(hindi) Simplify: 7 Guiding Principles to Help Anyone Declutter Their Home and Life
इंट्रोडक्शन
क्या आप साफ़-सुथरे घर में रहना पसंद करते हैं पर सफाई करने से कतराते हैं? क्या आप सफाई को टालते रहते हैं क्योकिं ये आपको थका देता हैं? क्या आप औरों की तरह कहते हैं कि सफाई करेंगे लेकिन कभी स्टार्ट नहीं कर पाते?
इस बुक में आप जानेंगे कि ऑथर जॉशुआ बेकर ने कैसे अपनी मिनिमलिस्ट लाइफस्टाइल की शुरुवात की. आप की ही तरह जॉशुआ को भी अपना घर साफ़ करना बिलकुल पसंद नहीं था लेकिन जब से उन्होंने अपने घर में मिनिमलिस्म की शुरुवात की हैं, तब से उन्हें साफ़-सफाई करने में कोई दिक्कत नहीं होती.
जॉशुआ और उनकी फैमिली जिन मिनिमलिस्ट प्रिंसिपल्स को फॉलो करते हैं, आप भी उन प्रिंसिपल्स को सीख सकते हैं. उन्होंने जिन ट्रिक्स और टिप्स को यूज़ करके डीक्लटरिंग प्रोसेस को सक्सेसफुल बनाया, आप उन सब के बारें में भी जानेंगे.
क्या आप मिनिमलिस्म के बारें में और जानना चाहते हैं?
प्रिंसिपल नंबर 1 : यकीन रखिए.
अपने घर और ज़िन्दगी से बेकार की चीज़ों को निकालकर डिक्लटरिंग करने से पहले आपको अपना माइंडसेट बनाना होगा. आप वही काम करते हैं जो आपके दिल में होता हैं. इसीलिए अगर आप दिल से मिनिमलिस्ट बनने की कोशिश नहीं करेंगे तो आपकी साधारण कोशिश एक साधारण रिजल्ट ही देगी. मिनिमलिस्ट लाइफस्टाइल ही आपके लिए सबसे बेहतर लाइफस्टाइल हैं, इस बात पर यकीन करने के लिए आपको कई कारण चाहिए. इसलिए जॉशुआ ने मिनिमलिस्ट बनने के पांच फायदे गिनाए हैं.
पहला फायदा ये हैं कि आपके खर्चे कम होंगे. वैसे ये तो ज़ाहिर सी बात हैं पर ज़्यादातर लोग इस सच्चाई को अनदेखा कर देते हैं. बहुत ज़्यादा चीज़ों का मतलब हैं ज़्यादा खर्चे और दुनिया में ऐसे लोग कम ही हैं जिन्हें ये चिंता नहीं होती कि पैसे कहाँ से आएंगे. एक मिनिमलिस्ट ज़िन्दगी जीने से सिर्फ आपके खर्चे कम नहीं होते बल्कि आपके घर में चीज़ों की भरमार भी कम होती हैं.
दूसरा फायदा हैं कम स्ट्रेस वाली ज़िन्दगी. घर में अगर बेहिसाब चीज़ें पड़ी हैं तो वे आँखों को खटकते हैं. आपको हर चीज़ पर अपना ध्यान देना होता हैं जिन्हें देखते-देखते आपको स्ट्रेस हो जाता हैं. मिनिमलिस्म यानि कि कम चीज़ों में गुज़ारा करने की प्रैक्टिस करने से आपका मन शांत रहेगा. ज़रा सोचिए दो किचन हैं, एक किचन में सिर्फ एक कटोरी फ्रूट्स पड़ी हैं और दूसरे किचन में एक कटोरी फ्रूट्स, एक कॉर्नफ़्लेक्स का डब्बा और कुछ फैले हुए बिल्स रखें हैं. कौन सा किचन अच्छा दिखेगा? कौन सा आपके मन को शांत करेगा? ज़ाहिर हैं पहला किचन जिसमें कोई क्लटर नहीं हैं, वही बेहतर दिखेगा.
