी के दिमाग में ऐसे विचार दौड़ते रहते हैं. अगर सारे अमीर  लोगों ने अपने सारे पैसे बाँट दिए, तो क्या ये दुनिया एक बेहतर जगह बन जाएगी ?
इस बुक में, आप अमीर और गरीब के बीच की खाई के बारे में जानेंगे. आप सीखेंगे कि ये गैप सभी के लिए एक विन विन सिचुएशन कैसे है. सबसे ज़रूरी बात, ये इंसानियत की भलाई के लिए एक ज़रूरी टूल हैं.
तो क्या आप ' गॉस्पल  ऑफ़ वेल्थ' को सुनने के लिए तैयार हैं?

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दौलत

जब भी धन-दौलत की बात आती हैं, तो ये ज़ाहिर हैं कि ये सब लोगों के बीच बराबर बँटा हुआ नहीं हैं. कुछ के पास बहुत ज़्यादा हैं तो कईयों के पास दौलत होती ही नहीं हैं. कार्नेगी ने बताया कि कैसे दौलत को सही ढंग से सब में बराबर बँटना चाहिए ताकि अमीर और गरीब मिल जुल कर रह सकें.

आज आप जैसे रहते हैं, वो उससे बिलकुल अलग है जैसे एक हजार साल पहले लोग रहा करते थे. आपके पूर्वजों ने ज़िंदा रहने के लिए हर चीज़ या resource को दूसरों से बांटा जैसे कि उन्होंने जो भी खाया-पिया दूसरों ने भी वही खाया.

जैसे-जैसे हमारी सभ्यता यानि सिविलाइज़ेशन ने प्रोग्रेस किया, लोगों के बीच का गैप बढ़ता चला गया. कुछ ऐसे लोग थे जो एक शानदार ज़िंदगी जीते थे और कुछ की ज़िंदगी साधारण थी. लेकिन अब तो ये गैप काफी गहरा हो गया हैं जो साफ़-साफ़ दिखाई भी देता हैं. कार्नेगी को इसमें फायदा ही दिखा.

उनके लिए अमीर और गरीब के बीच का अंतर होना जरूरी हैं. कार्नेगी इसकी तुलना घरों से करते हैं. मान लीजिए कि एक बंजर ज़मीन पर कई सौ साधारण से घर बने हैं. फिर, इन घरों के बीच में एक बड़ी हवेली हैं. इस हवेली में दुनिया की सबसे बढ़िया पेंटिंग, किताबें और आर्ट रखे हुए हैं. ये हवेली सिविलाइज़ेशन का ही प्रतीक हैं. घरों और लोगों के साथ सब कुछ अच्छा  होना चाहिए. और, लोगों के लिए सबसे अच्छा उसके पास दौलत का होना ही है.

ये बात सुनने में गलत लग सकती है, लेकिन कार्नेगी के पास इसके लिए एक एक्सप्लनेशन हैं. इन सालों में, इंसानियत ने बड़ी लम्बी छलांग लगाई हैं. ये कहना ठीक होगा कि शुरुवात में इंसानियत का मतलब बहुत ही साधारण सा था. एग्जाम्पल के लिए, एक गुरु और उसके शिष्य को लेते हैं. सालों पहले, ये दोनों एक साथ ही काम करते थे. गुरु अपने शिष्य को पढ़ाते थे. बदले में, शिष्य अपने गुरु की हर तरह से मदद करते थे. साल बीतते और शिष्य खुद ही एक मास्टर या गुरु  बन जाता. फिर सिखाने के लिए वो भी एक शिष्य को चुनता और,  फिर से वही साईकल शुरू हो जाता.

यही ज़िंदगी थी. हम एक दूसरे की मदद करते थे. इस सिस्टम से काफी लोगों को फायदा पहुँचता था. एक गरीब आदमी वो कर सकता था जो वो आम तौर पर नहीं पाता था. कभी-कभी, एक किसान के पास जमींदार से ज़्यादा जायदाद होती थी.

