(hindi) Spark: The Revolutionary New Science of Exercise and the Brain
इंट्रोडक्शन
क्या आप एक्सरसाइज करते हैं? क्या आप एक्सरसाइज ख़ुद को फिट रखने के लिए करते हैं या इसलिए क्योंकि आपको वर्कआउट करना पसंद है? अगर आप एक्सरसाइज नहीं करते तो क्या आपने कभी सोचा है कि आपका ब्रेन रोज़ाना कितनी एक्सरसाइज कर रहा है?
ये बुक एक्सरसाइज के बारे में आपके नजरिए को बदल देगी. ये आपको कहने पर मजबूर कर देगी कि काश आप हाई स्कूल के जिम क्लास में ज़्यादा एक्टिव होते क्योंकि आपके ब्रेन को आपकी सोच से ज़्यादा फिजिकल एक्टिविटी की ज़रुरत होती है. इस बुक में आप ब्रेन और एक्सरसाइज के बीच के रिश्ते को समझेंगे.
आप सीखेंगे कि एक्सरसाइज आपको ज़्यादा स्मार्ट, ज़्यादा प्रोडक्टिव बनाती है और आपमें एक स्ट्रोंग फाइटिंग स्पिरिट डेवलप करने में मदद करती है जो आपको जिंदगी की नई चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करते हैं. आप ये भी जानेंगे कि एक्सरसाइज आपको रिलैक्स करने में, डिप्रेशन से लड़ने में और ख़ुशहाल और ज़्यादा पॉजिटिव लाइफ जीने में मदद करती है.
शायद इस बुक की सबसे ख़ास बात जो आप अपने साथ ले जा सकते हैं वो ये है कि हर दिन सुबह की सैर या जॉगिंग बुढ़ापे के असर को कम कर सकते हैं और कौन नहीं चाहता कि बूढ़े हो जाने के बाद भी उनकी याददाश्त बिलकुल जवानी की तरह बरकरार रहे. अगर आपको मशीन का इस्तेमाल करना या कार्डियो वर्कआउट करना पसंद नहीं है तब भी आप सिर्फ़ walking के ज़रिए इसका फ़ायदा उठा सकते हैं.
तो क्या आप ये सीखने के लिए तैयार हैं कि उम्र बढ़ जाने के बाद भी कैसे तेज़ याददाश्त बनाए रखें, कैसे ज़्यादा ख़ुश और healthy बने रहे? तो चलिए ये दिलचस्प सफ़र शुरू करते हैं.
Welcome To The Revolution
चलिए सच-सच बताइए क्या कभी किसी स्टूडेंट ने स्कूल में पी.टी क्लास को सीरियसली लिया है? हम सभी को एक्सरसाइज या जिम क्लास से चिढ़ होती थी क्योंकि हमें लगता था कि उससे कोई फ़ायदा तो होने वाला नहीं है सिर्फ़ बॉडी में दर्द ही होगा. शायद अब स्कूल में ट्रेनर्स को ये बताना चाहिए कि एक्सरसाइज का डायरेक्ट कनेक्शन ब्रेन से होता है, तो शायद बच्चे इसे सीरियसली लेने लगें.
शिकागो के हाई स्कूल में नील डंकन नाम के एक जिम ट्रेनर थे. एक्सरसाइज का बच्चों के ब्रेन पर क्या असर होता है वो भली भाँती जानते थे. इसलिए उन्होंने अपने स्कूल में एक्सपेरिमेंट करने का फ़ैसला किया.
स्कूल शुरू होने से पहले वो अपने नए स्टूडेंट्स को एक छोटे से रूम में इकट्ठा करते और उन्हें warm up करने के लिए कहते. उसके बाद वो उन्हें दौड़ाने के लिए बाहर ले जाते. उन सबकी बॉडी पर हार्ट मॉनिटर लगा हुआ था. सब बाहर ट्रैक पर जाते और एक मील तक दौड़ते. उन्हें नील ने बड़े क्लियर इंस्ट्रक्शन दिए थे, हर स्टूडेंट को अपनी कलाई पर बंधी wrist watch का लाल बटन दबाना था ताकि गिनती शुरू हो सके. इस एक्सरसाइज का मकसद स्टूडेंट्स को ज़्यादा से ज़्यादा तेज़ दौड़ने के लिए पुश करना था.
