(Hindi) Steve Jobs

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वाल्टर आइजेकसन इस बुक के आथर को जब पता लगा कि स्टीव जॉब्स कैंसर के लास्ट स्टेज में है तब जाकर वे स्टीव जॉब्स की बायोग्राफी लिखने को तैयार हुए. बेहद होनहार और तेज़ दिमाग वाले स्टीव जॉब्स साल 2004 से आइजेकसन को अपनी जिंदगी पर एक किताब लिखने के लिए मना रहे थे मगर उनकी कोशिश 2009 में जाकर कामयाब हो पाई जब जॉब्स कैंसर से जूझते हुए अपनी दूसरी मेडिकल लीव पर थे |

साल 1984 के वक्त से ही टाइम्स मेगेज़ीन में बतौर मेनेजिंग डायरेक्टर आइजेकसन को कई बार जॉब्स से मिलने का मौका मिला. मगर उस महान इनोवेटर स्टीव ने जब पहली बार आइजेकसन से खुद की बायोग्राफी लिखने के लिये कहा तो आईजेकसन उस दौरान अल्बर्ट आइनस्टीन पर लिख रहे थे और बेंजामिन फ्रेंकलिन पर उनकी लिखी किताब पहले ही फेमस हो चुकी थी. जॉब्स का प्रस्ताव आइजेकसन ने ये कहकर ठुकरा दिया कि  “जॉब्स अभी सफलता की सीडिया चढ़ ही रहे है और अभी वो वक्त नहीं आया कि उनपर कोई किताब लिखी जा सके”.

लेकिन ये जॉब्स की पत्नी लौरीन पॉवेल की कोशिशो का ही नतीजा था जो उनसे जॉब्स की बिमारी के बारे में जानकर आइजेकसन ने अपना मन बदल लिया और आखिरकार इस काम के लिए तैयार हो गए. जॉब्स का कैंसर का ओपरेशन होना था. बावजूद इसके वे खामोशी से लड़ रहे थे. एक और बात जिसने आइजेकसन को बहुत प्रभावित किया वो ये थी कि जॉब्स ने उन्हें किताब अपने तरीके से लिखने की छूट दी थी. उन्होंने आथर के काम में कभी किसी तरह की दखलअंदाजी नहीं की. फ्रेंकलिन और आइन्स्टाइन की तरह ही स्टीव जॉब्स ने भी साइंस और इंसानियत दोनों की तरक्की के लिए अपनी क्षमताओं का बेहतर उपयोग किया था.

इंजीनियरिंग दिमाग के साथ साथ जाँबस क्रिएटिव भी थे ओर इन्ही खूबियों का तालमेल से एक महान इनोवेटर बनता है जो कि वे खुद है. जॉब्स अपनी इसी रचनाशीलता से पर्सनल कम्प्यूटर की दुनिया में क्रांतिकारी बदलाव ला पाए. सिर्फ इतना ही नहीं म्यूजिक , डिजिटल पब्लीशिंग और एनिमेटेड मूवीज में भी उनकी बदौलत एक नए दौर की शुरुवात हुई. बेशक उनकी पर्सनल लाईफ या उनकी पर्सनेलिटी एक मुक्कमल तस्वीर नहीं बनाती मगर फिर भी वे अपने काम से हमेशा लोगो की जिंदगी प्रभावित करते रहेंगे और इनसापाईरेटिन का सोर्स बने रहेंगे.

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बचपन

छोटी उम्र में ही स्टीव जॉब्स जान चुके थे कि उन्हें गोद लिया गया है. और ये बात उनके पिता पॉल जॉब्स और माँ क्लारा हागोपियेन (Clara Hagopian) ने उनसे कभी भी नहीं छुपाई. जन्म के बाद से ही उन दोनों ने स्टीव को पाला था. जब स्टीव जाँव 4 साल के थे वो अपने पडोसी के घर पर एक लडकी के साथ खेल रहे थे। और स्टीव ने उस लडकी को बताया कि उन्हे एडाप्ट किया गया है। इस बात पर वो लडकी बोली कि इसका मतलब तो है कि तुम्हारे असली माँ बाप तुम्हे पसन्द नही करते थे, इसिलये उन्होने तुम्हे छोडा। इस पर स्टीव जाँव भाग कर अपने घर गये ओर ये बात उन्होने अपने पेरेन्टस को बतायी। इसपर उन्हे पेरेन्टस ने उन्हे कहा की सुनो स्टीव “हमने तुम्हे इसलिये चुना था क्योकि तुम सबसे अलग हो बहुत खास हो , स्पेशल हो” और शायद इसी वजह से स्टीव आत्मनिर्भर और मजबूत इरादों के इंसान बन पाए|

उनके कार मेकेनिक पिता उनके पहले हीरो थे. बचपन में ही स्टीव जॉब्स इलेक्ट्रोनिक्स में काफी इनटरेस्टिड थे. हालांकि वे पढ़ाई में कभी बहुत अच्छे नहीं रहे. क्लास में बैठना उन्हें अक्सर बोरिंग लगता था. अपने हुनर से वे अक्सर कुछ ना कुछ शरारत भरा किया करते. और ये सिलसिला ग्रेड स्कूल से लेकर कोलेज तक चलता रहा.

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वोजनिएक Wozniak

(Homestead High) होम्सस्टेड हाई में एक कॉमन फ्रेंड के ज़रिये स्टीव वोजनिएक और स्टीव जॉब्स की मुलाक़ात हुई. दोनों स्टीव्स बचपन से ही इलेक्ट्रोनिक्स और मशीन में गजब के प्रतिभाशाली थे. जहाँ स्टीव जॉब्स अपने पिता की ही तरह एक बिजनेसमैन बनना चाहते थे, वहीँ स्टीव वोज के पिता जिन्हें मार्केटिंग से चिढ़ थी उन्होंने उन्हें इंजीनियरिंग में कुछ बेहतरीन करने के लिए प्रेरित किया ।

उम्र में जॉब्स से 5 साल बड़े होने के बावजूद वोज बेहद शर्मीले और हद से ज्यादा पढ़ाकू थे. अपने कॉमन दोस्त की गैराज में वे जॉब्स से पहली बार मिले थे. इलेक्ट्रोनिक्स में गहरी रूचि के साथ ही बॉब डायलन के म्यूजिक ने भी उनकी जोड़ी जमा दी थी.

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लेज ड्राप आउट College drop-out

जहाँ वोजनियेक ने बर्कली युनिवेर्सिटी जाने के फैसला कर लिया था वहीँ जॉब्स अभी कनफ्यूजन में ही थे कि अपने लिए कौन सा कॉलेज चुने. क्योंकि स्टीव जॉब्स के असली पेरेन्टस ने उन्हे इसी शर्त पर गोद दिया था कि उनकी स्कूली पढ़ाई पूरी कराई जायेगी. इसलिए उनके एडोपटिव पेरेन्टस को उनकी कॉलेज फीस जुटाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी.

जॉब्स ने फैसला किया कि वे नजदीकी स्टेंडफोर्ड युनिवेर्सिटी नहीं जायेंगे. वे किसी ऐसी जगह जाना चाहते थे जो उससे ज्यादा आर्टिसट और इन्टरेस्टिंग हो. मगर उनके इस फैसले को उनके पेरेन्टस की मंज़ूरी नहीं मिली बावजूद इसके जॉब्स ने रीड कॉलेज, पोर्टलैंड ऑरेगोन में दाखिला ले लिया. सिर्फ एक हजार स्टूडेण्ड वाला ये एक कॉलेज बड़ा महंगा था. और फिर अपने हिप्पी कल्चर के लिए मशहूर भी था.

रीड कॉलेज में पढने के दौरान कुछ ही समय बाद जॉब्स को लगा कि जो कोर्स उन्होंने चुना था वो उनके सपनो के आड़े आ रहा था. जो चीज़े वो सीखना चाह रहे थे, नहीं सीख पा रहे थे. और तब उन्होंने कॉलेज बीच में ही छोड़ दिया. अब वो जो पसंद आता वही सीखने लग जाते जैसे कि कैलीग्राफी. रीड में पढ़ाई के दौरान उन्हें हिप्पी कल्चर पसंद आने लगा था. जेन बुधिस्म पर उन्होंने सैकड़ो किताबे पढ़ डाली और पूरे वेजेटिरयन बन गये. उन्होंने बाल कटवाना छोड़ दिया था और पूरे केम्पस में नंगे पाँव घूमा करते.

