(hindi) Jwalamukhi

(hindi) Jwalamukhi

डिग्री लेने के बाद मैं रोज लाइब्रेरी जाया करता। अखबार या किताबों को पढ़ने के लिए नहीं। किताबों को तो मैंने न छूने की कसम खा ली थी। जिस दिन गजट में अपना नाम देखा, उसी दिन मिल और कैंट को उठाकर अलमारी पर रख दिया। मैं सिर्फ अंग्रेजी अखबारों के ‘वांटेड’ column को देखा करता। जीवन की फ़िक्र सवार थी।

मेरे दादा या परदादा ने किसी अंग्रेज़ को लड़ाई के दिनों में बचाया होता या किसी इलाके का ज़मींदार होते, तो कहीं ‘नामिनेशन’ के लिए कोशिश करता। पर मेरे पास कोई सिफारिश न थी। दुख ! कुत्ते, बिल्लियों और मोटरों की माँग सबको थी। पर बी.ए. पास की कोई पूछ न थी। महीनों इसी तरह दौड़ते गुजर गये, पर अपने पसंद के हिसाब की कोई जगह नजर न आयी। मुझे अक्सर अपने बी.ए. होने पर गुस्सा आता था। ड्राइवर, फायरमैन, मिस्त्री, खानसामा या बावर्ची होता, तो मुझे इतने दिनों बेकार न बैठना पड़ता।

एक दिन मैं चारपाई पर लेटा हुआ अखबार पढ़ रहा था कि मुझे एक माँग अपनी इच्छा के हिसाब से दिखाई दी। किसी अमीर को एक ऐसे प्राइवेट सेक्रेटरी की ज़रूरत थी, जो अक्लमंद, खुशमिजाज, अच्छे दिल का और सुंदर हो। तनख्वाह एक हज़ार महीना ! मैं उछल पड़ा। कहीं मेरी किस्मत खुल जाती और यह नौकरी मिल जाती, तो ज़िंदगी चैन से कटती। उसी दिन मैंने अपना एप्लिकेशन अपने फोटो से साथ रवाना कर दिया,

पर अपने आसपास के लोगों में किसी से इसका ज़िक्र न किया कि कहीं लोग मेरी हँसी न उड़ाएँ। मेरे लिए 30 रु. महीने भी बहुत थे। एक हज़ार कौन देगा ? पर दिल से यह ख्याल दूर न होता ! बैठे-बैठे शेखचिल्ली की तरह सपने देखा करता। फिर होश में आकर खु़द को समझाता कि मुझमें अच्छी नौकरी के लिए कौन सी काबीलियत है। मैं अभी कालेज से निकला हुआ किताबों का पुतला हूँ। दुनिया से बेखबर !

उस नौकरी के लिए एक-से एक अक्लमंद, अनुभवी आदमी मुँह फैलाए बैठे होंगे। मेरे लिए कोई उम्मीद नहीं। मैं सुंदर सही, सजीला सही, मगर ऐसे पदों के लिए सिर्फ सुंदर होना काफ़ी नहीं होता। विज्ञापन में इसकी बात करने से सिर्फ इतना मतलब होगा कि बदसूरत आदमी की ज़रूरत नहीं, और सही भी है। बल्कि बहुत सजीलापन तो ऊँचे पदों के लिए कुछ अच्छा नहीं लगता। मध्यम वर्ग, तोंद भरा हुआ शरीर, फूले हुए गाल और अच्छे से बात करने का तरीका ही ऊँचें पद के अधिकारियों की निशानियां हैं और मुझ में इनमें से एक भी नहीं है।

इसी उम्मीद और डर में एक हफ्ता गुजर गया और  निराश हो गया। मैं भी कैसा बेवकूफ़ हूं कि बे सिर-पैर की बात के पीछे ऐसा फूल उठा, इसी को बचपना कहते हैं। जहाँ तक मेरा ख्याल है, किसी मस्तीखोर ने आजकल के पढ़े लिखों के समाज की बेवकूफी की परीक्षा करने के लिए यह नाटक किया है। मुझे इतना भी न सूझा। मगर आठवें दिन सुबह डाकिये ने मुझे आवाज़ दी। मेरे दिल में गुदगुदी-सी होने लगी। लपका हुआ आया। टेलीग्राम खोलकर देखा, लिखा- “स्वीकार है, जल्दी आओ। ऐशगढ़।

