(Hindi) The Body Keeps the Score: Brain, Mind, and Body in the Healing of Trauma

(Hindi) The Body Keeps the Score: Brain, Mind, and Body in the Healing of Trauma

इंट्रोडक्शन (Introduction)

हमने जंग के दिग्गजों (वेटरन्स) की कई कहानियां सुनी हैं. उनमें से कुछ ने जंग के दौरान अपने साथी सैनिकों के दर्द, क्रूरता, टार्चर को करीब से देखा है, उन्हें मरते हुए देखा है. कुछ ने दूसरों को मार डाला तो कुछ ने शर्मनाक काम किया. जंग के दौरान उन्होंने जो जो देखा और किया, वो कड़वी यादें बन कर उनके ज़हन में इस तरह बैठ जाती हैं  कि उनका जीना मुश्किल हो जाता है. फ़िर से एक नार्मल और ख़ुशहाल जीवन जीने के लिए उन्हें स्ट्रगल करना पड़ता है और अक्सर इस स्ट्रगल में वो बहुत ज़्यादा सेंसिटिव हो जाते हैं, अपने ही परिवार के लिए एक अजनबी बन कर रह जाते हैं.
वो क्या चीज़ है जो उन्हें अपने ही घर में एक अजनबी बना देता है? उनके लिए ख़ुश होना, हंसमुख होना इतना मुश्किल क्यों हो जाता है? वो क्या चीज़ है जो उन्हें फ़िर से एक शांत और ख़ुशहाल जीवन जीने में मदद कर सकता है?

इस बुक में आप ये जानेंगे कि सदमा (trauma) एक ऐसी चीज़ है जो किसी को भी हो सकती है. आप इस बात को समझेंगे कि क्यों पुरानी यादें (memories) प्रेजेंट में किसी इंसान को बार बार परेशान करती हैं और एक इंसान जो किसी सदमे से गुज़रा हो वो इससे लड़ते लड़ते क्यों थक जाता है.  आप ये भी जानेंगे कि जब किसी को कोई सदमा लगता है तो ब्रेन और बॉडी पर उसका क्या असर होता है. आप इस सदमे का सामना करना भी सीखेंगे.

ये बुक आपको हमारे ब्रेन और बॉडी में क्या कनेक्शन है इस बारे में भी बताएगी. इस कनेक्शन को समझने के बाद आपको पता चलेगा कि क्यों कुछ लोग अपने ही बॉडी के किसी पार्ट को फील नहीं कर पाते या क्यों कुछ लोग दर्पण में खुद को पहचान ही नहीं पाते.
इस बुक में, आप सदमे को ठीक करने वाली दवाईयों के फ़ायदे और नुक्सान के बारे में भी जानेंगे.
तो क्या आप गहराई से समझने के लिए तैयार हैं कि सदमा कैसे किसी इंसान पर अपना असर डालता है और उसे कैसे ठीक किया जा सकता है? तो चलिए शुरुआत करते हैं.

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लेसंस फ्रॉम वियतनाम वेटरन्स (Lessons from Vietnam Veterans)

किसी भी तरह का सदमा (ट्रौमा) एक इंसान पर बहुत गहरा असर डालता है. इसे पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर यानी PTSD कहते हैं. ट्रौमा पास्ट में बीता हुआ सिर्फ़ एक हादसा नहीं होता क्योंकि ये हमारे प्रेजेंट को बहुत बुरी तरह एफेक्ट करना शुरू कर देता है. ये उस इंसान के पर्सनल रिलेशनशिप, उसके सोचने के तरीके और दुनिया को देखने के नज़रिए पर अपना गहरा असर डालता है.

PTSD के कुछ symptoms हैं – ड्रग्स या शराब का सहारा लेना, डिप्रेशन, बीते हुए scene का फ्लैशबैक और लोगों पर भरोसा करने में मुश्किल होना. जिनके साथ किसी भी तरह का  ट्रौमा हुआ हो वो जल्दी से किसी पर विश्वास नहीं कर पाते. वो सिर्फ़ उन पर भरोसा करते हैं जिन्होंने खुद PTSD को एक्सपीरियंस किया हो. ऐसा इंसान खुद के परिवार से भी डरने लगता है. ज़िन्दगी में उसे कोई भी चीज़ ख़ुश नहीं करती, वो जैसे सुन्न होने लगता है, उसे कुछ महसूस ही नहीं होता. ऐसी ज़िन्दगी जीने का क्या मतलब जब आपको सब महसूस होना ही बंद हो जाए? जिंदा हो कर भी आप में लाइफ ही ना हो.

