(Hindi) Invisible Influence: The Hidden Forces that Shape Behavior

(Hindi) Invisible Influence: The Hidden Forces that Shape Behavior

इंट्रोडक्शन

क्या होगा अगर कोई आपसे कहे कि आपके फैसले पूरी तरह से आपके नहीं है? और ये कहे कि आपके लिए गए फैसलों पर  लोगों  का एक स्ट्रोंग इन्फ्लुएंस रहता है और आपको इसका पता भी नहीं चलता ? जी हाँ यही है सोशल साईंकोलोजी. एक्सपर्ट्स कहते है कि करीब 90% फैसले जो हम लेते है,  लोगों  की ओपिनियन और सलाह से प्रभावित होते है. और ये लोग हमारे भाई-बहन, हमारे पेरेंट्स या फिर हमारे स्कूलमेंट्स यानी हमारे आस-पास के ही लोग होते है.

आपको यकीन नहीं आता? तो चलिए इस किताब को पढ़ते है जो आपको सोचने पर मजबूर कर देगी. इसमें वो सारी कहानियाँ है जो हमे यकीन दिलाती है कि कैसे बाकि लोग हमारी लाइफ चॉइस पर अपनी छाप छोड़ते है. तो आइए इन्हें एक-एक करके डिस्कस कर लेते है.

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Monkey See, Monkey Do

चलो एक बेसिक विज़न एक्सरसाईंज़ लेते है. मान लो आपके सामने दो कार्ड रखे है. आपके बाएं जो कार्ड है उस पर एक लाइन है और जो दाईं तरफ है उस पर तीन लाईने बनी है. अब आपको दायें वाले कार्ड की लाइन को बाएं कार्ड की सेम लेंग्थ वाली लाइन से मैच करना है.

अब हम आंसर की बताते है, इसका सही आंसर है तीसरी लाइन या लाइन सी जो सही मैच करेगी. क्यों? क्योंकि आप देखेंगे कि लाइन ए काफी छोटी है और लाइन बी काफी बड़ी है. लाइन सी एकदम बराबर मैच करती है. आप शायद अकेले ये एकदम क्लियर देख पाए पर चैलेन्ज ये है कि आपको ये विज़न टेस्ट छह और  लोगों  के साथ करना है.

तो आप कमरे में आते हो और बाकि पार्टीसिपेंट को देखते हो.  Researcher आप सबको एक-एक करके ये टेस्ट करने के लिए बोलेगा, अब चूंकि कमरे में आने वाले आप आखिरी इन्सान है तो ज़ाहिर है आपको बाकियों के जवाब पता चल जायेंगे.

तो होता है ये कि पहला पार्टीसिपेंट लाइन्स को देखता है और कांफिडेंस के साथ जवाब देता है बी. अगला पार्टिसिपेंट आता है, थोडा सोचता है और फिर वो भी बी बोलता है. तीसरा पार्टिसिपेंट आता है, फिर चौथा, फिर पांचवा, इस तरह एक-एक करके सारे आते है और सबका एक ही जवाब है लाइन बी.

तो अब आप क्या करोगे? आपके माइंड में क्लियर आंसर है सी, आपने खुद अपनी आँखों से देखा कि सिर्फ लाइन सी ही लेफ्ट वाले कार्ड की लाइन से मैच करती है, तो फिर बाकि लोग बी क्यों बोल रहे है? आपका दिमाग चकरा जाता है.

तो अब बताइए आपका जवाब क्या होगा? क्या आप अपनी गट फीलिंग के साथ जायेंगे या वही जवाब देंगे जो  दूसरों  ने दिया?

चलिए इस पर बाद में चर्चा करेंगे, अभी हम एक दूसरी स्टडी पर बात करते है जो साईंकोलोजिस्ट मुजफ्फर शरीफ ने की थी. दरअसल वो ये पता लगाना चाहते थे कि क्या हमारी ओपिनियंस पर दूसरों का प्रभाव पड़ता है या  नहीं  पड़ता.

एक अँधेरे कमरे में एक दीवार पर लाईट का एक छोटा सा पिनपॉइंट बना था. इस स्टडी में पार्टिसिपेंट्स को लाईट को कुछ देर तक घूरना था और ये तय करना था कि लाईट वहां से कितनी देर बाद मूव हुई. उन्हें ये टेस्ट पहले अकेले में और फिर ग्रुप में करने को बोला गया था.
असल में लाईट का वो पिनपॉइंट अपनी जगह से कभी मूव ही नहीं हुआ पर जब हम किसी चीज़ को देर तक घूरते है तो हमारी आँखे थक जाती है और हमारा विज़न खुद ब खुद मूव हो जाता है जिससे दिमाग में एक इल्यूजन बन जाता है, हमे लगता है कि डॉट मूव हुआ है पर असल में ऐसा  नहीं  होता, डॉट अपनी जगह रहता है, बस हमारा विज़न मूव हो जाता है.

