(hindi) Limitless: Upgrade Your Brain, Learn Anything Faster, and Unlock Your Exceptional Life
इंट्रोडक्शन
क्या आपको लगता है आप कुछ बड़ा कर सकते है? क्या आपको ख़ुद पर भरोसा है? या फिर आप ये समझते है कि दुनिया में सिर्फ़ कुछ ही लोग महान बन सकते है और आपका काम सिर्फ़ उन महान लोगों को एडमायर करना है.
लेकिन इस किताब से आप सीखेंगे कि आपके अंदर इतनी काबिलियत है जितनी आप सोच भी नहीं सकते. असल में हर किसी के अंदर एक छुपी हुई पोटेंशियल होती है जिसके बारे में उसे ख़ुद पता नहीं होता. और इस पोटेंशियल को बाहर निकालने के लिए आपको तीन लिमिटलेस चीज़े चाहिए:माइंडसेट, मोटीवेशन और मेथड और इनमें से हर एक आपकी कामयाबी के रास्ते का स्टेपिंग स्टोन है ताकि आप अपना बेस्ट वर्जन बन सके .
तो तैयार है आप लिमिटलेस बनने के लिए?
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Becoming Limitless
पहले जिम क्विक में ज़रा भी कांफिडेंस नहीं था. वो पढ़ाई-लिखाई में काफी कमजोर थे और उनमें कोई खास टेलेंट भी नहीं था. ये पढ़कर कुछ लोग शायद जिम की तुलना ख़ुद से कर सकते है, शायद आपको भी यही लगता होगा कि आप एकदम मामूली इंसान है, आपके अंदर कोई ख़ास बात नहीं है, आपके अंदर एवरेज स्किल है पर इस सबके बावजूद उम्मीद की किरण अभी बाकि है. बल्कि उम्मीद की किरण जिम के लिए भी थी जब उन्हें बचपन में सिर पर चोट आई थी. इस हादसे के बाद जिम को पढ़ने-लिखने में दिक्कत आने लगी. उनकी कांस्ट्रेशन पॉवर जीरो थी, उन्हें कुछ भी याद नहीं रहता था. पर इ सके बावजूद जिम ने हार नहीं मानी, उन्होंने हर चुनौती का सामना किया.
किसी पर कोई लेबल लगाकर हम उसकी काबिलियत कम कर देते है. जिम अपने सिर की चोट के कारण लिमिटेड रह गए थे, उनके टीचर और बाकि स्टूडेंट उन्हें दिमागी रूप से कमज़ोर समझते थे. और ख़ुद जिम के दिमाग में भी यही बात घर कर गई थी, उन्हें लगा सब उनके बारे में ठीक ही बोलते है.
कॉलेज जाने तक जिम को कुछ भी सीखना मुश्किल लगता था. वो फ्रस्ट्रेटेड हो चुके थे, वो अपने गोल्स कैसे अचीव कर सकते थे जब उन्हें मालूम था कि वो कुछ सीख ही नहीं सकते? अपनी प्रोब्लम का सोल्यूशन ढूँढने के लिए जिम ने रीसर्च शुरू की. वो ये जानना चाहते थे कि जब स्कूल्स वगैरह का कांसेप्ट नहीं था तब लोग कैसे सीखते थे? तब कौन सी टेक्नीक्स इस्तेमाल होती थी?
और काफी रीसर्च करने के बाद जिम को जवाब मिल गया. जिम समझ चुके थे कि वो रट कर कुछ भी याद नहीं रख सकते. ये उनके लिए काफी मुश्किल था क्योंकि उनकी मेमोरी वीक थी और उनका ध्यान बहुत जल्दी भटक जाता था. कांसर्न्ट्रेट करना उनके लिए पहाड़ चढने जैसा मुश्किल था. इसलिए जिम ने याद रखने के अलग तरीके ढूंढ लिए.
जिम ने ख़ुद पर लगा नेगेटिव लेबल हटाया जो उन्हें लिमिट करता था. उन्होंने लिमिटलेस बनने की ठान ली. लिमिटलेस होने का मतलब ये नहीं है कि हम डिफरेंट वे में लर्न करे बल्कि हम बेहतर बनने और करने के लिए ख़ुद को मोटिवेट करे. यानी जो लिमिट आपने अपने लिए तय की थी, हमें वो लिमिट तोडनी है और इसके लिए हमें एक ऐसा मैप चाहिए जो हमें गाईड कर सके .
