(Hindi) Ogilvy on Advertising

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परिचय

क्या आपको मार्किट के सबसे बड़े ब्राड्स का सीक्रेट जानना है ? क्या आप जानना चाहते है कि सबसे ज्यादा इन्फ्लुयेंश्ल एड कैसे बनाए जाते है? डेविड ओगिल्वी एक कॉपी राइटर थे. उनका काम था बड़े बड़े ब्रांड्स के लिए एडवरटीज्मेंट्स बनाना जैसे कि डव, रोल्स रोयस, और मर्सीडीज बेंज. बाद में उन्होंने ओगिलवी एंड माथेर नाम से अपनी खुद की एडवरटाईजिंग एजेंसी खोल ली.

ओगिलवी एडवरटाईजिंग में एक एक्सपर्ट थे. उनकी अथॉरिटी थी इस फील्ड में. जिन टेक्नीक्स को फोलो करके वो सक्सेसफुल बने वो टेक्नीक्स आपको इस बुक में मिलेगी. पब्लिक का दिल जीतने वाले टीवी एड्स और कमर्शियल्स कैसे बनाए, ये सब आप इस बुक से सीखेंगे. आपको इसमें दुनिया के सबसे बड़े ब्रांड्स की एडवरटाईजिंग के सीक्रेट्स भी बताये जायेंगे. जो चीज़ ओगिलवी को बाकी एडवरटाईजेर्स से अलग करती है वो है उनकी मार्किट रिसर्च. ओगिलवी अपने हर प्रोडक्ट की एडवरटीज़ के लिए एक स्टेटिसस्टिक चलाते है ताकि उन्हें पता चल सके कि ये कस्टमर को कितना पसंद आ रहा है, उन्हें कितना अफेक्ट कर रहा है. ओगिलवी रूल्स पर नहीं बल्कि एक्चुअल रिजल्ट्स पर बीलीव करते है.
हाउ टू प्रोड्यूस एडवरटाईजिंग देट सैल्स

आप ज़रा दो डिफरेंट प्रिंटेड एड्स इमेजिन करो. दोनों ही एड्स पूरे-पूरे पेज पर दिए गए है. और दोनों ही सेम मैगजीन में प्रिंट हुए है. दोनों में ही इमेजेस दी गयी है और दोनों का ही टेक्सट बड़े अच्छे ढंग से लिखा हुआ है. हालांकि उनमें से एक एड दुसरे वाले से 20 गुना ज्यादा इफेक्टिव है. और जिस प्रोडक्ट का ये एड है वो दुसरे वाले से 20 गुना ज्यादा बिकता है. तो ज़रा सोचो कि ऐसा क्यों है? दुसरे एड में क्या कमी हो सकती है? इस बात का ज़वाब एक चीज़ पर डिपेंड है. और वो चीज़ है अपील.

जिस एड की अपील ज्यादा है वो ही ज्यादा सेल करेगा नाकि दूसरा वाला. और जिस कॉपी राइटर ने दूसरा एड बनाया है, उसने अगर थोड़ी सी रिसर्च की होती तो शायद ऐसा नहीं होता. तो आपको अपना एड बनाने के लिए किस चीज़ की रिसर्च करनी है? आपको रिसर्च करनी है अपने प्रोडक्ट के बारे में, अपने कॉम्पटीटर्स के बारे में और अपने कंज्यूमर्स के बारे में. रिसर्च करने और स्टडी में टाइम,एफर्ट और पैसा  लग सकता है लेकिन एक इफेक्टिव एडवरटीज़मेंट बनाने के लिए ये बहुत इम्पोर्टेंट है. सबसे पहले तो उस प्रोडक्ट के बारे में रिसर्च करे जो आप मार्किट में बेचने जा रहे है.

