(hindi) I Don’t Want to Talk About It: Overcoming the Secret Legacy of Male Depression
इंट्रोडक्शन
सोसाइटी में ना जाने ये किस तरह की सोच बनी हुई है कि छोटे छोटे लड़कों को बचपन में ही ये सिखा दिया जाता है कि वो लड़के हैं तो उन्हें रफ़ एंड टफ बनना है, किसी भी इमोशन को फील नहीं करना है और उन्हें ज़ाहिर तो भूल से भी नहीं करना है. फ़ीलिंग्स तो सिर्फ़ लड़कियों के लिए हैं, उनके लिए नहीं. जब भी कोई छोटा लड़का रोता है तो उसके पेरेंट्स का पहला response होता है, “रोना बंद करो, क्या लड़कियों की तरह रो रहे हो. Boys dont cry” वगैरह वगैरह.
Boys dont cry, कहाँ से पैदा हुई ये सोच? अगर कोई लड़का रो ले तो उसमें क्या गलत है मुझे समझ नहीं आता. इसे क्यों एक कमज़ोरी के रूप में देखा जाता है या ऐसी चीज़ समझा जाता है जिससे लड़कों की मर्दांगनी कम हो जाएगी? क्या लड़के होने से पहले वो एक इंसान नहीं है? हमारे इमोशंस ही तो हमें इंसान बनाते हैं, तो उसे महसूस करना या जताना गलत कैसे हो सकता है? मुझे यकीन है कि आपकी जिंदगी में भी कुछ ऐसे पल ज़रूर आए होंगे जब आप डरे हुए होंगे या चीज़ों को हैंडल नहीं कर पा रहे होंगे तब आपके भी आंसू निकले होंगे.
तो क्या रोने से आपकी मर्दांगनी घट गई? नहीं, बल्कि अपनी भावनाओ को ज़ाहिर करना सिर्फ़ ये साबित करता है कि आप जानते हैं कि एक इंसान के तौर पर ऐसा रिएक्शन बिलकुल नेचुरल है और आप इसे हिम्मत के साथ लोगों के सामने दिखा सकते हैं.
अगर आप किसी आदमी को रोते हुए देखते हैं तो तुरंत सोच लेते हैं कि भई ये तो बिलकुल macho नहीं है, कमज़ोर और इमोशनल फूल है बस. अगर आपकी भी सोच ऐसी ही है तो एक बात सुनिए, असल में आप अपनी मर्दानगी को लेकर इतने insecure हैं कि अपनी भावनाओ को एक्सप्रेस करने जैसी सिंपल चीज़ से भी आपको लगता है कि आपकी manly इमेज पर दाग लग जाएगा.
छोटे-छोटे लड़कों को अपने इमोशंस को दबाने या छिपाने के लिए मजबूर करने से अंत में वो मार पीट, बेरहमी और गुस्से का सहारा लेने लगते हैं.
इस समरी में हम आदमियों के डिप्रेशन के बारे में गहराई से जानेंगे. आखिर वो इसे क्यों छिपाते हैं और सबसे ज़रूरी बात “क्यों छुपाते हैं”. हम इससे भी परे देखेंगे और उन भावनाओं को समझने की कोशिश करेंगे जो आदमी डिप्रेशन के स्टेट में महसूस करते हैं.
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Men’s Hidden Depression
एक बार इस बुक के ऑथर टेरेंस के पास डेविड नाम का आदमी अपने परिवार से साथ आया. टेरेंस लगभग 6 महीने से उनका इलाज कर रहे थे. डेविड अपने बेटे चैड और पत्नी एलेन के साथ उनके रूम में गया. चैड ने sunglasses पहन रखे थे. डेविड ने उसे चश्मा उतारने के लिए कहा. चैड ने अपने कंधे उचकाए और चश्मा पहने की बैठा रहा.
उसका रवैया देखकर डेविड ने चिल्लाकर कहा, “उसे उतार दो”. फ़िर भी चैड ने बात नहीं मानी. तब एलेन ने बात को बदलने के लिए डेविड से कहा कि वो टेरेंस को बताए कि कैसे कुछ दिन पहले उसने चैड पर हाथ उठाया था.
“मैंने उसे नहीं मारा था,” डेविड ने कहा.
“जो भी हो, बस उन्हें बता दो ,” ऐलेन ने जवाब दिया.
डेविड ने कहना शुरू किया, “चैड अपने हाथ में कार की चाबी लेकर बाहर जा रहा था. मैंने उससे पूछा कि वह कहां जा रहा है. इसमें कौन सा गुनाह हो गया, ये सवाल तो बड़ा नेचुरल सा है , है ना? ”
“हाँ, ज़रूर,” चाड ने ताना मारते हुए कहा.
“चैड ने जवाब नहीं दिया और गैरेज में चला गया. तो, मैंने उससे फिर पूछा, और उसने फ़िर जवाब नहीं दिया. फ़िर मैंने कहा कि अगर वह मुझे नहीं बताना चाहता कि वह कहाँ जा रहा है, तो यह उसकी मर्ज़ी है लेकिन मेरी भी मर्ज़ी है कि मैं उसे कार ले जाने ना दूं. इसलिए, मैंने चाबी ली और उसे कार पर दे मारा.”
“नहीं, आपने जमीन पर फेंका था!” चैड ने कहा.
“जो भी, हाँ जमीन पर, मैंने उन्हें जमीन पर फेंक दिया,” डेविड ने कहा.
टेरेंस ने पूछा कि उसके बाद क्या हुआ, डेविड ने जवाब दिया, “मैंने चैड को धीरे से यह कहते हुए सुना, 'भाड़ में जाओ,' मुझे गुस्सा आया और मैंने उसे धक्का दे दिया.”
“नहीं, डेविड, तुमने उसे बहुत ज़ोर से हिलाया था.”
टेरेंस ने अब वो किया जो वो आमतौर पर अपने पेशेंट्स के साथ करते थे. उन्होंने डेविड को एक प्ले के रूप में उस scene को उनके सामने दोहराने के लिए कहा.
तो डेविड ने पूरी सिचुएशन को वैसे ही दिखाया लेकिन इस बार उसने अपने बेटे को ज़ोर से दीवार से सटाया और उसका गला पकड़ते हुए चिल्लाकर कहा, “हिम्मत है तो दोबारा बोलकर दिखा.”
अब टेरेंस को इस मामले के बीच में आना पड़ा. उन्होंने डेविड को पकड़ा और शांत कराया. डेविड रूम के एक कोने में जाकर खड़ा हो गया.
अब टेरेंस ने एलेन से कहा कि वो इस scene को चैड के साथ डेविड के सामने करें.
इस बार डेविड ने सब कुछ अपनी आँखों के सामने होता हुआ देखा. फ़िर टेरेंस ने उससे पूछा, “तुम्हें ये सब देख कर कैसा लग रहा है?”
डेविड का सिर झुक गया. वो नीचे देखने लगा और ये साफ़ ज़ाहिर था कि वो दुखी महसूस कर रहा था.
अब टेरेंस ने उसे एलेन को चैड के साथ ऐसा करने से रोकने के लिए कहा.
डेविड ने एलेन को रुकने के लिए कहा, लेकिन उसने नहीं सुना. तब उसने चिल्लाया, “रुक जाओ, वो तुम्हारा बेटा है, तुम्हारा बेटा है. तुम उसके साथ ऐसा क्यों कर रही हो!”
अब टेरेंस ने डेविड से पूछा कि क्या वो प्ले में ख़ुद के अलावा किसी और भी देख रहा था. डेविड ने कहा कि उसे अपने पिता दिखाई दे रहे थे. फ़िर उसने अपने साथ घटी एक घटना का ज़िक्र किया.
बचपन में एक बार उसने अपने पिता को अपना रिपोर्ट कार्ड दिखाया. उसे ग्रेड D मिला था. उसका ग्रेड देखकर पिता बौखला गए और चिल्लाकर कहा, “हमारे परिवार में इतने ख़राब नंबर किसी के नहीं आए’ और गुस्से में रिपोर्ट कार्ड को फाड़ दिया.
डेविड उस समय बच्चा था, उसने रोते हुए अपने पिता से पूछा कि उन्होंने ऐसा क्यों किया.
उसके पिता ने उसे एक ज़ोरदार थप्पड़ मारकर इसका जवाब दिया.
टेरेंस ने एलेन को अब दोबारा उस scene को दोहराने के लिए कहा. जब एलेन ने चैड को मारने के लिए अपना हाथ उठाया तो डेविड ने उसका हाथ पकड़ लिया और कहा, “ऐसा मत करो, बच्चा है वो. हमारा बेटा है”, और ये कहकर वो फूट फूटकर रोने लगा.
क्या अब आप कुछ कुछ समझ पा रहे हैं? आदमियों में डिप्रेशन अक्सर छुपा रहता है और अलग-अलग रूप में बाहर आता है. एक ओर हैं औरतें जो अपने दर्द को अंदर ही अंदर दबाए रखती हैं जिस वजह से उन्हें ख़ुद से नफ़रत होने लगती है. दूसरी ओर हैं , आदमी जो अपने दर्द को अंदर दबाने के बजाय बाहर जताते हैं जो अक्सर मारपीट और गुस्से के रूप में सामने आता है. यही कारण है कि अनगिनत आदमी अपने परिवार ख़ासकर औरतों को मारते हैं.