जिम इसे लिमिटलेस मॉडल कहते है. तीन एरियाज़ ऐसे है जो आपको लिमिट करते है, ये है आपका माइंडसेट, मोटिवेशन और मेथड्स. एक लिमिटेड माइंडसेट होने की वजह से आप ख़ुद की काबिलियत पर ही शक करने लगते है, आपको लगता है आप कुछ बड़ा अचीव नहीं कर सकते. दूसरा है, लिमिटिंग मोटिवेशन: यानी आपके अंदर उस जोश और ड्राइव की कमी है जो आपको कुछ करने के लिए इंस्पायर कर सके और लास्ट में लिमिटिंग मेथड: यानी ऐसी स्ट्रेटेज़ी बनाना जो काम ही ना करे.
लेकिन जल्द ही आप राईट माइंडसेट, मोटिवेशन और मेथड सीखेंगे. और एक बार जब आप इन्हें सीख जाएँगे तो आप हर मायने में लिमिटलेस बन सकते हो.
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Limitless Mindset: The Spell of Belief Systems
आपका माइंडसेट आपके बिलिफ और आपके थॉट से मिलकर बनता है. आप कौन है, क्या है, इस दुनिया को देखने का आपका नजरिया, ये सब आपके माइंडसेट पर डिपेंड करता है. आप जो कुछ कहते हो, जो कुछ करते हो, अपने माइंडसेट से इन्फ्लुएंस होकर करते हो.
लेकिन आपका माइंडसेट आपके माहौल के हिसाब से बनता है, आपके आस-पास के लोग, आपके घर और दफतर का माहौल सब आपके माइंडसेट का पार्ट है जैसे आपके पेरेंट्स, फ्रेंड्स और जिस कल्चर में आप पले-बढ़े.
किसी भी इंसान का माइंडसेट बेहद पॉवरफुल लगता है? राईट? पर अक्सर यही हमारी लिमिटेशन की वजह भी बनता है. जैसे एक्जाम्पल के लिए सर्कस के हाथी को ही ले लो. बचपन में जब उसे किसी खूंटे से बाँधा जाता है तो शुरू-शुरू में हाथी का बच्चा ख़ुद को छुड़ाने की बड़ी कोशिश करता है पर छुड़ा नहीं पाता. धीरे-धीरे उसके मन में ये बात बैठ जाती है कि वो रस्सी तोड़कर कहीं नहीं भाग सकता, और इसीलिए जब वो बड़ा हो जाता है तो भी स्ट्रोंग और पॉवरफुल होने के बावजूद वो रस्सी तोड़ने की कोशिश नहीं करता. दरअसल हाथी का माइंडसेट बन चुका है कि वो रस्सी नहीं तोड़ सकता, इसलिए वो बड़े होने पर भी खूंटे से बंधा रहता है. उसके माइंडसेट ने उसे यकीन दिला दिया है कि वो कभी आज़ाद नहीं हो पायेगा.
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यही वो चीज़ है जिसे हम learned helplessness कहते है.
और बदकिस्मती से कुछ लोग लर्न्ड हेल्पलेसनेस अपने अंदर कल्टीवेट करते है. लोग ख़ुद को अपनी कमजोरियों से डिफाइन करने लगते है. शक आपका बेस्ट फ्रेंड बन जाता है. यही लो-सेल्फ बिलिफ आपको ग्रो करने से रोकता है. लेकिन आप चाहे तो आप लिमिटलेस माइंडसेट डेवलप कर सकते है. सबसे पहले ख़ुद को ज़िम्मेदार बनाएँ. आपके आस-पास वाले लोग आपको प्रभावित जरूर करते है पर आप क्या है और क्या बनना चाहते है, ये सिर्फ़ आपका फैसला है. यही पॉवर आपके अंदर लिमिटलेस पोटेंशियल जगा सकती है.
लेकिन इन सब तक पहुँचने से पहले आपको अनलर्न (unlearn) करना होगा. आपको अपने बारे में कई ऐसी गलतफहमियां होंगी जो आपको सच लगती है पर आपको ये सब अपने माइंडसेट से हटाना है. तो सबसे पहले अपनी सारे लिमिटिंग बिलिफ्स को दिमाग से निकाल दो. सबसे पहले ये देखो कि आप ख़ुद से किस भाषा में बात करते हो. क्या आप ख़ुद को हमेंशा ये बोलते रहते हो” ये तुमसे नहीं हो पायेगा? क्योंकि अक्सर हम ही ख़ुद को नीचे खींचते है. आपके अंदर की आवाज़ आपको याद दिलाती रहती है कि आप ये नहीं कर सकते, आप वो नहीं कर सकते, वगैरह-वगैरह.
जिम आपको एनकरेज करते है कि आपको ख़ुद से बात करने का तरीका बदलना होगा. एक पॉजिटिव सेल्फ-टॉक एक पॉजिटिव माइंडसेट डेवलप करता है. लेकिन ये हम कैसे करे?
सबसे पहले, पता करो आपकी लिमिटिंग बिलिफ्स क्या है. अपनी लाइफ के हर पहलू पर गौर करो. आप ख़ुद से ये कब बोलते हो “मैं ये नहीं कर सकता?” जब-जब आपने ख़ुद को रोका, वो सारी बातें नोट करो. जैसे कि, शायद आपने ख़ुद से कहा हो “मैं अच्छे जोक्स नहीं सुना सकता”. हो सकता है कभी किसी ने कुछ नेगेटिव कमेन्ट किया और आप उसे सच मान कर बैठ गए और फिर कभी आपने लोगों के सामने जोक्स शेयर करने की हिम्मत ही नहीं की.
ख़ुद के बारे में पॉजिटिव बोले, अच्छा बोले, ख़ुद से कहे” कोई बात नहीं अगर मै इस काम में माहिर नहीं हूँ”. धीरे-धीरे आपको ख़ुद से पॉजिटिव बोलने की आदत पड़ जाएगी.
दूसरी बात, अपने फैक्ट्स चेक करें. क्या आप वाकई में एक बोरिंग पर्सन है? या आप किसी को अच्छे से डेट नहीं कर पाते? क्या सुबूत है इस बात का जो आपने यकीन कर लिया? अक्सर हमारा इनर क्रिटिक ही हमें गलत बातो का यकीन दिला देता है. हो सकता है आप अच्छी स्पीच या प्रेजेंटेशन दे सकते हो. हालाँकि इसी बीच आपके अंदर का क्रिटिक कहेगा कि” अरे छोड़ो, कोई तुम्हारी बात नहीं सुन रहा” और फिर आप जल्दबाजी में स्पीच पूरी करके बैठ जाओगे.
तीसरी बात: एक नया बिलिफ क्रिएट करो. हो सकता है आपके पहले सारे बिलिफ्स एकदम गलत थे. तो अब पुराने बिलिफ्स छोड़कर कुछ पॉजिटिव बिलिफ्स क्रिएट करो. आप जानते हो कि आप अच्छे हो, आपके अंदर कई गुण है, लेकिन आप अपने इनर क्रिटिक की वजह से अपनी ही खूबियों को नजरअंदाज करने लगते हो. इसलिए कई बार अपने इनर क्रिटिक को चुप कराना जरूरी होता है. ताकि आप अपनी खूबियों और अच्छाईयों को देख सके .
यहाँ हम एक एक्जाम्पल लेते है. मान लो आप पब्लिक स्पीकिंग में घबराते हो. आपकी नर्वसनेस आपको अपने बारे में एक लिमिटिंग बिलिफ क्रिएट करने पर मजबूर कर रही है. आप कहते हो “मैं जानता था, पब्लिक स्पीकिंग मेरे बस की बात नहीं है, मुझे कोशिश ही नहीं करनी चाहिए थी”
लेकिन आपके अंदर एक छोटा सा हिस्सा अभी भी पब्लिक के सामने बोलने की ईच्छा रखता है. तो आपको क्या करना है? आपको पॉजिटिव सेल्फ टॉक की हेल्प लेनी है.
“पब्लिक स्पीकिंग मेरे बस की बात नहीं” ये है आपकी लिमिटिंग बिलिफ, इसलिए अब अपने फैक्ट्स चेक करो.
याद करने की कोशिश करो कि लास्ट टाइम आपने पब्लिकली बोला था. हाँ, ये हो सकता है कि तब आपकी कुछ बातें ऑडियंस को कंफ्यूज़िंग लगी हो. क्योंकि तब आप नर्वस थे इसलिए आपकी स्पीच भी अफेक्ट हो रही थी. पर आपको पॉजिटिव मोमेंट याद करने होंगे. याद करो कैसे लोग आपके जोक्स पर हंसे थे. कुछ तो आपकी बातें ध्यान से सुनने के लिए आगे की तरफ झुक गए थे. देखा आपने? आप इतने भी बुरे नहीं थे?
अब आप एक पॉजिटिव बिलिफ क्रिएट करो. भले ही आप बेस्ट पब्लिक स्पीकर ना हो पर आपने अच्छी कोशिश की. और आप इम्प्रूव कर सकते हो और गलतियों से सीख सकते हो. आप धीरे-धीरे ही महारत हासिल कर पाओगे. इसलिए कोशिश करना मत छोड़ो.
यही वो पॉजिटिव सेल्फ टॉक की पॉवर जो हमारी नेगेटिव सेल्फ इमेज को तोडती है.