लेकिन दूसरों को मदद करने वाले इस सिस्टम से इकॉनमी को कोई फायदा नहीं पहुंच सकता था. इस तरह, ‘मुकाबले का कानून’- ‘Law of Competition’ पैदा हुआ. अब मालिक नहीं चाहते थे कि उनके नीचे काम करने वाले लोगों के पास उनसे ज़्यादा दौलत हो. इस कारण मज़दूरी के पैसे भी कम कर दिए गए. गरीब और अमीर के बीच के रिश्ते में तनाव आ गया था.

इस मुकाबले से छुटकारा पाना नामुमकीन है और, यही इंसानियत कायम करने के लिए सही हालात बनाता हैं. ये, असल में ' सर्वाइवल ऑफ़ द फिटेस्ट' ही हैं. जो दूसरों से ज़्यादा लायक हैं, वही अपनी मर्ज़ी के मुताबिक जी सकता हैं. जो जीतें, उसकी ही बात मानी जाए. अगर आप काम करते हैं,  तो ही आपको पैसे मिलेंगे. काफी लोगों ने इस सिस्टम से छुटकारा पाने की कोशिश की. इन लोगों का कहना हैं कि सोसाइटी को क्लास में नहीं बांटना चाहिए. कोई भी न तो अमीर और कोई भी गरीब नहीं होना चाहिए. लेकिन ये सही नहीं हैं. इंसानियत की जड़ें बहुत गहरी और मज़बूती से बैठी हुई हैं. सोसाइटी में लोगों के बीच बने गैप के कारण ही इंसानियत  आगे बढ़ती है. हमारे बीच मुकाबला होने कि वजह से ही हम एक दूसरे से बेहतर होने की कोशिश करते हैं.

लेकिन इसका मतलब ये नहीं हैं कि दौलत बांटना एक बुरी सोच हैं. कभी कभार ऐसा भी होता हैं जब किसी के पास ज़रूरत से ज़्यादा दौलत होती  हैं. तो उस अमीर शख्स को क्या करना चाहिए?

कार्नेगी का कहना हैं कि एक्स्ट्रा या सरप्लस दौलत को बांटने के तीन तरीके हैं. पहला, दौलत उस अमीर आदमी के वारिस को दिया जा सकता हैं. दूसरा, इसे पब्लिक प्रॉपर्टी और जगहों को बेहतर बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता हैं. तीसरा, जिसकी दौलत हैं, वो जैसे जिसे चाहे बाँट सकता हैं.

पहला तरीका सबसे कॉमन हैं. अक्सर कई सारे देश इसी को मानते हैं. इसमें, बड़े बेटे को सारा पैसा और संपत्ति मिलता हैं. ये माँ-बाप के लिए भी अच्छी बात होती हैं. लेकिन विरासत में दौलत मिलना इतना आसान नहीं हैं जितना कि लगता हैं. काफी लोग अपनी नई-नई  मिले संपत्ति को ढंग से संभाल नहीं पाते हैं. उन्हें लगता हैं कि दौलत खत्म नहीं हो सकती. लेकिन वे खुद ही इसे खत्म कर देते हैं.

क्या इस तरह से विरासत में मिली दौलत बच्चों के लिए बोझ नहीं हैं? अक्सर, ये फायदा देने से ज़्यादा नुकसान देती हैं. इसलिए, अपनी  सारी दौलत विरासत में छोड़ना समझदारी नहीं हैं. अपने फैमिली को दौलत बांटकर उनकी मदद करना ठीक हैं पर उन्हें उतना ही देना चाहिए जितना वे संभाल सकें. उससे ज़्यादा देना एक गलती साबित हो सकता हैं. इसे लिमिट में ही करना चाहिए.