बोस्टन वेटरन्स एडमिनिस्ट्रेशन क्लिनिक में एक स्टाफ साइकेट्रिस्ट के रूप में काम करते हुए ऑथर की मुलाक़ात टॉम नाम के एक विएतनाम वेटरन से हुई. वेटरन का मतलब जंग में लड़ने वाला एक पुराना सोल्जर, जिसे बहुत एक्सपीरियंस हो चुका हो. दस साल पहले टॉम मरीन में थे. एक जंग से लौटने के बाद उन्होंने अपनी वाइफ और बच्चों के साथ समय बिताने में इंटरेस्ट ही खो दिया था. वो अपने परिवार के आस पास भी होने से डरते थे क्योंकि उन्हें लगता था कि कहीं वो उन्हें चोट ना पहुंचा दें. टॉम को शराब पीने से और हाई स्पीड में अपनी बाइक पर घूमने से राहत मिलती थी. यहाँ तक कि उसे नींद आना भी बंद हो गया था. उसे भयानक डरावने सपने आते थे जिसमें विएतनाम के मासूम बच्चों की लाशों के ढेर लगे हुए थे.

ऑथर ने इन बुरे सपनों का असर कम करने के लिए टॉम को एक दवाई लिख कर दी ताकि उसे नींद आ सके. टॉम जब ऑथर से दोबारा मिला तो उसने बताया कि उसने दवाई लेना बंद कर दिया था. कारण पूछने पर उसका जवाब था कि दवा के असर से उसे सपने आना बंद हो गए थे और  वो ऐसा बिलकुल नहीं चाहता था. वो उन यादों को भूलना नहीं चाहता था क्योंकि ऐसा करने से वो अपने दोस्तों की मौत को भूल जाएगा. वो नहीं चाहता था कि उन सब की कुर्बानी यूहीं व्यर्थ चली जाए. वो जैसे अपने दोस्तों की कुर्बानी का जीता जागता समाधी बनना चाहता था. टॉम पास्ट से निकल कर प्रेजेंट में जीना ही नहीं चाहता था.

विएतनाम में टॉम की मुलाक़ात एलेक्स नाम के एक italian लड़के से हुई. वो दोनों जिगरी दोस्त बन गए. एक दिन, टॉम और उसकी टीम पहरा देने के लिए चावल के खेतों के बीच से हो कर गुज़र रहे थे. अचानक से विएतनाम की आर्मी ने उन पर हमला कर दिया. टॉम बहुत हेल्पलेस महसूस कर रहा था क्योंकि उसकी पूरी टीम और उसका प्यारा दोस्त एलेक्स सब की जान जा चुकी थी. जब हेलीकाप्टर ने टॉम को बचाया तो वो बहुत गुस्से में था, डरा हुआ था , ऐसा लग रहा था जैसे उसे कोई सदमा लगा हो जिसने उसे सुन्न कर दिया था.

टॉम अपने दोस्त को खो देने के बाद बहुत गुस्से में था. इस अचानक हुए हमले के बाद वो पास के एक गाँव में गया. उसने पहले वहाँ कई बच्चों को जान से मारा फ़िर एक औरत का रेप किया. उस घटना के बाद, टॉम का जैसे अपने बीवी बच्चों से नज़रें मिलाना नामुमकिन सा हो गया था. उसे अपने घिनौने व्यवहार पर शर्म आने लगी थी.

एलेक्स की मौत ने टॉम को तोड़ कर रख दिया था. उसने टॉम के अंदर की अच्छाई को मिटा दिया था. खेत के उस हमले ने टॉम के लिए बस एक ही चीज़ छोड़ी थी – लम्बी ख़ामोशी और सन्नाटा. उसे सब कुछ महसूस होना बंद हो गया था. टॉम अपने परिवार से दूर होने लगा था.

इस स्टोरी ने ऑथर को एहसास दिलाया कि ट्रौमा सिर्फ़ एक बीती हुई घटना नहीं है बल्कि ये ऐसी तकलीफ है जो ज़िन्दगी भर पीछा नहीं छोड़ती. ऐसे लोग पास्ट में जीने लगते हैं. वो आगे ही नहीं बढ़ना चाहते. वो उन कड़वी यादों को भुलाना ही नहीं चाहते.