इसे अंदर-बाहर अच्छे से स्टडी कर ले. इसकी बेस्ट क्वालिटी ढूंढो जो आपके कस्टमर को अपील कर सके. डेविड ओगिलवी ने एक बार रोल्स रॉयस के लिए एडवरटीज़ किया. उन्होंने कार को पूरे तीन हफ्ते तक स्टडी किया. उन्होंने एक स्टेटमेंट पढ़ा जो ये था” 60 माइल्स पर-आवर में जो लाउडेस्ट नॉइज़ आती है वो इलेक्ट्रिक क्लॉक की है” ओगिलवी ने इस लाइन को ही अपने एड की हेडलाइन बनाया था. ओगिलवी ने मर्सीड़ीज़ के लिए भी एड किया था. उन्होंने अपनी टीम को डैमलर- बेंज के स्टुटगार्ट हेडक्वार्टर्स भेजा. वहां जो इंजीनियर्स थे टीम ने उनका 3 वीक्स तक इंटरव्यू लिया.

ये इंटरव्यू मर्सीडीज़ के एड केम्पेन के लिए मटिरियल बना. और उन्हें एक्सपर्ट्स से जो फैक्ट्स मालूम हुए उसकी वजह से मर्सीडीज़ की सेल यू.एस में पर इयर 10,000 से 40,000 कार तक पहुँच गयी थी. अपने प्रोडक्ट को पूरी तरह जान लेने के बाद आपको अपने कोम्प्टीशन के एड्स भी स्टडी करने चाहिए. उनके एड्स की अपील क्या है? ये अपील कितनी इफेक्टिव है? अगर आप अपने कॉम्पटीटर्स पर भी थोड़ी रिसर्च कर लेंगे तो आपका पता चल जाएगा कि आप मार्किट में कहाँ खड़े है. सबसे इम्पोर्टेंट बात ये कि अपने कंज्यूमर्स पर इंटेंसिव रिसर्च करे.

वो आपको प्रोडक्ट के बारे में क्या फील करते है, ये जानने की कोशिश करे. ऐसी क्या क्वालिटीज़ है जो वे एक ब्रांड में ढूढंते है ? ऐसा क्या है जो आप उन्हें देने का प्रोमिस कर सकते है? अगर आप रिसर्च टीम का खर्चा नहीं उठा सकते तो एक कॉपी राइटर के तौर पर आप खुद भी ये कर सकते है. अगर आपको काम की इन्फोर्मेंशन चाहिए तो हाउसवाइव्स से बात करो. उनकी सजेशन आपके बड़े काम आयेगी. उनका इंटरव्यू लेने से आपको काफी कुछ सीखने को मिलेगा.
अब आपको सीखने है एडवरटाईजिंग के दो ऐसे कांस्पेट्स जो आपके लिए मोस्ट इम्पोर्टेंट है. ये है पोजिशनिंग और ब्रांड इमेज. जब आप पोजिशनिंग की बात करते है तो इसका सीधा मतलब है कि”ये  प्रोडक्ट क्या करता है और ये किसके लिए है’

ओगिलवी ने डव सोप के लिए भी एड बनाया था. वो चाहते तो डव को सिर्फ मर्दों के हाथ धोने का सोप बना सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. उन्होंने इसे औरतो के लिए ब्यूटी बार सोप की तरह पेश किया जो ड्राईनेस दूर करके स्किन को सॉफ्ट बनाता है. और 25 सालो से डव की यही इमेज बनी हुई है. आपको ब्रांड की पोजिशनिंग के बारे में सोचना है. आपको प्रोडक्ट की ब्रांड इमेज भी क्रियेट करनी पड़ेगी.

क्योंकि ये प्रोडक्ट की ओवरआल क्वालिटीज़ जैसे कि नाम से लेकर प्राइस, पैकेजिंग, एडवरटाईजिंग स्टाइल जैसी सभी चीज़े रिप्रेजेंट करता है. ज्यादा एक्यूरेट बोले तो ब्रांड इमेज किसी भी प्रोडक्ट की पर्सनेलिटी होती है. इसलिए जो भी एडवरटीज़मेंट्स प्रोडक्ट के लिए बने वे सब उसकी ब्रांड इमेज से मैच करने चाहिए. और ये हमेशा सेम रहे चाहे मार्केटिंग डायरेक्टर या एड एजेंसी बदल जाए. एक पॉवरफुल ब्रांड इमेज कई सालो तक इफेक्टिव रहता है. फिर लोग सालो साल तक उस प्रोडक्ट को उसकी ब्रांड इमेज से जोड़ कर ही देखते है.

