(Hindi) The Brain that Changes Itself

(Hindi) The Brain that Changes Itself

इंट्रोडक्शन

न्यूरोप्लास्टिसिटी क्या है? यह शब्द दो टर्म से मिलकर बना है, “न्यूरो “  जिसका मतलब न्यूरॉन (neurons) या ब्रेन के सेल्स से है और “प्लास्टिक” जिसका मतलब है कि इसे बदला या आकार  दिया जा सकता है। कुछ दशक पहले तक न्यूरोसाइंटिस्ट को लगता था कि हमारा दिमाग फिक्स (fixed) होता है यानी कि हम जिस दिमाग के साथ पैदा हुए है हमें उसी के साथ जीना है और हमारे दिमाग में हुआ कोई भी नुकसान या चोट हमेशा के लिए रहता है।

न्यूरोप्लास्टिसिटी बीसवीं सदी की सबसे शानदार खोजों में से एक है। अब यह दुनिया भर में माना गया फैक्ट  है कि हम अपने दिमाग के स्ट्रक्चर  (structure) को गहरे कंसंट्रेशन और बार-बार प्रैक्टिस से बदल सकते हैं।

इस बुक में आप उन लोगों के बारे में जानेंगे जिन्होंने अपने ब्रेन को रिवायर (rewire) किया और लर्निंग डिसेबिलिटी, स्ट्रोक और ब्रेन के चोट जैसी प्रोब्लम्स को मात दी. न्यूरॉन कनेक्शन को आप  अपने ब्रेन की वायर (wires) की तरह समझें। आप उन्हें ब्रेन को हुए किसी भी नुकसान को ठीक करने, अच्छी आदतें  डालने और कोई गजब की स्किल सीखने के लिए लिए शेप  कर सकते हैं।

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A Woman Perpetually Falling

शेरिल शिल्ट ऐसे खड़ी होती हैं जैसे की वो किसी ऊंचे प्लेटफार्म पर हों और कुछ आदमी उन्हें नीचे गिराने के लिए धक्का दे रहे हैं। वह अपने हाथ-पांव फैलाये हुए होती है। वह अपने हर कदम पर लड़खड़ाती हैं। पांच साल से शेरिल शिल्ट ऐसे ही अपनी जिंदगी जी रहीं हैं।

अगर वह दीवार का भी सहारा लेती हैं तब भी वह किसी नशे में धुत आदमी की तरह  चलतीं हैं। यहां तक कि जब वह पहले से ही फ्लोर पर गिरी हुई होती हैं, तब भी उन्हें लगता है कि जमीन उन्हें निगल रही है।

आपको जानकर हैरानी होगी कि हमें अपनी बॉडी के बैलेंस का सेंस कान के अंदर एक छोटे से organ वेस्टिबुलर एपैरेटस (vestibular apparatus) से  होता है। इसमें तीन घुमावदार कैनल होती हैं जो हमें 3 डायमेंशन के स्पेस में चलने में मदद करती हैं।इन कैनल के आस-पास छोटे-छोटे बाल होते जो एक फ्लूइड में तैरते हैं। हम जब अपनी डायरेक्शन बदलते हैं तो ये बाल लहराते हैं जिससे ब्रेन को हमारी हलचल का सिग्नल मिलता हैं।

प्रॉब्लम यह है की  शेरिल का वेस्टिबुलर एपरेटस बुरी तरह से डैमेज हो गया था. यह जैंटामिसिन (gentamicin) नाम की  एंटीबायोटिक के साइड इफ़ेक्ट के कारण हुआ था।पांच साल पहले उनके यूटरस का ऑपेरशन हुआ था. शेरिल को इन्फेक्शन हो गया था इसलिए उन्हें यह दवा दी गयी।इसी वजह से उनकी जिंदगी बदल गयी.