दूसरा तरीका बहुत ज़्यादा आइडियल तो नहीं हैं क्योंकि इसमें अमीर आदमी के गुज़र जाने के बाद उनकी दौलत का बंटवारा हो सकता हैं. लेकिन क्या उन्हें इस बात का पता नहीं होना चाहिए कि उनकी दौलत का सही इस्तेमाल हो रहा हैं या नहीं. इसके अलावा, मौत के बाद छोड़ी गई विरासत पर भारी टैक्स भी लग सकता हैं. इसके लिए बेहतर होगा कि ज़िंदा रहते हुए ही अपने विरासत के बारे में डिसिशन कर लें.

तीसरा तरीका एक बहुत क्लियर सोल्युशन हैं. ये गरीब और अमीर के बीच अच्छे रिश्तों के लिए रास्ता बनाता हैं. तीसरा तरीका ही वो परफेक्ट सिचुएशन पैदा कर सकता हैं जिसमें इंसानियत फलती-फूलती हैं. इस तरह दौलत को बांटने से बहुत लोगों का फायदा होता हैं. लेकिन इसे धीरे-धीरे ही बांटना चाहिए.  हो सके तो कई साल लगाकर इसे बांटना चाहिए.

तो, अमीर लोग दूसरों की भलाई के लिए जो कर सकते हैं, उसका सबसे बेहतरीन तरीका हैं अपने एक्स्ट्रा सरप्लस दौलत को बांटने का सही इंतज़ाम करना. इसमें आम जनता के फायदे का ध्यान रखा जाए. जिनके पास बिलकुल भी पैसे नहीं हैं, जो गरीब हैं, उन्हें सबसे ज़्यादा फायदा पहुँचाया जाए. पैसे वाले लोगों के पास सब तरह के सहूलियतें होते हैं इसलिए उनके कुछ फ़र्ज़ होते हैं. सबसे पहले, उन्हें बिलकुल सिंपल लाइफ जीना चाहिए. उनके नाम की कोई आलीशान चीज नहीं होनी चाहिए. अपने पास पड़ी बाकी पैसों के लिए, उसका फ़र्ज़ बनता हैं कि वे लोगों की भलाई के लिए इसका इस्तेमाल करे. ऐसे दौलतमंद लोगों के पास ज़्यादा एक्सपीरियंस और समझदारी होती हैं. उन्हें अपने दौलत का इस्तेमाल उन लोगों की मदद करने में करना चाहिए जो उनसे कम हैंसियत के हैं.

लेकिन ऐसे एक्स्ट्रा सरप्लस दौलत का हकदार कौन हैं? गरीबों को दान देने में, इस बात पर सोचना चाहिए कि जो लोग खुद की मदद करते हैं, उनकी मदद करनी चाहिए. ये उन लोगों को दान देने का कोई फायदा नहीं हैं जो इन पैसों को बर्बाद करेंगे. हो सकता हैं कि वे पैसों को गलत कामों में ख़र्च कर दें.

जैसा कि हमने बात की हैं, पब्लिक इंस्टीट्यूशन के लिए दौलत छोड़ना सबसे आइडियल तरीका नहीं हैं. हालांकि, ये फिर भी किसी अमीर के दौलत को बांटने का एक अच्छा तरीका हैं. पब्लिक इंस्टीट्यूशन जैसे पार्क और लाइब्रेरी लोगों के लिए, उनका मन बहलाने में बहुत फायदेमंद होते हैं.

अमीर और गरीब इस अरेंजमेंट से मिलजुल कर रहेंगे. इससे अमीर आदमी उन लोगों की देखभाल करेंगे जो गरीब हैं.

अमीर लोगों की एक ज़िम्मेदारी होती हैं,  इंसानियत की देखभाल. उनके पास ऐसा करने का ज़रिया होता हैं. मान लीजिए एक धनवान आदमी की मौत हो जाती हैं. अगर उसने अपने धन को आम लोगों में नहीं बांटा तो उसे सम्मान की नज़रों से नहीं देखा जाएगा. कोई उसकी मौत पर दुःख नहीं जताएगा. उसे कोई याद नहीं करेगा.

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