(hindi) Smarter Faster Better: The Secrets of Being Productive in Life and Business
इंट्रोडक्शन
इस बुक में आप ऐसे कई इम्पोर्टेन्ट कॉन्सेप्ट्स सीखेंगे जो आपकी टीम के पोटेंशियल और प्रोडक्टिविटी को बढ़ाकर उसे सक्सेस की ओर पुश करेगा.इनमें इनोवेशन, पीपल मैनेजमेंट, गोल सेटिंग, फोकस, टीम वर्क और मोटिवेशन शामिल हैं. इसके साथ-साथ आप अपने स्किल को अपग्रेड करने के तरीके भी सीखेंगे.
आप टोयोटा ब्रांड के ट्रस्ट कल्चर और Frozen मूवी के पीछे की क्रिएटिविटी के दिलचस्प किस्सों के बारे में जानेंगे.आप General Electric से इफेक्टिव गोल सेटिंग और Google से बेहतरीन टीमवर्क के बारे में सीखेंगे.
तो क्या आप ख़ुद को और अपनी टीम को स्मार्टर, फास्टर और बैटर बनाने के लिए excited हैं? इसके लिए आपको सिर्फ़ इस बुक की ज़रुरत है.
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Innovation
किसी भी इंसान के लिए क्रिएटिविटी का सबसे अच्छा मीडियम उसकी अपनी जिंदगी होती है. हमारे फीलिंग्स और इमोशंस हमारे पर्सनल एक्सपीरियंस को इनोवेटिव प्रोडक्ट्स और आर्ट में री- क्रिएट यानी दोबारा बनाने में मदद करते हैं.
स्टीव जॉब्स ने एक बार कहा था कि क्रिएटिविटी का मतलब है कई अलग-अलग चीज़ों के बीच एक कनेक्शन बनाना.जब लोग इस बात पर ध्यान देते हैं कि चीज़ें उन्हें कैसा महसूस कराती हैं तो वो बेहतर और इनोवेटिव प्रोडक्ट्स बना पाते हैं. आइए इसे एक एग्ज़ाम्पल से समझते हैं.
क्या आपने Frozen मूवी देखि है? कई लोगों की ये पसंदीदा फिल्मों में से एक है. लेकिन क्या आप इस कमाल की फ़िल्म के पीछे की कहानी जानते हैं ? जब Frozen मूवी का पहला ड्राफ्ट तैयार हुआ तो उसे पूरी टीम को दिखाया गया. ड्राफ्ट को देखने के बाद, फ़िल्म के डायरेक्टर क्रिस बक ने फ़ीडबैक लेने के लिए पूरी टीम के साथ मीटिंग की.उस समय फ़िल्म की कहानी रिलीज़ की गई कहानी से काफ़ी अलग थी.एक एक कर टीम मेंबर्स स्टोरी लाइन में ख़ामियाँ निकालने लगे. ज़्यादातर कमियाँ इस बात से जुड़ी थी कि फ़िल्म में ज़्यादा भावनाएं शामिल नहीं थीं जिस वजह से उन्हें लग रहा था कि ऑडियंस को फ़िल्म सेकोई कनेक्शन महसूस नहीं होगा. इसके अलावा भी कई छोटी मोटी कमियाँ थीं जिन्हें बदलकर फ़िल्म को और भी बेहतर बनाया जा सकता था.
इस नेगेटिव फ़ीडबैक से बक को आश्चर्य नहीं हुआ. उनकी टीम अच्छे से जानती थी कि उस वक़्त फ़िल्म परफेक्ट नहीं बनी थी. लेकिन टीम के पास कहानी बदलने और फ़िल्म ख़त्म करने के लिए सिर्फ़ 18 महीने थे.
अब यहाँ बदलाव और इनोवेशन के साथ काम करने की एक प्रॉब्लम ये थी कि उन्हें एक डेडलाइन तक इसे पूरा करना था. इस बारे में टीम के बीच ख़ूब चर्चा हुई, फ़िर फ़िल्म की एक राइटर जेनिफ़र ली ने सबसे कहा कि “ये सोचना बंद करो कि क्या काम नहीं कर रहा है. इसके बजाय इस बारे में सोचना शुरू करो कि आप स्क्रीन पर क्या देखना चाहते हैं.”
कुछ मेंबर्स ने कहा कि ये फ़िल्म इसलिए exciting थी क्योंकि इसने दो स्ट्रोंग, इंडिपेंडेंट और स्मार्ट लड़कियों की कहानी से गर्ल पॉवर को दिखाया था जहां लड़के नहीं बल्कि दो लडकियां हीरो थीं.कुछ लोगों ने कहा कि ये इसलिए अच्छी फिल्म थी क्योंकि ये दो बहनों को साथ ले आई थी.
