(hindi) MANOVRUTTI

(hindi) MANOVRUTTI

एक सुंदर औरत , सुबह , गाँधी-पार्क में बिल्लौर के बेंच पर गहरी नींद में सोयी पायी जाय, तो यह चौंका देने वाली बात है। ख़ूबसूरत लडकियां पार्क में हवा खाने आती हैं, हँसती हैं, दौड़ती हैं, फूल-पौधों से खेलती हैं, किसी का उस पर ध्यान नहीं जाता; लेकिन अगर कोई औरत बेंच पर बेखबर सोये, यह बिलकुल गैर मामूली बात है, अपनी ओर पूरी ताकत के साथ आकर्षित करने वाली बात की तरह।

वहाँ कितने ही आदमी चहलकदमी कर रहे हैं, बूढ़े भी, जवान भी, सभी एक पल  के लिए वहाँ ठिठक जाते हैं, एक बार वह नज़ारा देखते हैं और फ़िर चले जाते हैं, नौजवान रहस्य के भाव से मुसकराते हुए, बुजुर्ग चिंता-भाव से सिर हिलाते हुए और औरतें शर्म से आँखें नीचे किये हुए।

बसंत और हाशिम निकर और बनियान पहने नंगे पाँव दौड़ रहे हैं। बड़े दिन की छुट्टियों में ओलिंपियन रेस होने वाला है, दोनों उसी की तैयारी कर रहे हैं। दोनों उस  जगह पहुँचकर रुक जाते हैं और दबी आँखो से औरत को देखकर आपस में खयाल दौड़ाने लगते हैं।

बसंत ने कहा- “इसे और कहीं सोने की जगह नहीं मिली”।
हाशिम ने जवाब दिया- “कोई वेश्या होगी शायद”।
'लेकिन वेश्याएँ भी तो इस तरह बेशर्मी नहीं करतीं।'
'वेश्या अगर बेशर्म न हो तो वेश्या नहीं।'

'बहुत-सी ऐसी बातें हैं, जिनमें घर की बहु और वेश्या दोनों एक सा व्यवहार करती हैं। कोई वेश्या आमतौर पर सड़क पर सोना नहीं चाहती।'
'रूप-छवि दिखाने का नया आर्ट है।'
'आर्ट का सबसे सुंदर रूप छिपाना है, दिखाना नहीं। वेश्या इस रहस्य को खूब समझती है।'
'उसका छिपाना सिर्फ़ आकर्षण बढ़ाने के लिए होता है।'

'हो सकता है; मगर सिर्फ़ यहाँ सो जाना यह साबित नहीं करता कि यह वेश्या है। इसकी माँग में सिंदूर है।'
'वेश्याएँ मौका मिलने पर सौभाग्यशाली बन जाती हैं। रात-भर प्याले के दौर चले होंगे। काम-के खेल हुए होंगे। दुःख के कारण, ठंडक पाकर सो गयी होगी।'
'मुझे तो किसी घर की बहु-सी लगती है ?'
'कोई बहु पार्क में सोने आयेगी ?'
'हो सकता है, घर से रूठकर आयी हो ?'
'चलकर पूछ ही क्यों न लें।'

'महा बेवक़ूफ़ हो ! बिना जान पहचान के कैसे किसी को जगा कैसे सकते हो ?'
'अजी चलकर जान पहचान कर लेंगे। उलटे और एहसान जतायेंगे।'
'और जो वो कहीं झिड़क दे तो ?'

'झिड़कने की कोई बात भी होनी चाहिए। उससे अच्छे से और प्रेम में डूबी हुई बातें करेंगे। कोई औरत ऐसी बातें सुनकर चिढ़ नहीं सकती। अजी, जिनकी जवानी चली गई वो तक रस-भरी बातें सुनकर फूली नहीं समातीं। यह तो फ़िर भी जवान है। मैंने रूप और जवानी का इतना सुंदर मिलन नहीं देखा था।'
'मेरे दिल पर तो यह रूप अब जीवन भर के लिए छप गया है! अब शायद कभी न भूल सकूँ।'

'मैं तो फिर यही कहता हूँ कि कोई वेश्या है।'
'रूप की देवी वेश्या भी हो, तो पूजनीय है।'
'यहीं खड़े-खड़े कवियों की-सी बातें करोगे, जरा वहाँ चलते क्यों नहीं। तुम बस  खड़े रहना, जाल तो मैं डालूँगा।'
'कोई बहु hi है।'

'ख़ानदानी बहु पार्क में आकर सोये, तो इसका इसके सिवा कोई मतलब नहीं कि वह आकर्षित करना चाहती है, और यह वेश्या मानसिकता है।'
'आजकल की औरतें भी तो फार्वर्ड होने लगी हैं।'
'फार्वर्ड औरतें आदमियों से आँखें नहीं चुरातीं।'

'हाँ, लेकिन है किसी घर की बहु, बहु से किसी तरह की बातचीत करना मैं बेहूदगी समझता हूँ।'
'तो चलो फिर दौड़ लगावें।'
'लेकिन दिल में तो वह मूर्ति दौड़ रही है।'

'तो आओ बैठें। जब वह उठकर जाने लगे; तो उसके पीछे चलें। मैं कहता हूँ वेश्या है।'
'और मैं कहता हूँ, बहु  है।'
'तो दस-दस की बाजी रही।'

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दो बुजुर्ग आदमी धीरे-धीरे जमीन की ओर ताकते आ रहे हैं, मानो खोयी जवानी ढूँढ रहे हों। एक की कमर झुकी, बाल काले, शरीर भारी; दूसरे के बाल पके हुए, पर कमर सीधी, दुबला पतला शरीर। दोनों के दाँत टूटे; पर नकली दाँत लगाये, दोनों की आँखो पर चश्मा । मोटे महाशय वकील हैं, छरहरे महोदय डाक्टर।

वकील –“ देखा, यह बीसवीं सदी की करामात !”
डाक्टर- “जी हाँ देखा, हिंदुस्तान दुनिया से अलग तो नहीं है”।
'लेकिन आप इसे तमीज़ तो नहीं कह सकते ?'
'तमीज़  की दुहाई देने का अब समय नहीं।'
'है किसी भले घर की लड़की।'
'वेश्या है साहब, आप इतना भी नहीं समझते।'
'वेश्या इतनी फूहड़ नहीं होती।'
'और भले घर की लड़कियाँ फूहड़ होती हैं ?'
'नयी आजादी है, नया नशा है।'

'हम लोगों की तो बुरी-भली कट गयी। जिनके सिर आयेगी, वह झेलेंगे।'
'अफसोस, जवानी विदा हो गयी।'
'जिंदगी जहन्नुम से बदतर हो जायेगी।'
'मगर आँख तो नहीं रुखसत हो गयी; वह दिल तो नहीं रुखसत हो गया।'
'बस आँख से देखा करो, दिल जलाया करो।'

'मेरा तो फिर जवान होने को जी चाहता है। सच पूछो तो आजकल के जीवन में ही जिंदगी की बहार है। हमारे वक्त में तो कहीं कोई सूरत ही नजर न आती थी। आज तो जिधर जाओ, हुस्न-ही-हुस्न के जलवे हैं।'

'सुना, औरतों को दुनिया में जिस चीज से सबसे ज्यादा नफरत है, वह बूढ़े मर्द हैं।'
'मैं इसका कायल नहीं। आदमी का जौहर उसकी जवानी नहीं, उसकी ताकत में है। कितने ही बूढ़े जवानों से ज्यादा कड़ियल होते हैं। मुझे तो आये दिन इसके तजुर्बे होते हैं। मैं ही अपने को किसी जवान से कम नहीं समझता।'

'यही सब सही है; पर बूढ़ों का दिल कमजोर हो जाता है। अगर यह बात न होती तो इस औरत को इस तरह देखकर हम लोग यों न चले जाते। मैं तो आँख भर देख भी न सका। डर लग रहा था कि कहीं उसकी आँखें खुल जायें और वह मुझे ताकते देख ले तो दिल में क्या समझे।'

'खुश होती कि बूढ़े पर भी उसका जादू चल गया।'
'अजी रहने भी दो।'
'आप कुछ दिनों 'ओकासा' खाइए ।'

'चंद्रोदय खाकर देख चुका। सब पैसा लूटने की बाते हैं।'
'मंकी ग्लैंड लगवा लीजिए न?'
'आप इस औरत से मेरी बात पक्की करा दें तो मैं तैयार हूँ।'
'हाँ, यह मेरा जिम्मा, मगर भाई हमारा हिस्सा भी रहेगा।'
'मतलब?'

'मतलब यह कि कभी-कभी मैं आपके घर आकर अपनी आँखें ठंडी कर लिया करूँगा।'
'अगर आप इस इरादे से आयें तो मैं आपका दुश्मन हो जाऊँ।'
'ओ हो, आप तो मंकी ग्लैंड का नाम सुनते ही जवान हो गये।'

'मैं तो समझता हूँ, यह भी डाक्टरों ने लूटने का एक तरीका निकाला है। सच!'
'अरे साहब, इस औरत के सिर्फ़ छूने से जवानी जाग जाएगी, आप हैं किस फेर में! उसके एक-एक अंग में, एक-एक अदा में, एक-एक मुसकान में, एक-एक विलास में जवानी भरी हुई है।'

'अच्छा कदम बढ़ाइये, क्लाइंट आकर बैठे होंगे।'
'यह सूरत याद रहेगी।'
'फिर आपने याद दिला दी।'

'वह इस तरह सोयी है, इसलिए कि लोग उसके रूप को, उसके शरीर को, उसके बिखरे हुए बाल को, उसकी खुली हुई गर्दन को देखें और अपनी छाती पीटें। इस तरह चले जाना, उसके साथ अन्याय है। वह बुला रही है, और आप भागे जा रहे हैं।'
'हम जिस तरह दिल से प्रेम कर सकते हैं, जवान कभी कर सकता है?'

'बिलकुल ठीक! मुझे तो ऐसी औरतों से पाला पड़ चुका है, जो रंगीले बूढ़ों को खोजा करती हैं। जवान तो छिछोरे, चंचल  और गर्वीले होते हैं। वे प्रेम के बदले में कुछ चाहते हैं। यहाँ नि:स्वार्थ भाव से आत्म-समर्पण करते हैं।'

'आपकी बातों से दिल में गुदगुदी हो गयी।'
'मगर एक बात याद रखिए, कहीं उसका जवान प्रेमी मिल गया तो?'
'तो मिला करे, यहाँ ऐसों से नहीं डरते।'

'आपकी शादी की कुछ बातचीत थी तो?'
'हाँ थी, मगर अपने ही लड़के जब दुश्मनी पर कमर बांधें, तो क्या हो! मेरा बड़ा लड़का यशवंत तो मुझे बंदूक दिखाने लगा। यह जमाने की खूबी है।'
अक्टूबर की धूप तेज हो चली थी। दोनों दोस्त निकल गये।

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