(hindi) Inside Chanakya’s Mind: Aanvikshiki and the Art of Thinking
इंट्रोडक्शन
क्या आपने कभी सोचा है किआप किस तरह सोचते हैं? आप अपने प्रॉब्लम कैसे सुलझाते हैं?या क्या आप हटकर सोचते हैं? आपको क्या लगता है कि आप एक पॉजिटिव सोच रखने वाले इंसान हैं या नेगेटिव सोच रखने वाले ? येबुक आपको आपके सोचने के तरीके पर सोचने के लिए मजबूर करेगी? ये आपको आपके सोचने के तरीके के बारे में एक नया नज़रिया देगी.
चाणक्य ने एक कांसेप्ट बनाया था जिसे आंविक्षिकी (Aanvikshiki) कहते हैं. येएक ऐसी फिलोसोफी है जो यकीनन आपकी जिंदगी के लेवल कोबहुत ऊपर ले जाएगी.
Aanvikshiki
एक बार एक छोटा सा मासूम बच्चा था.जब भी उससे कोई गलती हो जाती तो उसके माता पिता उससे कहते, “हम जो कहते हैं तुम वो समझते क्यों नहीं? तुम हमारी क्यों नहीं सुनते?” बड़े होने पर जब वो स्कूल गया तो वहाँ उसे एग्जाम के लिए तैयार किया गया,कुछ सिखाने के लिए नहीं.जब उसके मार्क्स कम आते तो टीचर उससे कहती, “तुम ठीक से सोच कर क्यों नहीं लिखते? मैं जो कहती हूँ उसे ठीक से याद नहीं रखोगे तो एग्जाम और लाइफ में हमेशा फेल होते रहोगे.”
समय के साथ बच्चा टीनएज की उम्र में आया. उसे एक लड़की पसंद थी लेकिन कुछ समय बाद उसने उस लड़के का साथ छोड़ दिया. तब उसके दोस्तों ने कहा, “हमने तो पहले ही कहा था कि उसके चक्कर में मत पड़ो, तुमने हमारी बात क्यों नहीं सुनी?”
बड़े होने के बाद उसने पढ़ाई कम्पलीट की और एक कंपनी में जॉब करने लगा. उसके बॉस ने कहा, “बेस्ट रिजल्ट अचीव करने का ये सबसे अच्छा तरीका है. इसे फॉलो करो और तुम्हें प्रमोशन मिल जाएगा.”
कुछ समय बाद उसने शादी की और सेटल हो गया. अब उस पर अपनी वाइफ और बच्चों के साथ कई और ज़िम्मेदारियाँ आ गईं थीं. उसके घर के बड़े उससे कहते, “हमेशा अपनी ड्यूटी को याद रखना. इसमें तुम्हें ख़ुद को पूरी तरह समर्पित करना होगा.”
समय बीतता गया, उसके बच्चे बड़े हुए और उन्होंने अपने परिवार की शुरुआत की. अब उसके रिटायर होने का वक़्त आ गया था.तब उसके दोस्त ने कहा, “रिटायर होने के बाद तुम क्या करोगे? क्या तुमने कुछ सोचा है?”
फ़िर बुढ़ापे का दौर शुरू हुआ. उसकी पत्नी गुज़र चुकी थी जिस वजह से वो अकेला हो गया था.उसके बच्चे, पोते पतियाँ सब अपनी अपनी जिंदगी में बिजी थे.उसके ऊपर ना कोई ज़िम्मेदारी थी और ना करने के लिए कोई काम.
अब उसके पास अपनी जिंदगी और बीते हुए समय के बारे में सोचने का वक़्त ही वक़्त था. उसकी पूरी जिंदगी जैसे एक फ़िल्म की तरह उसकी आँखों के सामने चलने लगी. उसे वो दिन याद आने लगे जब वो बच्चा था, फ़िर एक teenager बना, उसके बाद एक प्रोफेशनल ,फ़िर एक पति और पिता. पहली बार उसे एहसास हुआ कि पूरा जीवन उसे दूसरों ने बताया था कि उसे कैसे सोचना चाहिए.
सही मायनों में क्या मतलब होता है “थिंक” का?जिंदगी में पहली बार वो आदमी अपनी सोच के बारे में सोच रहा था.सब ने उसे हमेशा बताया कि क्या सोचना है लेकिन किसी ने उसे ये नहीं सिखाया कि कैसे सोचना है.
इस बूढे आदमी की कहानी हम सभी की कहानी है. बड़े दुःख की बात है कि कई लोग अपनी पूरी जिंदगी बिना सोचे समझे ही गुज़ार देते हैं. अब आइए इस कहानी के दूसरे पहलू को देखते हैं.
इमेजिन कीजिए कि जब आप एक मासूम बच्चे थे तभी आपको सिखाया गया था कि कैसे सोचना चाहिए. इमेजिन कीजिए कि आपके पेरेंट्स ने आपको लॉजिक, डिसिशन लेना, एनालिसिस और प्लानिंग करना इन सब के बारे में सिखाया.उस सिचुएशन में आपकी जिंदगी पूरी तरह अलग होती. तब सिर्फ़ ज़रुरत पड़ने पर ही आप दूसरों की सलाह लेते लेकिन ज़्यादातर समय आप ख़ुद सोच समझ कर फ़ैसले करते.आप राय लेने के लिए किसी पर डिपेंडेंट नहीं होते.आपको रिस्क कैलकुलेट करना आता और आप ख़ुद को फेलियर और नुक्सान से बचा सकते थे. तब आप अपने लिए गए एक्शन का रिजल्ट ख़ुद देख पाते.
ये बुक आपको आंविक्षिकी या प्रैक्टिकल थिंकिंग के बारे में सिखाएगी. आप इसे थिंकिंग के टेक्निक्स या फिलोसोफी भी कह सकते हैं.आंविक्षिकी के साथ आप लाइफ के हर स्टेज में सक्सेसफुल होंगे.
जब आपको कोई विश कर कहता है, “Have a nice day” तो आपने कभी जवाब में “ पर कैसे”, पूछने के बारे में सोचा है?
लोग अक्सर सलाह देते रहते हैं, “ध्यान से सोचो या डिसिशन लेने से पहले दो बार सोचो” लेकिन असल में इसे करना कैसे है?असल में हमें किस तरह सोचना चाहिए?
यही तो चाणक्य हमें सिखाना चाहते हैं.आंविक्षिकी सोचने का प्रोसेस है. एग्ज़ाम्पल के लिए, अर्थशास्त्र हमें सिखाता है कि एक लीडर की तरह कैसे सोचना चाहिए.
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Types of Thinking
एक बात हमेशा याद रखें, आप अपने सोचने के तरीके को चुन सकते हैं. चाणक्य ने हमें सोचने के कई अलग-अलग तरीकों के बारे में बताया है जिन्हें हम अपने डेली लाइफ में अप्लाई कर सकते हैं.इस बुक के ज़रिए आप पहली बार सीखेंगे कि कैसे सोचना चाहिए. आप अपनी ज़रूरतों के हिसाब से थिंकिंग के अलग-अलग तरीकों को यूज़ कर सकते हैं.
औरों की तरह आपने भी पॉजिटिव और नेगेटिव थिंकिंग के बारे में सुना होगा. हमें हमेशा पॉजिटिव सोचने और उम्मीद बनाए रखने के बारे में सिखाया जाता है. लेकिन क्या कभी आपको किसी ने रीयलिस्टिक होने के लिए कहा है?
आंविक्षिकी हमें यही सिखाता है. ये पॉजिटिव या नेगेटिव थिंकिंग के बारे में नहीं है, ये रीयलिस्टिक थिंकिंग के बारे में है. अगर आप आंविक्षिकी सीख जाएँगे तब आप एक प्रैक्टिकल इंसान होंगे. तो आइए थिंकिंग के अलग-अलग तरीकों के बारे में जानते हैं.
