(Hindi) Leaders Eat Last: Why Some Teams Pull Together and Others Don’t
ये सुनने में थोडा अजीब लगेगा कि “लीडर्स ईट लास्ट”. लीडर्स के पास बाकी इंडीविजुएल्स से ज्यादा पॉवर होती है, और युजुअली अपने सबओर्डीनेट्स या एम्प्लोयीज़ से अपनी खुद की वैल्यू ऊपर रखते है. सेम टाइम में इस बुक का मैसेज भी यही है- लीडर्स जो लास्ट में खाते है, इस टर्म का मतलब है कि असली लीडर्स वो होते है जो दुसरो की वेल बीइंग को इग्नोर करके सिर्फ अपना ख्याल नहीं रखते है. गुड लीडर्स वो लोग है जो अपने साथ को-ओपरेट करने वालो की वैल्यू करते है, ऐसे लोग जो जानते है कि उनका इन्फ्लुयेंश दुसरो पर पढ़ रहा है और वो ट्राई करते है कि ये इन्फ्लुयेंश पोजिटिव हो. क्या आप जानना चाहते है कि एक गुड लीडर का सबसे इम्पोर्टेन्ट केरेक्टरस्टिक क्या है ? अगर जानना है तो हमारे साथ बने रहे. क्योंकि हम इस बुक में मेंशन ऐसे ही कुछ लीडर्स के बारे में डिसक्राइब करेंगे.
तो गुड लीडर्स और क्या-क्या करते है, लास्ट में खाने के अलावा.
व्हट गुड लीडर्स डू, अपार्ट फ्रॉम ईटिंग लास्ट.
सिमोन सिनेक ने जो पहली शोर्ट स्टोरीज लिखी थी उनमे से एक इस बुक में मेंशन है. ये स्टोरी एक इफेक्टिव प्लाटून के बारे में है जिसमे एक अच्छा सर्जेंट था. इस प्लाटून की एफिशियेंशी इसके किसी लीडर की अथोरिटी पर डिपेंड नहीं थी बल्कि आपस के म्यूचुअल ट्रस्ट और रिस्पेक्ट पर डिपेंड थी. हालांकि एक लीडर को थोडा बहुत सेन्स ऑफ़ अथोरिटी हमेशा दिखाते रहना चाहिए. जो रिलेशन एक लीडर अपने सोल्जेर्स के साथ बिल्ड करता है सिर्फ लीडर और सबओरडीनेट वाला नही होता. ये रिलेशन भी बाकी यूजुअल रिलेशनशिप की तरह उतना ही ह्यूमेन है जो एक जैसी पोजीशन वाले दो ह्युमन बीइंग्स के बीच में होता है. सिमोन सिनेक इसे “ द प्रोटेक्शन फ्रॉम अबोव” कहते है. हमारे कुछ रीडर्स ने शायद वो पोपुलर टीवी शो देखा होगा जिसका नाम है” बैंड ऑफ़ ब्रदर्स” ये सीरीज शायद सबसे ज्यादा पोपुलर और बेस्ट एक्जाम्पल है उस चीज़ का जिसे कहा जाता है” प्रोटेक्शन फ्रॉम अबोव”. यहाँ हम एक आदमी की स्टोरी देख सकते है जो पहले एक सिम्पल सोल्जर हुआ करता था. फिर वर्ल्ड वार 2 के टाइम में उसने ग्रेट सक्सेस अचीव की. बूट कैंप में विंटर्स बाकी दुसरे लोगो की तरह ही एक सिंपल प्राइवेट था.