इस तरह सोचने से लोग अपने पर्सनल एक्सपीरियंस जैसे भाई-बहन के साथ उनके रिश्ते या वो किस माहौल में बड़े हुए इन सबको याद कर नए नए आईडिया देने लगे.
एक ऐसी ही घटना थी जब song राइटर बॉबी और क्रिस्टन लोपेज़ पार्क में टहल रहे थे. क्रिस्टन ने बॉबी से पूछा, “अगर तुम फ़िल्म के कैरेक्टर elsa होते तो तुम्हें कैसा लगता जब लोग तुम्हें जज करते?” इस तरह के सवालों ने उन्हें अपनी ख़ुद की जिंदगी की उन घटनाओं के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया जब लोगों ने उन्हें जज किया था.
सोचते-सोचते वो दोनों इस नतीजे पर पहुंचें कि किसी भी इंसान को परफेक्ट ना होने के लिए जज नहीं किया जाना चाहिए.elsa में भी कई कमियाँ थी लेकिन इसके लिए उसे माफ़ी मांगने की कोई ज़रुरत नहीं थी. उस पर जादू का असर था जिस पर उसका कोई कंट्रोल नहीं था.तो पूरी जिंदगी हर किसी से इतनी नफ़रत महसूस करने के बाद elsa को क्या करना चाहिए?
इसका जवाब बड़ा ही गहरा है,उसेइन बातों को पकड़ कर रखने के बजाय बस जाने देना चाहिए. जिंदगी में “Let Go” का attitude होना बहुत ज़रूरी है नहीं तो आप कभी अपने बीते हुए कल से निकल कर आने वाले कल में कदम नहीं रख पाएँगे. इसलिए elsa को भी किसी की परवाह नहीं करनी चाहिए. इन सब बातों पर गहराई से सोचने के बाद बॉबी और क्रिस्टन ने Frozen का फेमस थीम song “Let it Go” लिखा था.
ये गाना कहानी के साथ इतना फ़िट बैठ रहा था कि इसे सुनने के बाद पूरी टीम ने अपने अपने पिछले एक्सपीरियंस को जोड़कर एक कमाल की कहानी तैयार की. जैसा कि हम सब जानते हैं कि Frozen एक इंटरनेशनल ब्लॉकबस्टर हिट साबित हुई. ये एग्ज़ाम्पल हमें दिखाता है कि लोगकैसे अपने पर्सनल एक्सपीरियंस और इमोशन का इस्तेमाल कर ज़्यादा क्रिएटिव और इनोवेटिव हो सकते हैं.
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Managing Others
एक कंपनी के अंदर विश्वास का माहौल सक्सेस पाने के लिए बहुत ज़रूरी होता है. एक कंपनी का कल्चर उसकी स्ट्रेटेजी जितनी ही मायने रखती है.अगर एम्प्लोईज़ एक दूसरे पर भरोसा नहीं करते हैं तो चाहे कितना भी यूनिक और कमाल का प्रोडक्ट क्यों ना हो या चाहे कंपनी के कितने भी लॉयल कस्टमर क्यों ना बन जाएं,वो भी कंपनी को फेल होने से नहीं रोक सकते. इसके साथ साथ ये भी बहुत ज़रूरी है कि प्रॉब्लम जिस लेवल पर है उसे उसी लेवल पर सोल्व करने की परमिशन दी जानी चाहिए.
टॉप लेवल के एम्प्लाइज नीचे के लेवल के प्रोब्लम को उतनी बेहतर तरीके से नहीं समझ सकते जितना उस लेवल के वर्कर्स समझ पाएँगे. इसलिए खुद प्रॉब्लम को सोल्व करने की बजाय बॉस को उन लोगों को ये ज़िम्मेदारी देनी चाहिए जिनके पास उसकी ज़्यादा नॉलेज हो.आइए एक एग्जाम्पल से इसे समझते हैं.
रिकमैड्रिड ने 27 साल फ्रीमोंट, कैलिफ़ोर्निया के General Motors plant में काम किया. फ्रीमोंट को दुनिया की सबसे खराब ऑटो फैक्ट्री के रूप में जाना जाता था.उस समय कंपनी का कल्चर इतना बिगड़ा हुआ था कि वर्कर्स ने वर्किंग hour के दौरान ही पीना शुरू कर दिया था. सभी अपनी मनमानी करते थे. वर्कर्स जानते थे कि जब तक वो हर दिन के टारगेट को पूरा करते रहेंगे तब तक उन्हें कोई टोकने वाला नहीं है और वो किसी मुसीबत में नहीं पड़ने वाले.
रिक को अपनी जॉब पसंद नहीं थी, वो वहाँ सिर्फ़ पैसा कमाने के लिए रुका था. कार की क्वालिटी कैसी है इससे उसे कोई मतलब नहीं था.उसे तो बस ज़्यादा से ज़्यादा कार बनाने से मतलब था.
काम के दौरान एम्प्लाइज जब किसी पार्ट में कोई गलती देखते तो उसे ठीक करने के लिए कन्वेयर बेल्ट को रोकते नहीं थे, बस उस पर एक मार्क लगा देते ताकि उसे बाद में रिपेयर किया जा सके. ऐसा इसलिए था क्योंकि सभी एम्प्लाइज को असेंबली लाइन रोकने से सख्त मना किया गया था.
इस सिस्टम के साथ प्रॉब्लम ये थी कि रिपेयर करने के लिए पहले से बने बनाए पार्ट्स को तोड़कर, उसकी गलती ठीक कर उसे दोबारा जोड़ना पड़ता था.इस inefficient तरीके से बहुत समय और पैसा बर्बाद होता था. इसके साथ ही, कस्टमर के यूज़ करने के कुछ ही सालों बाद रिपेयर किया गया पार्ट एक बार फ़िर प्रॉब्लम का कारण बनने लगा था.
रिक का मानना था कि वर्कर्स के साथ भी एक मशीन के पार्ट्स की तरह ही बर्ताव किया जा रहा था. वहाँ हर डिपार्टमेंट के लिए अलग अलग वर्कर्स मौजूद थे लेकिन मैनेजर ने कभी भी किसी एम्प्लोई के विचार नहीं पूछे या उससे कोई राय नहीं ली.
जल्द ही,General Motors को फ्रीमोंट प्लांट को बंद करना पड़ा. दो साल बाद उसे दोबारा खोलने के लिए General Motors नेJapanese ऑटो मेकर टोयोटा के साथ पार्टनरशिप की. General Motors टोयोटा के बेहतरीन प्रोडक्शन सिस्टम के बारे में सीखना चाहता था,जो बहुत कम कॉस्ट में हाई क्वालिटी कार बनाया करती थी.तो वहीँ दूसरी ओर, टोयोटा General Motors के माध्यम से अमेरिका में अपनी कार बेचना चाहता था.
जब General Motors दोबारा खोला गया तब रिक ने जॉब के लिए अप्लाई किया और उसे हायर कर लिया गया.टोयोटा प्रोडक्शन सिस्टम को देखने और समझने के लिए उसे जापान भेजा गया.
वहाँरिक ने जो पहली बात देखी वो ये थी कि कार के किसी भी हिस्से में कोई भी गलती मिलने पर तुरंत कन्वेयर बेल्ट को रोक दिया जाता और उस गलती को उसी वक़्त ठीक किया जाता था. वर्कर उस गलती पर काम करता और सीनियर मैनेजर उसके फ़ीडबैक लेने के लिए उसके पास खड़े रहते. रिपेयर ख़त्म होने के बाद ही असेंबली लाइन को दोबारा चालू किया जाता था.
अगली बात जो रिक ने देखी वो ये थी कि एक वर्कर खुलकर अपनी राय या किसी मशीन और टूल के बारे में मैनेजर को बताता था. एक डिजाईन को पूरा करने के लिए वो साथ मिलकर काम करते थे.वहाँ वर्कर की दी गई राय को सुना जाता था. रिक को बताया गया कि प्रॉब्लम को हमेशा उन लोगों को सोल्व करने देना चाहिए जो उसके साथ काम करते हैं यानी जो उसके सबसे करीब होते हैं. उस कंपनी में प्रॉब्लम को हमेशा सबसे नीचे के लेवल पर ले जाकर सोल्व किया जाता था. इससे रिक को ये समझ में आया किकंपनी में हर एक एम्प्लोई की राय कितनी मायने रखती है.
अपनी कंपनी के बेहतरीन कल्चर द्वारा टोयोटा ने ख़ुद को जापान में ही नहीं बल्कि अमेरिका में भी एक सक्सेसफुल ब्रैंड के रूप में साबित किया था और इसी कल्चर को अपनाकर General Motors ने एक नई शुरुआत कर सक्सेस हासिल की.