सबसे पहले शरीफ ने पार्टिसिपेंट्स को एक-एक करके रूम में भेजा. कुछ  लोगों  ने कहा कि डॉट दो इंच मूव हुआ है तो कुछ ने छेह इंच तक मूव होने का दावा किया.

इसके बाद पार्टिसिपेंट्स रूम में अंदर तीन के ग्रुप में भेजा गया. इस बार सबके जवाब अलग थे, कुछ  लोगों  ने अपने पहले वाले जवाब में 3.5 इंच जोडकर नया जवाब दिया और कुछ ने पहले के जवाब से चार इंच घटा के बताया.

लेकिन ऐसा हुआ क्यों? क्योंकि हर कोई ग्रुप के साथ अपना जवाब कन्फर्म करना चाहता था, उनमे से किसी ने शायद ही नोटिस किया हो पर हर कोई  दूसरे के जवाब से इन्फ्लुएस्ड था.

इस कांसेप्ट को सोशल इन्फ्लुएंस बोलते है. हम भी शायद ये बात नोटिस  नहीं  करते और ऊपर से दावा करते है कि हमारे फैसले सिर्फ हमारी पसंद, नापसंद और वैल्यूज पर बेस्ड है. लेकिन स्टडीज़ से प्रूव हुआ है कि हम 99% तक दूसरों के राय से प्रभावित होते है.

जिस तीन लाइंस वाले एक्सपेरिमेंट की हमने बात की थी, उसे साईंकोलोजिस्ट सोलोमन ऐश ने कन्डक्ट किया था. इसका सही जवाब लाइन सी था. राईट कार्ड की सिर्फ यही लाइन लेफ्ट कार्ड से मैच करती थी, एश ने इस एक्सपेरिमेंट में कुछ एक्टर्स को भी रखा था, सिर्फ एक पार्टिसिपेंट था, बाकि छेह लोग एक्टर्स थे.

सारे छह एक्टर्स ने लाइन बी बोला था, लेकिन पार्टिसिपेंट ने साफ देखा था कि सही जवाब लाइन सी है. पर सही जवाब चाहे कितना भी क्लियर क्यों ना हो, फिर भी पार्टिसिपेंट ने बाकियों की देखा-देखी लाइन बी को चूज़ किया. उनमे से 75% ने यही किया.

तो इस एक्सपेरीमेंट ने साबित कर दिया कि सही जवाब मालूम होने के बावजूद भी हम लोग भीड़ की हाँ में हाँ मिलाना पसंद करते है फिर चाहे भीड़ का फैसला गलत ही क्यों ना हो.

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A Horse of a Different Color

मॉर्गन ब्रायन एक 12 साल की सॉकर प्लेयर थी. एक दिन मॉर्गन ने देखा कि उनकी पूरी टीम एक ओलिंपिक डेवलपमेंट प्रोग्राम में शामिल की गई है और मॉर्गन को छोडकर हर एक टीम मेंबर का नाम लिस्ट में था.

मॉर्गन एक ऐसी लड़की थी जिसके लिए सॉकर उसकी जिंदगी थी पर अपना नाम लिस्ट में ना देखकर वो बेहद निराश हुई थी. लेकिन बजाये हार मानने के मॉर्गन ने उस साल की गर्मियों का भरपूर फायदा उठाया, वो शुरू से ही दुबली-पतली और छोटे कद की प्लेयर रही थी. यहाँ तक कि उसके टीममेट्स उसे “प्लांकटन” कहकर बुलाते थे. पर मॉर्गन ने पूरी गर्मियों खूब प्रेक्टिस की. अपने स्किल्स और बॉडी इम्प्रूव करने के लिए वो सारा दिन मेहनत किया करती थी, मॉर्गन ने किक्स की इतनी प्रेक्टिस करी कि ये उसके लिए बाएं हाथ का खेल बन गया था.

कोई एक साल बाद जाकर मॉर्गन स्टेट टीम में जगह बनाने में कामयाब रही, फिर रीजनल टीम में और फिर यूथ नेशनल टीम में उसका नाम आया. इस बात को दस साल गुजर गए और आज मॉर्गन यू.एस. नेशनल टीम की मेंबर है. वो सिर्फ 22 साल की है और 2015 में वो वीमेन वर्ल्ड’स कप के लिए खेल चुकी है.

अगर आप मॉर्गन से पूछे कि वो अपनी सफलता का श्रेय किसे देना चाहती है तो मॉर्गन अपनी बहन जेनिफर का नाम लेगी जो उससे पांच साल बड़ी है. मॉर्गन और जेनिफर रोजाना डिनर टाइम होने तक प्रेक्टिस किया करते थे. एक तरह से जेनिफर उसकी ट्रेनर और प्रेक्टिस पार्टनर थी.

और मजे की बात तो ये है कि अमेरिका में ज़्यादातर इलीट वीमेन सॉकर पलेयर की लिस्ट में शामिल औरतें अपने पेरेंट्स की पहली संतान नहीं हैं यानी सबके बड़े भाई या बहन हैं. अब जैसे एक्जाम्पल के लिए 2015 की वर्ल्ड कप टीम के 23 प्लेयर्स में से 17 के बड़े भाई बहन थे.

रिसर्च र्स ने वीमेन’स नेशनल टीम ट्रेनिंग कैंप के उन सभी प्लेयर्स के नाम पता किये थे जिनकी उम्र 14 से 23 के बीच थी. इस स्टडी से उन्हें कुछ ऐसे फैक्टर्स पता चले जो सारे प्लेयर्स के बीच सेम थे. सारे टॉप एथलीट्स के बीच एक ख़ास फैक्टर सेम था और ये था उनका बर्थ ऑर्डर. करीब 75% बेस्ट प्लेयर्स के बड़े भाई या बहन थे. यानी  दूसरे शब्दों में बोले तो बेस्ट प्लेयर्स में से ज़्यादातर कोई भी फर्स्टबोर्न चाइल्ड  नहीं  था.

मॉर्गन की तरह ही बाकि टॉप परफ़ॉर्मर के भी बड़े भाई या बहन उनके साथ प्रेक्टिस किया करते थे. बड़े भाई-बहन बड़े और तेज़ होते है. इसलिए वो अपने छोटे भाई-बहनों को अपने साथ अच्छी प्रेक्टिस करवा देते है वो उन्हें एक ट्रेनर की तरह पुश भी करते है. और छोटे भाई-बहन चुपचाप उनकी सारी बाते मान लेते है. ये सिर्फ सॉकर प्लेयर्स के साथ ही  नहीं  बल्कि बाकि गेम्स में भी अप्लाई होता है.

आपके कितनी भाई-बहन है? आप सबसे ज्यादा किसके करीब है? सिब्लिंग्स एक- दूसरे को कॉपी भी करते है और साथ ही एक  दूसरे से कॉम्पटीशन भी करते है. जैसे मान लो आपकी कोई बड़ी बहन है जो बहुत अच्छी ड्राइंग और पेंटिंग बनाती है, तो हो सकता है कि आप भी उसकी तरह आर्ट में इंटरेस्ट लेना शुरू कर दे.

लेकिन कई बार हम अपने भाई-बहनों से एकदम अलग भी होते है, जैसे बड़ा भाई स्मार्ट है तो छोटा भाई थोडा फनी टाइप होगा. या छोटा भाई स्पोर्टी टाइप है तो बड़ा भाई या बहन पढ़ाकू होगा. यानी हम किसी ना किसी रूप में एक  दूसरे से अलग पह्चान भी बनाना चाहते है.

यहाँ तक जुड़वाँ बच्चो की भी पसंद-नापसंद एक सी नहीं होती, वो भी एक  दूसरे से अलग पहचान बनाना चाहते है. दोनों की चौइस अलग होगी या फिर दोनों की पर्सनेलिटी डिफरेंट होगी.

ज़रा इमेजिन करो आप अपने दो ख़ास दोस्तों के साथ एक बार में बैठे हो. आप सब वेटर को एक-एक करके ऑर्डर देते हो. फर्स्ट फ्रेंड रेड एल आर्डर करता है और दूसरा  yellow  एल. हालाँकि आप भी  yellow  एल ऑर्डर करना चाहते हो पर आप समर स्टाइल बीयर ऑर्डर कर देते हो. क्यों? ज़ाहिर सी बात है, आप सेम चीज़ ऑर्डर करके सेम  नहीं  लगना चाहते.

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