लेकिन वार के मुश्किल दिनों में उसकी अच्छाई और करेज ब्राईट लाइट की तरह उभर कर आई. और धीरे-धीरे वो एक ऑफिसर बन गया.शुरुवात में एक माइनर लेफ्टिनेंट.हालांकि वो अपने साथी सोल्जेर्स( बूट कैंप में उसके मेट्स) से आगे निकलकर हायर रैंक तक पहुँच गया था फिर भी उसने कभी इस बात का शो ऑफ तक नहीं किया. जहाँ वे सब सोते थे वो भी वही सोता था, जो वो खाते थे, वो भी वही खाता था और उनके साथ ही सेम वार में लड़ता भी था. और उसके सोल्जेर्स इस बात के लिए उसकी बड़ी रिस्पेक्ट भी करते थे. उसकी ब्रेवेरी की सब तारीफ़ करते थे क्योंकि वो हमेशा फर्स्ट लाइन में खड़ा होता था और लगभग हर रोज़ ही जान की बाज़ी लगाने को तैयार रहता था.वो अपने हर सोल्जर को पर्सनल लेवल पर जानता था, उन्हें उनके नाम से बुलाता था और हर एक की केयर करता था. अगर उसके सोल्जेर्स में से कोई बुरी तरह इंजर्ड होता या किसी की जान चली जाती तो उसे इस चीज़ का बहुत दुःख होता था. फिर वो मेजर के रैंक तक पहुंच गया मगर विंटर्स अभी भी सेम था. उसके बेहेवियर में कोई चेंजेस नहीं आया. हालाँकि इतनी बड़ी पोस्ट में होने की वजह से उसे अब फ्रंट में रहने की ज़रुरत नहीं थी
मगर वो अपना ज्यादा टाइम वही स्पेंड करता था, अपने सोल्जेर्स के साथ. और ऐसा भी टाइम आया जब अमेरिकन आर्मी और पैराटरूपर्स बास्टोने के फारेस्ट में फंस गए थे अपने समर गियर में विंटर के टाइम पर. बहुत से जेर्नेंल्स और हायर ओफिशियाल्स ऐसी मुश्किल जगह में शायद ही कभी गए हो. और कुछ टाइम बाद ही इस जगह तक पहुँचना इम्पोसिबल सा हो गया था क्योंकि जर्मन्स ने अमरीकन्स को चारो तरफ से घेर लिया था. हालांकि मेजर वाल्टर्स और बाकियों की गुड लीडरशिप के चलते अमेरिकन सोल्जेर्स पीछे नहीं हेट और बाद में उन्होंने पलट कर वार भी कर दिया.
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“एम्प्लोयीज़ भी इंसान होते है” एक लीडर को ये चीज़ रिएलाइज करना बहुत ज़रूरी है जो अपने आस पास वाले लोगो को साथ एथिकल और बस रिलेशनशिप का दिखावा करते है. जैसे एक्जाम्पल के लिए सिनेक कहते है कि लोगो को सिर्फ एक कमोडिटी की तरह नहीं लेना चाहिए जिनसे आपका सिर्फ पैसे का रिश्ता हो. बल्कि मनी को एक कमोडिटी की तरह देखा जाना चाहिए जिसकी वजह से हम दुसरो की हेल्प कर सके. “एमपेथी” एक बहुत ज़रूरी चीज़ है जिससे हम ये कर सकते है. एक एक्जाम्पल देखते है. मार्क एक सक्सेसफुल बिजनेसमेन है. उसकी कंपनी इन्टरनेट रूटर्स के साथ ट्रेड करती है और उन्हें सर्विसेस देती है. उसकी कंपनी में एम्प्लोयीज कम है इसलिए वो सबको पर्सनल लेवल पर जानता है. अपनी जवानी में मार्क सचमुच एक बड़ा आदमी बनकर खूब सारा पैसा कमाना चाहता था. लेकिन उसका ये मोटिव टाइम से साथ ढीला पड़ता गया.
उसने रियेलाइज किया कि अगर वो कम टाइम में ढेर सारा पैसा कमाने की कोशिश भी करे तो भी उसे अपने एम्प्लोयीज़ के साथ गुड रिलेशन रखना पड़ेगा ताकि वे और ज्यादा एफिशियेंशी से उसके लिए काम कर सके. मगर फिर उसे रियेलाइज हुआ कि नंबर उतने इम्पोर्टेन्ट नहीं होते जितने कि रिलेशंस होते है. और फिर वो एक्स्ट्रीमली रिच बनने का अपना सपना ही भूल गया. उसके प्रोग्रामर्स में से एक जो सबसे ज्यादा हार्ड वर्किंग था, की सेलेरी मार्क से भी ज्यादा थी. हालाँकि मार्क कंपनी का ओनर था. उसके एम्प्लोयीज़ ये देखकर काफी खुश रहते थे और ये चीज़ उन्हें अपने वर्क प्लेस में और भी मोटिवेट करती थी.
गुड लीडर जानते है कि जो लोग उनके अंडर है वे भी इंडीविजुवल्स है, जिनके पास अपनी फ़ी विल और ऑटोनोमी है.
साइकोलोजी की कई स्टडीज़ में ये देखा गया है कि लोग एक डेमोक्रेटिक वर्क एनवायरमेंट में सबसे ज्यादा खुश रहते है.. अगर एम्प्लोयीज़ को उनके काम पर काफी कम कण्ट्रोल दिया जाए या बिलकुल भी कंट्रोल ना दिया जाए तो उनमे स्ट्रेस रिलेटेड सिम्पटम्स डेवलप हो सकते है. अगर ये स्ट्रेस बना रहेगा तो ये उनके माइंड में किसी तरह की क्रोनिक मेंटल चेंजेस जैसे डिप्रेशन और एन्जाईटी भी ला सकता है. जो लोग एक फ्री, वार्म और फ्रेंडली एनवायरमेंट में काम करते है, ज्यादा प्रोडक्टिव तो होते ही है साथ ही काफी खुशमिजाज़ भी रहते है. आपको डेमोक्रेटिक वर्क एन्वायरमेंट की सिग्निफिकेंस का मतलब और भी अच्छे से समझाने के लिए एक और आर्मी एक्जाम्पल लेते है. हालांकि आर्मी अपने आप में खुद एक डेमोक्रेटिक वर्क कंडिशन का अच्छा एक्जाम्पल नहीं है, लेकिन आर्मी में ऐसे कुछ डेमोक्रेटिक लेवल है जिन्हें मेंटेन करना बहुत ज़रूरी है. दो टॉप जर्नलर्स के बीच का इंटररिलेशन इसका बढ़िया एक्जाम्पल है. इन दोनों हाई ऑफिसर्स के बीच कोई स्ट्रिक्ट इक्वेलिटी नहीं होती है. कुछ हायर पोस्ट में होते है और कुछ सबऑर्डीनेट्स होते है.
लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि टॉप जर्नलर्सही सब कुछ डिसाइड करेंगे. वर्ल्ड वार 2 के दिनों में जब रेड आर्मी जर्मन आर्मी को अपनी बॉर्डर से खदेड़ रही थी तब एक पर्टिक्युलर ओपरेशन, ओपरेशन बेगरेशन ने इस्टर्न फ्रंट पर बेलेंस ऑफ़ पॉवर को प्रेक्टिकली टर्न किया.ये असल में दुनिया के सबसे बड़े मिलिट्री ओफ्फेंस में से एक था जिसने 2.3 मिलियन टूरूपस, कई आर्मीज, काउंटलेस व्हीकल्स, प्लेन्स, और टैंकंस को अपने घेरे में ले लिया था. अलेक्सेंडर वेसिलेवस्काई इस बड़े ओपरेशन की प्लानिंग में शायद सबसे ज्यादा इन्वोल्वड थे. वे इससे कुछ टाइम पहले ही सोवियत यूनियन के मार्शल की रैंक पर प्रोमोट हुए थे. ये रैंक फॉर्मर सोवियत यूनियन का हाईएस्ट मिलिट्री रैंक हुआ करता था..वेसिलेवस्काईने बेशक इसे बढ़िया ढंग से प्लान किया था लेकिन ये इतना कॉम्प्लेक्स ओपरेशन था कि किसी भी तरह से वे इसको कम्प्लीटली अकेले कण्ट्रोल नहीं कर पाए थे.
उन्हें अपने जरन्ल्स की स्किल और इंटेलिजेंस पर डिपेंड रहना पड़ाजोकि उनके डायरेक्ट सबओर्डीनेट्स थे. जैसे एक्जाम्पल के लिए उन्हें कई सारी आर्मीज के कोर्डिनेशन के लिए जुकोव की स्किल पर रिले करना पड़ा जो कि उनकी मिलिट्री का एक और स्किल्ड लीडर था. क्योंकि वेसिलेवस्काईअकेले ये सब करने में अनेबल थे. अगर वेसिलेवस्काईने जुकोव के एक्शन पर कंट्रोल करने की कोशिश की होती तो ओपरेशन बेगरेशन इतना सक्सेसफुल नहीं होता जितना कि ये रहा था. लॉन्ग टर्म लीडर्स v/s शोर्ट टर्म लीडर्स ये बहुत इम्पोर्टेन्ट डिफ़रेंस है जिसे सिनेक ने अपनी बुक में हाईलाईट किया है. इसे सिम्पली रखते है, शोर्ट टर्म लीडर्स अपनी सक्सेस और सेटिसफिकेशन के बारे में ज्यादा सोचते है जबकि अपने एम्प्लोयीज़ की उन्हें कोई केयर नहीं होती है. सिनेक कुछ बड़े पोपुलर सीईओं के बारे में मेंशन करते है जो असल में दो डिफरेंट टाइप की लीडरशिप का बढ़िया एक्जाम्पल है.