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रेवोलुशन इन अंडरस्टैंडिंग माइंड एंड ब्रेन (Revolution in Understanding Mind and Brain)

मानसिक रोग की दवाओं की खोज के बाद, साइकियाट्रिक इंडस्ट्री में वर्बल थेरेपी (यानी पहले बातों के ज़रिये पेशेंट को ठीक करने की कोशिश की जाती थी) को हटाकर दवा देने का प्रचलन शुरू हुआ. पुरानी टॉकिंग थेरेपी के मुकाबले ये ज़्यादा फायदेमंद थी क्योंकि दवा का असर तेज़ी से होता था जो पेशेंट की बेचैनी और तकलीफ को जल्दी कंट्रोल कर लेता था. और ये ज़्यादा पैसे कामने का साधन बन गया था. उस समय सिर्फ़ उस थेरेपी में पैसे लगाए जाते थे जिसमें दवा का इस्तेमाल किया जाता था. इन सब के कारण ऐसी दवाओं का ज़ोर शोर से इस्तेमाल होने लगा.

लेकिन इन दवाओं की एक कमी भी थी. ये सिर्फ़ symptom का इलाज़ कर सकते थे. जड़ में छूपी प्रॉब्लम का नहीं. ये एक इंसान को अंदर से हील नहीं कर सकते थे.

1988 में “Prozac” ब्रांड के नाम से एक दवा फ्लुओक्सेटिन (fluoxetine) को रिलीज़ किया गया. एक बार ऑथर ने ये दवा अपनी दो पेशेंट्स को लिख कर दिया. वो दोनों लड़कियां थी. बचपन में उनके साथ चाइल्ड एब्यूज जैसी दर्दनाक घटना हुई थी जिसकी वजह से उन्हें सदमा लगा था. मानो अब वो जी नहीं रही थीं सिर्फ़ अपने दिन गुज़ार रही थी. उनमें ना कोई उमंग थी, ना ख़ुशी.

लेकिन ऑथर के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब दोनों ने उन्हें बताया कि इस दवाई ने कमाल का असर किया था. पहली लड़की ने बताया कि वो अब ठीक से खाना खाने लगी थी और अपने स्कूल का काम भी अच्छे से कर पा रही थी. तो वहीं दूसरी लड़की का कहना था कि वो अपने बच्चों को स्कीइंग के लिए जाना चाहती थी ताकि अच्छी यादें बना सके. सच में इस दवाई ने उन्हें पास्ट से निकाल कर प्रेजेंट में जीने में मदद की थी.

फ़िर एक एक्सपेरिमेंट किया गया ताकि PTSD पर Prozac के असर को स्टडी किया जा सके. इस एक्सपेरिमेंट में, 33 नॉन वेटरन्स (जो आर्मी में नहीं थे) और 31 वेटरन्स (जो जंग का हिस्सा थे) का नाम लिखा गया. इन्हें दो ग्रुप्स में डिवाइड किया गया. एक ग्रुप को prozac दिया गया और दूसरे को एक ऐसी गोली जो अंदर से खाली थी और उसका बॉडी या माइंड पर कोई असर नहीं होता , इसे placebo कहते हैं. ना तो किसी डॉक्टर और ना किसी पेशेंट को ये पता था कि किसे prozac दिया गया है और किसे placebo.

जितने भी लोग इस एक्सपेरिमेंट का हिस्सा थे उन सब को कुछ ना कुछ फ़ायदा ज़रूर हुआ था. यहाँ तक कि जिन्हें placebo गोली दिया गया था उन्हें भी फायदा महसूस हो रहा था. placebo के इफ़ेक्ट को इस तरह समझाया जा सकता है. उन लोगों को पता था कि prozac की गोली मिलने का चांस 50% है इसलिए उन्हें खुद अपनी प्रॉब्लम को हल करना होगा. PTSD का इलाज़ करने के लिए उन्होंने टॉकिंग थेरेपी शुरू कर दी.  ऐसा कर के वो symptom को नहीं बल्कि प्रॉब्लम की जड़ को ठीक करने की कोशिश कर रहे थे. वो प्रॉब्लम से भाग नहीं रहे थे, उसका सामना कर रहे थे.

prozac ने placebo से ज़्यादा असर किया था. जिन पेशेंट्स ने prozac लिया था वो चैन की नींद सोने लगे थे और अपने इमोशंस को अच्छे से कंट्रोल कर पा रहे थे. हालांकि, किसी अनजाने कारण की वजह से prozac ने सिर्फ़ नॉन वेटरन्स पर असर किया था. उसका वेटरन्स पर कोई भी असर नहीं हुआ.
prozac ने साइकियाट्रिक ब्रांच में एक बहुत बड़ा बदलाव कर दिया था. डॉक्टर्स अब तुरंत असर के लिए अपने पेशेंट्स को ये दवा देने लगे थे. लेकिन इस चक्कर में वो प्रॉब्लम को बस दबा रहे थे. उसकी जड़ का इलाज़ तो हुआ ही नहीं था.

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