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एप्पल I

स्टीव वोजनिएक और स्टीव जॉब्स ने कई तरह के छोटे मोटे स्टार्टअप बिजनेस किये. जहाँ वोजनिएक अपने बनाये डिजाएन केवल बेचने तक सिमित थे वहीँ जॉब्स कुछ ऐसे प्रोडक्ट बनाकर बेचना चाहते थे जो यूनिक हो और उनसे पैसे कमाये जा सके।

सबसे पहले तो उन्हें एक नाम तय करना था. मेट्रिक्स जैसे टेक्नोलोजीकल और पर्सनल कंप्यूटर इंक जैसे कुछ बोरिंग नाम उनके दिमाग में आये भी मगर फिर एप्पल नाम उन्हें इन्टरसटिंग लगें। जो कुछ अलग लग रहा था. इस नाम को चुने जाने की वजह सिर्फ यही नहीं थी कि जॉब्स एक एप्पल फार्म में घूमकर आये थे बल्कि सुनने में एप्पल कंप्यूटर नाम बड़ा मजेदार और शानदार लगता था.

उस वक्त तक वोज HP (एच पी) के लिए काम कर रहे थे. उन्होंने वहां अपना बनाया सर्कट बोर्ड (circuit board) लगाना चाहा . उनका ये प्रोडक्ट नया था और पहले कभी इस्तेमाल नहीं हुआ था इसलिए उसे नकार दिया गया.इससे निराश होकर वोज ने फिर जो भी प्रोडक्ट बनाये वे 100 फीसदी सिर्फ एप्पल के लिए बनाये. जॉब्स का यही मानना था कि उनकी टीम इसलिये परफेक्ट थी क्योकि वो दोनो अपोजिट थे।एक ओर वोज जहाँ बहुत प्रतिभाशाली तो थे मगर लोगो से मिलने-जुलने में कतराते थे, वहीँ जॉब्स की खासियत थी कि वे किसी से भी बातचीत कर सकते थे और अपना काम निकलवाने में माहिर थे.

एक कंप्यूटर स्टोर का मालिक, पॉल टेरेल उनका पहला ग्राहक बना. उसने उन्हें $500 पर पीस के हिसाब से 50 सर्कट बोर्ड का आर्डर दिया. क्रेमर इलेक्ट्रोनिक्स (Cramer Electronics) के मेनेजेर को विश्वास में लेकर उससे $25,000 का उधार लेने के बाद जॉब्स, वोज और उनकी बहन पैटी, अपनी पूर्व प्रेमिका एलिज़बेथ होम्स और एक दोस्त डेनियल कोट्के के साथ मिलकर काम में जुट गए. और इस तरह लोस एल्टोस में जॉब्स के घर की गैराज से एप्पल की शुरुवात हुई.

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लीज़ा

पूरे 5 साल तक क्रिसेन् ब्रेनन (Chrisann Brennan) के साथ जॉब्स कभी हां कभी ना वाले रिश्ते में बंधे रहे. एप्पल की शुरुवात बहुत सफल रही. जॉब्स अब अपने माँ-बाप का घर छोड़कर कपरटीनो (Cupertino) के एक $600 वाले रेन्टेड घर में रहने लगे थे. ब्रेनन अब उनकी जिंदगी में वापस आ चुकी थी. दोनों अब साथ रहने लगे थे.  जब दोनों ही अपने 23वे साल में थे ब्रेनन,, जॉब्स के बच्चे की माँ बनने वाली थी.

हालांकि जॉब्स का सारा ध्यान सिर्फ अपनी कंपनी पर था. वे अभी घर गृहस्थी में बंधना नहीं चाहते थे. ब्रेनन और उनके बीच अब झगडे शरू हो गए थे. इस बच्चे का आना उनके रिश्ते में खटास पैदा कर रहा था. जॉब्स के मन में कभी भी शादी का ख्याल नहीं था और उन्होंने इस बच्चे का पिता होने से भी इंकार कर दिया. इस सबके बावजूद ब्रेनन ने हार नहीं मानी. उनके कुछ दोस्त इस मुश्किल दौर में उनके साथ रहे और 17 मई, 1978 को ऑरेगोन में उन्होंने लिजा निकोल को जन्म दिया.

माँ और बच्चा मेनलो पार्क के एक छोटे से घर में रहने लगे. वेलफेयर में मिलने वाली रकम से उनका गुज़ारा चल रहा था. जब लिजा एक साल की हुई तो जॉब्स को उन्ही दिनों चलन में आये डीएनए (DNA) टेस्ट से गुज़रना पड़ा जिसका रिजल्ट था की  94.41% चांस है कि स्टीव ही लीसा के बाप है। ये साबित हो जाने पर केलिफोर्निया कोर्ट ने उन्हें लिजा के पालन पोषण के लिए मन्थली चाईल्ड सपोर्ट देने का हुक्म दिया. हालांकि कोर्ट के हुकम से वे अब जब चाहे अपनी बेटी से मिल सकते थे मगर बावजूद इसके वे कभी भी उससे मिलने नहीं गए.

1981

1977 में एप्पल ने शुरुवाती दौर में 2,500 यूनिट्स बेचे और 1981 में उनकी बिक्री बढ़कर 210,000 हो चुकी थी. हालांकि जॉब्स को अच्छी तरह मालूम था कि सफलता का ये दौर हमेशा रहने वाला नहीं है. इसलिये उन्होंने एक नये प्रोडक्ट के बारे में सोचा जो एप्पल II से ज्यादा बेहतर हो. वे एक ऐसा डिजाईन चाहते थे जो पूरी तरह से उनका अपना बनाया हो.

अपनी बेटी के साथ अपना रिश्ता नकारने के बावजूद उन्होंने अपने नए कंप्यूटर का नाम लीज़ा रखा. दरअसल इसे बनाने वाले इंजीनियर्स को इससे मिलता जुलता एक्रोनिम सोचना पड़ा. लीज़ा का मतलब था लोकल इंटीग्रेटेड सिस्टम ।

एप्पल में 100,000 शेयर्स के बदले जीरोक्स पार्क ने अपनी एकदम नयी टेक्नोलोजी जॉब्स और उनके प्रोग्रामर्स को बेच दी. कुछ मुलाकातों के बाद ही एप्पल के इंजीनियर्स जीरोक्स  कंप्यूटर के माउस डिजाईन और इंटरफेस की नक़ल बनाने में कामयाब रहे. लिजा को पहले से बेहतर ग्राफिक्स और स्मूथ स्क्रोलिंग माउस फीचर के साथ बाज़ार मंज उतारा गया.

IPO

दिसम्बर 12, 1980 में पहली बार एप्पल को दुनिया के सामने पेश किया गया. मॉर्गन स्टेनले इसके IPO को संभालने वाले बैंको में से एक था. रातो-रात एप्पल के शेयर का दाम $22  से बढकर $29 हो गया. सिर्फ 25 साल के हिप्पी कॉलेज ड्राप आउट स्टीव जॉब्स अब करोडो के मालिक बन चुके थे. इतनी बड़ी सफलता के बावजूद उन्होंने दिखावट से दूर एक सादा जीवन जीना पसंद किया.

जॉब्स ने अपने माता-पिता के नाम $750,000 कीमत वाले एप्पल के स्टोक कर दिए थे जिससे उन्हें लोन से छुटकारा मिला. वे अब मैगजीन के कवर पर आने लगे थे. उन्होंने पहली कवर स्टोरी अक्टूबर 1981 में इंक के लिए की थी. इसके तुरंत बाद ही 1982 में टाइम्स मेगेज़ीन में भी उनकी कवर स्टोरी आई. इसमें 26 साला एक नौजवान के करोडपति बनने के सफ़र की कहानी थी जिसने महज 6 साल पहले ही अपने माता-पिता के गैराज से अपनी कंपनी की शुरवात की थी.

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