बचपन से ही लड़कियों की इस तरह परवरिश की जाती है कि उनका कोई वजूद नहीं है. उनकी राय कोई मायने नहीं रखती इसलिए उन्हें अपना मुहं बंद रखना चाहिए और उन्हें अपनी भावनाओं को कहने के बजाय अंदर रखना चाहिए. और यही है समाज का दोगलापन कि वो औरतों को कमज़ोर मानते हैं
इसलिए उनका रोना जायज़ है, इसलिए लडकियां खुलकर अपने इमोशंस को दिखा सकती हैं ताकि उन्हें कोई सहारा दे सके.
हालांकि, बहुत कम उम्र से लड़कों को ये बताकर बड़ा किया जाता है कि उनका रोल घर में, सोसाइटी में बहुत मायने रखता है इसलिए उन्हें सबके सामने एक स्ट्रोंग पर्सनालिटी बनानी होगी और इमोशनल होना कायरता की निशानी है. उन्हें कहा जाता है कि उनका रोना देखकर सब उन्हें कमज़ोर कहेंगे और लड़की कहकर चिडाएंगे. इसी सोच के साथ बड़े होते होते आदमी अपनी फीलिंग्स को छुपाने लगते हैं और वो समय के साथ हिंसा के रूप में उभरकर बाहर आता है.
ये एक अंतहीन सिलसिला है. एक आदमी का डिप्रेशन अपने बेटे में पास होता है, वो उसके बेटे में पास होता है और आज आदमी इस बंधन में सिमटकर रह गए हैं.
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Sons of Narcissus: Self-Esteem, Shame, and Depression
इस टॉपिक की शुरुआत एक कहानी से करते हैं. ये कहानी है एक नौजावान, जोशीले और प्यारे लड़के नारसिसस की. हर कोई उसे पसंद करता था. लड़कियों में तो जैसे होड़ लग गई थी कि कौन उसकी जीवन साथी बनेगी. लेकिन नारसिसस सब लोगों से अलग थलग रहता था.
एक दिन, जब नारसिसस जंगल से गुज़र रहा था तो एक झील के पास पानी पीने रुका. उसने पानी में अपनी परछाई देखि और वो अपना रूप देखकर मोहित हो गया. उसने करीब जाकर अपनी परछाई को छूने की कोशिश की लेकिन जैसे ही उसने पानी को छूया तो उसकी तस्वीर गायब हो गई. ये देखकर वो रोने लगा. वो बार-बार अपनी परछाई को छूने की कोशिश करता और उसकी कोशिश बेकार हो जाती.
नारसिसस वहीँ बैठा रोता रहा, अब उसके आंसुओं से पानी में उसकी तस्वीर इतनी ख़ूबसूरत नहीं लग रही थी बल्कि उसे एक मायूस और उदास चेहरा दिखाई दे रहा था. ये देखकर उसका रोना और भी बढ़ गया. अब तो उसकी तस्वीर और भी बुरी दिखने लगी.
असल में उसे लग रहा था कि उसकी सुंदर तस्वीर उससे दूर जा रही है और वो उसे पकड़ने की कोशिश कर रहा था. इस घटना के बाद वो इतना उदास हो गया कि उसने खाना, पीना सोना सब बंद कर दिया. उस सदमे की वजह से कुछ समय बाद उसकी मौत हो गई.
अब ज़्यादातर लोग सोच रहे होंगे कि नारसिसस का मामला तो ख़ुद से बेहिसाब प्यार का है लेकिन असल में ऐसा नहीं है. ये उसका बिलकुल उल्टा है. नारसिसस ख़ुद को कभी प्यार ही नहीं कर पाया. उसमें ख़ुद के लिए बहुत कम आत्म सम्मान यानी सेल्फ एस्टीम था और वो चाहता था कि वो ख़ुद को पसंद करने लगे.
अगर नारसिसस ख़ुद से प्यार करता तो उसमें अपनी परछाई को पकड़ने की कोई इच्छा नहीं होती. इसलिए ख़ुद के लिए healthy सेल्फ एस्टीम होना बहुत ज़रूरी है. इसका मतलब होता है ये एक्सेप्ट करना कि इस दुनिया में कोई भी परफेक्ट नहीं है और ख़ुद को अपनी खामियों और कमियों के साथ खुलकर अपनाना ही हमें ख़ुशी और संतुष्टि दे सकता है. यहाँ हम सब जानते हुए भी ख़ुद की कद्र करते हैं, ख़ुद को प्यार करते हैं लेकिन अक्सर आदमी बड़े होते होते इस भावना को पूरी तरह से खो देते हैं.
