(Hindi) Linchpin: Are You Indispensable?
इंट्रोडक्शन (Introduction)
मै ऐसे बहुत सारे लोगो को जानता हूँ जो हर रोज़ वो काम करने पर मजबूर है जो उन्हें पसंद नही है. उन्हें इस दुनिया से अपनी असली पहचान, अपनी क्रिएटिविटी छुपानी पड़ती है क्योंकि दुनिया उनके टेलेंट की कद्र नही करती. लेकिन आज दुनिया काफी चेंज हो चुकी है. अब पहले जैसी बात नहीं है.
ये बहुत पहले से चला आ रहा है कि दुनिया हमसे उम्मीद करती है कि हम एडजस्ट करे, उनके हिसाब से फिट होने की कोशिश करे, खुद को बदल कर उनके जैसे बने. और ये काफी टाइम से चला आ रहा है लगभग एक सेंचुरी पहले से. लेकिन आज हालात बदल चुके है. आज अगर आप किसी और कॉपी करोगे तो आपको कोई फायदा नही होने वाला. बल्कि उलटे आपका नुकसान ही होगा.
क्या आपने कभी सोचा है कि आप ऑलमोस्ट एक जैसी लाइफ जीते हो. रोज़ अपने काम पर जाते हो जो आप पिछले 15 सालो से करते आ रहे हो. अचानक एक दिन आपका बॉस आपके केबिन के ड़ोर पर नॉक करता है और बताता है कि आपको रीप्लेस किया जा रहा है क्योंकि उन्हें कम सेलरी में कोई और मिल गया है. तो अब आप क्या करोगे ?
मुझे नहीं पता कि ऐसी सिचुएशन में आप कैसे रिएक्ट करोगे ? लेकिन मुझे यकीन है कि आप ये समरी पढ़ोगे तो आपको खुद से पता करने की जरूरत नही पड़ेगी. आप ये भी सीख जाओगे कि हमे मशीन का एक पार्ट बनकर नहीं रहना है जोकि ईजिली रिप्लेस किया जा सकता है बल्कि हमे खुद को एक ऐसी नीड बनाना है जो कोई पूरी ना कर सके.
The New World of Work
खुद को एम्प्लोयर की जगह रख कर देखो. अब एक्जाम्पल के लिए, आप क्यों किसी प्रोफेशनल बैग डिज़ाइनर को ज्यादा पैसे देकर हायर करना चाहोगे जबकि आप 10 बैग डिज़ाइनर रख सकते हो जो उससे भी कम पैसे में आपको बढ़िया और फ़ास्ट काम करके देंगे? 300 सालो से दुनिया इसी ट्रेंड पर चल रही थी और एम्प्लोयर का इसमें फायदा ही फायदा था पर अब नए जमाने में ऐसे काम नही होता.
हेक्टर हर रोज़ सुबह 6 बजे उठ जाता है, फिर अपनी गली के कॉर्नर पर जाकर वेट करता है. हेक्टर एक कंस्ट्रक्शन वर्कर है. वो रोज़ बाकि 6 और लोगो के साथ जोकि उसी की तरह कंस्ट्रक्शन वर्कर्स है, वहां से गुजरने वाले एक ट्रक का वेट करता है जो उन्हें लेकर जाए. और जब ट्रक आती है तो ड्राईवर विंडो के शीशे नीचे कर लेता है. वो उनमें से सिर्फ 3 लोगो को पिक करता है. उसकी कोई फिक्स चॉइस नही है, उसे जो भी चीप वर्कर लगता है उसे वो अपने साथ ले जाता है. उसके लिए वो सब एक जैसे है.
आप चाहे माने या ना माने आप भी हेक्टर जैसे हो. आप किसी कंपनी में एक जॉब के लिए अपना सीवी भेजते हो. आपका सीवी हज़ारो और लोगो के सीवी के साथ एक डेस्क पर पड़ा रहता है. अब क्योंकि आपमें और उन लोगो में कोई फर्क नहीं है तो अक्सर वो जॉब आपको नहीं मिलती. लेकिन ऐसा क्यों होता है? क्योंकि आप उन लोगो जैसे ही हो. आपमें ऐसी कोई यूनिक बात नहीं है कि एम्प्लोयर आपको कंसीडर करे क्योंकि आप डिफरेंट नहीं हो.
लॉ ऑफ़ मैकेनिकल तुर्क कहता है कि अगर किसी प्रोजेक्ट को छोटे और प्रेडिक्टेबल पीसेस में तोडा जाए तो उसे ऑलमोस्ट फ्री में किया जा सकता है.
अब ज़रा कास्टिंगवर्ड्स. कॉम को ही ले लो. ये वेबसाईट वौइस् रिकॉर्डिंग्स या इंटरव्यूज़ को रिटेन फॉर्म में ट्रांसफॉर्म कर देती है. अब आप पूछोगे कि ये वेबसाईट काम कैसे करती है? दरअसल ये वौइस् रिकॉर्डिंग्स को कई पीसेस में ब्रेक करती है और फिर उन पीसेस को कई सारे एम्प्लोईज़ में डिवाइड कर देती है. हर एम्प्लोई अपना हिस्सा ट्रांस्क्रिब करता है और फिर सारे पार्ट्स कनेक्ट करके फाइनल प्रोडक्ट तैयार होता है.
तो कास्टिंग वर्ड्स हर एम्प्लोई को कितना पे करता होगा? तो हम आपको बता दे कि एक मिनट ट्रांस्क्रिब का रेट 19 सेंट्स है. अब आप इसे हर मिनट के दो डॉलर के हिसाब से कॉम्पेयर करो तो जोकि प्रोफेशनल का रेट है, ये फिर भी काफी सस्ता पड़ेगा. और यहाँ लॉ ऑफ़ मैकेनिकल तुर्क अप्लाई होता है. तो क्लाइंट को हर प्रोजेक्ट पर 80 डॉलर्स खर्च करने के बजाए सिर्फ 15 डॉलर्स खर्च करने पड़ते है.!
और इससे भी बुरा है कि ज्यादातर बॉस एम्प्लोईज़ को नेक्स्ट मैकेनिकल तुर्क देखना चाहते है? तो क्या आप ऐसा चाहोगे? आज की दुनिया में उन लोगो की कोई जगह नही है जो सिर्फ मशीन की तरह काम करे. तो ये प्रोब्लम सोल्व कैसे होगी? सिंपल सी बात है, आपको लिंचपिन बनना होगा.
लिंचपिंस आर्टिस्ट होते है. वो किसी मशीन की तरह तो बिलकुल भी काम नही करते. उन्हें रूल्स में काम करना पसंद नहीं है और सबसे बड़ी चीज़, लिंचपिंस का कोई आल्टरनेट नही होता.
जेम्स एक फैक्टरी का मालिक है जहाँ सस्ते कपड़े बनते है. अपने वर्कर्स का इंटरव्यू लेते वक्त उसे रिएलाइज़ हुआ कि उसके पास 3 चॉइस है. या तो वो एक परफेक्ट वर्कर हायर करे जो उसे हर घंटे के हिसाब से 30$ कमा कर दे. या वो एक गुड वर्कर रखे जो 25$ कमा के दे या फिर वो एक एवरेज वर्कर हायर करे जो घंटे के सिर्फ 20$ की कमाई करके दे.
पर प्रोब्लम ये है कि जेम्स को नहीं पता कि परफेक्ट वर्कर कौन है और एवरेज कौन है जब तक कि वो वर्कर्स को हायर नहीं कर लेता और उन्हें काम नही देता. इसलिए उसे शुरुवात में सबको एक सेट प्राइस देना पड़ेगा. आपको क्या लगता है जेम्स कितना पे करेगा? ज़ाहिर है कि वो 20$ एक घंटे के हिसाब से पे करेगा.
तो जेम्स ने सारे वर्कर्स को सेम अमाउंट पे किया ताकि लिस्ट अमाउंट ऑफ़ प्रॉफिट कम्पंसेट हो सके. यानी परफेक्ट वर्कर्स जितना डिज़र्व करते थे, उससे कम पैसा ले रहे थे. और कडवी सच्चाई ये है कि परफेक्ट वर्कर्स जल्दी ही काम छोडकर चले जायेंगे. तो इस तरह परफेक्ट वर्कर्स को एक मशीन के पार्ट की तरह ट्रीट करके उन्हें मिसयूज़ किया जाता है.
इंसान अपने करियर में इसलिए नहीं जाना जाता कि वो क्या है बल्कि इसलिए जाना जाता है कि वो क्या करता है. अगर हम इंडीसपेंसेबल बनना चाहते है तो हमे डिफरेंट बनना ही पड़ेगा. आपको अपने काम में वो वैल्यू और ईमोशंस लाने होंगे जो कस्टमर्स और एम्प्लोयर्स को चाहिए. कहने का मतलब है कि आपको लाखो की भीड़ में स्टैंड आउट करना है और डिफरेंट बनकर दिखाना है ताकि लोग आपको नोटिस करे.
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थिंकिंग अबाउट योर चॉइस (Thinking About Your Choice)
खुद से एक सवाल जरूर करो. क्या आप इंडीसपेंसेबल हो?
चलो, इसका जवाब देते है. हाँ आप बन सकते हो. और आपको बता दे कि कई और लोग भी है जो इंडीसपेंसेब्ल है. और ये जानना भी ज़रूरी है कि वो सब लोग किसी सुपरपॉवर के साथ पैदा नही हुए है कि जो उन्हें इंडीसपेंसेब्ल बनाये. बल्कि उन्होंने इसके लिए काफी मेहनत की है. ये लोग डिस्पेंसेबल लोगो की इस दुनिया में अपनी मेहनत से इंडीस्पेंसेबल बने है.
आपके पास दो चॉइस है. या तो आप ये सोचो कि लाइफ में सक्सेसफुल होने के लिए किसी को तो हारना ही होगा या फिर आप वो इन्सान बन सकते हो जो हमेशा विन –विन सिचुएशन के बारे में सोचे.
किम बेरी प्रोग्राम्स गिल्ड के लीडर है. वो कांग्रेस को प्रेशर करते रहे थे कि फॉरेन टेलेंटेड कंप्यूटर प्रोग्रामर्स को एच-1बी वीज़ा लिमिट नंबर में दिए जाए. किम लाइफ को विन-लूज़ सिचुएशन में लेते है. उन्हें लगता है कि हर फोरेनर जो प्रोग्रामर्स के तौर पर यू.एस. में काम करता है, उसकी वजह से अमेरिकंस के चांसेस कम हो जाते है.
पर हम लाइफ को विन-विन सिचुएशन की तरह क्यों नही ले सकते? क्यों नही हम मार्किट को अनलिमिटेड और एक्सपेंडेबल की तरह देखते? वो ये क्यों नही सोचते कि अगर फोरेनर्स को डेवलपर्स जॉब मिल रही है तो वो कुछ अच्छा ही क्रिएट करेंगे और इससे लोकल टेलेंट्स को भी और ज्यादा अपोर्च्यूनिटीज़ मिलेंगी?
आपको लगता होगा कि सक्सेसफुल लोगो के पास कुछ एक्स्ट्रा काबिलियत होती है, ऐसा कुछ जो आपके पास नही है. पर ऐसा नही है. स्टीव जॉब्स अडॉप्टेड थे. नेल्सन मंडेला ने जेल के अंदर से ही पूरी दुनिया चेंज कर दी थी. और भी बहुत से लोग ऐसे है जिनके पास कुछ नही था फिर भी उन्होंने सक्सेस अचीव की.
कभी अमेकिन ड्रीम हुआ करता था ”वर्क हार्ड, डू एज यूं आर आस्कड टू, एंड यूं आर गोइंग टू गेट रीवार्डेड” “यानी मेहनत करो और जो बोला जाये वही करो तभी आपको रीवार्ड मिलेगा’ लेकिन अब ये बात नहीं रही. अब न्यू अमेरिकन ड्रीम है” बी डिफरेंट, क्रिएट वैल्यू, बी पैशनेट, एंड यू आर गोइंग टू गेट रीवार्डेडे”
लिंचपिन बनो, वो बनो जिसे कंपनी ईजिली रीप्लेस ना कर सके और यही आपका सबसे बड़ा रीवार्ड होगा. जब आप लिंचपिन बनते हो तब आप अपने जॉब को और भी पैशन के साथ एन्जॉय करते हो क्योंकि आप अपने कस्टमर्स से कनेक्ट रहते हो.
और अगर आप एम्प्लोयर हो तो लिंचपिंस को हायर करो. आपके ख्याल से कौन आपको ज्यादा प्रॉफिट कमा के देगा? वो जिसे जो बोला जाए, बिना सोचे एक्जेक्टली वही करे या वो जो आर्ट क्रिएट करे, जो अपनी जॉब को लेकर पैशनेट हो और ऐसे प्रोडक्ट्स बनाये जिससे कस्टमर्स इमोशनली कनेक्ट हो सके?
साथ ही जब आप लिंचपिंस हायर करते हो तो आपका बिजनेस भी एक लिंचपिन बन जाता है. यानी एकदम यूनीक, और ये लोगो को एक बड़े स्केल पर आपस में कनेक्ट करने में हेल्प करता है.
लिंचपिन एम्प्लोईज़\ वैल्यू क्रिएट करते है. जितना उन्हें पे किया जाता है, वो उससे कैन ज्यादा प्रोड्यूस करते है. इन्हें अपने काम से प्यार होता है. ये लोग फ्री स्पिरिट्स होते है जो हर काम परफेक्ट करते है. एक एम्प्लोयर के तौर पर अगर आपको लिंचपिंस चाहिए तो आपको भी एक लिंचपिन बनना पड़ेगा.
बीकमिंग द लिंचपिन (लिंचपिन बनना) Becoming the Linchpin
लिंचपिंस हर ऑर्गेनाइजेशन की नीड है. ये ऑर्गेनाइजेशन को जोड़ कर रखते है, इनके बिना कंपनी आगे नही बढ़ सकती.
आप अपनी जॉब में जितना ज्यादा वैल्यू क्रिएट करोगे उतना ही कम टाइम आपको जॉब में स्पेंड करना पड़ेगा. यही है लॉ ऑफ़ लिंचपिन लेवरेज. यानी आपको दिन भर में सिर्फ कुछ मिनट्स ही क्रिएटिव और एक्स्ट्राओर्डीनेरी करना होता है. बाकी टाइम आप बाकियों की तरफ सिर्फ नॉर्मल स्टफ करते हो, क्रिएटिविटी वो छोटी सी चीज़ है जो आपके पूरे काम को शेप देती है. यानी टास्क को और भी आसान और कस्टमर्स के साथ और ज्यादा कनेक्टेड बनाती है. और फिर धीरे-धीरे आपको अर्निंग भी बढती जाती है.
मैरिस मायेर (Marissa Mayer) उन लोगो में है जिन्होंने गूगल को एक शेप देने में और डेवलप करने में हेल्प की है. वो लिंचपिन का एक परफेक्ट एक्जाम्पल है. मरिसस अपने जॉब में वैल्यू क्रिएट करना जानती थी. उसने यूजर इंटरफेस क्रिएट करने के लिए अपने आर्ट का यूज़ किया जो कस्टमर्स के साथ इमोशनली कनेक्ट कर पाया. उनकी वजह से ही लोग बाकि सर्च इंजन जैसे याहू या बिंग के मुकाबले गूगल को पसंद करते है. हालाँकि बाकि सर्च इंजन भी सेम सर्च रीजल्ट प्रोवाइड करते है.
मरिसा जानती थी कि ऑप्टीमल सर्च रीज्ल्ट्स इम्पोर्टेंट है लेकिन मोस्ट इम्पोर्टेंट नही. उन्हें मालूम था कि प्रोग्रामर्स के साथ कस्टमर्स नीड को कैसे कनेक्ट किया जाना है, धीरे-धीरे उन्होंने एक यूजर इंटरफेस क्रिएट किया जो आज वर्ल्ड में सबसे बेस्ट है.
मान लो, आपका एक रेस्ट्रोरेन्ट है जहाँ चार वेटर्स काम करते है. उनमे से तीन अपना काम परफेक्ट करते है जबकि चौथा ठीक-ठाक काम करता है. हालाँकि ये चौथा वेटर डेली की प्रोब्लम्स हैंडल करना जानता है तो अगर किसी दिन उन एम्प्लोईज़ को निकालने की नौबत आ जाये तो आप किसको निकालोगे और किसको रखोगे? ज़ाहिर है आप प्रोब्लम सोल्वर को तो बिलकुल नही निकालोगे.
प्रोब्लम सोल्व करना किसी की भी जॉब का एक पार्ट है. और ये चीज़ ना तो सिखाई जा सकती है और ना ही एक्सप्लेन की जा सकती है. क्योंकि ये चीज़ एक्सपीरिएंस से आती है.
जैसे कि डॉक्टर अचानक रुक कर अपने पेशेंट्स से बात करे या उनकी बात सुने, उनकी नीड्स को समझे. या एक बरिस्ता खुद से जाकर कस्टमर्स से जाके पूछे कि उनका दिन कैसा रहा. या फिर एक पायलट अपने कॉकपिट से निकल कर रोते हुए बच्चे को चुप कराये. आपका एक छोटा सा स्वीट जेस्चर भी आपके बारे में लोगो की राय बदल सकता है. ये आपको एक लिंचपिन बना सकता है. इसलिए अपने काम से वक्त निकाल कर लोगो की बात सुनो, उनकी केयर करो, उनकी नीड्स का ध्यान रखो. इसमें आपका क्या जायेगा अगर आप कुछ पल रुककर लोगो से इमोशनली कनेक्ट कर सको और उन्हें इम्पोर्टेंट फील करा सको?