(Hindi) Originals: How Non-Conformists Move the World
परिचय
ये बुक ऐसे लोगो की इम्पोर्टेंस के बारे में बताती है जिन्होंने वेल एस्टेबिलिश्ड सिस्टम और इसके रूल्स फ़ॉलो करने के बजाये अपने खुद के थौट्स और एक्शन की फ्रीडम के लिए रिस्क लेना ज्यादा पसंद किया.इतिहास गवाह है कि कैसे हमारे इन करेजियस और कॉंफिडेंट इंडीविजुएल्स ने सबसे अलग कुछ ऐसा करने की हिम्मत की जो कोई और सोच नहीं नहीं सकता था. उन्हें बदले में कम्प्लीट रिजेक्शन मिले और कई बार उन्हें मेंटली और फिजिकली हेरेसमेंट देकर तोड़ने की कोशिश भी की गयी. गेलिलियो जैसे कुछ पायोनियर्स को उनकी इंडिपेंडेंट थिंकिंग की वजह से मौत की सज़ा का डर भी दिखाया गया और कुछ का तो खूब मज़ाक भी उड़ाया गया जैसे आइन्स्टाइन जिनको पहले कोई समझ ही नही पाया था.
फाइनली कुछ लोगो को अपनी फ्री थिंकिंग के लिए अनइमेजिनेब्ल टॉर्चर तक सहना पड़ा. जैसे एक्जाम्पल के लिए नेल्सन मंडेला. उन्होंने अपनी लाइफ के कई साल जेल में गुज़ारे क्योंकि उन्होंने साउथ एफ्रिका के इंडीपेंडेंस पर सवाल उठाने की हिम्मत दिखाई थी. इस बुक में एडम ग्रांट ने कुछ ऐसे ही प्रज्युम्प्शन डेवलप किये है जो बताएँगे कि ऐसे लोगो की थिंकिग कैसी थी. और सबसे इम्पोर्टेन्ट बात जोकि एडम ग्रांट सिखाते है वो ये कि हम भी कैसे खुद की सोच को इंडिपेंडेंट और नॉन- कांफिर्मिस्ट रख सकते है..क्या आप इस बारे में कुछ टिप्स जानना चाहते है कैसे हम अपनी सोच सबसे अलग रखे, कुछ ऐसा सोचे जो पहले कोई ना सोच पाया हो?अगर आपका जवाब है हाँ तो बने रहिये हमारे साथ. हम पूरी कोशिश करेंगे कि ऐसी ही कुछ रियल लाइफ स्टोरीज़ के थ्रू आपको ऐसे न्सेप्ट्स एक्सप्लेन कर सके जो काफी इम्पोर्टेन्ट है. ताकि आप भी ईजीली उन कॉन्सेप्ट्स को अपनी रियल लाइफ में उतार सके. कई बार ऐसा होता है कि बड़े आईडियाज को एवरीडे लाइफ में लाना हमारे लिए थोडा मुश्किल हो जाता है. लेकिन आपके लिए हम इसे थोडा आसान बनाना चाहेंगे.
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समरी
जो एक सबसे ज्यादा इम्पोर्टेन्ट टर्म एडम ग्रांट यूज़ करते है वो है वर्ड” ओरिजिंल्स”. ओरिजिंल्स सिर्फ वही नहीं होते जिनमे कोई टेलेंट हो, पैसन हो, कोई मोटिवेशन हो बल्कि हर कोई ओरिजिनल बन सकता है, एक बेहद मामूली इंसान भी. मगर किसी भी इंसान को ओरिजिनल बनने के पहले सबसे ज़रूरी है कि वो अपना वे ऑफ़ थिंकिंग चेंज करे. ये करने का एक सिंपल तरीका है कि खुद से एक क्वेश्चन पूछे: “मै इस तरह क्यों सोचता हूँ?’ क्या हर कोई मेरी तरह सोचता होगा या फिर मै ही अकेला इस कोंनक्ल्यूजन पर पहुंचा हूँ? ये सिंपल क्वेश्चन बहुत हेल्पफुल साबित हुआ है जब कभी हमें सोशल नॉर्म पर बेस्ड थौट्स और आईडियाज़ और इंडीविजुएल और ओरिजिनल आईडियाज़ के बीच डिफरेंट समझना होता है. एक एक्ज़म्प्ल से इसे समझते है.
अलेक्जेंडर को अपने होम टाउन क्लब से बड़ा प्यार था. उसने वहां फ़ुटबाल खेलना सीखा था और वो रेगुलर मैचेस रेगुलर अटेंड करता था. उसने अपने रूम को भी अपने फेवरेट क्लब के कलर से डेकोरेट किया हुआ था. हालांकि जैसे-जैसे वो बड़ा होता गया वो और उसके दोस्त ट्रेवल की वजह से गेम्स से दूर होते गए..वैसे तो कभी कोई प्रॉब्लम नहीं आई थी मगर एक बार एलेक्जेंडर की होम क्लब के सपोर्टर्स के साथ एक फाईट हो गयी. बाद में उसे रिएलाइज हुआ कि ये फाईट किस हद तक डेंजरस हो सकती थी क्योंकि एलेक्जेंडर और बाकी होम टाउन क्लब के फैन्स बहुत कम थे. और ऊपर से उनके दुश्मन उन पर भारी पड़ सकते थे. बोटल्स, बेटस और क्या नहीं था उनके पास फाईट करने के लिए.
एलेक्जेंडर ने देखा कि कैसे बातो बातो में ही इतनी सिचुएशन इतनी बिगड़ गयी थी जब उसके फ्रेंड्स गाली गलौच पर उतर आये. उसके बाद उनके ऊपर बोतले फेंकी जाने लगी थी जिससे बचने के लिए एलेक्जेंडर को भागने तक का टाइम नहीं मिला. वो तो अच्छा हुआ कि उसे कोई चोट नहीं आई मगर उसके कुछ फ्रेंड्स इंजर्ड हो गए थे. बाद में जब वे लोग घर लौटे तो एलेक्जेंडर ने इस पूरे इंसिडेंट पर गौर किया. वो इस कोंक्ल्यूजन पर पहुंचा कि ये बेमतलब की फाईट थी जिसे अवॉयड किया जा सकता था.
अगर वो अपने होम टाउन क्लब को इस तरह से सपोर्ट नहीं करता तो इस फाईट को रोका जा सकता था. लेकिन अनफॉरचयूनेटली उसके बहुत से फ्रेंड्स इस पीसफुल स्टेंस के अगेंस्ट थे. वो इस फाइट का रिवेंज लेना चाहते थे. उनमे से कोई भी ये तक नहीं सोचना चाहता था कि आखिर इस हेट के पीछे क्या वजह है. पहले तो एलेक्जेंडर को ये बड़ा मुश्किल लगा कि वो इस प्रेशर को कैसे झेले. वो अपने फ्रेंड्स से एग्री नहीं कर रहा था इसलिए उसके कुछ दोस्तों ने उसके लिए कुछ इनसल्टिंग “लिटल क्राईबेबी” या “बोटेल फोबिया” जैसे निक नेम तक सोच लिए थे.
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कहने की ज़रुरत नहीं है कि एलेक्जेंडर ये सब होता देख कर बेहद सरप्राइज़ था, उसे दुःख हो रहा था कि लोग उसकी बात को नहीं समझ रहे और सबसे ज्यादा हर्ट करने वाली बात जो थी वो उसके फ्रेंड्स का बिहेवियर था. लेकिन उसने सोच लिया था कि वो अपने स्टैंड से पीछे नहीं हटेगा. “एक इंच भी नहीं” जैसा कि वो खुद से कहा करता था. उसे पता था कि उसकी बात में सिम्पल लोजिक है. उसका लोजिक यही था” ये हमारा क्लब है जो हमारे होम टाउन को, अपने छोटे से टाउन के लिए हमारे लव को रिप्रेजेंट करता है. जोकि एक अच्छी बात है तो क्या हमें अच्छी बातो को सपोर्ट करने के लिए बुरी चीज़े करनी चाहिए?’मेरे ख्याल से तो नहीं’. उसने अपने फ्रेंड्स को भी यही चीज़ कन्विंस करने की कोशिश की. हालांकि उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था. वे इस बात को लोजिक्ली देख ही नहीं पा रहे थे.
इसलिए अब अलेक्जेंडर ने भी उनके अवे गेम्स अटेंड करना छोड़ दिया और होम गेम्स में भी वो अपने फ्रेंड्स से अलग ही बैठता था.और कुछ मंथ्स बाद ही चीज़े चेंज होने लगी. उसके और फ्रेंड्स भी इंजर्ड होने लगे थे कुछ तो काफी सिरियसली हुए थे. उन्हें भी अब अपने थिंकिंग पर डाउट होने लगा था. एक के बाद एक उन सबने अलेक्जेंडर के पास आकर अपनी गलती मानी और उससे बैड बिहेव करने के लिए सॉरी बोला. अलेक्जेंडर ने भी उन्हें स्माइल करके माफ़ कर दिया और एक बार सब फिर से फ्रेंड्स थे.
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जेनेरेटिंग एंड सेलेक्टिंग आईडियाज :
ये दो स्टेप्स है एक इंडिपेंडेंट और नॉन कान्फ्रमिस्ट थिंकिंग के लिए. इसका सिम्पल मीनिंग है आईडियाज़ को डेवलप और स्प्रेड करने से पहले केयरफुली सेलेक्ट करके उसकी डिटेल्स में जाने की ज़रूरत है.यहाँ हम देख सकते है कि दोसेपरेट प्रोसेस है- जेनेरेटिंग आईडियाज़ और सेलेक्टिंग आईडियाज़. जेनेरेशन फेस में हम ज्यादातर क्वालिटी से ज्यादा क्वांटीटी प्रेफर करते है. दुसरे वर्ड्स में हमें इस बात पर ज्यादा इंटरेस्ट नहीं दिखाते कि आईडियाज़ कितने अच्छे है बल्कि हम उन्हें ज्यादा क्वांटीटी में चाहते है. – स्लेक्टिंग सेकेण्ड फेस है जहाँ हम अपने थौट्स को लेकर थोड़े पिकी यानी चूजी होते है.
यहाँ पर हम नंबर ऑफ़ आईडियाज़ को कम करते है जो हमने फर्स्ट फेस में जेनेरेट किये थे. तो इस सेकेण्ड फेस में हम थोड़े ज्यादा सेल्फ क्रीटिकल हो जाते है. आगे जो एक्जाम्पल हम देने जा रहे है उससे आपको ये कांसेप्ट समझने में ईजीली समझ आ जाएगा. मार्क एक ऑर्डीनेरी स्टूडेंट था.पढ़ाई में ना तो एकदम एक्सीलेंट ना ही उतना बुरा. एकदम एवरेज. हाँ लेकिन उसमे पास बैंक में एक सिग्नीफिकेंट अमाउंट था जो उसने कुछ सालो से जमा कर रखा था. साथ ही अपने पैसे इन्वेस्ट करने के लिए उसके पास कुछ बढ़िया आईडियाज भी थे. मगर उसने अभी कहीं इन्वेस्टमेंट की नहीं थी. उसे पता था कि वो फ़ूड से रिलेटेड कामो में अपना पैसा लगा सकता है जैसे कोई रेस्तरोरेंट या टेक अवे. लेकिन शुरू में उसने इस अपोर्च्युनिटी पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया था.
वो बायोलोजी पढ़ रहा था और सब कुछ बढ़िया जा रहा था. मगर जब कॉलेज का लास्ट इयर खत्म होने वाला था, वो कुछ स्ट्रेंज फील करने लगा था. वो कुछ करना चाहता था, कुछ रिस्की. बायोलोजी में स्टडी के बाद एक स्लो और स्टेबल जॉब में उसे कोई थ्रिल नहीं दिख रहा था. उसे कुछ अलग करने की चाहत थी इसलिए वो बैठकर इस बारे में डीपली सोचने लगा..उसके माइंड पोसिबल बिजनेस के कई सारे आईडियाज़ आये. फिर उसने वो सारे के सारे आईडियाज़ एक पेपर में लिखे. उनकी जो लिस्ट बनी वो इस तरह थी.
1. रेस्ट्रोरेन्ट
2. टेक अवे
3. फ़ास्ट फ़ूड
4. एशियन फ़ूड
5. इटालियन फ़ूड
6. रशियन फ़ूड
इसके बाद उसने आराम से बैठकर हर अपोर्च्यूनीटी के बारे में डिटेल्स से सोचा. सारे आल्टरनेटिव्स ले डाउन करने के बाद उसे रेस्ट्रोरेन्ट खोलने का आईडिया बढ़िया लगा. रशियन फ़ूड उसे ज्यादा अपीलिंग नहीं लग रहा था, ना ही उसे इसके बारे में कुछ पता था. “ये मेरे माइंड में आया भी कैसे ?” मार्क को हैरानी हुई.हाँ इटालियन फ़ूड ज़रूर इंट्रेस्टिंग था मगर उसे याद आया कि उसके छोटे से टाउन में रिसेंटली ही कुछ इटेलियन रेस्ट्रोरेन्ट खुले है. उसे पता था कि अगर वो भी इटेलियन रेस्त्रो खोलेगा तो कॉम्पटीशन बहुत टफ होगा. दूसरी तरफ उसे एशियन फ़ूड बिलकुल बोम्ब की तरह लग रहा था. असल में उसके टाउन में कोई एशियन फ़ूड रेस्ट्रोरेन्ट था भी नहीं. और फर्स्ट टाइम अगर कोई खोलेगा तो उसके लिए ये एक एडवांटेज होगी.
उपर से उसे एशियन फ़ूड पसंद भी था और थोड़ी बहुत इसकी नॉलेज भी थी उसे. जब भी कभी वो एशियन फ़ूड खाता था तो अपने स्टाफ वालो से इसके बारे में बात करता था , यहाँ तक कि कुछ इसके इन्ग्रिडीयेंश भी शेयर करता था. उसके कुछ एशियन फ्रेंड्स भी थे. उसे लगा कि उन फ्रेंड्स से इस वारे में थोड़ी एडवाइस ली जाए. और उसके फ्रेंड्स कुछ लोगो को जानते थे जो एशियन फ़ूड रेस्त्रोरेंट्स में काम कर चुके थे. और सबसे इम्पोर्टेन्ट बात तो ये थी कि उसे एक शेफ़ भी मिल गया था जो इस टाइम जॉब ढूंढ रहा था. अब हम यहाँ देख सकते है कि कैसे अलेक्जेंडर ने पहले स्टेप में सिर्फ आईडियाज जनरेट किये उस वक्त उसने उन आईडियाज के बारे मे कुछ सोचा नही, और फिर एक बार जब उसने सारे आईडियाज जनरेट कर दिये , सिर्फ तब ही उसने हर आईडिया के गुड और बैद एस्पेक्ट ऐनालाइज किये और इस कनक्ल्यूजन पर पहुंचा कि एशियन फ़ूड रेस्ट्रोरेन्ट खोलना ही सबसे बैटर रहेगा.