(Hindi) Psycho-Cybernetics

(Hindi) Psycho-Cybernetics

इंट्रोडक्शन (Introduction)

क्या आप भी ये सोचते है कि सक्सेस सिर्फ कुछ लोगो के ही हिस्से में आती है, जबकि बाकी लोग उनके ऑर्डर्स फोलो करने के लिए पैदा हुए है? आपकी पर्सनेलिटी कैसी है? सक्सेस टाइप की या फेलर टाइप की? क्या ये पॉसिबल है कि अपनी पर्सनेलिटी को फेलर टाइप से सक्सेस टाइप बनाया जा सके ? वेल, इन सारे सवालों के जवाब बहुत ही सिम्पल है. हर कोई एक मैकेनिज्म के साथ पैदा हुआ है जो हमे अपने माहौल के हिसाब से सर्वाइव करने में हेल्प करती है. आप फिश को तैरना नहीं सिखा सकते और ना ही पंछी को उड़ना.

आपकी सक्सेस आपके अपने हाथ में है. इस समरी में आप सीखेंगे कि आपकी सक्सेस या फेलर आपके सेल्फ इमेज पर डिपेंड करती है यानी वो इमेज जो आपने खुद एक लिए क्रिएट की है. और जब आप ये सेल्फ इमेज चेंज करोगे तो आपकी किस्मत भी चेंज जायेगी. और ये चीज़ आपके हाथ में है. इस समरी में आप पॉवर ऑफ़ इमेजिनेशन के बारे में पढेंगे कि हमारी इमेजिनेशन में इतनी पॉवर होती है जो आपको बड़ी से बड़ी ससेक्स दिला सकती है. इस जर्नी में आप ये भी जानेगे कि हैप्पीनेस को एक हैबिट बनाया जा सकता है और इस हैबिट को अडॉप्ट करने से आपकी पूरी लाइफ बदल सकती है. आप इस समरी में पॉवर ऑफ़ रेशनल थिंकिंग के बारे में भी पढ़ेंगे.

तो क्या आप अपनी किस्मत फिर से लिखने को तैयार है? ये समरी पढ़िए. ये आपको आपके गोल्स अचीव करने में काफी हेल्प करेगी और आप भी उन लोगो में शामिल हो सकेंगे जिन्हें दुनिया फोलो करती है.

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द सेल्फ इमेज: योर की टू अ बैटर लाइफ (The Self Image: Your Key to a Better Life)

हर आदमी अपनी एक मेंटल इमेज लेकर चलता है. हमारे माइंड में जो ये मेंटल पिक्चर होती है उसे सेल्फ इमेज बोलते है. सेल्फ इमेज डिसाइड नहीं करती कि रियल में आप कौन हो बल्कि ये बताती है कि आप खुद के बारे में क्या सोचते हो. हो सकता है कि आपकी अपने बारे में एक अच्छी सेल्फ इमेज हो या फिर एक नेगेटिव. आपकी फीलिंग्स, बिहेवियर, और पर्सनेलिटी ये सब आपकी सेल्फ इमेज पर डिपेंड है. बचपन से लेकर अब तक आपको जैसा भी माहौल मिला या परवरिश मिली, उसी का रिजल्ट होती है आपकी ये सेल्फ इमेज. बचपन में आपने जो देखा, सुना, या आपके बारे में लोगो ने जो कहा, वही सब मिलकर आपकी सेल्फ इमेज को क्रिएट करता है. यही सेल्फ इमेज ये भी डिसाइड करता है कि हम क्या कर सकते है और क्या नहीं कर सकते है.

लेकिन गुड न्यूज़ ये है कि हम अपनी सेल्फ इमेज को चेंज कर सकते है और अपना फ्यूचर भी. एक एक्साम्प्ल लेते है की सेल्फ इमेज का लाइफ में क्या रोल है. एक स्टूडेंट जोकि सोचता है कि वो मैथ में एकदम जीरो है इसलिए उसे मैथ में कम नंबर ही मिलेंगे. एक लड़की जो खुद को अनफ्रेंडली समझती है और सोचती है कि उससे कोई दोस्ती नहीं करेगा. यहाँ इन दोनों ने अपने बारे में एक सेल्फ इमेज बना ली है. और फिर उन्हें रिजल्ट भी वैसा ही मिलता है. तो जो आप अपने बारे में सोचोगे वही आपके साथ फ्यूचर में होगा.

