(hindi) It Doesn’t Have to Be Crazy at Work

(hindi) It Doesn’t Have to Be Crazy at Work

“इंट्रोडक्शन(Introduction)

आपने कितनी बार ये फ्रेज़ सुना है “It’s crazy at work”? आपने तो शायद ख़ुद भी इसे कई बार कहा होगा. अब तो ऑफिस में वर्क लोड, स्ट्रेस कई लोगों के लिए नार्मल बात हो गई है लेकिन ऐसा क्यों?

आजकल ज़्यादातर हम सब काम को बोझ समझने लगे हैं, काम ख़त्म करने के प्रेशर में हम इतना स्ट्रेस ले लेते हैं कि लगता है पागल हो जाएँगे. लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए क्योंकि ये स्ट्रेस और irritation काम पूरा होने के बाद ख़त्म नहीं होते बल्कि हमारे साथ घर तक चले जाते हैं और हमारे आस पास के सभी लोगों पर अपना नेगेटिव असर दिखाने लगते हैं.इतना ही नहीं इन सब के साथ तेज़ी से हो रहे ग्रोथ और एक सक्सेसफुल बिज़नेस बनने का जुनून भी शामिल है जो हमारे काम और स्ट्रेस दोनों को बढ़ाता ही जा रहा है. आजकल हम अनरीयलिस्टिक गोल सेट करने लगे हैं जिसका प्रेशर हम सब पर पड़ रहा है. अपना बेस्ट परफॉर्म करने के बाद भी लोगों को लगता कि वो फेल हो रहे हैं.

ये बुक आपको सिखाएगी कि कैसे अपने ऑफिस को काम करने के लिए एक बेहतर जगह बनाया जा सकता है और कैसे एक रिलैक्स्ड माहौल बनाकर काम की क्वालिटी को इम्प्रूव किया जा सकता है.तो आइए बिना देर किए शुरू करते हैं.

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इट्स क्रेज़ी एट वर्क (It’s crazy at work)

हम अपने काम में इतने स्ट्रेस्ड और पागल क्यों रहते हैं इसके दो कारण हैं पहला, हमारे काम में कई तरह के फिजिकल और विसुअल distraction होते हैं जो हमारा ध्यान भटकाते हैं. दूसरा, हम सब पर टॉप पर रहने और ज़्यादा ग्रो करने का unhealthy जुनून सवार हो गया है जिसके कारण लोगों की demands और उम्मीदें बढ़ती जा रही हैं जिस वजह से उन्हें स्ट्रेस होने लगा है.

इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि लोग अपना हर पल अब काम करने में बिताने लगे हैं. वो अब ज़्यादा घंटे काम करते हैं, ऑफिस जल्दी पहुँच जाते हैं, देर से घर लौटते हैं और पहले जहां वीकेंड फॅमिली डे और रिलैक्स करने का डे हुआ करता था, उसे भी लोग अब काम करने में बिता देते हैं. अब काम ऑफिस तक सीमित नहीं रह गया उसने घर तक अपना रास्ता बना लिया है. आज के मॉडर्न वर्कर्स के लिए ज़्यादा काम करना,कम नींद लेना, ज़्यादा घंटों तक काम करना जैसे एक रिस्पेक्ट की बात हो गई है.

अब आप सोच रहे होंगे कि टेक्नोलॉजी कितनी एडवांस हो गई है, इन्टरनेट ने लाइफ कितनी आसान बना दी है तो काम का प्रेशर तो कम हो जाना चाहिए लेकिन असल में इसका बिलकुल opposite हुआ है. काम का लोड तो हर दिन के साथ बढ़ता ही जा रहा है.

इस बुक के दोनों ऑथर जेसन फ्राइड और डेविड हेनीमियर हैन्सन ने Basecamp नाम की एक कंपनी बनाई जो स्ट्रेस-फ्री और वेल मैनेज्ड कंपनी का सबसे बेहतरीन एक्जाम्पल है. ये अनरीयलिस्टिक गोल्स बनाने में, देर रात तक काम करने में और काम की वजह से स्ट्रेस लेने में विश्वास नहीं करते और इन सब के बावजूद Basecamp एक अच्छी खासी प्रॉफिट कमाने वाली कंपनी है जो बेहद smoothly काम करती है.

अब सवाल ये है कि वो ये कैसे कर लेते हैं? उनके पास पैसा कहाँ से आता है? इसका जवाब है, कस्टमर्स. Basecamp एक सॉफ्टवेर कंपनी है. अब आप सोच रहे होने कि ये भी लंबा पैसा बनाने की दौड़ में शामिल होंगे, लेकिन नहीं, बिलकुल नहीं. आपको सुनकर हैरानी होगी कि इस कंपनी में दुनिया भर के 30 अलग अलग शहरों के 54 एम्प्लोईज़ काम करते हैं. वो हफ्ते में 40 घंटे काम करते हैं और गर्मियों के मौसम में सिर्फ़ 32 घंटे. Basecamp सारे एम्प्लोईज़ के वेकेशन का सारा ख़र्च उठाती है .यहाँ तक कि उन्हें उनकी छुट्टियों के पूरे पैसे भी देती है.

इस कंपनी को काफ़ी अलग तरह से डिज़ाइन किया गया था कुछ इस तरह कि वो smoothly काम भी कर सकें और कमाल के रिजल्ट भी अचीव कर सकें यानी वो इंसान को इंसान समझते हैं रोबोट नहीं. उनके एम्प्लोईज़ स्ट्रेस और प्रेशर से कोसो दूर रहते हैं.

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बरी द हसल (Bury the hustle)

आजकल के नए बिजनेसमैन बड़ी अजीब सी बात कहते हैं कि “आपको टैलेंटेड होने की ज़रुरत नहीं है, आपको बस कड़ी मेहनत करने कीज़रुरत है, आपके गोल्स को इससे कोई मतलब नहीं है कि आप कैसा फील करते हैं.” इस सोच की शुरुआत उन लोगों को होप देने के लिए हुई थी जिनमें कॉन्फिडेंस की कुछ कमी है और जो आगे निकलना चाहते हैं लेकिन इसका रिजल्ट कुछ और ही हुआ. इस सोच से कुछ ही लोगों को सक्सेस मिली है लेकिन ज़्यादातर इससे बर्बाद ही हुए हैं जिन्होंने जी तोड़ मेहनत भी की लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं आया.

सच तो ये है कि आपको कुछ अचीव करने के लिए हर समय काम में लगे रहने की ज़रुरत नहीं है. आपको अपने लिए समय निकालने की, अपने बच्चों के साथ खेलने की, अपने हॉबी को पूरा करने के लिए समय निकालना चाहिए. इसके साथ साथ अपने फिजिकल और मेंटल हेल्थ का ख़याल रखना भी बहुत ज़रूरी है. कभी कभी कुछ ना करना और सिर्फ़ रिलैक्स करना हमारी हेल्थ के लिए बहुत इम्पोर्टेन्ट होता है लेकिन आज रिलैक्स करना लोगों को waste ऑफ़ टाइम लगने लगा है.

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डोंट चेंज द वर्ल्ड (Don’t change the world)

टेक्नोलॉजी के इम्प्रूवमेंट और समय के साथ बिज़नेस का डेफिनिशन बदल गया है. पहले की तरह, अब बिज़नेस का मतलब सिर्फ़ एक अच्छा प्रोडक्ट या सर्विस डिलीवर करना नहीं है. अब तो सब नंबर वन बने रहने की होड़ में लगे हुए हैं कि कौन पहले कोई इनोवेटिव आईडिया लेकर आएगा, जिसके बारे में किसी ने ना पहले कभी सुना होना देखा हो. बिज़नेस तो अब दुनिया को बदलने के बारे में हो गया है.

लेकिन Basecamp में इन सब चीज़ों की जगह नहीं है. Basecamp में बिज़नेस का मतलब है एक दूसरे के साथ सहयोग करना और अपनी टीम के लिए इजी कम्युनिकेशन बनाए रखना. इनका फोकस तो बस एक कमाल के प्रोडक्ट को बनाने पर रहता है. इनका फोकस दुनिया को बदलने या किसी और चीज़ पर नहीं हैं और सच पूछो तो ऐसी सोच में कुछ गलत नहीं है. ज़रूरी तो नहीं कि हर बिज़नेस कोई ना कोई रेवोल्यूशन लेकर आए. आपको ये सोचना बंद करना होगा कि आपको दुनिया में कोई चेंज लाना है या एक नई हिस्ट्री लिखनी है.

