(hindi) Mindsight: The New Science of Personal Transformation

(hindi) Mindsight: The New Science of Personal Transformation

इंट्रोडक्शन

क्या आपको लगता है कि लोग अपनी पुरानी आदतों और व्यवहार को बदल सकते हैं? क्या आप ख़ुद को इम्प्रूव करना चाहते हैं लेकिन नहीं जानते कि असल में आपको क्या इम्प्रूव करने की ज़रुरत है?

अपने थॉट्स, व्यवहार और फीलिंग्स के बारे में पता होना, उसके बारे में अवेयर होने के लिए आपको माइंडसाईट की ज़रुरत होगी. माइंडसाईट एक मेंटल एक्टिविटी है जो आपको अपनी गलतियों और बुरी आदतों पर ध्यान देने में मदद करती है. ये एक ऐसा टूल है जो आपको पहले से बेहतर बनने में मदद करेगी.

इस बुक में आप उन सिचुएशन्स के बारे में जानेंगे जहां आपको माइंडसाईट की कमी दिखाई देगी. आपको आश्चर्य होगा कि हमारे इमोशंस हमें कितनी आसानी से कंट्रोल कर सकते हैं. आप openness, objectivity, और observation का इस्तेमाल कर अपने एक्शन पर गौर करने के इम्पोर्टेंस को समझेंगे. आप ये भी जानेंगे कि सोचने का तरीका आपके ब्रेन को कैसे बदल सकता है. तो क्या आप ख़ुद को ज़्यादा जानने के लिए तैयार हैं?

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Diving into the Sea Inside

अगर मैं कहूं कि हम सब दो अलग-अलग तरह की दुनिया में जी रहे हैं तो क्या आपको हैरानी होगी? हाँ, ठीक सुना आपने। हम external यानी बाहरी और इंटरनल यानी अंदर की दुनिया में जीते हैं. बाहरी दुनिया वो है जहां हम दूसरे लोगों के साथ मिलते जुलते हैं, उनसे बातचीत करते हैं. इंटरनल दुनिया आपके अंदर की दुनिया है. इसमें वो हर थॉट, आईडिया और फीलिंग शामिल है जो आपके माइंड में आती है. लेकिन दुःख की बात ये है कि आपके अंदर की दुनिया में कुछ बुरे हिस्से भी होते हैं. हर पछतावा, फेलियर, डर किसी परछाई की तरह आप पर हावी होने का इंतज़ार करता रहता है.

तो जब ये नेगेटिव फीलिंग्स आपको दुःख में डुबाने की कोशिश करें तो उसका सामना कैसे किया जाए? बुरे थॉट्स कुछ समय के लिए दूर हो जाते हैं लेकिन जब वो आपके दिमाग में घर बनाकर रहने लगे तब क्या होगा? अब यहीं पर माइंडसाईट काम आती है. माइंडसाईट डेवलप करने से आपको अपने माइंड को कंट्रोल करने में मदद मिलेगी. ये आपको ज़रुरत से ज़्यादा सोचने की आदत से बाहर निकलने में मदद करेगी और आपको प्रॉब्लम का बेहतर तरीके से सामना करना सिखाएगी.

इस बुक के ऑथर डेनियल कहते हैं कि माइंडसाईट का मतलब होता है इस बारे में अवेयर होना कि हम किस तरह सोच रहे हैं. ये हमें एनालाइज करने में मदद करती है कि हम किसी भी सिचुएशन में कैसे रियेक्ट करते हैं, कैसे बर्ताव करते हैं. अवेयर होने के अलावा, माइंडसाईट हमें उन आदतों और रिएक्शन को बदलने में मदद करेगी जो इतने अच्छे नहीं हैं. इंसान हमेशा अच्छे से व्यवहार नहीं करता तो माइंडसाईट हमें इसे बदलना सिखाएगी.

हालांकि, हम ख़ुद को बेहतर बनाने के लिए बदलना चाहते हैं लेकिन ऐसा करना मुश्किल हो सकता है. तो इसकी शुरुआत हम कहाँ से करें? इस सफ़र में माइंडसाईट आपके लिए पहले कदम का काम करेगी. इसके साथ-साथ, माइंडसाईट होने का असर हमारे ब्रेन के फिजिकल स्ट्रक्चर में देखा जा सकता है. हम जिस तरह सोचते हैं वो बहुत पावरफुल होता है और सबसे ज़रूरी बात, माइंडसाईट हमारी लाइफ को इम्प्रूव करने में मदद करती है. ये हमारे भले के लिए चमत्कार कर सकती है.

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Crepes of Wrath: Mindsight Lost and Found

एक दिन, डेनियल अपनी नौ साल की बेटी और तेरह साल के बेटे के साथ टहल रहे थे. रास्ते में वो एक क्रेप की दुकान के सामने से गुज़रे. उनके बेटे को भूख लगी थी वो सभी अंदर चले गए. जब उनका आर्डर आया तो उसमें से भीनी-भीनी खुशबू आ रही थी और वो दिखने में इतना टेस्टी लग रहा था कि उनके बेटे ने excitement में आकर एक बड़ा बाईट खा लिया. अपने भाई को खाता देख डेनियल की बेटी का भी मन मचलने लगा. उसने कहा कि वो बस चखना चाहती है कि उसका स्वाद कैसा है. तो उसके भाई ने कहा कि हमें एक प्लेट और आर्डर करना चाहिए लेकिन वो मानी नहीं बल्कि कहने लगी कि एक बाईट के लिए पूरा प्लेट क्यों आर्डर करना.

अब उनमें बेवजह बहस होने लगी. उस वक्त अगर डेनियल एक प्लेट आर्डर कर देते तो इस बहस को रोका जा सकता था लेकिन डेनियल ने सब गड़बड़ कर दिया. उन्होंने अपनी बेटी का पक्ष लेते हुए कहा कि उनके बेटे को अपने प्लेट से शेयर करना चाहिए. उनके बेटे ने गहरी सांस ली और अपने पिता की बात मान ली. उसने अपनी प्लेट में जितना हो सका उतना छोटा बाईट लिया और अपनी बहन के आगे कर दिया. बहन वो छोटा सा टुकड़ा देखकर चिढ़ गई, उसने कहा, “ये बहुत छोटा है, थोडा बड़ा बाईट दो.” अगर इस बहस से आपका सर दर्द हो रहा है तो उस वक़्त डेनियल का भी यही हाल था. हर पल के साथ उनका गुस्सा ज्वालामुखी बनता जा रहा था. वो सोचने लगे, “उफ़, बच्चों को मैनेज करना कितना थका देता है”.

एक बार फ़िर डेनियल ने अपने बेटे से थोड़ा बड़ा टुकड़ा काटने के लिए कहा. उनके बेटे ने कहा मान लिया और डेनियल ने चैन की सांस ली. लेकिन उनकी बेटी अब भी संतुष्ट नहीं हुई. उसने कहा कि उसके भाई ने जला हुआ हिस्सा दिया है. उसे उसमें क्रेप का स्वाद तो आएगा ही नहीं. अब डेनियल के सब्र का बाँध टूट गया. वो उठे, अपनी बेटी का हाथ पकड़ा और उसे दुकान के बाहर ले गए. वो बाहर ही अपने बेटे का इंतज़ार करने लगे.

उसके बाद वो सब घर लौट गए. जब उनके बेटे ने पूछा कि वो लोग दुकान से बाहर क्यों गए थे तो डेनियल ने गुस्से से जवाब दिया कि उसे पता होना चाहिए कि शेयर कैसे करते हैं. उसने बड़ी शांति से जवाब दिया कि उसने शेयर किया था लेकिन तब तक डेनियल अपनी भावनाओं में इतने घिरे हुए थे कि उन्होंने अपने बेटे की बात को सुना ही नहीं.

डेनियल जानते थे कि वो बेवकूफी से रियेक्ट कर रहे थे. उनके बेटे की बात गलत तो नहीं थी. लेकिन इससे डील करने के लिए पहले उन्हें शांत होने की ज़रुरत थी. इसलिए डेनियल अपनी बेटी के साथ बाहर रोलर स्केटिंग करने चले गए. इस एक्टिविटी से उनका टेंशन कम होने लगा. उन्हें महसूस हो रहा था कि उनका गुस्सा दूर हो रहा था.

कुछ देर बाद उनकी बेटी ने चुप्पी तोड़ी. उसने पूछा कि वो उसके भाई पर इतना गुस्सा क्यों हो रहे थे? डेनियल ने बहाना बना दिया कि वो उसे सिखा रहे थे कि शेयर करना कितना ज़रूरी होता है. लेकिन मन ही मन वो जानते थे कि सिर्फ़ यही कारण नहीं था.

जब डेनियल इस बारे में और सोचने लगे तो उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अपना रिश्ता याद आने लगा. हालांकि, बचपन में वो दोनों बहुत करीब थे लेकिन जैसे ही उनके भाई ने टीनएज में कदम रखा, उनका रिश्ता भी बदल गया. अब वो बात-बात पर लड़ने लगे. इस एक्सपीरियंस के बाद उन्होंने फ़ैसला किया कि अगर उनके दो बच्चे हुए तो वो इस बात का ध्यान रखेंगे कि उनकी आपस में बने.

डेनियल ने ये किस्सा अपनी बेटी को बताया, उनकी बेटी ने इसका बड़ी समझदारी से जवाब दिया. उसने कहा कि उनका अपने भाई से साथ  मुद्दा और उसका अपने भाई के साथ मुद्दा, ये दो बिलकुल अलग बातें थीं. इन दोनों की तुलना नहीं की जा सकती और उन्हें अपने नज़रिए से उनके रिश्ते को नहीं देखना चाहिए. डेनियल जानते थे कि वो बिलकुल ठीक कह रही थी. उनका गुस्सा अब शांत हो चुका था और वो अपने बेटे से बात करना चाहते थे.

माइंडसाईट हमें बातों के पीछे के लॉजिक को समझने में मदद करता है. माइंडसाईट तीन फैक्टर पर काम करता है – openness, observation, and objectivity.. डेनियल इसे एक tripod की तरह मानते हैं.  ये तीनों tripod के पैर हैं जबकि माइंडसाईट कैमरा है. tripod के बिना माइंडसाईट कभी हमारी फीलिंग्स का सही पिक्चर खींच ही नहीं पाता. लेकिन tripod के साथ हमारे दिमाग में क्या-क्या चल रहा है उसे ठीक से समझा जा सकता है.

Openness यानी खुली सोच का मतलब होता है कि हमें अपने सोचने के ढ़ंग को सीमित नहीं रखना चाहिए. इसमें हम ख़ुद को expectation यानी उम्मीद से आज़ाद कर देते हैं. हम थॉट्स और आइडियाज को जैसी वो हैं वैसे ही एक्सेप्ट करते हैं और ये उम्मीद नहीं करते कि वो हमारी सोच के अनुसार हो. ऐसा करना मुश्किल बातचीत के लिए एक healthy माहौल बनाता है.

Observation का मतलब है कि हमने जो एक्सपीरियंस किया उसे बेहतर तरीके से समझने की कोशिश करना. इसमें एक कदम पीछे लेकर हम उस पल में कैसे बर्ताव करते हैं, कैसे रियेक्ट करते हैं उसे नोटिस करना होता है. इस तरह हम देख पाएँगे कि हम जिस तरह रियेक्ट कर रहे हैं क्या वो सही है या उसे बदलने की ज़रुरत है.

Objectivity का मकसद ये ध्यान रखना होता है कि हम अपनी भावनाओं या विचारों में ना बह जाएं या उन्हें ख़ुद पर हावी ना होने दें. ये भावनाएं और थॉट्स सब टेम्पररी होते हैं, कुछ समय बाद बदल जाते हैं इसलिए इस एक चीज़ को हमें अपनी पहचान नहीं बनानी चाहिए. Objectivity हमारे डिसिशन लेने की एबिलिटी को डेवलप करता है. थॉट्स और फीलिंग्स ऐसी चीज़ें हैं जो हमारे माइंड में चलती रहती हैं लेकिन वो रियलिटी नहीं हैं. इसलिए जब हम किसी मुश्किल सिचुएशन से गुज़र रहे होते हैं तो हमें सिर्फ़ अपने थॉट्स और फीलिंग्स के बारे में नहीं सोचना चाहिए.

माइंडसाईट सोचने पर ज़ोर देता है. इसका मतलब है कि हमें reflective होना चाहिए रिएक्टिव नहीं. reflective का मतलब है हमें सोचने की ज़रुरत है लेकिन रिएक्टिव का मतलब है कि आप अपने इमोशंस को अपना बर्ताव कंट्रोल करने देते हैं.

इसलिए अपने बेटे से बात करने से पहले डेनियल ने अपने एक्शन के बारे में सोचने के लिए माइंडसाईट का इस्तेमाल किया. उन्होंने शांति से उस सिचुएशन के बारे में सोचा जहां सब कुछ गड़बड़ हो गया था. अबकी बार वो ख़ुद के साथ सख्त नहीं थे क्योंकि reflection का मतलब होता है समझना और सहानुभूति रखना. हम सभी से कभी-ना-कभी गलती हो जाती है इसलिए ज़्यादा ज़रूरी है उससे सीखना और ख़ुद को इम्प्रूव करना.

उस दिन घर लौटने के बाद डेनियल अपने बेटे से बात करने गए. उनके बेटे ने कहा कि वो उसके साथ गलत तरह से पेश आए. अपनी गलती गिनाए जाने के बाद इंसान अक्सर ख़ुद के बचाव में थोडा गुस्सा होकर जवाब देता है लेकिन अब डेनियल शांति से उसकी बातें सुन रहे थे. वो अपने व्यवहार के लिए सफ़ाई देना चाहते थे लेकिन वो जानते थे कि ऐसा करने के लिए उनकी भावनाएं उकसा रही थीं. इस तरह, जब उनका बेटा अपनी सिचुएशन समझा रहा था तो डेनियल ने objectivity के फैक्टर को बनाए रखा.

डेनियल को पता था कि उनका बेटा सही था लेकिन अब भी उन्हें शेयरिंग पर लेक्चर देने का मन कर रहा था. इसके बजाय डेनियल ने openness को फॉलो किया यानी अपने बेटे के एक्सपीरियंस को समझने और फील करने की कोशिश की. वो बेमन से नहीं बल्कि पूरा ध्यान लगाकर सुन रहे थे क्योंकि वो सच में जानना चाहते थे कि उस सिचुएशन में उनका बेटा क्या सोच रहा था और कैसा महसूस कर रहा था.

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