(hindi) The Developing Mind

(hindi) The Developing Mind

इंट्रोडक्शन(Introduction)

हम अक्सर कहते हैं कि यार आज मन नहीं लग रहा, आज मन बहुत उदास है, मुझे उससे  मिलना अच्छा नहीं लगता वगैरह वगैरह. तो आखिर ये मन होता क्या है ? मेमोरी कैसे काम करती है? इमोशंस कहाँ से आते हैं? एक बच्चे के लिए उसके पेरेंट्स का लगाव कितना ज़रूरी होता है? कई बार ऐसे सवाल हमारे अंदर चलते हैं तो ये बुक आपके इन सवालों का जवाब देगी.

आप जानेंगे कि हमारे एक्सपीरियंस और रिलेशनशिप हमारे ब्रेन के नयूरोंस पर कैसे असर डालते हैं. आप जानेंगे कि एक छोटा बच्चा कैसे अपने इमोशंस को मैनेज करना सीखता है.आप सीखेंगे कि आपके बच्चे के साथ आपका रिश्ता उसके ब्रेन डेवलपमेंट, सोशल इंटरेक्शन और उसके जिंदगी पर क्या असर करता है.

हमारा माइंड एक कमाल की मशीन है. ये ख़ुद को दुनिया के हिसाब से ढाल भी सकता है और ख़ुद को नया भी बना सकता है. आपके पास अपने लिए और अपनों के लिए एक बेहतर जिंदगी बनाने की पॉवर है. ये बुक आपको सिखाएगी कि ये करना कैसे है.

Mind, Brain and Relationships:
The Interpersonal Neurobiology Perspective

तो पहले ये समझते हैं कि माइंड आखिर है क्या. क्या ये हमारे ब्रेन का स्ट्रक्चर है? क्या ये हमारे नर्वस सिस्टम का हिस्सा है ? नहीं, ये इससे कहीं ज़्यादा है. माइंड सिर्फ़ बायोलॉजी से नहीं बल्कि उन रिश्तों से भी जुड़ा हुआ है जो हमारा दूसरे लोगों के साथ होता है. एक बच्चे के ब्रेन स्ट्रक्चर पर सबसे ज़्यादा असर उसके पेरेंट्स का होता है.

अगर पेरेंट्स understanding और प्यार करने वाले होंगे तो ब्रेन के जो हिस्से स्ट्रेस, चिंता और इमोशंस के लिए ज़िम्मेदार होते हैं वो पूरी तरह और अच्छे से डेवलप होने लगते हैं. जिस बच्चे को अक्सर रोने के लिए छोड़ दिया जाता है उसकी मेंटल हेल्थ ख़राब होने लगती है.

डैन सीगल इंटरडिसिप्लिन को बढ़ावा देते हैं. उनका मानना है कि माइंड यानी मन को समझने के लिए सिर्फ़ न्यूरोबायोलॉजी को नहीं देखना चाहिए. हमारा दूसरों के साथ कैसा रिश्ता है ये भी बहुत मायने रखता है इसलिए उसे भी देखना बहुत ज़रूरी है. इसका कारण ये है कि जब हम अपने आस पास के लोगों के साथ घुलते मिलते हैं, बातचीत करते हैं तोवो हमारे ब्रेन और नर्वस सिस्टम को शेप देते हैं.

इसे “Interpersonal Neurobiology” या IPNB कहते हैं. इस थ्योरी का कहना है कि “human connections shape neural connections” यानी दूसरों के साथ हमारे जैसे रिश्ते होते हैं वो हमारे नयूरोंस और ब्रेन को वैसा ही शेप देने लगते हैं.अगर सीधे शब्दों में कहें तो लाइफ में हमारे जो एक्सपीरियंस हैं वो हमारे इमोशंस, मेमोरी और ब्रेन डेवलपमेंट में गहरा असर डालते हैं.