ये गोल तो उन्होंने स्टूडेंट्स को बताया था लेकिन असल में उनके दिमाग में तो कुछ और ही चल रहा था. वो एक्सरसाइज को लेकर इतने सख्त इसलिए थे क्योंकि उनका मानना था कि क्लास शुरू होने पहले अगर एक्सरसाइज की जाए तो बच्चे बाद में ज़्यादा अच्छे से पढ़ सकेंगे.
ये कोई आम एक्सरसाइज की क्लास नहीं थी, इसे Zero Hour PE कहा जाता था. इस क्लास को कई टीचर्स ने इसी प्रिंसिप्ल को अप्लाई को करते हुए चलाया था और वो अपने स्टूडेंट्स को सबसे फिट और स्मार्ट बनने के लिए गाइड करते थे. उनका पढ़ाने का तरीका ब्रेन और एक्सरसाइज के बीच के रिलेशन से इंस्पायर हुआ था.
आसान शब्दों में कहा जाए तो, सीखने का प्रोसेस कनेक्शन बनाने पर बेस्ड होता है और ब्रेन को कनेक्शन बनाने में मदद करने के लिए एक्सरसाइज की ज़रुरत होती है. वर्कआउट करने से ना सिर्फ़ बॉडी के बल्कि ब्रेन के मसल्स भी मज़बूत होते हैं.
एक्सरसाइज करने के ठीक बाद, स्टूडेंट्स सीखने के लिए तैयार हो जाते हैं क्योंकि एक्सरसाइज ब्रेन को जगा देता है, उसे एक्टिव कर नई चीज़ें सीखने के काबिल बना देता है. ऐसा मान लीजिए जैसे एक्सरसाइज वो स्विच है जो आपके ब्रेन में लाइट जला देता है. डंकन के एक्सपेरिमेंट का नतीजा ये था कि सेमेस्टर के अंत में, स्टूडेंट्स के पढ़ने लिखने की स्किल 17% बढ़ गई थी. इसके अलावा, शिकागो डिस्ट्रिक्ट देश के टॉप ten बेस्ट स्कूल में से एक बन गया था.
जब स्टूडेंट्स से पूछा गया कि उनपर किए एक्सपेरिमेंट से क्या उन्हें कोई आपत्ति थी? तो एक ने जवाब दिया कि उसे कोई आपत्ति नहीं थी. स्टूडेंट्स ने ये भी कहा कि हर सुबह जल्दी उठने और स्कूल जाने से पहले एक्सरसाइज करने से वो पूरे दिन ज़्यादा प्रोडक्टिव और एक्टिव हो जाते थे.
इस एक्सपेरिमेंट ने साबित कर दिया था कि एक्सरसाइज का सीधा असर ब्रेन पर होता है. चाहे आपको एक्सरसाइज करना पसंद हो या ना हो, लेकिन थोड़ी सी एक्सरसाइज आपकी प्रोडक्टिविटी को लगभग 10% बढ़ा देती है, तो बताइए इसे करने में हर्ज़ ही क्या है?
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Learning: Grow Your Brain Cells
जैसा कि हमने देखा कि स्कूल से पहले एक्सरसाइज करने से स्टूडेंट्स का फोकस बढ़ गया था और वो ज़्यादा एक्टिव भी फील करते थे. ये सिर्फ़ स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए नहीं है बल्कि बड़े भी वर्कआउट कर इसके जादू का फ़ायदा उठा सकते हैं क्योंकि हमारा ब्रेन हर वक़्त नई नई इनफार्मेशन को प्रोसेस करने में लगा रहता है और एक्सरसाइज का इस पर सीधा असर होता है.
शायद आप नहीं जानते होंगे कि प्लास्टिक की तुलना में हमारा ब्रेन ज़्यादा फ्लेक्सिबल होता है. किसी भी दूसरे muscle की तरह ब्रेन को एक्सरसाइज के ज़रिए शेप दिया जा सकता है. इससे हम अपने सीखने, सोचने और काम करने के तरीके में सुधार कर सकते हैं.
हमारे विचार अलग-अलग ब्रेन सेल्स और नयूरोंस के बीच बने कनेक्शन का रिजल्ट होते हैं. एक्सरसाइज ब्रेन के सेल्स को और जो कनेक्शन वो दूसरे नयूरोंस के साथ बनाता है उसे मज़बूत करता है. इसलिए सीखने के लिए या ब्रेन से संबंधित किसी भी प्रॉब्लम के लिए एक्सरसाइज सबसे अच्छी दवा है.
आइए एक नज़र उस एक्सपेरिमेंट पर डालते हैं जो न्यूरोसाइंटिस्ट हेनरिटा वैन प्राग ने अपनी लेबोरेटरी में चूहों पर किया था. चूहों को पानी बिलकुल पसंद है इसलिए जब भी वो इसे छूते हैं तो घबराहट में भागने की कोशिश करते हैं.
हेनरिटा ने एक छोटा पूल पानी से भरा और उसे एक धुंधले कवर से ढक दिया. ये कवर उस रास्ते को ढक रही थी जिसे चूहे पानी से बाहर निकलने के लिए इस्तेमाल करने वाले थे. एक्सपेरिमेंट से पहले, चूहों को दो ग्रुप में डिवाइड किया गया. पहला ग्रुप, हर रात 5 किलोमीटर दौड़ता था और उन्हें एक्टिव participants कहा गया. दूसरे ग्रुप ने कोई एक्टिविटी नहीं की इसलिए उन्हें आलसी चूहों का ग्रुप कहा गया.
इस एक्सपेरिमेंट को ये देखने के लिए किया गया था कि अगर रास्ते को ढक भी दिया जाए तो क्या चूहे बाहर निकलने का रास्ता खोज पाएँगे या नहीं. जब दोनों ग्रुप के चूहों को पूल में डाला गया तो जो चूहे हर रात दौड़ते थे, उन्होंने फ़टाफ़ट बाहर निकलने का रास्ता ढूंढ लिया जबकि दूसरे ग्रुप को ये समझने में बहुत वक़्त लगा कि पानी से कैसे बचा जाए.
जब उन चूहों को काटा गया तो हेनरिटा ने देखा कि जो चूहे दौड़ते थे उनके ब्रेन में नए स्टेम सेल्स की संख्या दो गुनी हो गई थी जिससे उन्हें तेज़ी से बाहर निकलने का रास्ता याद आ गया था. तब हेनरिटा ने कहा कि ये साबित करता है कि ब्रेन और एक्सरसाइज के बीच एक गहरा कनेक्शन है. नए स्टेम सेल्स मुश्किल काम को करने के लिए ज़िम्मेदार होते हैं और जब उन्हें block कर दिया जाता है तो चूहों को काम कैसे करना वो याद नहीं रहता.
भले ही ये एक्सपेरिमेंट चूहों पर किया गया हो लेकिन Zero Hour PE की कहानी ये साबित करती है कि एक्सरसाइज नई चीज़ों को सीखने में और उसे याद रखने की एबिलिटी को बढ़ा देता है.
इसलिए अगर आपको कोई नई स्किल या कोई भी काम सीखने में दिक्कत हो रही है तो अपने डेस्क पर बैठने से पहले एक्सरसाइज करने की कोशिश करें. ये आपका मोटिवेशन, फोकस और सीखने की एबिलिटी को बढ़ाएगा और आपको पूरे दिन ज़्यादा प्रोडक्टिव भी बनाए रखेगा.
Stress: The Greatest Challenge
स्ट्रेस वो एहसास है जिसे हम तब एक्सपीरियंस करते हैं जब लाइफ में ना कुछ भी सही नहीं हो रहा होता है. ये किसी बाहर के फैक्टर के कारण हो सकता है जैसे काम का प्रेशर या ये फैक्टर हमारे अंदर से भी आ सकता है जैसे उदास महसूस करना या किसी दर्दनाक घटना के बारे में सोचना. स्ट्रेस एक जानी-पहचानी भावना के रूप में शुरू हो सकता है लेकिन जब ये लंबे समय तक बना रहता है तो जानलेवा बीमारी में बदल सकता है जैसे डिप्रेशन, हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट की बीमारी वगैरह.
अक्सर हम इस बात पर गौर नहीं करते कि आखिर स्ट्रेस होता क्यों है? ये तब होता है जब हमारे ब्रेन के सेल्स बहुत थक जाते हैं. क्या आप जानते हैं कि हमारे ब्रेन के लिए, पानी का एक ग्लास लाना भी बहुत थकाने वाला काम हो सकता है? लेकिन अपने पहले एक्सपीरियंस के बाद हम स्ट्रेस महसूस नहीं करते क्योंकि हम अपने पहले की मेमोरी को याद करते हैं और समय के साथ पानी का ग्लास लाने के लिए हमारे muscle ट्रेन हो जाते हैं. एक्सरसाइज करने से हम स्ट्रेस को महसूस किए बिना मुश्किल चुनौतियों का सामना करने के लिए अपने ब्रेन के सेल्स को मज़बूत करते हैं. आइए इसे एक कहानी से समझते हैं.
सुज़न एक एक्टिव और फुर्तीली औरत थी जो स्ट्रेस से जूझ रही थी. वो अपने किचन को दोबारा नया बनवा रही थी जिस वजह से उन्हें घर पर ही रहना पड़ता था. कंस्ट्रक्शन का काम बहुत धीरे-धीरे हो रहा था जिस वजह से उन्हें काफ़ी समय तक घर पर रहना पड़ा. पूरे दिन घर में चारों ओर काम का शोर सुनाई देता लेकिन सुज़न को उससे परेशान नहीं होती थी, सुज़न को जो बात चुभती थी वो थी ख़ामोशी और सन्नाटा. सुज़न हर जगह बिखरी धूल से और घर में अजनबियों के आने जाने से बिलकुल परेशान हो गई थी. अब वो ख़ुद को फंसा हुआ महसूस करने लगी थी.
वैसे तो सुज़न की जिंदगी ठीक ठाक चल रही थी. वो 40 साल की थी, जॉब करती थी, उसके तीन बच्चे थे जो कॉलेज में पढ़ते थे और अपने काम की वजह से सुज़न हमेशा बिजी रहती थी इसलिए उसे कभी यूं घर पर बंधन में नहीं रहना पड़ा.
लेकिन किचन के काम की वजह से अब वो घुटन महसूस कर रही थी जो उसके लिए एक अजीब सा नया एक्सपीरियंस था. इसलिए सुज़न ने अपने घर के आस पास टहलना शुरू किया. बाद में वो ख़ुद को रिलैक्स करने के लिए एक ग्लास वाइन पी लेती थी. जल्द ही ये एक से दो ग्लास होना शुरू हो गया और फ़िर ऐसा वक़्त आया जब वो पूरी bottle पीने लगी. तब सुज़न को एहसास हुआ कि उसे डॉक्टर के मदद की ज़रुरत है.
डॉ. जॉन रेटी ने उसे स्ट्रेस को दूर करने के लिए कोई और रास्ता ढूँढने के लिए कहा. बहुत सोचने के बाद कि सुज़न को क्या पसंद और नापसंद है, डॉ. ने उसे स्ट्रेस महसूस करने पर रस्सी कूदने की सलाह दी. सुज़न ने अपने घर के हर फ्लोर पर एक एक रस्सी रख दी ताकि वो उसे कभी भी यूज़ कर सके. अब जब भी उसे स्ट्रेस महसूस होता तो वो रस्सी कूदने लगती.
इस एक्सरसाइज से धीरे-धीरे सुज़न की हर रोज़ वाइन पीने की आदत कम होने लगी. रस्सी कूदने से उसकी बेचैनी कम होने लगी थी और उसे लगने लगा था कि इस सिंपल से एक्सरसाइज से वो अपने ब्रेन को रिचार्ज कर रही थी. उसने ख़ुद पर जो कंट्रोल खो दिया दिया था अब वो दोबारा उसके हाथों में आने लगा था.