पहला है, alternative थिंकिंग. एक प्रॉब्लम के कई solution हो सकते हैं.एग्ज़ाम्पल के लिए अगर आप पैसों की तंगी से गुज़र रहे हैं तो आप मेहनत कर ज़्यादा पैसे कमा सकते हैं या किसी दोस्त से मदद ले सकते हैं या बैंक से लोन ले सकते हैं या अपना सामान बेचकर अपनी प्रॉब्लम का हल निकाल सकते हैं.
इसी तरह, कई प्रोबलम्स को एक ही solution द्वारा हल किया जा सकता है.जैसे, अगर कोई कंपनी कई प्रोब्लम्स का सामना कर रही है तो उसका बस एक ही उपाय है जो है एक अच्छे लीडर का गाइडेंस.इसे alternative थिंकिंग कहा जाता है.ये तब होता है जब प्रॉब्लम और उसका solution दोनों आपके माइंड में होते हैं. अगर आप इसे समझ कर इस्तेमाल करना शुरू कर देते हैं तो आप जिंदगी के रास्ते में आने वाली किसी भी प्रॉब्लम का हल ढूंढ पाएंगे.
ये बड़े दुःख की बात है कि कुछ लोग सिर्फ़ प्रॉब्लम के बारे में ही सोचते रहतेहैं, वो बस प्रॉब्लम पर ही फोकस्ड रहते हैं. वो solution के बारे में सोचे बिना ही रियेक्ट कर देते हैं, दोष देने लगते हैं, शिकायतें करने लगते हैं. इसलिए आपको उस इंसान की तरह बनने की ज़रुरत है जो solution निकालने पर फोकस करता है.
अब सवाल ये है कि ये कैसे किया जा सकता है? चाणक्य ने इसके लिए एक सिंपल चार स्टेप का प्रोसेस बताया है जो हैं – साम, दान, दंड, भेद. कमाल की बात तो ये है कि ये चार स्टेप्स आपके हर प्रॉब्लम को सोल्व कर सकते हैं.
साम का मतलब है बातचीत याडिस्कस करना. इसका मतलब होताहै कभी किसी झगड़े या लड़ाई को ख़ुद शुरू ना करें. अगर आपका किसी साथी या परिवार के मेंबर से कोई मतभेद हो जाए तो उस मुद्दे के बारे में बैठ कर बात करें.जितना खुलकर आप बात करेंगे उतनी ही आसानी से वो मुद्दा सुलझ जाएगा.ऐसा रास्ता निकालने की कोशिश करें जिसमें दोनों का कुछ ना कुछ फ़ायदा शामिल हो यानी दोनों के लिए विन-विन सिचुएशन हो.
दान का मतलब होता है कोई तोहफ़ा देना. ये इंसान का नेचर है कि जब उसे तोहफ़ा मिलता है तो उसे बहुत अच्छा लगता है. लेकिन ये रिशवत देने से अलग होता है. यहाँ दोनों पार्टी के लिए कुछ ना कुछ फ़ायदा होना चाहिए यानी म्यूच्यूअल गेन. अगर आप किसी को कोई गिफ्ट देते हैं तो वो भी आपको बदले में कुछ देना चाहेगा. इसे लॉ ऑफ़ रेसिप्रोसिटी कहते हैं.
दंड का मतलब है सज़ा देना. जब पहले दो उपाय काम ना करें तो इसका इस्तेमाल करना पड़ता है.
अंत में आता है भेद यानीडिवीज़न. अगर आपने बात करने कीया कीमत चुकाने की कोशिश की लेकिन फ़िर भीप्रॉब्लम सोल्व ना हो तब आपको इसका इस्तेमाल करना होगा.प्रॉब्लम को analyse कर किसी ऐसे इंसान को ढूँढें जो आपकी बात से सहमत हो.कई बार इस तरीके में दोनों पार्टी अलग अलग हो जाती हैं इसलिए इसे भेद कहा जाता है.
आपको अपनी ज़रूरतों के हिसाब से इन तरीकों को यूज़ करना चाहिए.जैसे मान लीजिए कि कोई आदमी आपके सर पर बंदूक तान कर खड़ा है तब साम यानी बातचीत करना कोई अकलमंदी नहीं है यहाँ आप दंड का इस्तेमाल कर अपनी जान बचा सकते हैं.