एक नई तरह की स्टडी जिसे “neuroplasticity” कहते हैं, उसका कहना है कि हमारा ब्रेन जिंदगी भर बदलता रहता है, हमेशा एक जैसा नहीं रहता.आइए अल्बर्टआइंस्टा इनका एग्ज़ाम्पल लेते हैं. ऐसा कहा जाता है कि उनका corpus callosum या उनके ब्रेन के लेफ़्ट और राईट hemisphere के बीच जो लिंक था वो नार्मल साइज़ से ज़्यादा बड़ा था. अब सवाल ये उठता है किक्या अल्बर्ट इसके साथ पैदा हुए थे? क्या ये उनके जीनियस होने का कारण था? या बार-बार यूज़ करने के कारण उनका corpus callosum डेवलप हुआ था?

साइंटिस्ट्स का कहना है कि आइंस्टाइनहर चीज़ में अपना बहुत दिमाग लगाते थे जिस वजह से उनके नयूरोंस ज़्यादा फ़ास्ट और ज़्यादा कनेक्टेड हो गए थे.इसीका मतलब होता है  neuroplasticity. एक छोटे बच्चे के पेरेंट्स ही उसके ब्रेन के कई हिस्सों को शेप देते हैं जैसे amygdala, hippocampus और anterior cingulate. लेकिन बड़े होने के बाद भी हमारे एक्सपीरियंस और रिलेशनशिप की वजह से हमारा माइंड हमेशा डेवलप होता रहता है.

डॉ. सीगल के अनुसार हमारा माइंड तीन चीज़ों से बनता है. पहला है, वो माइंड जो हमारे आस पास के लोगों और दुनिया के साथ शेयर की हुई इनफार्मेशन को कंट्रोल करता है. दूसरा है, वो हिस्सा जो एक सिस्टम या डिवाइस की तरह काम करता है और तीसरा है रिलेशनशिप जिसका हम पर गहरा असर होता है. ये तीनों पहलु मिल कर माइंड को बनाते हैं.

TO READ OR LISTEN COMPLETE BOOK CLICK HERE

मेमोरी(Memory)

चलिए अब आगे बढ़ते हैं और मेमोरी के बारे में जानते हैं. तो ये मेमोरी कैसे काम करती है? क्या हमारे ब्रेन में एक कैबिनेट है जिसमें हम मेमोरी को स्टोर कर सकते हैं? मेमोरी के बारे में कुछ ग़लत फ़हमियाँ फैली हुई हैं जैसे कि हम जानते हैं कि मेमोरी कहाँ से आती है. दूसरा,ये कि हम जब भी याद करते हैं तो मेमोरी हमेशा एक जैसी बिलकुल सेम रहती है. लेकिन असल में क्या ये सच है? आइए जानते हैं.

हमारे ब्रेन में कोई कैबिनेट नहीं है. हमारी मेमोरी नयूरोंस के नेटवर्क से आती है. किसी भी घटना से जुडी बात से हम उस मेमोरी को याद रखते हैं. जब एक न्यूरॉन एक्टिव होता है तो उससे जुड़े बाकी सारे नयूरोंस भी एक्टिव हो जाते हैं. मेमोरी एक्सपीरियंस पर डिपेंडेंट होती है. एग्ज़ाम्पल के लिए, अगर आप अपने दोस्त के साथ एक पार्टी में जाते हैं तो उस पार्टी की आपकी मेमोरी आपके दोस्त से अलग होगी.

ऐसा इसलिए है क्योंकि आपके ख़ुद के एक्सपीरियंस पर डिपेंड करता है कि वो घटना आपके ब्रेन में किस तरह की याद बन कर बैठती है. आपके दोस्त का एक्सपीरियंस अलग होगा इसलिए वो पार्टी उसके लिए एक अलग मेमोरी बन जाएगी.

हम हमेशा नहीं जानते कि एक मेमोरी कहाँ से आती है. इसे “Implicit Memory” कहते हैं. एग्ज़ाम्पल के लिए, एक माँ ने अपने बच्चे को एक नया खिलौना दिया. उस खिलौने से बड़ी अलग और अजीब सी आवाज़ निकलती थी, बच्चे को ये आवाज़ डरावनी लगी.अब जब-जब वो बच्चा उस आवाज़ को सुनता वो रोने लग जाता. बड़े होने के बाद भीजब वो उस खिलौने को देखेगा तो परेशान और अपसेट हो जाएगा. उसे याद नहीं होगा कि उसे वो खिलौना क्यों पसंद नहीं है लेकिन उस अजीब से शोर का एक्सपीरियंस उसके माइंड में बैठ चुका है.

जब भी हम किसी बीती हुई बात को याद करते हैं तो वो मेमोरी सेम नहीं होती.ऐसा इसलिए है क्योंकि आप जो प्रेजेंट में एक्सपीरियंस कर रहे हैं वो अलग नयूरोंस को एक्टिवेट करता है. जैसे आपको याद है कि आप उस पार्टी में गए थे. लेकिन जब आप उसे याद कर रहे हैं तब आप किस सिचुएशन में है उसका असर उस पार्टी की मेमोरी पर होता है.

एग्ज़ाम्पल के लिए, आप पेरिस में एफिल टॉवर देखने गए. आपका ब्रेन इसकी एक इमेज बना लेता है. ये पहला स्टेज है जिसे encoding कहते हैं. नयूरोंस का एक नेटवर्क उस इमेज के साथ कनेक्शन जोड़ लेता है. ये सेकंड स्टेज है जो है मेमोरी स्टोरेज. नयूरोंस के उस नेटवर्क का फ़िर से एक्टिवेट हो जाना थर्ड स्टेज है जिसे retrieval कहते हैं. जब भी आप एफिल टावर के बारे में सोचेंगे तो आप ब्रेन में बनने वाली उस इमेज को देखेंगे.

आपको उस घटना से जुड़े दूसरे एक्सपीरियंस भी याद आएँगे जो आपने उस ट्रिप में महसूस किए थे. कहा जाता है कि “Neurons that fired together at one time will tend to fire together in the future.” यानी जब किसी घटना से नयूरोंस का एक नेटवर्क जुड़ जाता है तो उसे दोबारा याद करने पर वही नेटवर्क फ़िर एक्टिव हो जाता है.इस तरह आपको सिर्फ़ एफिल टावर ही नहीं बल्कि उस दिन का मौसम, आस पास के टूरिस्ट सब याद आते हैं. इसे कनेक्शन या एसोसिएशन कहते हैं.

इसे इस समझ भी समझा जा सकता है, एफिल टावर की visual इमेज देख कर नयूरोंस एक्टिव हो गए. उसी वक़्त, उस न्यूरॉन से जुड़े हुए नयूरोंस आपके ब्रेन में “E-I-F-F-E-L-T-O-W-E-R” की स्पेलिंग बनाने लगे.मान लीजिये, कि जब आप एफिल टावर के ऊपर गए तब आपको भूख लग रही थी और आप अपने दोस्तों या परिवार के लिए वेट कर रहे थे.अब जब भी आप एफिल टावर को याद करेंगे तब आपको भूख लगने का भी एहसास होगा.

आइये इसे एक और एग्ज़ाम्पल से समझते हैं कि मान लीजिये कि जब आप सर उठाकर एफिल टावर को देख रहे थे तब एक कुत्ते ने आपके राईट पैर को काट लिया. अब उस मेमोरी के साथ दर्द और डर भी attach हो जाते हैं. जब-जब आप एफिल टावर को याद करेंगे आपको कुत्ते के काटने की याद आएगी क्योंकि ये सब एक्सपीरियंस उस न्यूरॉन के नेटवर्क के साथ जुड़ जाते हैं.

TO READ OR LISTEN COMPLETE BOOK CLICK HERE

SHARE
Subscribe
Notify of
Or
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments