(Hindi) India After Gandhi
परिचय (Introduction)
आजादी के बाद देश का क्या हुआ? वो कौन लोग थे जिन्होंने इतिहास रचा था? ऐसी कौन सी घटनाए थी जिसने 50 सालो में इण्डिया की पॉलिटिक्स, इकोनॉमी और सोसाइटी को शेप दिया था?
तो इन सब सवालों के जवाब आपको इस बुक summary के अंदर मिलेंगे. इण्डिया की जियोग्राफी, कल्चर और हेरिटेज़ सब काफी रिच है. हम एक डेवलपिंग कंट्री है मगर हम अभी भी सर्वाइव कर रहे है. ये बुक summary पढकर आपको अपने इन्डियन होने पर प्राउड होगा.
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फ्रीडम और पैरीसाइड (Freedom and Parricide)
इण्डिया का ऑफिशियल इंडिपेंडेंस डे है 15 अगस्त, 1947. ब्रिटिश ने इस डेट को इसलिए चूज़ किया था क्योंकि इस दिन सेकंड वर्ल्ड वार में जापान ने सरेंडर किया था. क्योंकि लार्ड माउंटबेटेन, जोकि इण्डिया के लास्ट वाईसरॉय थे अब और वेट नहीं करना चाहते थे. कुछ एस्ट्रोलोजर्स मानते है कि 15 अगस्त अनलकी डेट है. इसलिए नई दिल्ली में 14 अगस्त को सुबह 11 बजे से ही फॉर्मल events शुरू हो गए थे. और इसे लेजिसलेटिव कौंसिल ऑफ़ राज में कोंस्टीट्यूशनल असेंबली ने लीड किया था.
एजेंडे की फर्स्ट चीज़ थी पेट्रियोटिक सोंग वन्दे मातरम् गाना. फिर उन लोगो के लिए 2 मिनट का साइलेंस जिन्होंने इण्डिया की फ्रीडम के लिए जान की कुर्बानी दी थी. उसके बाद औरतो ने नेशनल फ्लैग प्रेजेंट किया.
उस रात तीन खासम खास लोगो ने स्पीच दी थी. इनमे से पहले से इन्डियन मुस्लिम्स के रिप्रेजेन्टेटिव. सेकंड, फिलोसोफी और पोलिटिकल ऐनालिस्ट के डॉक्टर. और थर्ड कोई और नहीं बल्कि खुद नेशन के फर्स्ट प्राइम मिस्निटर जवाहर लाल नेहरु थे.
उस दिन के बाद से उनकी इंस्पायरिंग स्पीच को कई बार कोट किया गया था. एक बार एक अमेरिकन जर्नलिस्ट ने रिपोर्ट दी थी कि कौंसिल हाउस के बाहर क्राउड ने सेलिब्रेट किया था. इसमें हिन्दू, सिख, मुस्लिम्स हर रिलिजन के लोग थे. सब के सब नेहरु जी को देखना चाहते थे.
कोंस्टीट्यूशनल असेंबली में 14 मेंबर्स थे. जिनमें से एक प्राइम मिनिस्टर भी थे. इसमें इंडियन नेशनल कांग्रेस के 6 रिप्रेजेन्टेटिव्स और एक बिजनेसमैन, एक औरत, दो अछूत, एक सिख और दो एथीस्ट (य़ानी वो लोग जो भगवान को नही मानते) भी शामिल थे.
ये वो लोग थे जिन्हें आज़ाद इण्डिया के लिए एक नया कोंस्टीट्यूशन तैयार करना था. 15 अगस्त की सुबह कोंस्टीट्यूट असेंबली ने ओथ लेकर (swore in) गवर्नमेंट हाउस में अपना ऑफिस संभाला. इवनिंग में फ्लैग सेरेमनी हुई और पटाखे भी छोड़े गए. दिल्ली में लोग जब फ्लैग होइस्ट कर रहे थे और खुशियाँ मना रहे थे, हमारे फादर ऑफ़ द नेशन गाँधी जी उस टाइम कलकत्ता में थे. वो किसी भी सेलिब्रेशन में शामिल नहीं हुए. दरअसल देश में हुए हिन्दू मुस्लिम दंगो की वजह से जान और माल का जो नुकसान हुआ था उससे गांधी जी बेहद दुखी थे. बीबीसी ने गाँधी जी से इंडिया की आजादी के लिए कोई मैसेज देने की रिक्वेस्ट की तो गांधी ने उन्हें नेहरु के पास जाने को बोला.