जब हमारी ख्वाइश हद से ज़्यादा बढ़ जाती है तो हम पर बर्डन भी बहुत बढ़ने लगता है.जब आप अपनी सोच को थोड़ा बदलेंगे तब आपको पूरा दिन नॉन-स्टॉप काम में डूबे रहने का बहाना नहीं बनाना पड़ेगा. आप अगले दिन भी अपना काम पूरा कर सकते हैं.इससे आपकी पर्सनल लाइफ और हेल्थ दोनों खराब होने से बचेगी.

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मेक इट अप एज़ यू गो (Make it up as you go)

Basecamp अपने प्रोडक्ट या कंपनी के लिए बड़े बड़े प्लान नहीं बनाता बल्कि इसकी शुरुआत भी किसी प्लान से नहीं हुई थी. पिछले 20 सालों से वो सिचुएशन को समझकर कर अपना अगला कदम उठाते हैं.अब आप सोचेंगे कि ये लोंग टर्म के लिए तो प्लानिंग हुई ही नहीं तो आप बिलकुल करेक्ट हैं. Basecamp हर एक possibility की ताक में नहीं रहते, वो बस उस मौके को देखते हैं जो ठीक उनके सामने होता है.

लोंग टर्म की प्लानिंग करना आपको एक झूठी सेंस ऑफ़ सिक्यूरिटी देता है और आप इस बात को नकार नहीं सकते कि हम में से कोई नहीं जानता कि आने वाले दिनों में या सालों में क्या होने वाला है. आप जितनी जल्दी इस बात को स्वीकार कर लेंगे आपके उतना अच्छा होगा कि क्या पता लोंग टर्म की प्लानिंग आपका एक गलत डिसिशन हो जो आपके पूरे फ्यूचर को रिस्क में डाल सकता है.

लोंग टर्म प्लानिंग में corporates की चिंता का एक बड़ा हिस्सा इस एहसास से आता है कि कंपनी जानती है कि वो कुछ गलत कर रही है लेकिन उसे ठीक करने का कोई तरीका नहीं है क्योंकि उन्हें अपने प्लान से भटकना नहीं है, उन्हें हर हाल में उसे फॉलो करके काम को कम्पलीट करना है. लेकिन बिज़नेस ओनर्स को ये बात समझनी होगी कि एक फ्लॉप आईडिया फ्लॉप ही होता है और उसे सिर्फ़ इस वजह से पूरा करना कि आपने उसकी शुरुआत कर दी है, टाइम, एनर्जी और रिसोर्सेज को बर्बाद करने जैसा है.

अब इससे अलग, Basecamp में हर 6 हफ्ते में एक बार मीटिंग बुलाई जाती है ताकि वो डिसाइड कर सकें कि अगले 6 हफ़्तों के समय में उन्हें क्या क्या करना है. उनका बस यही एक प्लान होता है और इसने उनके लिए मैजिक की तरह काम किया है. अगर आप शोर्ट टर्म के लिए प्लान बनाते हैं तो उसमें कभी भी आसानी से कुछ भी चेंज किया जा सकता है जिससे हम पर किसी बात का कोई प्रेशर नहीं होता. ये हमें रिलैक्स रहने में मदद करता है. जब हम लोंग टर्म के लिए प्लानिंग करते हैं तो उसमें कई तरह के रिस्क का ख़तरा बना रहता है क्योंकि बहुत सी चीज़ें हमारे कंट्रोल में नहीं होती और इस वजह से ये हमारी स्ट्रेस का कारण बन जाता है. Basecamp का मानना है कि बड़ी बड़ी प्लानिंग करने के बजाय छोटे स्टेप्स लेकर आगे बढ़ने में ही समझदारी है और उनकी ये सोच बिलकुल सही भी है.

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