(hindi) Samaaj Ka Shikar

(hindi) Samaaj Ka Shikar

मैं जिस युग के बारे में बता रहा हूं उसकी ना कोई शुरुआत है और न अंत!
वह एक बादशाह का बेटा था और उसका महलों में लालन-पालन हुआ था, लेकिन उसे किसी के शासन में रहना स्वीकार न था। इसलिए उसने राजमहल को त्यागकर जंगल की राह ली। उस समय देशभर में सात शासक थे। वह सातों शासकों के शासन से बाहर निकल गया और ऐसी जगह पर पहुंचा जहां किसी का राज्य न था।

आखिर शाहजादे ने देश क्यों छोड़ा?
इसका कारण साफ़ है कि कुएं का पानी अपनी गहराई पर सन्तुष्ट होता है। नदी का पानी तट की जंजीर में जकड़ा हुआ होता है, लेकिन जो पानी पहाड़ की चोटी पर है उसे हमारे सिर पर मंडराने वाले बादलों में कैद नहीं किया जा सकता।

शाहजादा भी ऊंचाई पर था और यह कल्पना भी न की जा सकती थी कि वह इतना ऐशो आराम का जीवन छोड़कर जंगलों, पहाड़ों और मैदानों का अटलता से सामना करेगा। इस पर भी बहादुर शाहजादा भयानक जंगल को देखकर डरा नहीं । उसके रास्ते में सात समुद्र थे और न जाने कितनी नदियां लेकिन उसने सबको अपनी हिम्मत से पार कर लिया।

आदमी बच्चे से जवान होता है और जवान से बूढ़ा होकर मर जाता है, और फिर बच्चा बनकर दुनिया में आता है। वह इस कहानी को अपने माता-पिता से कई बार सुनता है कि भयानक समुद्र के किनारे एक किला है। उसमें एक शहजादी बन्दी है, जिसे आज़ाद कराने के लिए एक शाहजादा जाता है।

कहानी सुनने के बाद वह सोच विचार में मगन हो जाता और गाल पर हाथ रखकर सोचता कि कहीं मैं ही तो वह शाहजादा नहीं हूं।

जिन्नों के द्वीप की हालत के बारे में सुनकर उसके दिल में ख़याल आया कि मुझे एक दिन शहजादी को कैद खाने से आज़ादी दिलाने के लिए उस द्वीप की ओर जाना पड़ेगा। संसार वाले मान-सम्मान चाहते हैं, दौलत और जायदाद की इच्छा रखते हैं, नाम और शोहरत के लिए मरते हैं, भोग-विलास की खोज में लगे रहते हैं, लेकिन स्वाभिमानी शाहजादा सुख-चैन का जीवन छोड़कर अभागी शहजादी को जिन्नों के भयानक कैद से मुक्ति दिलाने के लिए भयानक द्वीप की ओर जाता है।

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भयंकर तूफानी सागर के सामने शाहजादे ने अपने थके हुए घोड़े को रोका; लेकिन ज़मीन पर उतरना था कि अचानक नज़ारा बदल गया और शाहजादे ने आश्चर्यचकित नज़रों से देखा कि समाने एक बहुत बड़ा नगर बसा हुआ है। ट्राम चल रही है, मोटरें दौड़ रही हैं, दुकानों के सामने खरीददारों की और दफ्तरों के सामने क्लर्कों की भीड़ है।

फैशन के मतवाले चमकीले कपड़े पहने चारों ओर घूम-फिर रहे हैं। शाहजादे की यह दशा थी कि पुराने कुर्ते में बटन भी लगे हुए नहीं थे ।उसके कपड़े मैले हो गए थे और  जूता फट गया था.  हर आदमी उसे घृणा की नज़र से देखता है लेकिन उसे परवाह नहीं थी । उसके सामने एक मकसद है और वह अपनी धुन में मग्न है।

मगर वह नहीं जानता कि शहजादी कहां है?
वह एक बदनसीब पिता की बदनसीब बेटी है। धर्म के ठेकेदारों ने उसे समाज की मोटी जंजीरों में जकड़कर छोटी अंधेरी कोठरी के द्वीप में कैदी  बना दिया है। चारों ओर पुराने रीति-रिवाज और रूढ़ियों के समुद्र घेरा डाले हुए हैं।

क्योंकि उसका पिता गरीब था और वह अपने होने वाले दामाद को लड़की के साथ बेशकीमती तोहफ़े और दौलत न दे सकता था इसलिए किसी अच्छे  खानदान का कोई पढ़ा लिखा लड़का उससे शादी करने के लिए राज़ी नहीं होता था।

इस वजह से लड़की की उम्र ज़्यादा हो गई। वह रात-दिन देवताओं की पूजा-अर्चना में लीन रहती थी। उसके पिता भी गुज़र गए और वह अपने चाचा के पास चली गई।

चाचा के पास रुपया भी था और काफी मकान वगैरह भी। अब उसे सेवा के लिए मुफ्त की सेविका मिल गई। वह सवेरे से रात के बारह बजे तक घर के काम-काज में लगी रहती।

बिगड़ी दशा का शाहजादा उस लड़की के पड़ोस में रहने लगा। दोनों ने एक-दूसरे को देखा। प्रेम की जंजीरों ने उनके दिलों को जकड़ लिया। लड़की जो अब तक पैरों से कुचली हुई कोमल कली की तरह थी उसने पहली बार संतोष और शांति की सांस ली।

लेकिन धर्म के ठेकेदार यह किस तरह सहन कर सकते थे कि कोई दुखियारी औरत लोहे की जंजीरों से छुटकारा पाकर सुख का जीवन बिता सके।

उसकी शादी क्या हुई एक प्रलय सा मच गया । हर दिशा में शोर मचा कि 'धर्म संकट में है, 'धर्म संकट में है।'

चाचा ने मूछों पर ताव देकर कहा- “चाहे मेरी पूरी जायदाद नष्ट ही क्यों न हो जाये, अपने कुल के रीति-रिवाजों की रक्षा करूंगा।”

बिरादरी वाले कहने लगे- “एक समाज की सुरक्षा के लिए लाखों रुपया बलिदान कर देंगे”, और एक धर्म के पुजारी सेठ ने कहा-“भाई कलयुग है, कलयुग। अगर हम लापरवाह रहे तो धर्म गायब हो जायेगा। आप सब महानुभाव रुपये-पैसे की चिन्ता न करें,  अगर मेरा ये महान खज़ाना धर्म के काम न आया, तो फिर किस काम आयेगा? तुम तुरन्त इस पापी चांडाल के ख़िलाफ़ मुक़दमा शुरू करो।”

अभियोगी (मामला दर्ज करने वाला) कोर्ट में आया। अभियोगी की ओर से बड़े-बड़े वकील अपने गाऊन फड़काते हुए कोर्ट पहुँचे। अभागी लड़की की शादी के लिए तो कोई एक पैसा भी खर्च करना न चाहता था, लेकिन उसे और उसके पति को जेल भिजवाने के लिए रुपयों की थैलियां खुल गईं।

नौजवान अपराधी ने चकित आँखों से ये सब देखा।

क़ानून की किताबों को चाटने वाले दीमक दिन को रात और रात को दिन कर रहे थे।

धर्म के ठेकेदारों ने देवी-देवताओं की मन्नत मानी। किसी के नाम पर बकरे बलिदान किये गये, किसी के नाम पर सोने का तख्त चढ़ाया गया। मुक़दमा जल्द से जल्द शुरू हुआ। बिगड़ी हुई दशा वाले शाहजादे की ओर से न कोई रुपया ख़र्च करने वाला था और न कोई साथ देने वाला।
जज ने उसे कई साल जेल में बिताने का कठिन दण्ड दिया।

मन्दिरों में खुशी के घंटे-घड़ियाल बजाये गये, पूरी  शक्ति से शंख बजाये गये, देवी और देवताओं के नाम पर बलि दी गई, पुजारियों और महन्तों की बन आई। सब आदमी खुशी से गले मिल-मिलकर कहने लगे-

“भाइयो! यह समय कलियुग का है लेकिन भगवान् की कृपा से धर्म अभी बचा हुआ है।

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