बीबीसी वालो ने गांधी से बोला” आपकी स्पीच ट्रांसलेट करके पूरे वर्ल्ड में ब्रोडकास्ट की जायेगी लेकिन गांधी फिर भी नहीं माने. उन्होंने बीबीसी वालो से कहा” मै इंग्लिश में बोलना भूल चूका हूँ”. और सेलिब्रेट करने के बजाये गांधीजी ने 15 अगस्त,1947 के दिन फास्ट रखा. क्योंकि वो जानते थे इंडिया को आजादी तो मिल गयी है लेकिन इसकी उसे काफी भारी कीमत चुकानी पड़ी थी और वो कीमत थी देश का बंटवारा. इण्डिया के दो पार्ट हो चुके थे. इंडिया और पाकिस्तान. पिछले 12 महीनो से हिंदूओ और मुस्लिम्स के बीच स्ट्रगल चल रहा था.
14 अगस्त, 1946 में कलकत्ता से दंगे शुरू हुए थे. दोनों तरफ के हज़ारो मासूम लोग मारे गए थे. और ये दंगे-फसाद तब तक नहीं रुके जब तक कि पकिस्तान नहीं बना. मुस्लिम्स लीग के लीडर थे मोहम्मद अली जिन्ना. उन्होंने भी गाँधी और नेहरु की तरह इंग्लैण्ड से लॉ की पढ़ाई की थी. जिन्ना पहले इन्डियन नेशनल कांग्रेस के मेंबर थे. मगर उन्होंने इसलिए पार्टी छोड़ी थी क्योंकि उन्हें लगता था कि कांग्रेस हिन्दुओं को ज्यादा फेवर करती है.
उन्हें लगता था कि पार्लियामेंट में मुस्लिम्स को ज्यादा अच्छे से रिप्रेजेंट नहीं किया जाता है. एक्चुअल में कलकता के दंगो का एक ही मकसद था, हिन्दू और मुस्लिम्स में फूट डालना. और ये ब्रिटिश लोगो की एक ऐसी चाल थी कि जाने से पहले इस देश के टुकड़े कर दिए जाए. इन दंगो में कलकत्ते से लेकर पूरे बंगाल, बिहार और पंजाब तक खून की नदियाँ बही थी. उस वक्त गांधी जी 77 साल के हो चुके थे फिर भी वो हिन्दू, मुस्लिम और सिखों को समझाने के लिए 100 मील तक सफ़र करते थे. उन्होंने सात हफ्तों तक गाँव-गाँव जाकर लोगो को समझाया. 15 अगस्त, 1947 की शाम गांधी जी ने कलकत्ता में एक प्रेयर मीटिंग रखी जिसे करीब 10,000 लोगो ने अटेंड किया था.
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द बिगेस्ट गेम्बल इन हिस्ट्री (The Biggest Gamble in History)
हिस्ट्री का सबसे बड़ा गैम्बल
वेस्टर्न सोसाइटी में फर्स्ट टाइम जब इलेक्शन हुआ था तो वो सिर्फ एलीट क्लास तक ही लिमिट था. वर्किंग क्लास आदमी और औरतो को वोटिंग का हक नहीं था. लेकिन इंडिया में, जोकि एकदम न्यू डेमोक्रेसी थी, जब फर्स्ट इलेक्शन हुए तो हिस्ट्री क्रिएट हुई. यहाँ 21 से साल से ऊपर चाहे मर्द हो या औरत, माइनोरीटीज से हो या अनपढ सब वोट दे सकते है. 1947 में हमारे देश को आजादी मिली थी और उसके सिर्फ दो साल बाद इलेक्शन कमिशन बनाई गयी. 1950 में सुकुमार सेन चीफ इलेक्शन कमिश्नर इलेक्ट हुए थे
और उसी साल पार्लियामेंट में रिप्रजेंटेशन ऑफ़ पीपल एक्ट अप्रूव हुआ था. सुकुमार सेन के कंधो पर काफी बड़ी रिस्पोंसेबिलिटी थी. उन्होंने लंदन यूनिवरसिटी से एक एक्सपर्ट मैथमेटीशियन की डिग्री ली थी. इलेक्शन कमिश्नर बनने से पहले वो एक जज और चीफ़ सेकेट्री रह चुके थे.
प्राइम मिनिस्टर नेहरु को उम्मीद थी कि नेशनल इलेक्शन काफी जल्दी यानी 1951 से ही स्टार्ट हो जायेंगे. मगर कमिश्नर सेन ने उन्हें थोडा वेट करने को बोला. 175 मिलियन इंडियंस को वोटिंग का राईट मिला था. जिसमे 21 साल से बड़े लोग थे और उनमे से भी 85% अनपढ़ थे. तो इतने लोगो को आईडेंटीफाई करके रजिस्टर करना काफी बड़ा चेलेंजिंग टास्क था. अब रजिस्ट्रेशन के बाद भी काफी काम बचा था. अनपढ़ वोटर्स के लिए बैलट पेपर्स और बॉक्सेस का इंतजाम करना था.