जैसे कि प्रेस्कट लेकी (Prescott Lecky) ने सेल्फ इमेज साइकोलोजी को स्टडी करने के लिए एक एक्सपेरिमेंट किया. मान लो किसी स्टूडेंट को कोई सब्जेक्ट मुश्किल लगता है, तो उसकी सेल्फ इमेज को चेंज करके उसके दिमाग से ये बात निकाली जा सकती है. और सेल्फ इमेज चेंज होने से उसकी लर्निंग एबिलिटी भी चेंज की जा सकती है.

प्रेस्कट लेकी (Prescott Lecky ) एक स्कूल टीचर थे और उन्होंने सेल्फ इमेज का इफेक्ट देखने के लिए अपने स्टूडेंट्स को ओब्ज़ेर्व किया. एक स्टूडेंट था जो हमेशा स्पेलिंग मिस्टेक करता था. एक साल वो कई सब्जेक्ट्स में फेल हो गया. लेकिन अगले साल वो स्कूल का बेस्ट स्पेलर बना. एक लड़की थी जिसके कभी अच्छे नंबर नही आते थे. उसने पढ़ाई छोड़ दी थी. लेकिन बाद में उसे कोलंबिया में एडमिशन मिला और उसने एक ग्रेट स्टूडेंट बन के दिखाया.

ऐसा नही था कि ये लोग डम्ब स्टूडेंट्स डम्ब  थे. बल्कि इन्हें सेल्फ इमेज की प्रोब्लम थी. इन्होने मान लिया था कि ये इस चीज़ में अच्छे नहीं है या उस चीज़ में अच्छे नहीं है. लेकिन जैसे ही इनकी सेल्फ इमेज चेंज हुई तो इनका एटीट्यूड भी चेंज हो गया. और इन्होने अपने फेलर को अपनी सक्सेस में बदल दिया. बस यही इनकी सक्सेस का सीक्रेट है.

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डिसकवरिंग द सक्सेस मैकेनिज्म विदिन यू (Discovering the Success Mechanism within you)

हर लिविंग बीइंग यानी जीवित वस्तु में अपने गोल्स को अचीव करने का एक ऑटोमेटिक गोल स्ट्राईविंग मैकेनिज्म या इंस्टिंक्ट होता है. जानवरों में भी इंस्टिंक्ट होती है जो उन्हें अपने माहौल में जिंदा करने के लिए हेल्प करती है. इंसानों में भी एक “सक्सेस इंस्टिंक्ट” होती है. ये “सक्सेस मैकेनिज्म” लोगो को प्रोब्लम सोल्व करने और एक बैटर लाइफ जीने में मदद करती है. जानवरों के गोल्स प्री-सेट होते है जबकि इंसानों के पास क्रिएटिव इमेजिनेशन होती है.

हम इन्सान नए गोल्स सेट कर सकते है. हमारा ब्रेन और नर्वस सिस्टम मिलकर एक गोल स्ट्राईविंग मशीन बनाता है. इन्सान कोई मशीन नहीं है लेकिन हमारे पास एक मशीन है जिसे हम अपने गोल्स अचीव करने के लिए ऑपरेट कर सकते है. अगर गोल स्ट्राईविंग मैकेनिज्म उसके फेवर में काम करती है तो इसे सक्सेस मैकेनिज्म बोलते है और अगर उसके खिलाफ काम करती तो ये फेलर मैकेनिज्म कहलाती है.

गिलहरी को कोई पेड़ पर चढना नही सिखाता और ना ही ये सिखाता है कि उसे सर्दियों के लिए खाना जमा करना है. अगर कोई गिलहरी स्पिंग में भी जन्मी होगी तो भी वो विंटर के लिए फ़ूड जमा करेगी. उसे पता होता है कि ठंड में कुछ नहीं मिलेगा इसलिए वो एडवांस में खाना इकठ्ठा करती है. ऐसे ही चिड़ियाँ को कोई उड़ना और घोंसला बनाना सिखाता है. पंछी बिना किसी नेविगेशन सिस्टम के आसमान में ऊँचे उड़ते है और सही सलामत धरती पर भी लौट आते है. चिड़ियों को डायरेक्शन के लिए मैप की ज़रूरत नहीं होती. ठंडी या गर्मी के लिए ये किसी वेदर रिपोर्ट पर डिपेंड नहीं होते.

