(Hindi) Start with Why
परिचय
क्यों से शुरुवात की मतलब है कि किसी भी काम को लेकर हम एक पर्पज के साथ आगे बढे. आपने कंपनी क्यों शुरू की थी ? लीडर क्यों बनना चाहते है आप? क्या जिंदगी में आपका कोई पर्पज है, अगर है तो क्या? ये सब सवाल फ़िज़ूल नहीं है, आपको ये बहुत काम के लगेंगे जब आपको पता चलेगा कि कई मल्टी-मिलियन कंपनीयां इसीलिए सक्सेसफुल हो पाई क्योंकि वे एक ख़ास पर्पज के लिए बनाई गयी थी. उन्होंने अपनी शुरुवात व्हाई के साथ की..
इस किताब का सब-टाइटल है “ कैसे ग्रेट लीडर्स ने लोगो को एक्शन लेने के लिए इंस्पायर किया” ग्रेट लीडर्स से हमारा मतलब सिर्फ उनसे नहीं है जो पोलिटिक्स में है बल्कि उन सबसे है जो किसी भी इंडस्ट्री की बड़ी बड़ी कंपनीयों में बड़ी पोस्ट पर होते है. एप्पल एक लीडिंग कंप्यूटर ब्रांड है लेकिन बाद में ये मोबाइल और छोटे इलेक्ट्रोनिक्स इंडस्ट्री में भी उतर गया. क्यों ? इसके बारे में हम बाद में जानेगे. लोगो को एक्शन के लिए इंस्पायर करना” यही ग्रेट लीडरो का काम होता है. एक अच्छा लीडर ना सिर्फ लोगो का वोट हासिल करता है बल्कि उन्हें इंस्पायर भी करता है. ठीक वैसे ही लीडिंग कंपनीज़ भी लोगो को अपना कस्टमर बनाती है और साथ ही उन्हें इंस्पायर भी करती है.
ग्रेट लीडर्स के कई लोयल फोलोवेर्स होते जो उनके लिए किसी भी तरह का सेक्रीफाइस करने के लिए हमेशा तैयार रहती है फिर चाहे कोई भी रास्ता क्यों न अपनाना पड़े. फॉलोवर्स अपने लीडर की इसलिए सुनते है क्योंकि वो उन्हें इंस्पायर करता है. हर सक्सेसफुल कंपनी के अपने लॉयल कस्टमर होते है. कम्पटीटर भले ही उससे बेहतर और नया प्रोडक्ट निकाल ले मगर कस्टमर इतनी जल्दी उसे नहीं खरीदते. वे अपनी पसंदीदा कंपनी और ब्रांड के लिए लॉयल रहते है. तो ऐसा कैसे हुआ ? कैसे उस कंपनी ने इतने लॉयल कस्टमर बनाये. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उस कंपनी ने व्हाई के पर्पज के साथ शुरुवात की थी.
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मेनीपुलेशन बनाम इंस्पायरेशन
मोटोरोला ने अपना फ्लिप टॉप फ़ोन मॉडल रेज़र 2004 में निकाला था. कई हौलीवुड सेलेब्रीटीज़ और प्राइम मिनिस्टर ने भी ये नया फ़ोन खरीदा. मोटोरोला के लिए ये बहुत बड़ी सक्सेस थी. कुल मिलकर उन्होंने रेज़र के 50 मिलियन यूनिट्स बेचे. हालांकि 4 साल में ही कोम्प्टीटर्स ने रेज़र की नकल वाले कई नये फ़ोन मार्किट में उतार दिए थे और भी बढ़िया फीचर के साथ तो मोटोरोला की चमक फीकी पड़ गयी. ये इसलिए हुआ क्योंकि कंपनी ने इंस्पिरेशन के बदले मेनीपुलेशन इस्तेमाल किया तभी इसने अपने सारे कस्टमर खो दिए. इसमें कोई लोयालिटी वाली बात नहीं थी. मोटोरोला ने नया प्रोडक्ट निकाला, लोगो को पसंद आया तो लोगो ने खरीदा मगर किसी और ने जब बेहतर प्रोडक्ट बनाया तो कस्टमर उसकी तरफ खिंच गए. अब अगर मोटोरोला ने लॉयल कस्टमर बनाये होते तो वे सिर्फ मोटोरोला के ही प्रोडक्ट खरीदते.
