(hindi) Paltu Bhaloo
किसी शहर में एक बनिया रहता था। वह ज़मींदार का कारिंदा यानी एजेंट था और उसका काम था किराएदारों और ठेकेदारों से रुपया वसूल करना।
एक दिन वह किराएदारों से रुपये वसूल करके घर चला। रास्ते में एक नदी पड़ती थी। लेकिन मल्लाह यानी नाव चलाने वाले (माँझी) अपना अपना खाना बना रहे थे। कोई उस पार ले जाने पर राजी न हुआ ।
वहां से थोड़ी ही दूर पर एक और नाव बंधी थी। उसमें दो मल्लाह बैठे हुए थे। एजेंट के हाथ में रुपये की थैली देखकर दोनों आपस में कानाफूसी करने लगे । तब एक ने कहा-“आओ साहबजी, हम उस पार पहुँचा दें” ।
बनिया बड़ा सीधा आदमी था । उसे ज़रा भी शक न हुआ । वो चुपचाप जाकर नाव पर बैठ गया। इतने में एक मदारी अपना भालू लेकर वहां आ पहुँचा और एजेंट से पूछने लगा-“साहबजी, कहाँ जाओगे ?”
बनिये ने जब अपने गाँव का नाम बताया तो वह खुश होकर बोला—“मैं भी तो वहीं चल रहा हूँ”। यह कहता हुआ वह भालू को लेकर नाव पर चढ़ गया। पहले तो मल्लाहों ने बहुत नाक-भौं सिकोड़ा, मगर बाद में ज्यादा पैसा मिलने पर वो राज़ी हो गये । नाव खुल गई ।
एजेंट दिन भर का थका था। नाव धीरे-धीरे हिलने लगी, तो उसे नींद आ गई। मदारी भालू की पीठ पर सिर रखे मल्लाहों की ओर देख रहा था। उन दोनों को थैली की तरफ बार बार ताकते देखकर उसे कुछ शक होने लगा । यह सब ठग तो नहीं हैं ? उसने सोचा, ज़रा देखूं तो इन दोनों की क्या नीयत है। उसने झूठ मूठ आंखें बन्द कर लीं मानो सो गया है।
अब नाव ज़ोर मे चलने लगी। क़रीब दो घंटे के बाद एजेंट चौंककर उठा तो उसे अपने गाँव का किनारा दिखाई दिया ! मल्लाहों से बोला—“बस-बस पहुँच गये, नाव किनारे लगा दो”। लेकिन मल्लाहों ने उसकी बात अनसुनी कर दी। तब एजेंट ने डाँटकर कहा- “तुम लोग नाव को किनारे क्यों नहीं लगाते? सुनते नहीं हो?”
इस पर एक मल्लाह ने घुड़ककर कहा—“क्या बक-बक करते हो। हम लोगों को इतना भी नहीं मालूम कि नाव कहाँ लगानी होगी?”
मदारी अब तक चुपचाप पड़ा देखता रहा । उसने भी कहा—“हां, हाँ, यही तो किनारा है, नाव क्यों नहीं लगाते?” मल्लाहों ने उसे भी फटकारा। तब वह चुपके से एजेंट के पास खिसक गया और धीरे से बोला—“इन दोनों की नीयत कुछ खराब मालूम होती है। होशियार रहना”। एजेंट को जैसे बुख़ार चढ़ गया।
मील भर चलने के बाद मल्लाहों ने नाव को एक जंगल के पास लगाया और उतरकर जंगल में जा घुसे। उनके साथ के कई डाकू जंगल में रहते थे । दोनों उन्हें खबर देने गये ।
बनिया बच्चों की तरह रोने लगा। अपना गाँव मील भर पीछे छूट गया । वहाँ न कोई साथी था, न मददगार। मगर मदारी ने उसे तसल्ली दी।
वह देखो, कई आदमी हाथ में मशालें लिये हुए नाव की ओर चले आ रहे हैं, ज़रूर यह डाकुओं का गिरोह है। एजेंट के हाथ- पाँव फूल गये ।
तभी अचानक मदारी भालू को लिये हुए नाव से उतरा और किनारे पर चढ़ गया । डाकू नीचे उतर ही रहे थे कि उसने अपने भालू को उनके पीछे दौड़ा दिया । फिर क्या था; भालू ने लपककर एक डाकू को पकड़ा और उसके मुँह पर ऐसा पंजा मारा कि उसका सारा मुँह लहू-लुहान हो गया। उसे छोड़कर व दूसरे डाकू पर लपका। डाकुओं में भगदड़ मच गई। सब-के-सब अपनी-अपनी जान बचाने भागे। वहाँ बस वही डाकू पड़ा रह गया, जो घायल हो गया था ।
यह शोरगुल सुनकर पास के गाँव से कई आदमी जा पहुँचे । उन्होंने मदारी और एजेंट को भालू के साथ फिर नाव पर बिठाया और नाव को ले जाकर उनके गाँव के किनारे लगा दिया। उस घायल डाकू को लोग थाने ले गये ।
गाँव में पहुँचकर एजेंट ने मदारी को गले से लगाकर कहा—“तुम पिछले जन्म में मेरे भाई थे, आज तुम्हारी बदौलत मेरी जान बची है”।
सीख – ये कहानी हमें सिखाती है कि बुरे कर्म और बुरी नीयत का परिणाम हमेशा बुरा ही होता है यानी कि जैसी करनी वैसी भरनी जैसे उन मल्लाहों के साथ हुआ था. इसके साथ-साथ ये हमें ये भी समझाती है कि जीवन में अगर कभी कोई मुश्किल परिस्थिति हो या किसी अनजाने ख़तरे से सामना हो तो इंसान को घबराना नहीं चाहिए बल्कि धीरज और समझदारी से काम लेना चाहिए क्योंकि उसकी ये सूझ-बूझ उसकी और औरों की जान बचा सकती है.