(Hindi) The God Delusion
इंट्रोडक्शन
आपको अच्छे काम करने के लिए क्या मोटीवेट करता है? क्या आप ऐसा कोई इनाम पाने की इच्छा से करते हैं? या इसलिए करते हैं क्योंकि अगर आप अच्छा काम नहीं करेंगे तो आप ख़ुद को दोषी समझने लगेंगे? अगर आप एक धार्मिक इंसान होंगे तो शायद आप कहेंगे ऐसा इसलिए है क्योंकि भगवान् चाहते हैं कि आप अच्छे बनें. लेकिन असल में भगवान् कितने रियल हैं?
इस बुक में आप जानेंगे कि भगवान् कैसे और क्यों मौजूद नहीं है. आप ये जानेंगे कि इस बुक के ऑथर रिचर्ड ने कई साइंटिफिक स्टडीज के ज़रिए कितनी आसानी से भगवान् के होने के सबूत को झूठा साबित कर दिया. ये जो क्रिएटर है वो रियल है ही नहीं, हम अभी जो कुछ भी एन्जॉय कर रहे हैं तो सब नेचुरल सिलेक्शन के कारण पॉसिबल हुआ है.
हालांकि, ये बुक सिर्फ़ रिलिजन versus साइंस के बारे में नहीं है. नहीं, बल्कि एक ग्रे एरिया है जिसके बारे में रिचर्ड डिस्कस करेंगे. आप जानेंगे कि आखिर रिलिजन है ही क्यों क्योंकि हमारे जिंदा रहने के लिए इसकी कोई सर्वाइवल वैल्यू नहीं है. आप ये भी जान पाएँगे कि अगर हम भगवान् पर विश्वास नहीं भी करते हैं तब भी हम अच्छे कैसे बन सकते हैं.
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A deeply religious non-believer
हर इंसान के लिए भगवान् का अलग-अलग मतलब होता है. धार्मिक लोगों का ये मानना है कि भगवान् वो सुपरनैचुरल एनर्जी है जिन्होंने सब कुछ बनाया है. नोबेल प्राइज विनर और फिजिशियन स्टीवन वेनबर्ग ने भगवान के बारे में एक दिलचस्प बात कही थी. उन्होंने अपनी बुक “Dreams of a Final Theory” में कहा कि लोगों ने लिमिटेड इनफार्मेशन के बेसिस पर भगवान् के बारे में एक कॉमन ओपिनियन बना लिया है. उन्होंने भगवान् को इतना फ्लेक्सिबल बना दिया है कि वो कहते हैं कि भगवान् हर जगह मौजूद है. मान लीजिये कि आप कहते हैं कि भगवान् एनर्जी हैं. तब तो वो आपको कोयले के टुकड़ों में भी मिलेंगे. रिचर्ड ऐसे लोगों को super naturalists कहते हैं. ये वो लोग हैं जो सुपरनैचुरल रिलिजन में विश्वास करते हैं.
अब ऐसे कई जाने माने दिग्गज हैं जिन्होंने अपने काम में भगवान् का नाम इस्तेमाल किया है जिनमें अल्बर्ट आइंस्टाइन और स्टीफेन हॉकिंग का भी नाम आता है. हालांकि , super naturalists ने दावा किया कि ये लोग धार्मिक सिर्फ़ इसलिए थे क्योंकि उन्होंने भगवान् के नाम का ज़िक्र किया था. लेकिन आइंस्टाइन जैसे साइंटिस्ट धार्मिक भावनाओं से बहुत दूर थे., असल में आइंस्टाइन तो नास्तिक थे. आइन्स्टाइन धार्मिक थे लेकिन वो super naturalist नहीं थे. रिचर्ड इस तरह के रिलिजन को Einsteinian religion कहते हैं. Einsteinian religion का मतलब है उस दुनिया को ख़ुशी-ख़ुशी अपनाना जिसमें हम रहते हैं. हम जिन चीज़ों को एन्जॉय कर रहे हैं उन्हें किसी क्रिएटर ने नहीं बनाया है और उसमें कोई सुपरनैचुरल शक्ति का हाथ नहीं है. आइंस्टाइन ने साफ़-साफ़ कह दिया था कि जिस भगवान् की वो बात कर रहे थे वो उस भगवान् से बिलकुल अलग थे जिनमें super naturalist मानते हैं.