तीसरा फायदा हैं साफ़-सफाई करना आसान हो जाता हैं. हम सफाई से इसलिए कतराते हैं क्योंकि हमें ढेर सारी चीज़ों को साफ़ करना होता हैं. ऐसा लगता हैं कि धूल-मिट्टी कहीं भी घुस आती हैं. जॉशुआ को यकीन नहीं हुआ कि उन्होंने सालों ऐसे घर की सफाई की जिसमें क्लटर भरा था. वे जब भी अपने बच्चों के रूम के शेल्फ और उनके खिलौनों को देखते, उनमें हमेशा धूल-मिट्टी की परत बनी होती थी. डिक्लटरिंग के कारण जॉशुआ अब सारी चीज़ों को धूल-मिट्टी से बचा पाते थे.
चौथा फायदा हैं कि ये एनवायरनमेंट यानि कि हमारे वातावरण के लिए बहुत अच्छा हैं. मान लीजिए आपकी माँ को घर साफ़ रखने का जूनून हैं. वो हमेशा फर्श को साफ़ करती हैं, फर्नीचर को अरेंज करती हैं और फ़ौरन सारे गंदे बर्तन धो डालती हैं. आपकी माँ इतने मेहनत से घर को साफ़ रखने की कोशिश करती हैं, अब ये बताइए कि अपनी माँ की मेहनत को रिस्पेक्ट देने के लिए और साफ़-सफाई को बनाए रखने के लिए आप क्या कर सकते हैं? बाहर कीचड़ में घूमकर वापस आने पर क्या आप घर के अंदर मिट्टी लाएंगे? या फिर आप अपने कमरे को साफ़ करके किचन के बर्तनों को साफ़ करने में मदद करेंगे? जाहिर हैं, आप ये दूसरा काम करेंगे. अपने आस-पास को साफ़ रखना ही एनवायरनमेंट को साफ़ रखना हैं. इसका मतलब ये हुआ कि आप अपने एनवायरनमेंट की केयर करते हैं.
पांचवा और आखिरी फायदा ये हैं कि आप कम पर अच्छी क्वालिटी की चीज़ें खरीद सकतें हैं. चीज़ें कम होने के कारण आप अपनी सारी चीज़ें ही अच्छी क्वालिटी की रखना चाहेंगे. जैसे कि ज़्यादा कपड़ों में पैसे लगाने के बाजय अब आप अच्छी क्वालिटी के कम कपड़े खरीद सकते हैं. हमें लगता हैं कि मीडियम क्वालिटी के ज़्यादा कपड़े रखना अच्छी बात हैं पर क्या आपको वाकई इतने सारे कपड़ों की ज़रूरत पड़ती हैं? क्या आप वाकई में उन सबको यूज़ करते हैं? ज़्यादा का मतलब बेहतर नहीं होता.
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प्रिंसिपल नंबर 2: इसे काम में लाइए.
जब भी लोग ये सुनेंगे कि आप मिनिमलिस्म प्रैक्टिस करते हैं, उन्हें फ़ौरन ये लगेगा कि आपका घर बेजान और बोरिंग होगा. वे अंदाज़ा लगाएंगे कि आपके घर की दीवारें खाली पडी़ होंगी और कोई डेकोरेशन नहीं किया होगा. लेकिन जॉशुआ का घर बिलकुल ऐसा नहीं हैं. जब आप उनके प्यारे से घर जाएंगे तो वहां आपको टीवी, सोफा और बच्चों के टॉयस दिखेंगे. उनके अलमारी में कोट, जैकेट, gloves और कपड़े भी हैं. टेबल के ऊपर कई सारे बच्चों के बुक्स भी पड़े होंगे. शायद आप कन्फ्यूज़्ड हो गए हैं. आप सोच रहे होंगे कि क्या जॉशुआ झूठे हैं? उनके घर में इतनी सारी चीज़ें क्यों हैं जब वे दावा करते हैं कि वे एक मिनिमलिस्ट हैं?
वो इसलिए कि जॉशुआ सिर्फ एक मिनिमलिस्ट नहीं हैं, वे एक रैशनल मिनिमलिस्ट हैं. इसका ये मतलब हैं कि वे और उनकी फैमिली एक यूनिक और अनोखी लाइफस्टाइल अपनाती हैं जिसमें वे अपनी ज़रूरत के हिसाब से मिनिमलिस्म फॉलो करते हैं.