जो मोटोरोला ने रेज़र के साथ किया वो सिर्फ एक नोवेल्टी थी एक तरह का मेनीपुलेशन. मगर लॉयल्टी पाने के लिए कुछ बड़ा सोचना पड़ता है. लोगो को इंस्पायर करना इतना आसान नहीं है. जब आप लोगो को मेनीपुलेट करोगे तो वे बस थोड़े से वक्त के लिए ही आपको फॉलो करेंगे. आप भले ही उनसे काम निकलवा ले मगर उनकी लॉयल्टी हासिल नहीं कर सकते है. और कोई भी ग्रेट लीडर ऐसा नहीं करता है. जिन तरीको से किसी को मेनीपुलेट किया जा सकता है वो है डर, पीर प्रेशर, एसपाइरेशन, प्राइस, प्रोमोशन और नोवेल्टी. वोट लेने के लिए कोई पोलिटीशियन डर का सहारा ले सकता है. वो पीर प्रेशर से या पैसे देकर या झूठे वादे करके अपने लिए जनता का वोट हासिल कर सकता है. इसी तरह सेल्स इनक्रीज करने के लिए कंपनियां भी अपने प्राइस ड्राप कर लेती है कुछ कम्पनियाँ प्रोमोस और इंसेंसिटिव देती है या फिर नया प्रोडक्ट लांच करती है. मगर ये सब एक अच्छे लीडरशिप का एक्जाम्पल नहीं माना जायेगा.
मेनीपुलेशन किसी भी कंपनी या ओर्गेनाईजेशन को कमज़ोर ही बनाता है. लोग उन्हें फॉलो तो करते है मगर बस कुछ ही टाइम तक. मेनीपुलेशन के लिए काफी पैसा भी खर्च करना पड़ता है फिर भी ये उतना इफेक्टिव नहीं होता. रेज़र फ़ोन कोई इनोवेशन नहीं था तो इसलिए मोटोरोला लोगो को इंस्पायर करने में नाकाम रही. फैक्स मशीन, माइक्रोवेव अवन, लाईट बल्ब, और आईट्यून्श ये चीज़े इनोवेशन मानी जायेंगी क्योंकि ये सारे वो प्रोडक्ट है जिन्होंने पूरी इंडस्ट्री चेंज कर दी या कह सकते है कि इनकी वजह से सोसाइटी की लाइफस्टाइल में एक चेंज आया.
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कुछ अलग सोचे
आओ कुछ अलग सोचे”1984 में जब एप्पल कंपनी बनी तब से लेकर आज तक उसका यही मोटो रहा है. एप्पल ने अपने सभी प्रोडक्ट और एड्वरटाईजिंग में ये बात प्रूव भी की है. जो कुछ भी कंपनी कहती और करती है उसके पीछे कुछ हटकर करना ‘ यही रीजन है. और यही एप्पल का स्ट्रोंग पर्पज है जिसे लेकर कंपनी चलती है. आईट्युन्श ने म्यूजिक इंडस्ट्री को बदल कर रख दिया. 2000 के शुरूवाती दिनों में लोग गानों के लिए सीडी बर्न करते थे. रेकोर्डिंग कंपनियों के लिए पाईरेसी एक बड़ी मुसीबत बन गई थी. तब स्टीव जॉब्स ने आईट्यून्श निकाल कर लोगो के सामने एक आल्टरनेट रखा. आईटुययूंश और आई पैड ने म्यूजिक इंडस्ट्री को डूबने से बचा लिया.
क्या आपको मालूम है कि एम्पी3 प्लेयर असल में एप्पल ने नहीं बनाया था. दरअसल ये क्रिएटिव टेक्नोलोजी सिंगापोर लिमिटेड के दिमाग की उपज थी. लेकिन फिर इसका सारा क्रेडिट एप्पल कैसे ले गया? क्रिएटिव ने अपने प्रोडक्ट को 5जीबी एमपी3 प्लेयर नाम से रिलीज़ किया था. लेकिन एप्पल ने आई पैड को कुछ ऐसे पेश किया” एक हज़ार गाने आपकी पॉकेट में “. क्रिएटिव ने मार्किट को बताया कि उनका प्रोडक्ट “क्या” है पर एप्पल ने आईपैड “क्यों खरीदे” ये लोगो को बताया. क्योंकि लोग “क्या” नहीं समझते, वे कोई चीज़ “क्यों” है ये समझते है और खरीदते है.
आई फ़ोन के साथ एप्पल ने एक इनोवेशन किया था. ये मोटोरोला के रेजर की तरह सिर्फ एक नया प्रोडक्ट नहीं था. आई फोन की वजह से ही स्मार्ट फ़ोन का ट्रेंड चल निकला. इसे देखकर नोकिया, एरिक्सन और मोटोरोला ने भी टच स्क्रीन वाले फ़ोन निकाले. आई फोन के ग्राफिक इंटरफेस और सिंपल डिजायन ने मोबाइल फ़ोन की इंडस्ट्री ही बदल कर रख दी.
क्या आपको ये पता है कि साल 2003 में डेल ने अपना खुद का एक एमपी 3 प्लेयर निकाला था. मगर ये उतना सक्सेसफुल नहीं हुआ जितनी की कंपनी को उम्मीद थी. वजह ये थी कि डेल को लोग एक ऐसी कंपनी के रूप में जानते है जो सिर्फ कंप्यूटर बनाती है ऐसे में उसके मोबाइल या एमपी3 प्लेयर खरीदना लोगो के गले नहीं उतरा. और कुछ सालो बाद डेल ने आखिरकार अपने नए प्रोडक्ट मार्किट से हटा ही दिए.
मगर एप्पल आखिर कैसे एक कंप्यूटर बनाने वाली कंपनी से मोबाइल और गेजेट्स बनाने वाली कंपनी बन गयी. वो इसलिए क्योंकि एप्पल का एक ही मकसद था “ कुछ अलग सोचना” और यही वजह है कि जो भी प्रोसेसेस और प्रोडक्ट्स कंपनी बनाती है उस सबके पीछे कुछ अलग करने की सोच ही काम करती है. .
एप्पल ने अपनी शुरुवात “व्हाई” के साथ की. सबसे पहले तो कंपनी ने एक स्ट्रोंग पर्पज एस्टेबिलिश किया जो था सबसे हटकर सोचना. आज हम एप्पल को “व्हाई “ के लिए जानते है ना कि”व्हट” के लिए. जब कंपनी बनी थी तो इसका लीगल नाम एप्पल कंप्यूटर इंक. रखा गया था लेकिन 2007 में कंपनी ने अपना नाम बदल कर सिर्फ एप्पल इंक कर लिया. ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि कंपनी अब कंप्यूटर के अलावा भी काफी कुछ बनाती है.
ना सिर्फ कंप्यूटर इंडस्ट्री में बल्कि छोटी इलेक्ट्रोनिक्स इंडस्ट्री और मोबाइल फ़ोन में भी एप्पल ने अपनी लीडरशिप कायम की. उन्होंने हमेशा अपना पर्पज बनाये रखा तो इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि वे “क्या” बना रहे है. एप्पल ने इनोवेशन करके और दूसरी इंडस्ट्रीज़ में चेंज लाकर वो कर दिखाया जो एचपी और डेल कंप्यूटर नहीं कर सके. एचपी और डेल ने भी एप्पल की तरह बनने की काफी कोशिश की मगर बन नहीं पाए और फिर वे बस कंप्यूटर बनाने तक ही सिमट कर रह गए.
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