ब्रांड इमेज ही ये डिसाइड करता है कि कोई प्रोडक्ट आपको लेना है या नहीं. आप बाकी ब्रांड्स के बदले एक ख़ास ब्रांड का प्रोडक्ट इसलिए चूज़ करते है क्योंकि वो आपको रीप्रजेंट करता है. ये आपकी पर्सनेलिटी और आपके लाइफस्टाइल को रीप्रेजंट करता है. यहाँ पर हम मार्लबोरो सिगरेट का एक्जाम्पल ले सकते है.

जब ये सिगरेट फर्स्ट टाइम रीलीज़ हुई थी तो उस टाइम तक किसी ने इसका नाम तक नहीं सुना था. तब ये एक छोटा सा ब्रांड हुआ करता था. लेकिन एडवरटाईजिंग जीनियस लियो बर्नेट ने इस पर काफी मेहनत की. उन्होंने ही मार्लबोरो के लिए काऊबॉय की इमेज़ क्रियेट की थी. और शायद इसीलिए मार्लबोरो सिगरेट इंटरनेशनल सिगरेट ब्रांड बन गया. आज भी मार्लबोरो के पैकेट पर काऊबॉय की इमेज देखी जा सकती है.

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वांटेड : अ रेनिसेंस इन प्रिंट एडवरटाईजिंग

विनिंग प्रिंट एडवरटीज़मेंट क्रियेट (create) करने के कुछ ऐसे रूल्स है जो कॉपी राइटर को फोलो करने ज़रूरी है. दुनिया के किसी भी कस्टमर के लिए ये रूल्स बहुत इफेक्टिव है. क्योंकि ये पास्ट में काम आये थे और प्रेजेंट में भी बड़े काम के है. इसका रीजन यही है कि चाहे कोई भी जगह हो या कोई भी टाइम पीरियड हो, ह्युमन नेचर हमेशा सेम रहता है. लोग हमेशा से ही मनी, हेल्थ, ब्यूटी, सोशल स्टेट्स की डिजायर करते आये है और अपनी मुसीबतों से छुटकारा ही चाहते आये है.

जो एड आप बनाये वो लोगो को ऐसा लगे जैसे कि उनकी सब मुश्किलों का सोल्यूशन हो.,हेड लाइन्स इलूस्ट्रेशन और बॉडी कॉपी के रूल्स फोलो करके आप भी ऐसे इफेक्टिव एड्स क्रियेट कर सकते है जो लोगो को खींचे. किसी भी प्रिंटेड एड का फर्स्ट एलिमेंट होता है उसकी हेड लाइन. यही वो चीज़ है जो लोग सबसे पहले देखते है और रीडर की अटेंशन कैच करती है. 90% बार ऐसा होता है कि अगर हेडलाइन इंट्रेस्टिंग ना हो तो लोग पूरी कॉपी नही पढ़ते ..
बेस्ट हेडलाइन्स वो होती है जो रीडर्स को कुछ बेनेफिट्स देने का प्रोमिस करे. अब जैसे मान लो किसी टूथ पेस्ट का एड जो ज्यादा व्हाईट टीथ (white teeth ) और जीरो कैविटी का वादा करे. या फिर गैसोंलीन का एड जो कहे कि” मोर माइल्स पर गैलन” (more miles per gallon).

अगर कोई डीटरजेंट (detergent) का एड हुआ तो वो ज्यादा क्लीन और खुशबूदार कपड़ो का प्रोमिस कर सकता है. कुछ हेडलाइन्स जो कोई न्यूज़ बताती है, वो भी अच्छा सेल करती है. जैसे किसी नए शैम्पू के बारे में न्यूज या किसी ओल्ड प्रोडक्ट के नए फीचर्स या उसे यूज़ करने का नया तरीका भी हेडलाइन हो सकती है. इसका एक बढ़िया एक्जाम्पल है. कई साल पहले कैम्पबेल ने एक बड़ी स्ट्रोंग हेडलाइन बनाई थी” सूप ओन द रोक्स” (Soup on the Rocks). ये कैन्ड बीफब्रोथ को आइस के साथ खाने के नये तरीके के बारे में थी. तब ये एक बड़ी शॉकिंग न्यूज़ बनी थी.