फिर पोलिग स्टेशन भी बनाने थे. पोलिंग स्टेशन्स पर पोलिंग ऑफिसर्स की ड्यूटी लगानी थी. तो ज़ाहिर है इसके लिए उन्हें ऑनेस्ट और हार्ड वर्किंग ऑफिसर्स की ज़रूरत थी. इलेक्शन के लिए फाइनल शेड्यूल जनवरी से फरवरी 1952 के बीच रखा गया. ये सारे फिगर्स हमे दिखाते है कि इण्डिया की हिस्ट्री में ये कितना बड़ा गैम्बल यानि जुआ था. हमारी 4,500 पोजीशंस दाँव (स्टेक) पर लगी थी और उनमे से 500 (Parliament) पार्लियामेंट के लिए थी और बाकि (provincial assemblies)प्रोविंशियल असेम्बलीज के लिए थी. 224,000 पोलिंग स्टेशन्स बनाए गए. करीब 2 मिलियन स्टील बैलट बॉक्सेस बनाये गए. वोट्स रिकॉर्ड और कम्बाइन करने के लिए 16,500 क्लर्क्स को ड्यूटी में रखा गया. 56,000 इलेक्शन ऑफिसर्स को वोटिंग प्रोसेस को सुपरवाइज़ करने के लिए रखा गया. और करीब 224,000 पुलिसवाले को भी ड्यूटी दी गयी थी कि वो इलेक्शन के दौरान शांति और सिक्योरिटी मेंटेन रखे.
हमारी कंट्री इतनी बड़ी और डाइवरसिटी से भरी है कि दूर-दराज़ के गाँवों तक पहुँचने के लिए हमे ब्रिजेस की ज़रूरत थी. इन्डियन ओसीन में हमारे इतने छोटे-छोटे आईलैंड है. और उन जगहों तो पहुँचने के लिए हमे शिप्स की भी काफी ज़रूरत थी. इसके अलावा हमारे देश में कई और भी जियोग्राफिकल चेलेन्जेस है जैसे कि कल्चरल और ट्रेडिशनल डिफरेंसेस. नोर्थन इण्डिया के कई पार्ट्स में तो औरतो ने अपने ओरिजिनल नाम तक रजिस्टर नहीं करने दिए.
दरअसल ज्यादातर ये औरते किसी की बीवी या किसी की माँ के नाम से जानी जाती थी. सुकुमार सेन काफी चिढ गए थे. उन्होंने इलेक्शन ओफिशिय्ल्स को ऑर्डर दिया कि दुबारा जाकर उन औरतो के रियल नेम पता करो, बावजूद इसके 2.8 million औरतो ने अपने असली नाम नहीं बताए. और बाद में उन्हें लिस्ट से आउट कर दिया गया. अनपढ़ लोगो की प्रोब्लम सोल्व करने के लिए पोलिटिकल पार्टीज़ के पिक्टोरियल सिम्बल्स बनाये गए. ताकि अनपढ़ लोग इन सिम्बल्स को पहचान कर अपनी चॉइस की पार्टी को वोट दे सके. जैसे कि बैलो की जोड़ी, झोपडी, हाथी या मिटटी का लैंप. एक और सोल्यूशन था,
मल्टीपल बैलट बॉक्सेस यूज़ करना. हर बॉक्स में एक पोलिटिकल पार्टी का सिम्बल बना होता था. जिन लोगो को पढना नही आता था वो अपना बैलट पेपर उस बॉक्स में डाल देते थे जिस पार्टी को उन्हें वोट देना है. फ्रोड वोटर्स की भी प्रोब्लम थी तो इसे सोल्व करने के लिए साइंटिस्ट ने एक ऐसी इंक बनाई जो वोटर की फिंगर में एक हफ्ते तक रहती थी. लोगो को वोटिंग के लिए एंकरेज करने के लिए इलेक्शन कमिशन ने एक डोक्यूमेंटरी फिल्म प्रोड्यूस की जिसे पूरे इण्डिया के करीब 3000 सिनेमा हाल्स में दिखाया गया था.
कमिशन ने आल इंडिया रेडियो में कई सारे प्रोग्राम्स भी स्पोंसेर्ड किये. इन सब चीजों का एक ही मकसद था कि लोगो को एजुकेट किया जाए कि एक डेमोक्रेसी में इलेक्शन की और वोटिंग की कितनी इम्पोर्टेंस होती है.