(Hindi) The Checklist Manifesto : How to Get Things Right

(Hindi) The Checklist Manifesto : How to Get Things Right

इंट्रोडक्शन

क्या आपने अपनी जिंदगी में या टीवी पर कोई emergency ऑपरेशन होते हुए देखा है? क्या आप कभी इस बात से चकित हुए हैं कि डॉक्टर या नर्स अपना काम कैसे मैनेज करते हैं?  क्या आपने कभी सोचा है कि वो लोग अपना काम इतने अच्छे से कैसे कर लेते हैं?

इस बुक में आप सीखेंगे कि चेकलिस्ट की पॉवर क्या होती है. चेकलिस्ट वो लिस्ट है जो बताती है कि आपको कौन सा काम कैसे करना है. हो सकता है कि आपको लगे कि ये तो बहुत आसान है लेकिन आप यहाँ सीखेंगे कि कैसे प्रोफेशनल्स, जैसे कि डॉक्टर या पायलट, जितना हो सकता है उतना अपने काम के लिए चेकलिस्ट यूज़ करते हैं. चेकलिस्ट हमारा समय बचाने के साथ-साथ अच्छे से काम करने में भी मदद करती है.

आप ये भी सीखेंगे कि एक अच्छे और बुरे चेकलिस्ट में क्या फ़र्क होता है और आप अपने लिए बेस्ट चेकलिस्ट कैसे बना सकते हैं. चाहे आप कोई भी काम करते हों लेकिन जब करने के लिए बहुत सा काम हो तो टेंशन तो हो ही जाती है.

इस बुक से आप सीखेंगे कि कैसे एक छोटी सी चेकलिस्ट आपके काम को बेहद आसान बना सकती है. जब आप चेकलिस्ट यूज़ करना सीख जाएँगे तो आपके काम में गलतियां कम होंगी और आप अपना हर काम बिना कोई ज़रूरी स्टेप भूले ठीक से पूरा कर पाएँगे.

Extreme complexity ki problems

एक बार हॉस्पिटल में एक ऐसा केस आया जिसने ऑथर का ध्यान अपनी ओर खींचा. वो एक परिवार के बारे में था जो जंगल में टहल रहे थे. बस कुछ पलों के लिए माँ बाप की नज़र ओनी तीन साल की बच्ची से हट गई लेकिन उसी पल में बहुत कुछ हो गया. वो बच्ची एक बर्फ़ के तालाब में गिर गई. माँ बाप ने बच्ची को बहुत ढूंढा और आखिर आधे घंटे बाद उन्हें बच्ची मिली. बच्ची पानी में जमकर बेहोश हो गई थी.

माँ बाप बुरी तरह घबरा गए लेकिन जैसे तैसे उन्होंने emergency टीम को हालात के बारे में बताया. जब तक वो टीम वहाँ पहुँचती तब तक माँ बाप बच्ची को CPR देते रहे. CPR में इंसान की चेस्ट को बार-बार दबाया जाता है ताकि उसका दिल काम करना बंद ना करे.

emergency टीम भी बच्ची की हालत देखकर मायूस हो गए. उस बच्ची के शरीर में कोई हरकत नहीं हो रही थी. ना उसकी नब्ज़ चल रही थी और ना ऐसा लग रहा था जैसे वो सांसें ले रही हो. जब उन्होंने बच्ची की आँखों पर रौशनी डाली तो उन्हें बच्ची से कोई रिएक्शन नहीं मिला. इससे पता चलता है कि उसके दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था. उस तालाब का बर्फ़ीला पानी और मिटटी उसके lungs में भर गए थे. ऐसा लगने लगा जैसे उसने दम तोड़ दिया हो.

emergency टीम ने बिना समय गवाएं हेलीकाप्टर मंगवाया और उसे हॉस्पिटल ले गए. रास्ते में भी वो उसे CPR देते रहे कि शायद कोई उम्मीद हो उसके बचने की. जैसे ही वो हॉस्पिटल पहुंचें, सर्जरी करने वाले डोक्टरों ने उसकी बॉडी से हार्ट-lung बाईपास मशीन को जोड़ा. यह मशीन उसके शरीर में खून को पंप करती रहेगी, क्योंकि उसके दिल और lungs काम नहीं कर रहे थे.

सर्जन ने उसकी कमर के पास एक कट लगाया और सिलिकॉन की रबर ट्यूब उसकी आर्टरी से जोड़ दिया. ये ट्यूब बच्ची के शरीर से खून बाहर निकालने में मदद करेगी. इसके साथ ही एक और सिलिकॉन ट्यूब को जोड़ा गया एक नस में जोड़ा गया ताकि खून को दोबारा उसके शरीर में भेजा जा सके.