अगर आपकी न्यूज़ आपके प्रोडक्ट के बारे में कुछ बताती है तो इसे यूज़ करे. अपने प्रिंट एड में इसे अपनी हेडलाइन बनाकर प्रजेंट करे. अगर आप कुछ ऐसे वर्ड्स जैसे” इंट्रोड्यूसिंग” (introducing)  “अमेजिंग (amazing) नाऊ (now) या सडनली (“suddenly) यूज़ करते है तो पढने वालो को ये और भी इफ़ेक्टिक लगेगा. आपने इन वर्ड्स को अक्सर एड्स में बार-बार देखा होगा क्योंकि ये सच में काम करते है.

प्रिंटेड एड्स का सेकंड एलिमेंट है इलुस्ट्रेशन (illustration). पहले के टाइम में एड एजेंसीज़ फोटोग्राफ्स और पेंटिंग्स यूज़ करती थी. आजकल काफी मॉडर्न टूल्स यूज़ होते है लेकिन आज भी इलुस्ट्रेशन का इम्पैक्ट (impact)उतना ही है जितना कि पहले था. ये किसी एड को बना भी सकते है और बिगाड़ भी. इलुस्ट्रेशन हमेशा से ही पॉवरफुल रहा है , अब जैसे मार्लबोरो के काऊबॉय को ही देख लो.

उस काऊबॉय की इमेज को लोगो ने सिगरेट से ही जोड़ लिया है. हम यहाँ कुछ टिप्स दे रहे है इलुस्ट्रेशन बनाने के लिए. सबसे पहले तो सब्जेक्ट देखे जो इलुस्ट्रेशन का मोस्ट इम्पोर्टेंट पार्ट है, ये ऐसा होना चाहिए कि लोगो में क्यूरियोसिटी (curiosity) बढ़ा सके, उन्हें एक स्टोरी बता सके. जैसे एक्जाम्पल के लिए हम बिफोर और आफ्टर वाले इलुस्ट्रेशन ले सकते है जिनका काफी पॉवरफुल इफ्केट पड़ता है. इसमें लोगो को एक फेसिनेटिंग स्टोरी नज़र आती है.

और सब्जेक्ट जितना पोसिबल हो उतना सिम्पल रखे. ओगिलवी ने अपने एक्स्पिरियेंश से सीखा कि क्राउड कभी भी (crowds ) अच्छा सब्जेक्ट नही होता बल्कि फोकस सिर्फ एक पर्सन पर होना चाहिए. उन्हें ये भी लगता था कि हिस्टोरिकल रेफरेंस वाले एड मुश्किल से ही बिकते है. एक बार ओगिलवी ने एक इलुस्ट्रेशन क्रियेट किया जिसमे शेफ्स (chefs) का एक ग्रुप दिखाया गया था. लेकिन जल्दी ही उन्हें रियेलाईज हुआ कि शेफ्स (chefs) कभी भी हाउसवाइव्स (housewives) को अपील नहीं करते.

ये उनकी मिस्टेक थी क्योंकि जरूरी नहीं कि जो चीज़ उन्हें अपील करे वो रीडर्स को भी अपील करेगी. अगर प्रोडक्ट कुकिंग के लिए हो तो कभी भी इंग्रीडीएंट्स (ingredient) की पिक्चर शो ना करे बल्कि डिलीशिय्स (Delicious ) मील के फोटो शो करे जो पब्लिक को ज्यादा अपील करेगी. एक स्विस कैंन्ड (Swiss canned good ) गुड ब्रांड था जिसमे वेजिटेबल्स (vegetables) की पिक्चर्स थी. लेकिन अगर इसमें बढ़िया सा होम कुक्ड मील (home cooked meal) दिखाया जाता तो इसका प्रिंट एड और भी बैटर बन सकता था.

प्रिंटेड एड का थर्ड एलेमेन्ट है बॉडी कॉपी (body copy). जिसका मतलब है टेक्स्ट (text) जोकि हेडलाइन के साथ दिया जाता है. बॉडी कॉपी कोई नहीं पढ़ता” “Nobody reads body copy”. ये बिलकुल सच्ची बात है क्योंकि अगर हेडलाइन और इलुस्ट्रेशन (illustration) में दम नहीं है तो रीडर्स बाकि का कुछ भी नहीं पढ़ेगा. तो एक कॉपी राइटर की जॉब है कि वो ऐसी बॉडी कॉपी क्रियेट करे जो रीडर्स को पढने पर मजबूर कर दे. आपकी बॉडी कॉपी इतनी इंट्रेस्टिंग (interesting) लगे कि रीडर्स उसे पढना चाहे. बॉडी कॉपी लिखते टाइम ऐसा लगे जैसे आप खुद रीडर से पर्सनली बात कर रहे हो. लंबे पैराग्राफ्स (paragraphs ) के बजाये छोटे सेंटेंस (sentences)यूज़ करे. सिंपल वर्ड्स चूज़ करे और ऐसे लिखे जैसे आप डे टू डे लाइफ में नार्मल बात करते है.

ओगिलवी ने एक बार गलती से डिफिकल्ट वर्ड (difficult word) यूज़ कर लिया था. उन्होंने कुछ ऐसा लिखा” डव मेड सोप ओब्सोलेट” (Dove made soap obsolete) और ये एड फेल हो गया क्योंकि ज़्यादातर हाउसवाइव्स को ओब्सोलेट (obsolete) का मीनिंग नहीं पता था. बाद में उन्होंने इस वर्ड को चेंज करके “ओल्ड फेशंड” “old-fashioned” वर्ड लिखा.

बॉडी कॉपी कोई एस्से (essay) नहीं है. बैटर होगा कि आप रीडर को एक स्टोरी सुनाये.ज़िप्पो(Zippo) ने एक बार एक विनिंग प्रिंट एड (winning print ad ) निकाला जो इस तरह था” एक ज़िप्पो की अमेजिंग स्टोरी जिसे एक फिश के पेट से निकाला गया था” (The amazing story of a Zippo that worked after being taken from the belly of a fish)”.

एनालोजीज़ (analogies) यूज़ ना करे क्योंकि इससे आपके रीडर्स कन्फ्यूज़ हो सकते है. जैसे कि अगर आपका प्रोडक्ट कोई फेशियल क्रीम है तो ऐसा कभी ना कहे” जैसे प्लांट्स को मोईश्चर चाहिए वैसे ही आपकी स्किन को भी चाहिए” (Just as plants require moisture, so too does your skin). आपकी बॉडी कॉपी ऐसी हो जो रीडर्स को ईजिली समझ आये. इसमें क्लियर और डायरेक्ट बात हो कि आपका प्रोडक्ट रीडर्स के लिए क्या कर सकता है. अब पोस्टर मेकिंग के बारे में कुछ इंट्रेस्टिंग फैक्ट्स बताते है.

सिंपली बोले तो आपको इसे एक “विजुएल स्कैंडल” बनाना पड़ेगा. पोस्टर ऐसा हो जो दूर से ही लोगो की अटेंशन ग्रेब कर ले. इसके लिए खूब बड़े फोंट्स और सॉलिड कलर्स यूज़ करे. आपका ब्रांड प्रोमिस ना सिर्फ वर्ड्स में बल्कि इलुस्ट्रेशन्स में भी दिखना चाहिए. जितना हो सके पोस्टर में उतने कम एलिमेंट्स हो और कोई क्लटर (clutter) ना हो.

इंग्लैण्ड में एक पोस्टर वाकई में विजुअल स्कैंडल (visual scandal) की तरह था. ये एक सुपर ग्ल्यू (super glue )का ब्रांड एड था. एक असली की कार को बिलबोर्ड में ग्ल्यू किया गया था जिसके साथ टैगलाइन थी “ इट आल्सो स्टिक्स हैंडल्स टू टीपॉट्स” (It also sticks handles to teapots). व्हाईट बैकग्राउंड में ब्लैक इंक से लिखा गया था और साथ में प्रोडक्ट का लोगो था. अल्टीमेटली (ultimately) ये पोस्टर एक अटेंशन ग्रेबर था क्योंकि इसमें कार को ग्ल्यू किया गया था.

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