(Hindi) Jugaad Innovation Think Frugal, Be Flexible, Generate Breakthrough Growth

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इंट्रोडक्शन (Introduction)

क्या आपको भी कभी ऐसा फील हुआ है. कि आप गलत जगह में, गलत टाइम में पैदा हो गए है? क्या कभी ऐसा हुआ कि आपने सोचा मै तो अनलकी हूँ, अब कुछ नहीं हो सकता और आपने गिव अप कर दिया. अगर आप ऐसे कंडिशन से गुजर चुके है तो टेंशन मत लो क्योंकि आपके जैसे कई लोग है जो खुद को अनलकी समझते है. जिन्हें लगता है कि वो गलत टाइम पर पैदा हुए है. मगर इनमे से भी कुछ लोग ऐसे है जिन्होंने गिव अप करने का बजाये लाइफ के हर स्ट्रगल में एक मौका ढूँढा है. ये वो लोग है जिन्होंने दुनिया को ही नहीं बल्कि खुद को भी चेंलेंज किया और खुद को प्रूव करके दिखाया. आप चाहे तो आप भी इनकी तरह बन सकते है, मगर कैसे?

इस बुक में हम आपको जुगाड़ प्रिंसिपल यूज़ करना सिखायेंगे. जुगाड़ एक हिंदी वर्ड है जिसका मतलब है किसी भी प्रोब्लम या सिचुएशन का एक स्मार्ट सोल्यूशन निकालना. क्योंकि हर बार आप अपनी सिचुएशन का रोना नहीं रो सकते, तो यहाँ पर जुगाड़ प्रिंसिपल आपके काम आएगा. इण्डिया में ऐसे कई लोग है जिन्होंने अपनी प्रोब्लम्स का इनोवेटिव सोल्यूशन निकाला है और ये लोग सक्सेसफुल भी हुए है.

अगर आप भी उनके जैसा बनना चाहते है तो ये बुक आपको ऐसे सीक्रेट्स बताएगी जो आज एंटप्रेन्योर्स यूज़ कर रहे है. आपको ब्रेव और रीसोर्सफुल बुक बनाने में ये बुक आपकी हेल्प करेगी. इसे पढकर आप सीख सकते है कि कैसे आप किसी भी सिचुएशन को एक अपोर्च्यूनिटी में टर्न कर सकते है जिसे कि हम स्मार्ट लिविंग बोलेंगे. आपने सुना होगा ऐसे लोगो के बारे में जिन्होंने अपने बिजनेस में इस माइंडसेट को यूज़ किया है. ये माइंडसेट बड़े काम की चीज़ है, ना सिर्फ इंडियंस के लिए बल्कि चाइना और ब्राज़ील जैसी कंट्रीज के लोगो ने भी इसका बेनिफिट उठाया है.

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जुगाड़: अ ब्रेकथ्रू ग्रोथ स्ट्रेटेजी (Jugaad: A Breakthrough Growth Strategy)

आज 20 वी सेंचुरी में अमेरिका और योरोप जैसे देशो में कोई ख़ास जेन्युइन इनोवेशन नहीं हो रहे. ये कंट्रीज अब इनोवेशन और मैनेजिंग से ज्यादा इंडस्ट्रीलाइजिंग पर जोर दे रही है. इसे बिजनेस का स्ट्रक्चर्ड अप्रोच फोलो करना बोलते है. लेकिन इस अप्रोच ने तीन प्रोब्लम्स क्रियेट की है. फर्स्ट, ये अप्रोच बड़ी एक्सपेंसिव थी वेस्टर्न कंट्रीज़ आलरेडी इनोवेटिव सोल्यूशंस और प्रोडक्ट्स पर काफी रीसोर्सेस और पैसा खर्च कर चुकी है.

दूसरा, ये फ्लेक्सिबल नहीं है क्योंकि इसमें हर चीज़ डिजाईन की गयी है, क्रिएटिविटी भी. थर्ड, ये डिग्री के बेस पर नॉलेज जज करती है तो इनके हिसाब से सिर्फ साइंटिस्ट और एलीट ग्रेजुएट्स ही जॉब के लिए स्मार्ट माने जायेंगे. हो सकता है पहले ये अप्रोच काम करती होगी मगर आज के टाइम में नहीं. आज दुनिया हर पल बदल रही है इसलिए आपको भी टाइम के साथ एडजस्ट करने के लिए एक फ्लेक्सीबल सिस्टम चाहिए और इस सिस्टम का नाम है जुगाड़ सिस्टम. वेस्टर्न सिस्टम तो अब चल नहीं रहा तो इस बुक के ऑथर ने डिफरेंट माइंडसेट्स को टारगेट किया है.

इन्होने सोल्यूशन की तलाश में इण्डिया, ब्राज़ील, चाइना और रशिया जैसे देशो के चक्कर लगाए है. इनकी इसी मेहनत और रीसर्च का रीजल्ट ये बुक है जो हम आपके लिए लेकर आए है. तभी तो हम ये बुक आपको रेक्म्न्ड कर रहे है. एक बार इसे पढके देखे, आपको पता चल जायेगा कि कैसे सक्सेसफुल लोगो ने खुद को चलेंजे करके बिलियन डॉलर वर्थ कंपनीज़ खड़ी की है. इस बुक के ऑथर्स उन इनोवेटर्स पर फोकस करते है जो इन कंट्रीज़ में सक्सेसफुल रहे है.

इस रीसर्च के दौरान उन्हें ये बात पता लगी कि बहुत जल्दी इण्डिया इनोवेशन में सबसे आगे निकलने वाला है. ये सब जानते है इन्डियन मार्किट थोड़ी कॉम्प्लेक्स है, चाओटिक है लेकिन इन सारे चेलेन्जेस के बावजूद लगातार ग्रो कर रही है. अगर आप इन्डिया, चाइना, ब्राज़ील या रशिया से है तो ये बुक समरी ख़ास आपके लिए ही है. इसे पढकर आप सिख्नेगे कि लिमिटेड सोर्सेस में भी आपके अमीर बनने का ड्रीम सच हो सकता है. लेकिन अगर आप किसी और कंट्री के भी है तो भी ये बुक समरी आपके लिए हेल्पफुल रहेगी. एक बार रीसर्च एक्सपेंड हो जाए तो ये बात प्रूव हो जाएगी कि जुगाड़ प्रिंसिपल यूनिवरसली इफेक्टिव है. इसलिए पोजिटिव रहो, और एक लाइफ चेंजिंग लेसंस सीखने के लिए रेडी हो जाओ.

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प्रिंसिपल वन: सीक अपोर्च्यूनिटी इन एडवरसिटी (Principle One: Seek Opportunity in Adversity)

जुगाड़ इनोवेटर्स काफी क्रिएटिव और रेज़िलेंट टाइप के होते है. इनकी आदत है कि ये लोग ग्लास को हाफ फुल देखते है यानी चीजों के हमेशा पोजिटिव साइड देखते है. इन्हें तो हर चेलेंज एक अपोर्च्यूनिटी नजर आता है. ये लोग अपने आस-पास के माहौल से घबराते नहीं है बल्कि रास्ते की हर रुकावट को गले लगाते है, उन्हें अपने मनमुताबिक ढाल लेते है. और हमे लगता है कि एक टफ एन्वायर्नमेंट से ही ग्रेटनेस निकल के आती है. अगर आप एक हार्श लाइफ जी रहे है तो यकीन मानो आप उन लोगो से कहीं ज्यादा सक्सेसफुल हो सकते हो जो आराम की लाइफ जीते है. क्योंकि आप अपने लिए अपोर्च्यूनिटी क्रियेट कर सकते हो, आप चेलेंज को अपोर्च्यूनिटी में बदल सकते हो.

लेकिन इसके लिए आपको कुछ रूल्स भी फोलो करने होंगे. आप इन तीन रूल्स को फोलो करके किसी भी हार्डशिप से अपोर्च्यूनिटी क्रियेट कर सकते हो. फर्स्ट रूल, अपने सामने आने वाले हर चेलेंज को एक मौके की तरह देखो. सेकंड, ओब्स्टेकल को अपना हथियार बनाओ. और थर्ड, हर प्रोब्लम का एक सोल्यूशन होता है जो आपको ढूंढना है और इसके लिए आपको चेंजेस एडाप्ट करने होंगे. अब जैसे एक्जाम्पल के लिए, 1980 में एक इंडियन एंटप्रेन्योर तुलसी तांती ने सूरत जाकर अपनी टेक्सटाइल यूनिट स्टार्ट की. मगर जैसा कि होता है, बाकि और लोगो की तरह उन्हें भी काफी प्रोब्लम्स फेस करनी पड़ी.

अब टेक्सटाइल बिजनेस की सबसे बड़ी मुसीबत है पॉवर सप्लाई. तुलसी को इलेक्ट्रिक बिल काफी एक्सपेंसिव पड़ रहा था जिसकी वजह से उसका प्रॉफिट ना के बराबर था. लेकिन वो इतनी ईजीली गिव अप करने वाला नहीं था. इंडिया में तो कोई बिजनेस चल ही नहीं सकता, ये सोचने के बजाये उसने कुछ क्रिएटिव सोचा और अपने काम को चेलेंज की तरह लिया. तांती ने पॉवर जेनरेटिंग के डिफरेंट तरीको के बारे में काफी स्टडी की और देखा कि हर पॉवर सोर्स में फ्यूल, गेस या आयल की ज़रूरत पड़ती है.

लेकिन ये सारे सोर्स एक्सपेंसिव होते है इसलिए उसने ऐसे इलेक्ट्रीसिटी सोर्स के बारे में सोचा जिसमे आयल, फ्यूल या गेस की ज़रूरत ही ना पड़े. एक साल बाद उन्होंने दो विंड टरबाइंस बिल्ड किये. अब उनके पास एक ऐसी पॉवर सप्लाई थी जो अनलिमिटेड तो थी ही साथ ही जिसमे उनका एक पैसा भी खर्च नहीं हो रहा था. ये लाईट उन्होंने हवा से बनाई थी और हवा तो फ्री मिलती है. तांती का क्रिएटिव माइंड सिर्फ यही तक नहीं रुका, उन्होंने सोचा क्यों ना सारी इन्डियन फेक्ट्रीज इस विंड टरबाइंस का फायदा उठाये. तो उन्होंने इंडिया में एक विंड एनेर्जी सप्लायर बिल्ट की, जिसका नाम उन्होंने रखा सुजलोन एनेर्जी. उनकी कंपनी वर्ल्ड की फिफ्थ लार्जेस्ट एनेर्जी सोल्यूशंन प्रोवाइडर कंपनी है. तांती की स्टोरी प्रूफ है इस बात का कि प्रोब्लम में ही सोल्यूशन छिपे होते है, बस आपके देखने का नजरिया अलग होना चाहिए.

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प्रिंसिपल टू: डू मोर विथ लेस (Principle Two: Do More with Less)

जुगाड़ एंटप्रेन्योर्स को काफी चेलेन्जेस फेस करने पड़ते है. सबसे पहले तो फाइनेशियल रीसोर्स का चेलेंज. नैचुरल रीसोर्स जैसे पानी और बिजली काफी कॉस्टली पड़ती है. इसके अलावा उनके पास उतने टेलेंटेड लोग भी नहीं होते. इन्फ्रास्ट्रक्चर की क्वालिटी भी एक और चेलेंज होती है. आपने प्रोडक्ट्स बना भी लिया तो भी आपके सामने कनेक्टीविटी और ट्रांसपोर्ट का चेलेंज रहेगा. और लो इनकम कंज्यूमर्स भी एक चेलेंज है जो आपके पोटेंशियल कस्टमर्स है, मगर वो इतने गरीब होते है कि आपका प्रोडक्ट अफोर्ड नहीं कर पाते. बेशक ये लोग गरीब होते है मगर इन्हें प्रोडक्ट की क्वालिटी के बारे में पता होता है.

इसलिए आपको ऐसा प्रोडक्ट बनाना है जो हाई क्वालिटी के साथ अफोर्डेबल भी हो. इन सारे ओब्स्टेकल्स के पॉइंट ऑफ़ व्यू से देखे तो इंडिया जैसे देश में कोई भी न्यू बिजनेस स्टार्ट करना ऑलमोस्ट इम्पॉसिबल लगता है. लेकिन रीसर्च से प्रूव होता है कि अगर आप स्मार्ट और रीसोर्सफुल है तो आप इन सब ओब्सटेकल्स को पार कर सकते है. इसके लिए जुगाड़ इनोवेटर्स को अपने हर स्टेप पर सोल्यूशंस ढूँढने होंगे. इसके लिए मौजूदा प्रोडक्ट्स और रीसोर्सेस को रीयूज़ या कम्बाइन करते है. एसेट्स खरीदने के बाजए रेंट और शेयर करना आइडियल रहेगा.

ये लोग ऐसे नेटवर्क यूज़ करते है जो कस्टमर्स को प्रोडक्ट डिस्ट्रीब्यूट करने के लिए पहले से मौजूद है. ये इंटेलीजेंट इनोवेस्टर्स सिर्फ अपने प्रॉफिट का नहीं सोचते. बल्कि कस्टमर्स की नीड्स पूरी करना उनकी फर्स्ट प्रायोरिटी होती है. ये लोग कूल के बजाये वैल्यूएबल और सिंपल प्रोडक्ट्स बनाना पसंद करते है जो क्वालिटी ऑफ़ लाइफ बढ़ा सके. ऐसी ही एक स्टोरी है गुस्तावो की जिन्होंने कम रीसोर्सेस होते हुए भी काफी कुछ अचीव किया. गुस्तावो ग्रोबोकोपाटेल एक अन्जेंटीनियन फार्मर है. उसके पास अपना एक छोटा सा फेमिली फार्म था. लेकिन उसके सपने काफी बड़े थे. वो एक बड़े मार्किट तक अपनी पहुँच बनाना चाहता था.

स्टार्टिंग से ही उसे काफी प्रोब्लम्स फेस करनी पड़ी. उसकी फर्स्ट प्रोब्लम, उसे अर्जेंटाइना में कोई बड़ा फ़ार्म नहीं मिल रहा था, जो बड़े फार्म थे वो अमीरों के थे और वो लोग बेचने को तैयार नहीं थे. सेकंड प्रोब्लम थी कि उसे स्किल्ड वर्कर्स नहीं मिल रहे थे जो उसके फार्म में काम कर सके. और जो स्किल्ड थे वो काफी पैसे मांग रहे थे. थ्रेड प्रोब्लम थी फाईनेंशियल रीसोर्सेस, उसके पास लैंड खरीदने और वर्कर्स हायर करने के पैसे नहीं थे. लेकिन गुस्ताव गिव अप नहीं करना चाहता था, बल्कि उसने कम में ज्यादा वाली मेंटलिटी ट्राई की. उसने लैंड रेंट पे लिया.

उसने फ़ार्म के हर एक काम को छोटे-छोटे टास्क में डिवाइड कर दिया और फिर वर्कर्स के हर ग्रुप के डिफरेंट टास्क दिए गए जो वो ईजिली परफोर्म कर सके. उसने फार्म के लिए ब्रांड न्यू मशीने और टूल्स खरीदने के बजाये ये चीज़े रेंट पे ली. 2010 में उसकी कंपनी लैटिन अमेरिका की सेकंड लार्जेस्ट ग्रेन प्रोड्यूसर कंपनी बन चुकी थी.लेकिन ये सोचने की बात है कि अगर गुस्तावो ने जुगाड़ नहीं लगाया होता तो उसे सक्सेस कभी नही मिलती. तो इसलिए लाइफ में कई बार गरीब होना भी बड़े काम आता है. जो भी रीसोर्सेस आपके पास है उनका फुल यूज़ करो, हार मत मानो, बस लड़ते रहो.

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