जॉशुआ और उनकी फैमिली मिनिमलिस्म को पांच पहलुओं में बांटते हैं. पहला, मिनिमलिस्म का मतलब हैं कि आप उन चीज़ों की कदर या वैल्यू करें जो आपके लिए बहुत ही ज़रूरी हैं और वैसी चीज़ें निकाल फेंकिए जो आपका ध्यान भटकाती हैं. अपने मनचाहे तरीके से वक्त बिताकर या फिर आपके पास जो कुछ भी या फिर सजाने की चीज़ें हैं, इन सब से भी मिनिमलिस्म अपना सकते हैं.
दूसरा, जॉशुआ और उनके फैमिली के हिसाब से घर ही नहीं बल्कि अपनी पूरी ज़िन्दगी को डिक्लटर करना ही मिनिमलिस्म हैं. इन्होंने इसकी शुरुवात उन चीज़ों को बाहर निकालकर की जो उनके घर में पड़े थे जैसे कि टॉयस, बुक्स और शूज. उन्होंने ये सब या तो दान में दे दी या फिर रीसायकल होने के लिए भेज दी. जैसे-जैसे इन्होंने चीज़ें कम की, वे खुश और आज़ाद महसूस करने लगे. बेकर फैमिली को एहसास हुआ कि उन्हें अपने इमोशंस से भी क्लटर हटाना चाहिए.
तीसरा, बेकर फैमिली के लिए डेकोरेशन या चीज़ों को सजाने के मायने भी बदल गए. मिनिमलिस्म को अपनाने से पहले उनके घर के दीवारों और शेल्फ काफी सजे धजे होते थे. उनमें काफी सामान लगे थे. लेकिन अब उन्होंने सारी अनचाहे चीज़ों को हटा दिया हैं. अब सिर्फ वो आर्ट या चीज़ें ही लगें हैं जो उनके लिए मायने रखते हैं. उन्होंने बस वहीं चीज़ें रखी हैं जिनसे उन्हें प्यार हैं. ये चीज़ें जॉशुआ और उनके फैमिली की खासियत दिखाते हैं.
चौथा, पैसों का इस्तेमाल सिर्फ दुनियादारी की चीज़ें खरीदने के लिए नहीं होता. सिर्फ पैसे को ज़रूरी मानने वाली सोच से खुद को जॉशुआ और उनकी फैमिली ने छुटकारा दिलाया. ऐसी सोच सिर्फ पैसे खर्च करने को उकसाती हैं. उन्होंने अपने पैसों के हिसाब लगाने के बाद कुछ चैरिटी और एनजीओ में पैसे लगाए.
पांचवी, आपके मिनिमलिस्ट लाइफस्टाइल किस स्टैंडर्ड की होनी चाहिए, उसे चुनिए. पिछले कुछ सालों में बेकर फैमिली ने कई अलग तरह के मिनिमलिस्ट लोगों से मुलाकात की. कुछ लोग ऐसे थे जिन्होंने अपनी सारी property बेच दी और फार्म में रहने चले गए और कुछ लोग ऐसे थे जिन्होंने सिर्फ सौ चीज़ों को इस्तेमाल कर अपनी ज़िन्दगी चलाने का डिसिशन लिया. लेकिन, बेकर फैमिली ने ऐसा कुछ नहीं किया. उन्होंने सोच-विचार करने के बाद अपनी ज़रूरतों के हिसाब से मिनिमलिस्म अपनाया.
जॉशुआ अपने readers से कहते हैं कि उन्हें अपनी ज़रूरतों के हिसाब से ही मिनिमलिस्ट बनना चाहिए. अगर आपका मिनिमलिस्म का तरीका दूसरों के तरीकों से अलग है तो आपको इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए. ये बिलकुल ज़रूरी नहीं कि सबके तरीके एक जैसे ही हो. हम सभी का फैमिली सेट अप अलग होता हैं, अलग लाइफस्टाइल और अलग वैल्यूज़ होते हैं. इससे पहले कि आप मिनिमलिस्म जीने का फैसला करें, आपको इन सारी बातों का ख्याल रखना होगा.