उस मशीन से जोड़ने से लेकर करीब डेढ़ घंटे तक वो बच्ची बेजान थी. लेकिन उसकी नसों में खून पहुँचने से उसके शरीर का टेम्परेचर बढ़ने लगा. उसका दिल फ़िर से धड़कने लगा. लेकिन अभी भी ख़तरा टला नहीं था.

बच्ची के lungs ख़राब हो चुके थे. उसमें तालाब का पानी, मिटटी, पेड़ की टहनियां और काफ़ी गंदगी भर गया था. इसी वजह से उसके lungs बॉडी को ऑक्सीजन नहीं दे पा रहे थे. इसलिए, मेडिकल टीम ने फ़ैसला किया कि कुछ समय के लिए उसकी बॉडी को एक आर्टिफीसियल lung सिस्टम से जोड़ देंगे जिससे उसकी बॉडी को फ़िर से ऑक्सीजन मिल सके.  डॉक्टरों ने उसके चेस्ट को खोला और उसके दिल को मशीन से जोड़ दिया.

दिन रात लगातार डॉक्टर बच्ची को बचाने में लगे रहे. वो उस पर fiberoptic bronchoscopy परफॉर्म करते रहे जिसका मतलब है कि वो इसके ज़रोए उसके lungs से पानी और मिटटी निकालते रहे. अगले दिन, बच्ची का lungs थोड़ा बेहतर हुआ. जब उसके ब्रेन को चेक किया गया तो उसमें में सूजन आ गई थी लेकिन डॉक्टर उसे कंट्रोल करने में कामयाब रहे. लगभग एक हफ़्ते तक वो बच्ची बेहोश और कोमा जैसी कंडीशन में रही. लेकिन कुछ हफ़्ते गुज़रने के बाद उसके सारे organ धीरे-धीरे ठीक होने लगे और वो बेहतर होने लगी.

क्या आपको नहीं लगता कि डॉक्टरों की पूरी टीम बिलकुल एक सुपर हीरो की तरह थी? वो बच्ची को मौत के मुहं से बचा कर ले आए थे. उन्होंने जो किया वो बेहद मुश्किल था. जो चीज़ इसे और भी ख़ास और अद्भुत बनाती है वो ये है कि ये काम किसी अकेले आदमी के बस की बात नहीं थी. इस ऑपरेशन में बहुत सारे लोगों ने साथ मिलकर काम किया ताकि ऑपरेशन का हर स्टेप पूरी तरह सफ़ल हो पाए और बच्ची की जान बच जाए.

क्या आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि उन्हें किस लेवल की coordination और तालमेल करने की ज़रुरत पड़ी होगी? ये मत भूलिएगा कि डॉक्टरों के पास ये सिर्फ़ एक केस नहीं था. उस टीम के हर इंसान को कई और केस को भी हैंडल करना था. चाहे ये लोग अपने काम में कितने भी एक्सपर्ट क्यों ना हों, हर किसी से कहीं ना कहीं गलती तो ही जाती है. हर साल, लगभग 1,50,000 से ज़्यादा लोग सर्जरी के दौरान अपनी जान गवां देते हैं.

एक स्टडी ये बताती है कि इनमें से करीबन 50% लोगों को बचाया जा सकता था. हो सकता है कि मेडिकल टीम का कोई मेंबर सर्जरी से पहले हाथ धोना भूल गया हो या मास्क पहनना भूल गया हो. हो सकता है कि ऑपरेशन में इस्तेमाल होने वाले टूल्स को ठीक से sanitize नहीं किया गया हो जिससे इन्फेक्शन हो गया और पेशेंट की मौत हो गई.

चाहे ये लोग अपने काम में कितने भी trained क्यों ना हों, उन्हें कितने ही सालों का एक्सपीरियंस क्यों ना हो, कई बार वो भी कुछ ना कुछ भूल जाते हैं. तो हम इससे कैसे बच सकते हैं? कैसे हम ज़्यादा से ज़्यादा लोगों की जान बचा सकते हैं?

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Checklist


1930 के दौरान, US military Air Corps ने ये चेक करने के लिए एक competition organise किया कि कौन से Airplane manufacturer उनके ऑफिसियल सप्लायर होंगे. जो प्लेन Boeing लेकर आया था वो अब तक का उनसे सबसे ख़ास और बेस्ट प्लेन था. वो प्लेन ऐसा था जिससे नज़रें हटाना मुश्किल था. Boeing 299 के 103 foot बड़े wings थे और बाकी प्लेन के मुकाबले उसमें दो की जगह चार इंजन थे. वो बहुत ही आसानी से ज़मीन से उठकर आसमान में करीब 300 फ़ीट उंचा उड़ा. Boeing को वो डील लगभग मिल ही गई थी लेकिन कुछ ही मिनटों बाद वो प्लेन रुका और फट गया. 5 में से दो 2 क्रू मेंबर्स की मौत हो गई जिनमें से एक पायलट था.

बाद में जब इस केस की इन्वेस्टीगेशन हुई तो पता चला कि प्लेन में कोई भी गड़बड़ नहीं थी. उस इन्वेस्टीगेशन की रिपोर्ट में सामने आया कि ये एक्सीडेंट पायलट की एक गक्ति की वजह से हुई थी. उस प्लेन के इंजन, लैंडिंग गियर और दूसरे हाई टेक फीचर काफ़ी कॉम्प्लेक्स थे. क्योंकि पायलट को कई चीज़ों को ध्यान में रखना था तो वो एक ज़रूरी स्टेप फॉलो करना भूल गए. जिस वजह से प्लेन क्रेश हो गया और पायलट की मौत हो गई. अंत में Air cops दूसरी कंपनी “Martin and Doughlas” के पास गए. इसके बावजूद आर्मी ने Boeing से कुछ प्लेन ख़रीदे.

कुछ लोग इस बात से सहमत थे कि Boeing 299 ज़रूर उड़ाया जा सकता था. इस बात को साबित करने के लिए कुछ पायलट्स को चुना गया.  हालांकि उन्होंने जो तरीका अपनाया वो बड़ा अलग, चौंकाने वाला लेकिन अच्छा तरीका था. एक नई टीम ने उन पायलट्स के लिए एक चेकलिस्ट बनाई. जो लोग थोड़े एक्सपीरियंस्ड होते हैं उनके लिए एक चेकलिस्ट को फॉलो कर काम करना बेहद मुश्किल होता है.  उनके लिए चेकलिस्ट एक बेकार सी चीज़ है. ये बिलकुल ऐसा था जैसे आपको अपनी गाड़ी garage से बाहर निकालनी हो और किसी ने आपके लिए एक चेकलिस्ट बना दी हो.

लेकिन Boeing 299 एक कॉम्प्लेक्स प्लेन था. ये इतना पेचीदा था कि चाहे कोई एक्सपर्ट ही क्यों ना हो, एक अकेला इंसान सब कुछ ध्यान में नहीं रख सकता था.
पायलट के लिए बनाई गई चेकलिस्ट बहुत आसान थी. उस लिस्ट में हर चीज़ का स्टेप लिखा हुआ था यानी जब वो टेक ऑफ करते, या प्लेन उड़ाते या जब लैंड करते, इसलिए वो पायलट्स के लिए एक पूरी गाइड जैसी थी.

सुनने में ऐसा लगता है कि ऐसा करने की क्या ज़रुरत थी, आखिर पायलट को प्लेन उड़ाना ना आता हो तो उन्हें पायलट थोड़ी कहा जा सकता है. शायद आपको लग रहा होगा कि इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ा पर ऐसा नहीं है. अबकी बार जब पायलट ने चेकलिस्ट को यूज़ कर Boing 299 को दूर तक उड़ाया तब एक भी एक्सीडेंट नहीं हुआ.

आजकल ज़्यादातर प्रोफेशनल फ़ील्ड्स बेहद मुश्किल हैं. सोचिए किसी डेंटिस्ट को दांतों की केविटी भरनी हो या कोई सर्जन हार्ट की सर्जरी कर रहा हो. अगर ये लोग सब कुछ सिर्फ़ याद कर के काम करेंगे तो इनके लिए कितना मुश्किल होगा, इन्हें हर चीज़ ध्यान में रखनी होगी. हमारी याददाश्त हमेशा हमारा साथ नहीं देती. जब हमें किसी चीज़ को रोज़ करने की आदत हो जाती है तो हम अक्सर कुछ ना कुछ भूल जाते हैं.

ऐसा हम जानबूझकर नहीं करते लेकिन हमारा दिमाग उन चीज़ों पर ज़्यादा फोकस करता है जो नई हैं या जिस पर ज़्यादा ध्यान देने की ज़रुरत है.  हम सोचते हैं कि अगर कोई स्टेप आसान है तो उसे छोड़ देने से कुछ नहीं होगा. लेकिन एक ना एक दिन हमें उस स्टेप को छोड़ने के नतीजे को भुगतना पड़ता है.  चेकलिस्ट की मदद से हम इन छोटे मगर इम्पोर्टेन्ट स्टेप्स को भूलेंगे नहीं. ये हमें एहसास दिलाती हैं कि ये छोटे स्टेप्स इतने ज़रूरी क्यों हैं.

जॉन हॉपकिंस (John Hopkins) हॉस्पिटल के एक क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट पीटर प्रोनोवोस्ट (Peter Pronovost) ने 2001 में डोक्टरों के लिए एक चेकलिस्ट बनाने की कोशिश की. उन्होंने एक ऐसे रिस्क पर फोकस किया जो डॉक्टर्स अपने पेशेंट को दे सकते थे, वो था सेंट्रल लाइन्स को इन्फेक्ट करना.  सेंट्रल लाइन्स कैथेटर होते हैं जिन्हें पेशेंट की नसों में डाला जाता है जब हार्ट, किडनी या lungs काम करना बंद कर देते हैं.  ये लाइन बाईपास मशीन या डायलिसिस मशीन से कनेक्ट की जाती है ताकि पेशेंट स्टेबल रह सके अगर उसके main organs काम करना बंद कर दे तो. अगर डॉक्टर इस प्रोसेस में कोई भी स्टेप लेना भूल जाएंगे तो पेशेंट के ब्लड में सीधे germs जा सकते हैं जिस से उसके अंदर के organ इन्फेक्ट हो सकते हैं.

प्रोनोवोस्ट ने एक पेपर पर लिस्ट बनाई जिसमें उन्होंने सेंट्रल लाइन्स के सेट अप के सारे स्टेप्स लिखे. बिलकुल पायलट की चेकलिस्ट की तरह, ये लिस्ट भी बहुत आसान थी. अगर आप ऐसे डॉक्टर होते जो सालों से प्रैक्टिस कर रहे हैं तो आप इस चेकलिस्ट को देखकर हँसते. आप आँखें बंद कर के भी सारे स्टेप्स फॉलो कर लेते.

सबसे पहले अपने हाथ साबुन से धोना. दूसरा, एंटीसेप्टिक से पेशेंट की स्किन साफ़ करना. तीसरा, पेशेंट की पूरी बॉडी को स्टेराइल drape से कवर करना. चौथा, स्टेराइल सर्जरी गाउन, कैप और फेस मास्क पहनना. पांचवा, जैसे ही पेशेंट की नसों में सेंट्रल लाइन जाए वैसे ही उस जगह पर स्टेराइल ड्रेसिंग लगाना.

प्रोनोवोस्ट ने नर्स को कहा कि वो एक महीने तक इस बात का ध्यान रखे कि डोक्टरों ने चेकलिस्ट के सारे स्टेप्स को फॉलो किया या नहीं और इसके नतीजे बहुत आश्चर्यजनक निकले. हर 3 में से एक पेशेंट की सर्जरी के वक़्त डॉक्टर कम से कम एक बेसिक स्टेप भूल जाते थे.

जॉन होपकिंस हॉस्पिटल के एडमिनिस्ट्रेशन ने साफ़-साफ़ कह दिया था कि अगर कोई भी डॉक्टर किसी भी स्टेप को भूलता है तो नर्स उन्हें रोक सकती है और बता सकती है. अगर डॉक्टर नर्स की बात नहीं सुनते तो हॉस्पिटल का एडमिनिस्ट्रेशन नर्स का पूरा साथ देगा. करीब एक साल तक, चेकलिस्ट को को सख्ती से लागू किया गया.

प्रोनोवोस्ट और उनके साथी नतीजे देखकर चकित रह गए. हर 10 दिन में होने वाले सेंट्रल लाइन इन्फेक्शन के पेशेंट 11% से घटकर 0% हो गए थे. अगले 15 महीनों के लिए उन्होंने उन पेशेंट्स को ओब्सर्व किया जिनकी सर्जरी चेकलिस्ट फॉलो करके हुई थी. उस समय दो ही पेशेंट को सेंट्रल लाइन इन्फेक्शन हुआ था. हॉस्पिटल की टीम की कैलकुलेशन के हिसाब से चेकलिस्ट ने कमाल कर दिया था. चेकलिस्ट की वजह से 43 इन्फेक्शन और 8 मौत होने से बच गई थी. साथ ही हॉस्पिटल ने 2,000,000 डॉलर भी बचाए.

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