तो वो क्या चीज़ थी जो आइंस्टाइन को धार्मिक बनाती थी, वो था इस दुनिया और साइंस के प्रति उनका असीम लगाव. इसलिए आइंस्टाइन एक रिलीजियस नॉन-बिलीवर थे. अब इस पॉइंट पर रिचर्ड ने ज़ोर देकर कहा है कि ये बुक सिर्फ़ सुपरनैचुरल रिलिजन के बारे में बात करेगी.
रिचर्ड पूछते हैं कि रिलिजन के चारों ओर ये सम्मान की इतनी मोटी दीवार क्यों बनी हुई है? जब भगवान् की बात आती है तो डिबेट करना इतना मुश्किल क्यों हो जाता है? अगर आप पूछते हैं कि धर्म के बारे में कोई कुछ बुरा क्यों नहीं बोल सकता तो लोग कहते हैं कि ऐसा करने की इजाज़त नहीं है. क्यों इस बात पर चर्चा कि टैक्स को बढ़ाना चाहिए या नहीं लोगों को बर्दाश्त हो जाता है लेकिन धर्म के बारे में कोई बहस बर्दाश्त नहीं? साथ ही धार्मिक होने का एक ख़ास फ़ायदा भी है. जब भी कोई विवाद सामने आता है तो एक रिलीजियस लीडर या किसी faith के ग्रुप को एक एडवांटेज की guarantee दी जाती है. डोक्टरों या वकीलों की तुलना में इन्हें कोई स्पेशल ट्रीटमेंट क्यों दिया जाता है? आइए एक एग्ज़ाम्पल से समझते हैं.
न्यू मेक्सिको में एक चर्च को ख़ास तरह का एडवांटेज दिया जा रहा था. 2006 में यूनाइटेड स्टेट्स के सुप्रीम कोर्ट ने ये फ़ैसला सुनाया कि इस चर्च को हैलुसीनोजेनिक ड्रग्स लेने की परमिशन दी जाए. उनका मानना था कि चर्च के मेंबर्स भगवान् को सिर्फ़ तभी समझ पाएँगे जब वो नशे की दवाइयां लेंगे. सुप्रीम कोर्ट के लिए ये फ़ैसला चर्च के पक्ष में करने के लिए काफ़ी था क्योंकि वो मानते थे कि ड्रग्स उनकी मदद करेंगे. ठीक एक साल पहले 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुनाया था कि जो भी cannabis नाम के ड्रग्स का इस्तेमाल इलाज के मकसद से करेगा उसे सज़ा दी जाएगी. फ़िर भले ही कैनबिस उन लोगों की बेचैनी को कम करने में कामयाब साबित हुआ हो, जिन्हें कैंसर था और वो कीमोथेरेपी से गुजर रहे थे.
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Arguments for God’s Existence
ऐसा क्या है जो लोगों को ये विश्वास दिलाता है और वो पूरे दिल से मानते हैं कि भगवान् सच में हैं? जाने माने इटालियन फिलोसोफेर थॉमस एक्विनास (Thomas Aquinas) ने इसके लिए 5 सबूत दिए. लेकिन रिचर्ड का कहना है कि ये सबूत असल में कुछ साबित नहीं करते.
पहला सबूत है, unmoved mover. ये कहता है कि कोई चीज़ तब तक हिल नहीं सकती जब तक कोई उसे पहले हिला ना दे. और ऐसा करने वाला इकलौता भगवान् ही है.
दूसरा सबूत है, uncaused cause. चीज़ें ऐसे ही नहीं हो जाती, किसी ना किसी कारण यानी cause से एक इफ़ेक्ट पैदा होता है और वो पहला कारण भगवान् है.
तीसरा सबूत है cosmological argument. ये बात तो तय है कि इस दुनिया में फिजिकल चीज़ें पहले मौजूद नहीं थीं. लेकिन अब वो कैसे मौजूद हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि एक नॉन फिजिकल एलिमेंट ने उसे मौजूदगी दी है. ये एलिमेंट है भगवान्.
चौथा सबूत है argument from degree. जब हम किसी चीज़ को compare करते हैं तो हम डिग्री की बात करते हैं जैसे बैडमिंटन खेलने में कोई अच्छा हो सकता है तो कोई बेस्ट. जब इस तरह के comparison की बात आती है तो उसके लिए एक मैक्सिमम स्टैण्डर्ड होता है. इसका परफेक्ट स्टैण्डर्ड भगवान् हैं.
पांचवा सबूत है teleological argument. इस दुनिया को देखकर लगता है कि सब कुछ कितनी सावधानी से सोच समझकर डिज़ाइन किया गया है. तो इस दुनिया का भी कोई ना कोई डिज़ाइनर ज़रूर होगा और वो डिज़ाइनर हैं भगवान्.
ख़ास तौर पर सभी सबूत कहते हैं कि ये भगवान् ही है क्योंकि कोई भी ऐसा इंसान नहीं है जो ये सब कर सकता था. भगवान् हर चीज़ का जवाब हैं. जैसा कि आप देख सकते हैं ये आर्गुमेंट फूलप्रूफ़ नहीं है, इसमें कमियाँ हैं. जैसा कि हमने पहले बताया कि धार्मिक लोगों के साथ बहस करना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि उन्हें डिस्कस करना स्वीकार ही नहीं है. वो भगवान् के होने के इन सबूतों को पूरे दिल से मान लेते हैं.
जहां पांचवे सबूत की बात आती है, चार्ल्स डार्विन ने बड़ी चतुराई से इस आर्गुमेंट को जीत लिया. उन्होंने तर्क दिया कि ये नेचर के evolution की वजह से हुआ है कि हर चीज़ ऐसी लगती है जैसे उसे डिज़ाइन किया गया हो.
भगवान् के होने का एक और तर्क वो सुंदरता है जो हम दुनिया में देखते हैं. धार्मिक लोग आपसे पूछेंगे कि मन को छू लेने वाली वो ख़ूबसूरत धुन, आर्ट, किताबें कहाँ से आती हैं? बेशक, भगवान् से. भगवान् का ज़िक्र किए बिना बीथोवेन के म्यूजिक और शेक्सपियर के सॉनेट्स की सुंदरता को कोई कैसे समझा सकता है? अब ये एक और कमी से भरा आर्गुमेंट है., इसमें कोई लॉजिक नहीं है. एक्स्ट्राऑर्डिनरी लोग भगवान् की माजूदगी को साबित नहीं करते बल्कि वो अपनी मौजूदगी को साबित करते हैं.
इसी तरह कोई धार्मिक आदमी ये भी कह सकता है कि अगर भगवान् नहीं होते तो मंत्रमुग्ध कर देने वाली मास्टरपीस Raphael’s annuciation भी नहीं होती. राफेल और माइकलएंजेलो के समय में चर्च बहुत पावरफुल हुआ करते थे. उनके पास कलाकारों से बड़ी-बड़ी मूर्तियों और पेंटिंग बनाने के लिए और उन्हें पैसे देने के लिए बहुत रिसोर्सेज हुआ करते थे. कलाकारों को भी जिंदा रहने के लिए इनकम की ज़रुरत होती थी इसलिए वो ये सब बनाते थे. राफेल और माइकलएंजेलो के पास नॉलेज और स्किल थी. उन्होंने सालों तक अपने आर्ट की बहुत प्रैक्टिस की तब जाकर उन्होंने मास्टरपीस बनाए थे. ये सब भगवान् के कारण नहीं था.
कोई ये भी कह सकता है कि भगवान् सच में मौजूद है क्योंकि किसी ने उन्हें देखा या महसूस किया है. वो तो यहाँ तक कह देते हैं कि भगवान् ने उनके मन में उनसे बातें की. क्या होगा अगर कोई आपसे ये कहे कि उन्होंने एक पिंक हाथी देखा है? शायद आप ये सुनकर इम्प्रेस नहीं होंगे. तो फ़िर कैसे कोई एक ऐसे आदमी की तारीफ कर सकता है जो कहता है कि उसने भगवान् की आवाज़ सुनी. अगर कोई आदमी ये कहेगा कि वो napolean है तो उसे तुरंत पास पागलखाने भेज दिया जाएगा. सैम हैरिस ने द एंड ऑफ फेथ में इस तरह की सोच के खिलाफ एक शानदार आर्गुमेंट लिखा था. जो लोग भगवान को सुनते हैं उन्हें धार्मिक कहा जाता है. हालांकि, अगर ये भगवान से जुड़ा नहीं हो, तो उसे मानसिक रोग या भ्रम कहा जाता है. यह नार्मल है जब कोई आदमी भगवान को देखता है लेकिन यह भ्रम की स्थिति है जब एक आदमी ये दावा करता है कि बारिश मोर्स कोड के ज़रिए उससे कम्यूनिकेट कर रही है?