एक आदमी में जितना कम सेल्फ एस्टीम होगा वो उतना ही ज़्यादा उसकी भरपाई करने की कोशिश करता है और वो इसे अपने बैंक अकाउंट, कार, प्रॉपर्टी के ज़रिए करता है.
एक आदमी को अपने बैंक अकाउंट से जो प्यार होता है वही प्यार नारसिसस को अपनी परछाई से हो गया था.
आइए एक और example से समझते हैं.
टेरेंस के क्लिनिक में थॉमस नाम का आदमी अपनी तीन बेटियों के साथ आया. थॉमस की जिंदगी का ज़्यादातर वक़्त काम करने में बीत गया था. लेकिन उसकी कमाई अच्छी थी. वो साल में 4,00,000$ कमाता था और इसके अलावा उसे कंपनी की तरफ से कई तरह की सुविधा भी दी गई थी. लेकिन इसका बुरा असर उसके रिश्तों पर पड़ा. थॉमस का ज़्यादातर समय घर से बाहर ही बीतता था. वो हफ्ते में 80 घंटे से ज़्यादा काम करता, वीकेंड पर भी बिजी रहता और उसका परिवार उसे कभी कभार ही देख पाता था.
ये सिलसिला लंबे समय तक चलता रहा और अब नौबत यहाँ तक आ गई थी कि बात तलाक तक पहुँच गई. थॉमस को ये जानकार आश्चर्य नहीं हुआ लेकिन जिस चीज़ ने उसे तकलीफ़ पहुंचाई थी वो ये थी कि उसकी तीनों बेटियों ने अपनी माँ का साथ दिया. उनके लिए थॉमस सिर्फ़ वो आदमी था जो उन्हें पैसे देता था, वो सिर्फ़ एक ATM मशीन बनकर रह गया था.
टेरेंस ने लड़कियों से पूछा कि वो थॉमस के बचपन के बारे में क्या जानती थीं. उन्होंने कहा कि वो कुछ भी नहीं जानते थे. तब टेरेंस ने थॉमस को अपने बचपन के बारे में बताने के लिए कहा.
थॉमस ने अपनी माँ से जुड़ा एक किस्सा बताया. “मुझे याद आ रहा है कि गर्मियों के दिन थे और उस दिन हवा भी नहीं चल रही थी. मैं अपने घर से भाग जाना चाहता था”, उसने कहा.
“तुम्हें क्या याद आ रहा है? तुम्हारी माँ कैसी थी? क्या तुम्हें कोई ख़ास सुगंध याद आ रही है?’ टेरेंस ने पूछा.
“शराब”, थॉमस ने कहा. “मुझे शराब की महक याद आ रही है. मेरी माँ से हमेशा शराब की बू आती थी. जब वो नशे में चूर होकर सो जाती तो मैं बस वहाँ बैठकर उन्हें सोता हुआ देखता रहता था. मैं हमेशा उनकी रखवाली करता और इस बात की चिंता में डूबा रहता कि वो जिंदा थी भी की नहीं.”
“ऐसा कितनी बार होता था?”
“हर रोज़,’ महीनों की थेरपी के बाद आज इस बात को कहते हुए पहली बार थॉमस के आंसू छलक पड़े. अपने पिता की ये हालत देखकर उनकी बेटियाँ हक्की बक्की रह गई. उनका मन भर आया. उसके बाद उन्होंने धीरे-धीर अपने पिता को माफ करना शुरू किया. उन तीनों ने कहा कि उन्हें उनकी हालत का ज़रा भी अंदाजा नहीं था और इसे जानने के बाद वो उन्हें बेहतर तरीके से समझ पा रहे थे.
बिलकुल नारसिसस की तरह, थॉमस भी सेल्फ एस्टीम के लिए तरस रहा था क्योंकि बचपन में वो उसके अंदर डेवलप ही नहीं हो पाया. सेल्फ एस्टीम पाने की उसकी चाहत इतनी बढ़ गई कि उसने इस खालीपन को भरने के लिए पैसा, काम और सक्सेस का सहारा लिया.
आपको क्या लगता है कि अगर थॉमस की माँ शराबी ना होकर थॉमस की परवाह और देखभाल करती, उसे वो प्यार देती जो हर बच्चा अपने माँ बाप से चाहता है, तो क्या चीज़ें अलग होतीं? हाँ, बिलकुल अलग होती. तब थॉमस इस सोच के साथ बड़ा होता कि इस दुनिया में कोई है जो उसकी परवाह करता है, कोई है जो मुसीबत आने पर उसके साथ खड़ा रहेगा. चाहे कुछ भी हो जाए उसे हमेशा अपनी माँ का प्यार मिलता रहेगा.
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