हर साल, माइग्रेंट्स चिड़ियों के झुण्ड ठंडी जगहों से उड़कर गर्म जगहों पर आते है. ये पंछी कई मील समुन्द्र के उपर से उड़ते हुए ट्रेवल करते है. उनकी सक्सेस इंस्टिंक्ट उन्हें अपने एन्वायरमेंट के हिसाब से एडजस्ट करने में हेल्प करती है. इंसानों में अंदर भी सक्सेस इंस्टिंक्ट होती है. आपको अपनी बाजू स्ट्रेच करने के लिए बताना नहीं पड़ता. आप अपनी मसल्स को ये नही बोलते कि टेबल से उठाकर मुझे सिगरेट दे दो. अगर आपको सिगरेट चाहिए तो वो आपका गोल बन जाएगी और आपका गोल स्ट्राईविंग मैकेनिज्ज़ खुद से एक्टिव हो जाएगा. अगर आपका कांशस माइंड टारगेट सेलेक्ट करता है तो आपका सबकांशस माइंड टारगेट को हिट करता है. इसलिए लाइफ में हमेशा ऊँचे और बेटर गोल्स रखो.

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इमेजिनेशन- द फर्स्ट की टू योर सक्सेस मैकेनिज्म (Imagination – The First Key to Your Success Mechanism)

हमारा ब्रेन रियल और इमेजिनरी एक्स्पिरियेंश के बीच का फर्क नहीं बता सकता है. और ये रियेलिटी से मुकाबले हमारी इमेजिनेशन पर रिएक्ट करता है. हमारी खुद के बारे में इमेजिनेशन जोकि हमारी सेल्फ इमेज है, हमारी फीलिंग्स और एक्श्न्स डिसाइड करती है. जो आप खुद के बारे में सोचते हो, वही आपके सबकांशस माइंड का सच बन जाता है और फिर ये उस पर रिएक्ट करने लगता है. आप अपनी इमेजिनेशन चेंज करके अपनी फीलिंग्स और एक्श्न्स चेंज कर सकते हो.

मेंटल प्रेक्टिस उतनी ही इफेक्टिव है जितनी कि रियल प्रेक्टिस. हम यहाँ एक एक्जाम्पल लेंगे, ये प्रूव करने के लिए कि ब्रेन रियल और इमेजिनेटिव एक्स्पिरियेंश में फर्क नहीं बता सकता. अगर किसी हिप्नोटाईजड (hypnotized ) पर्सन को बोला जाए कि तुम अभी नॉर्थ पोल में हो, तो वो ठंड फील करने लगेगा और शिव्रिंग भी करेगा. इस थ्योरी को प्रूव करने के लिए कॉलेज स्टूडेंट्स पर एक एक्सपेरिमेंट किया गया. कुछ स्टूडेंट्स को बोला गया” इमेजिन करो कि तुम्हारा एक हाथ ठंडे पानी में डूबा हुआ है” हालाँकि इन स्टूडेंट्स को हिप्नोटाईजड नही किया गया था और ये लोग पूरे होश में थे फिर भी इनकी टेम्प्रेचर रीडिंग ड्राप हो गई थी.

मेंटल प्रेक्टिस को रियल प्रेक्टिस से कम्पेयर करने के लिए एक और एक्सपेरिमेंट किया गया. मेंटल प्रेक्टिस स्किल इम्प्रूव कर सकती है या नहीं ये देखने के लिए बास्केट बाल प्लेयर्स के तीन ग्रुप्स से मेंटल प्रेक्टिस करवाई गयी. फर्स्ट ग्रुप को 20 दिनों तक फ्री थ्रो की रियल प्रेक्टिस करने को बोला गया. सेकंड ग्रुप को प्रेक्टिस करने से एकदम मना कर दिया गया. और थर्ड ग्रुप से कहा गया कि वो रोज़ 20 दिनों तक बॉल थ्रो करने की मेंटल प्रेक्टिस करे. रियल गेम में सेकंड ग्रुप की कोई इम्प्रूवमेंट नही दिखी. लेकिन फर्स्ट और थर्ड ग्रुप के रिजल्ट लगभग बराबर थे. फर्स्ट ग्रुप ने 24% स्कोर किया था जबकि थर्ड ग्रुप का स्कोर था 23%.

एक और एक्ज्मापल है जिससे मेंटल प्रेक्टिस की इफेक्टिवनेस का पता चलता है. कापब्लान्का(Capablanca) ग्रेट चेस चैम्पियन अलेखिने(Alekhine) से चैम्पियनशिप हार गए थे. एक्सपर्ट्स का मानना था कि कापब्लान्का (Capablanca)को चेस में हराना इम्पॉसिबल है. लेकिन फिर जब उसे एक नए प्लेयर ने हरा दिया तो सब शॉक रह गए. लेकिन ये हुआ कैसे? ये मेंटल प्रेक्टिस का असर था. अलेखिने (Alekhine) कई महीनो से मेंटल प्रेक्टिस कर रहा था. उसे अपने माइंड में चेस खेलते हुए आलरेडी 3 महीने हो चुके थे.

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