मगर यह खुशखबरी पाकर मुझे वह खुशी न हुई, जिसकी उम्मीद थी। मैं कुछ देर तक खड़ा सोचता रहा, किसी तरह यकीन न आता था। ज़रूर किसी मस्तीखोर की बदमाशी है। मगर कोई नुकसान नहीं, मुझे भी इसका मुँहतोड़ जवाब देना चाहिए। टेलीग्राम दे दूँ कि एक महीने की तनख्वाह भेज दो। खुद ही सारी सच्चाई बाहर आ जाएगी। मगर फिर सोचा, कहीं सच में किस्मत खूल गई हो, तो इस हरकत से बना-बनाया खेल बिगड़ जायगा। चलो, मजाक ही सही जीवन में यह घटना भी याद रहेगी। जादू को तोड़ ही डालूं। यह तय करके टेलीग्राम से अपने आने की खबर दी और सीधे रेलवे स्टेशन पहुँचा। पूछने पर मालूम हुआ कि यह जगह दक्षिण की ओर है।

टाइमटेबल में उसके बारे में लिखा था। जगह बहुत सुंदर है, पर मौसम ठीक नहीं। हाँ, तंदुरुस्त नौजवानों पर उसका असर जल्दी नहीं होता। नजारे बहुत सुंदर है, पर ज़हरीले जानवर बहुत मिलते हैं। जितना हो सके अँधेरी घाटियों में नही जाना चाहिए। यह सब पढ़कर बेचैनी और भी बढ़ी ज़हरीले जानवर हैं तो हुआ करें, कहाँ नहीं हैं। मैं अँधेरी घाटियों के पास भूलकर भी न जाऊंगा। आकर सफर का सामान पैक किया और भगवान का नाम लेकर तय समय पर स्टेशन की तरफ चला, पर अपने बातूनी दोस्तों से इसका ज़िक्र न किया, क्योंकि मुझे पूरा यकीन था कि दो-ही-चार दिन में फिर अपना-सा मुँह लेकर लौटना पड़ेगा।

गाड़ी पर बैठा तो शाम हो गई थी। कुछ देर तक सिगार और अखबारों से दिल बहलाता रहा। फिर मालूम नहीं कब नींद आ गई। आँखें खुलीं और खिड़की से बाहर तरफ झाँका तो सुबह का सुंदर नजारा दिखाई दिया। दोनों ओर हरे पेड़ों से ढकी हुई पहाड़ियां, उन पर चरती हुई उजली-उजली गायें और भेंड़े सूर्य की सुनहरी किरणों में रँगी हुई बहुत सुन्दर मालूम होती थीं। जी चाहता था कि कहीं मेरी कुटिया भी इन्हीं सुखद पहाड़ियों में होती, जंगलों के फल खाता, झरनों का ताजा पानी पीता और खुशी के गीत गाता।

अचानक नजारा बदला कहीं उजले-उजले पक्षी तैरते थे और कहीं छोटी-छोटी डोंगियाँ कमजोर आत्माओं की तरह डगमगाती हुई चली जाती थीं। यह नजारा भी बदला। पहाड़ियों के बीच में एक गांव नजर आया, झाड़ियों और पेड़ों से ढका हुआ, मानो शांति और संतोष ने यहाँ अपना बसेरा बनाया हो। कहीं बच्चे खेलते थे, कहीं गाय के बछड़े उछलते थे। फिर एक घना जंगल मिला। झुण्ड-के-झुण्ड हिरन दिखाई दिये, जो गाड़ी की आवाज सुनते ही छलांग मारते दूर भाग जाते थे। यह सब नजारे सपने के समान आँखों के सामने आते थे और एक पल में गायब हो जाते थे। उनमें ऐसी शांति देने वाली खूबसूरती थी, जिससे दिल में इच्छाओं की लहरें उठने लगती।

आखिर ऐशगढ़ पास आया। मैंने बिस्तर सँभाला। जरा देर में सिगनल दिखाई दिया। मेरा दिल धड़कने लगा। गाड़ी रुकी। मैंने उतरकर इधर-उधर देखा, कुलियों को पुकारने लगा कि इतने में दो वरदी पहने हुए आदमियों ने आकर मुझे इज्जत से सलाम किया और पूछा- “आप….से आ रहे हैं न, चलिये मोटर तैयार है।”