एक दिन जब वह सुबह उठी तो खड़ी नहीं हो पाईं और बार -बार गिरती रहीं। उन्होंने एम्बुलेंस को कॉल करने की बहुत कोशिश की।  वह एक बहुत बड़ी   सेल्स एजेंट हुआ करती थीं, पर अब वह 1000 डॉलर की डिसेबिलिटी पेंशन से गुजरा करती हैं।

ऑथर डॉ.नार्मन की मुलाकात शेरिल से Paul Bach-y-Rita की लैब में हुई जो की एक मशहूर न्यूरोसाइंटिस्ट हैं। पॉल की टीम ने एक डिवाइस बनाई है जो शेरिल को बैलेंस बनाने में मदद कर सकती हैं।

शेरिल का वेस्टिबुलर सिस्टम 95% डैमेज हो चुका है। ज्यादातर लोग जिन्हें शेरिल की तरह gentamicin के साइड इफ़ेक्ट झेलने पड़े, उन्होंने सुसाइड कर लिया।सारे  डॉक्टर्स ने उन्हें कहा की इसका कोई इलाज नहीं है।  पर उस दिन लैब में कुछ ऐसा हुआ जो किसी ने नहीं सोचा था।

पॉल की प्रोटोटाइप डिवाइस  एक कंस्ट्रक्शन हेलमेट की तरह दिखती है। इसके अंदर एक टूल है जिसे एक्सेलेरोमीटर कहते हैं। यह प्लास्टिक की एक छोटी सी स्ट्रिप को सिग्नल भेजता हैं जिसे शेरिल अपनी जीभ पर रखेंगी।एक्सेलेरोमीटर और स्ट्रिप दोनों कंप्यूटर से जुड़े होते हैं।

यह प्लास्टिक स्ट्रिप एक च्युइंग गम के जैसी दिखती है। इसमें छोटे -छोटे इलेक्ट्रोड होते हैं। इसे जीभ पर रखने वाले को करंट के हलके झटके महसूस होंगे जो  शैम्पेन बबल की तरह लगते हैं। अगर आप आगे की तरफ झुकेंगे तो ये बबल भी आपकी जीभ पर आगे की तरफ तैरने लगते हैं और अगर आप पीछे को झुकेंगे तो वे पीछे की तरफ फ्लो करने लगते हैं.
चाहे आप अपनी ऑंखें बंद भी कर लें तब भी आपको पता रहेगा की आप सीधे खड़े हैं। आपको बबल्स बिलकुल सीधे और लेवल पर महसूस होंगे. अगर आप राइट या  लेफ्ट मूव करते हैं   तो बबल भी उसी तरफ जायेंगे।

शेरिल ने इस डिवाइस को यूज़ करने की  कोशिश की। शुरू में उन्होंने सहारे के लिए अपनी उंगलियों टेबल पर टिकाये रखीं। लेकिन धीरे-धीरे वह सीधी खड़ी हो गयीं। पांच साल में पहली  बार वह एक नॉर्मल इन्सान की तरह खड़ी हो पाईं। शेरिल की बॉडी अब लड़खड़ाती नहीं है और ना ही उन्हें अब ऐसा लगता है की जैसे कोई उन्हें धक्का दे रहा हो।
उनकी जीभ के सिग्नल, जिन्हें ब्रेन में टच सेंस करने वाले एरिया में जाना होता है, वह बैलेंस सेन्स करने वाले एरिया में चले गए। शेरिल ने वह हेलमेट 20 मिनट तक पहना और कमाल की बात यह है की जब उन्होंने हेलमेट उतारा तो वे एकदम से गिरी नहीं। वह एक घंटे तक आराम से चल और खड़ी हो पाईं।

इसे रेसिडुअल इफ़ेक्ट (residual effect)कहते हैं। पॉल को पता चला  की इस डिवाइस को  बार -बार और लम्बे समय तक यूज़ करने से इसका असर ज्यादा होता है। एक इंसान जिसके पास सेंस ऑफ़ बैलेंस (sense of balance)नहीं हैं, वह एक दिन में  चार बार 20 मिनट तक इस डिवाइस को पहनकर नॉर्मल जिंदगी जी सकता है।

शेरिल  की जीभ से उनके ब्रेन के सेन्स ऑफ़ बैलेंस में बने नए न्यूरॉन कनेक्शंस हर बार और स्ट्रांग होते गए. इस डिवाइस ने उनके ब्रेन को रिवायर करने और नए रास्ते बनाने में मदद की।

रेसिडुअल इफ़ेक्ट  पहले कुछ घंटों तक फिर कुछ दिनों तक और फिर कुछ महीनों तक रहा. आखिरकार,शेरिल को अब वह डिवाइस यूज़ करने की जरुरत नहीं पड़ती। उनके ब्रेन में नए कनेक्शन हमेशा के लिए बन चुके हैं।उन्होंने अपनी जिंदगी में बैलेंस वापस पा लिया।

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अपने ब्रेन को बेहतर बनाना (Building Herself a Better Brain)

बारबरा एरोस्मिथ-यंग को लर्निंग डिसेबिलिटी थी। बचपन में लोग उन्हें मंद बुद्धि कहते थे।जब वह पैदा हुईं उनका लेफ्ट पांव राइट से छोटा था। उनकी लेफ्ट साइड की बॉडी थोड़ी छोटी थी। उनके कंधे और हिप्स एक तरफ को निकले हुए थे। बारबरा को अपने लेफ्ट हिस्से में कुछ फील नहीं होता था। वह अक्सर दीवार से टकराकर चोट खाती थीं।

बारबरा के पास spatial reasoning नहीं है। यह वो एबिलिटी हैं जिससे हम अपनी मूवमेंट को करने से पहले उसे इमेजिन कर सकते हैं। यह हमारे दिमाग में एक मैप की तरह होता है  जो बताता है की हमारे डेस्क और कमरे कैसे अरेंज्ड है .

बारबरा के लिए जो आँखों से सामने नहीं है वह दिमाग में भी नहीं है।  वह अक्सर बाहर भटक जाती हैं। वह उन सभी चीज़ों को अपने सामने रखती हैं जिन पर वह काम कर रही होतीं हैं ताकि वह कुछ भूल ना जाये।

उनका kinesthetic perception भी काम नहीं करता। यह वो एबिलिटी है जिससे हमारे हाथ और पावों के बीच कोआर्डिनेशन बनता है।  बारबरा हमेशा लड़खड़ाती है और गिर जातीं हैं। सीढ़ियां चढ़ना और उतरना उनके लिए एक बड़ी चुनौती है।

बारबरा फैक्ट याद रख सकती है लेकिन वह वर्ड्स के बीच की रिलेशनशिप , मैथ्स के कॉन्सेप्ट या घड़ी की सुईयों को समझ नहीं पातीं। उनकी ग्रामर बहुत खराब है, बारबरा पिता या भाई का मतलब समझती हैं लेकिन उनके लिए “पिता का भाई” इसका कोई मतलब नहीं है। वह समय भी नहीं बता पातीं हैं ।

बारबरा डिस्लेक्सिक (dyslexic) हैं और वह उल्टा लिखती हैं। स्कूल में उन्होंने बुक से आंसर और लेसंस को याद करना सीखा। अगर एग्जाम के सवाल फैक्ट पर बेस्ड होते हैं तो वह उनका जवाब आसानी से दे देतीं हैं. लेकिन अगर उन्हें रिलेशनशिप एनालाइज़ करने की जरुरत पड़ती है तब बारबरा को बहुत कम मार्क्स मिलते हैं
उन्होंने अपना बचपन इसी confusion में बिताया। बारबरा को लगता था कि बाहर एक मीनिंगफुल दुनिया है लेकिन वह इसे समझ नहीं सकतीं।

वह 1950 के दशक में कनाडा में बड़ी हुई तब कोई स्पेशल एजुकेशन नहीं होती थी और ना ही कोई साइकोलोजिस्ट या एक्सपर्ट थे उनकी हेल्प करने के लिए।
कॉलेज में, बारबरा ने चाइल्ड डेवलपमेंट कोर्स में एडमिशन लिया क्योंकि वह सच में खुद को समझना चाहतीं थीं।

उस समय लर्निंग डिसेबिलिटी का स्टैंडर्ड ट्रीटमेंट compensation हुआ करता था। वह इस थ्योरी पर बेस्ड था की अगर ब्रेन का कोई पार्ट ख़राब है तो उसे अब ठीक नहीं किया जा सकता। इसलिए, इस प्रॉब्लम से डील करने के लिए कंपनसेशन दे दिया जाये।

जिन बच्चों को पढ़ने में मुश्किल होती थी उन्हें ऑडियो बुक (audiobook) दी जाती थीं और जो देर से समझते थे उन्हें अपना टेस्ट पूरा करने के लिए ज्यादा समय दिया जाता था। लेकिन बारबरा ने मेहसूस किया की यह compensation सही मायने में समस्या को हल नहीं करता है। बच्चे कोई प्रोग्रेस नहीं करते और उनकी डिसएबिलिटी पर कोई ध्यान नहीं देता। उन्होंने सोचा  कि जरूर कोई और तरीका होगा।

अपनी पढ़ाई के दौरान बारबरा को ल्योवा जेटस्की नाम के एक सिपाही की कहानी के बारे में जानने को मिला। उस सिपाही के सिर में गोली लगी थी और गोली उसके दिमाग के लेफ्ट हिस्से में अटक गयी थी।

बारबरा को आश्चर्य हुआ क्योंकि जेटस्की को भी उन्ही की तरह यह समस्या थी। जब जेटस्की जागे,वे रिलेशनशिप को नहीं समझ पा  रहे थे। वह अपने लेफ्ट से अपना राइट नहीं बता सकते थे या यूँ कहें की किसी भी एक्ट का क्या रिएक्शन होगा, वो यह नहीं समझ पाते थे। उनके लिए पहले और बाद, अंदर और बाहर, बड़ा और छोटा जैसे शब्दों का कोई मतलब नहीं था।

जेटस्की के दिमाग में गोली जरूर उस जगह पर लगी होगी जहाँ पर temporal, occipital and parietal lobe मिलते हैं। यही वो जगह हैं जो लैंग्वेजेज, विजुअल इमेज और स्पेस से रिलेटेड होती हैं।

बारबरा अपनी कंडीशन के बारे में और ज़्यादा जानकर बहुत खुश थी। लेकिन वह अभी भी अपने इलाज़ के लिए बेताब थीं। उसी समय उन्होंने कैलिफ़ोर्निया  यूनिवर्सिटी के मार्क रोज़ेनस्वीग के एक रिसर्च पेपर के बारे में पढ़ा।

रोज़ेनस्वीग चूहों पर स्टडी कर रहे थे। उन्होंने पाया कि जो चूहे स्टिम्युलेटेड इन्वॉयरन्मेंट (stimulating environments) में रहे हैं उनके दिमाग में ज़्यादा न्यूरोट्रांसमीटर्स होते हैं। इनके न्यूरॉन नेटवर्क्स उन चूहों  की तुलना में ज़्यादा डेवलप्ड होते हैं जो कम स्टिम्युलेटेड एन्वॉयरन्मेंट में रहे हैं।

तब बारबरा को लगा कि हो सकता है कि दिमाग की एक्सरसाइज करने से दिमाग के डैमेज पार्ट ठीक हो सकते हैं। इसलिए जरुरत कंपनसेट करने की नहीं बल्कि उन ब्रेन फंक्शन्स (brain functions) की प्रैक्टिस करने की है जहाँ उन्हें दिक्कत है।

बारबरा ने अपने लिए ब्रेन एक्सेरसाइज़ बनायीं। उन्होंने घडी में टाइम समझने से स्टार्ट किया।उन्होंने अलग अलग समय बताती घड़ियों के फ्लैशकार्ड (flashcard) बनाये। उन्होंने घंटे  और मिनट वाली सुइयों की  प्रैक्टिस की, तब उन्होंने सेकंड वाली सुई add करके प्रैक्टिस की।

बारबरा ने यह समझने की बहुत कोशिश की कि क्यों घड़ी में छोटी सुई का 2 पर होना और बड़ी सुई का 9 पर होना 2:45 होता है। लेकिन उन्होंने बार बार प्रैक्टिस की और आखिरकार वह इसमें बहुत तेज़ हो गयीं।

और भी ज्यादा बड़ी बात यह है कि बराबर अब लॉजिक, ग्रामर और मैथ्स भी समझने लगीं। अपने दिमाग के कमजोर जगहों की एक्सरसाइज करके उन्होंने नए न्यूरॉन कनेक्शन डेवलप  कर लिए और बार-बार प्रैक्टिस करने से वह और भी स्ट्रांग बन गए। बारबरा ने अपनी दूसरी डिसेबिलिटी के लिए और ज्यादा एक्सरसाइज बनायी।

आखिरकार, उन्हें एरोस्मिथ स्कूल के बारे में पता चला जो उन्हीं की तरह लर्निंग डिसेबिलिटी से जूझ रहे बच्चों की मदद करता है। बारबरा अब एक नार्मल जिंदगी जीतीं हैं।उन्होंने अपने ब्रेन को रिवायर करके अपनी डिसेबिलिटी को दूर किया। न्यूरोप्लास्टिसिटी के कांसेप्ट की मदद से एरोस्मिथ स्कूल के बच्चों ने भी अच्छी प्रोग्रेस की।

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