वहीँ अगर कोई तोहफ़ा देकर आपकी प्रॉब्लम सोल्व हो जाती है तो लड़ने का क्या मतलब? ये तरीका इंटरनेशनल रिलेशन में साफ़ तौर पर दिखाई देता है.स्टेट के हेड एक दूसरे से मिलते हैं, मुद्दों पर चर्चा करते हैं, अपने अपने कल्चर के बारे में बताते हैं और अक्सर एक दूसरे को कई तोहफ़े भी देते हैं. शांति बनाए रखना हमेशा नेशनल लीडर्स की प्रायोरिटी रही है.
चाणक्य कहते हैं कि जो लोग मिलनसार और फ्रेंडली होते हैं, उन्हें आप साम और दान के द्वारा जीत सकते हैं. लेकिन जो लोग टेढ़ी खीर होते हैं उनके लिए दंड और भेद ही काम आता है.
आंविक्षिकी में सोचने का दूसरा तरीका है लीडरशिप थिंकिंग.चाणक्य ने ऐसे कई आदतों और व्यवहार के बारे में बताया है जो एक राजा में होनी चाहिए.लेकिन ये सब एक ही पर्पस को पूरा करते हैं यानी एक लीडर को ख़ुद से ऊपर दूसरों की भलाई और कल्याण को रखना चाहिए.उसके लिए लोगों की खुशी अपनी निजी खुशी से बढ़कर होनी चाहिए. ये महान लीडर्स की लीडरशिप थिंकिंग है.
इस कांसेप्ट को समझना बहुत आसान होगा अगर आप लीडर को एक पैरेंट के रूप में और followers को उनके बच्चे के रूप में देखेंगे तो.माँ बाप हमेशा अपने बच्चे की भलाई के बारे में सोचते हैं और अक्सर ख़ुद की इच्छाओं को नज़रंदाज़ कर देते हैं.अपने बच्चे को एक अच्छा जीवन देने के लिए वो हर संभव कोशिश करते हैं.
यहाँ तक कि अपने बच्चों का पेट भरने के लिए वो ख़ुद भूखे रहने को भी तैयार रहते हैं. अगर कोई आदमी ख़ुद नहीं पढ़ पाया तो वो अपने बच्चे को बेस्ट एजुकेशन देने की कोशिश करता है. इसी तरह, एक महान लीडर लोगों के कल्याण के लिए कड़ी मेहनत करता है.
सुख और हित में फ़र्क होता है.एग्ज़ाम्पल के लिए, अगर आप बीमार हैं तो डॉक्टर आपको ठीक करने के लिए कड़वी दवा लिख सकता है. उसका स्वाद तो ज़हर जैसा होगा लेकिन वो आपको ठीक ज़रूर कर देगा. ये दवा आपको ख़ुश नहीं करेगा लेकिन डॉक्टर आपको आपकी भलाई के लिए उसे लेने के लिए ज़रूर कहेंगे.
या उस बच्चे के बारे में सोचें जो पहली बार स्कूल जा रहा है.क्योंकि वो छोटा है वो ज़ोर-ज़ोर से रोने लगता है और अपने मम्मी पापा से लिपटा रहता है.बच्चा उदास है और स्कूल नहीं जाना चाहता लेकिन उसके मम्मी पापा उसे किसी तरह मना लेते हैं क्योंकि पढ़ाई लिखाई बिना एक अच्छी जिंदगी जी पाना काफ़ी मुश्किल होता है.
इसी तरह, कई बार एक लीडर को हाई टैक्स रेट लागू करना पड़ता है. ये लोगों को अच्छा तो नहीं लगेगा लेकिन अगर गवर्नमेंट ये साबित कर देती है कि वो corrupt नहीं हैं और टैक्स का सारा पैसा हॉस्पिटल, स्कूल, सडकें बनाने में लगाया जाएगा तब लोगों को जल्द ही समझ में आ जाएगा कि ये बड़ी हुई टैक्स रेट भी उनकी ही भलाई के लिए है.