मैं खुश हो गया। अब तक कभी मोटर पर बैठने का मौका न मिला था। शान के साथ जा बैठा। मन में बहुत शर्मिंदा था कि ऐसे फटे हाल क्यों आया ? अगर जानता कि सचमुच किस्मत का तारा चमका है, तो ठाट-बाट से आता। खैर, मोटर चली, दोनों तरफ मौलसरी के घने पेड़ थे। सड़क पर लाल वजरी बिछी हुई थी। सड़क हरे-भरे मैदान में किसी सुंदर नदी के तरह बल खाती चली गई थी। दस मिनट भी न गुजरे होंगे कि सामने एक शांत सागर दिखाई दिया। सागर के उस पार पहाड़ी पर एक विशाल भवन बना हुआ था। भवन अभिमान से सिर उठाए हुए था, सागर संतोष से नीचे लेटा हुआ, सारा नजारा कविता, श्रृंगार और खु़शी से भरा हुआ था।

TO READ OR LISTEN COMPLETE BOOK CLICK HERE

हम दरवाज़े पर पहुँचे, कई आदमियों ने दौड़कर मेरा स्वागत किया। इनमें एक शौकीन मुंशीजी थे जो बाल सँवारे आँखों में सुरमा लगाए हुए थे। मेरे लिए जो कमरा सजाया गया था, उसके दरवाजे पर मुझे पहुंचाकर बोले- “सरकार ने फरमाया है, इस समय आप आराम करें, शाम के समय मुलाकात कीजिएगा।”

मुझे अब तक इसकी कुछ खबर न थी कि यह ‘सरकार’ कौन है, न मुझे किसी से पूछने का हिम्मत हुई क्योंकि अपने मालिक का नाम तक न जानने देना चाहता था। मगर इसमें कोई शक नहीं कि मेरा मालिक बड़ा अच्छा इंसान था। मुझे इतने आदर-सत्कार की बिल्कुल उम्मीद न थी। अपने सजे हुए कमरे में जाकर जब मैंने एक आराम-कुर्सी पर बैठा, तो खुशी से भर गया। पहाड़ियों की तरफ से ठंडी हवा के धीमें धीमें झोंके चल रहे थे। सामने छत थी। नीचे झील। साँप के केंचुल की तरह रोशनी से भरे, और मैं, जिसे किस्मत की देवी ने हमेशा अपना सौतेला बेटा समझा था, इस समय जीवन में पहली बार बिना बाधा के सुख उठा रहा था।

तीसरे पहर शौकीन मुंशीजी ने आकर खबर दी कि सरकार ने याद किया है। मैंने इस बीच में बाल बना लिए थे। तुरन्त अपना सबसे अच्छा सूट पहना और मुंशीजी के साथ सरकार की सेवा में चला। इस, समय मेरे मन में यह शक हो रहा था कि मेरी बातचीत से मालिक नाखुश न हो जायँ और उन्होंने मेरे बारे में जो सोचा हो, उसमें कोई अंतर न पड़ जाय, फिर भी मैं अपनी काबिलियत का परिचय देने के लिए खूब तैयार था। हम कई बरामदों से होते आखिर में सरकार के कमरे के दरवाज़े पर पहुँचे। रेशमी परदा पड़ा हुआ था। मुंशीजी ने पर्दा उठाकर मुझे इशारे से बुलाया। मैंने काँपते हुए दिल से कमरे में क़दम रखा और आश्चर्य से चकित रह गया ! मेरे सामने सुंदरता की एक आग जल रही थी।

फूल भी सुन्दर है और दीपक भी। फूल में ठंडक और सुगंध है, दीपक में रौशनी और गरमाहट। फूल पर भ्रमर उड़-उड़कर उसका रस लेता है, दीपक में पतंग जलकर राख हो जाता है। मेरे सामने कसीदे किए हुए गद्दी पर जो सुन्दरी बैठी थी, वह सुंदरता की एक रोशनी से भरी आग थी। फूल की पंखुड़ियाँ हो सकती हैं लेकिन आग को अलग करना नामुमकिन है। उसके एक-एक अंग की तारीफ करना आग को काटना है। वह सर से पैर तक एक आग थी, वही दीपक, वही चमक वही लालिमा, वही रोशनी, कोई चित्रकार सुंदरता की प्रतिमा का इससे अच्छा चित्र नहीं बना सकता था। सुंदरी ने मेरी तरफ प्यार भरी नजरों से देखकर कहा- “आपको सफर में कोई खास तकलीफ तो नहीं हुई ?”

मैंने सँभलकर जवाब दिया- “जी नहीं, कोई तकलीफ नहीं हुई।”

रमणी- ” यह जगह पसंद आई?”

मैंने हिम्मती जोश के साथ जवाब दिया- “ऐसी सुन्दर जगह धरती पर न होगी। हाँ गाइड-बुक देखने से पता चला कि यहाँ का मौसम जैसा अच्छा दिखता है, असल में वैसा है नहीं, जहरीले जानवरों की भी शिकायत है।”

यह सुनते ही उस लड़की का चहरा मुरझा गया। मैंने तो बात इसलिए कर दी थी, जिससे साफ़ हो जाय कि यहाँ आने में मुझे भी कुछ त्याग करना पड़ा है, पर मुझे ऐसा मालूम हुआ कि इस बात से उसे कोई खास दुख हुआ। पर पल भर में उसका चहरा ठीक हो गया, बोली- “यह जगह अपनी सुंदरता के कारण बहुत से लोगों की आँखों में खटकता है। गुण की इज्जत न करने वाले सभी जगह होते हैं और अगर मौसम कुछ नुकसानदायक हो भी, तो आप जैसे ताकतवर इंसान को इसकी क्या चिन्ता हो सकती है। रहे जहरीले जीव-जंतु, वह अपने आँखों के सामने घूमते रहे हैं। अगर मोर, हिरन और हंस जहरीले जीव हैं, जो बेशक यहाँ जहरीले जीव बहुत हैं।”

मुझे शक हुआ कहीं मेरी बात से उसका मन खराब न हो गया हो। गर्व से बोला- “इन गाइड-बुकों पर भरोसा करना बिल्कुल भूल है।”

इस बात से सुंदरी का दिल खिल गया, बोली- “आप सीधे बात करने वाले मालूम होते हैं और यह  एक अच्छा गुण है। मैं आपका फोटो देखते ही इतना समझ गई थी। आपको यह सुनकर आश्चर्य होगा कि इस नौकरी के लिए मेरे पास एक लाख से ज्यादा एप्लिकेशन आये थे। कितने एम.ए.थे, कोई डी.एस-सी. था, कोई जर्मनी से पी-एच.डी. डिग्री किए हुए था, मानो यहाँ मुझे किसी दार्शनिक विषय की जाँच करवानी थी मुझे अबकी यह अनुभव हुआ कि देश में ऊँचें पढे़ लिखे इंसानों की इतनी भरमार है। कई महाशयों ने खुद से लिखे हुए ग्रंथों की लिस्ट लिखी थी, मानो देश में लेखकों और पंडितों  की ही जरूरत है।

उन्हें समय का जरा सा भी अंदाजा नहीं है। प्राचीन धर्म-कथाएँ अब सिर्फ अंधविश्वासों के मजे के लिए ही हैं, उनसे और कोई फायदा नहीं है। यह उन्नति का समय है। आजकल लोग भौतिक सुख पर अपनी जान देते हैं। कितने ही लोगों ने अपने फोटो भी भेजे थे। कैसी-कैसी अजीब शक्लें थीं, जिन्हें देख कर घंटों हँसिए। मैंने उन सभी को एक अलबम में लगा लिया और छुट्टी मिलने पर जब हँसने की इच्छा होती है, तो उन्हें देखा करती हूँ। मैं उस विद्या को बीमारी समझती हूँ, जो इंसान को बंदर बना दे। आपका फोटो देखते ही आँखें मोहित हो गईं। तुरंत आपको बुलाने का टेलीग्राम दे दिया।”

TO READ OR LISTEN COMPLETE BOOK CLICK HERE

SHARE
Subscribe
Notify of
Or
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments